अधिभूतं क्षरो भावः पुरुषश्चाधिदैवतम्।
अधियज्ञोऽहमेवात्र देहे देहभृतां वर।।8.4।।
।।8.4।।हे देहधारियोंमें श्रेष्ठ अर्जुन क्षरभाव अर्थात् नाशवान् पदार्थको अधिभूत कहते हैं पुरुष अर्थात् हिरण्यगर्भ ब्रह्माजी अधिदैव हैं और इस देहमें अन्तर्यामीरूपसे मैं ही अधियज्ञ हूँ।
।।8.4।। हे देहधारियों में श्रेष्ठ अर्जुन नश्वर वस्तु (पंचमहाभूत) अधिभूत और पुरुष अधिदैव है इस शरीर में मैं ही अधियज्ञ हूँ।।