अहं क्रतुरहं यज्ञः स्वधाऽहमहमौषधम्।
मंत्रोऽहमहमेवाज्यमहमग्निरहं हुतम्।।9.16।।
।।9.16।।(टिप्पणी प0 503) क्रतु मैं हूँ? यज्ञ मैं हूँ? स्वधा मैं हूँ? औषध मैं हूँ? मन्त्र मैं हूँ? घृत मैं हूँ? अग्नि मैं हूँ और हवनरूप क्रिया भी मैं हूँ। जाननेयोग्य? पवित्र? ओंकार? ऋग्वेद? सामवेद और यजुर्वेद भी मैं ही हूँ। इस सम्पूर्ण जगत्का पिता? धाता? माता? पितामह? गति? भर्ता? प्रभु? साक्षी? निवास? आश्रय? सुहृद्? उत्पत्ति? प्रलय? स्थान? निधान तथा अविनाशी बीज भी मैं ही हूँ।
।।9.16।। मैं ऋक्रतु हूँ मैं यज्ञ हूँ स्वधा और औषध मैं हूँ? मैं मन्त्र हूँ? घी हूँ? मैं अग्नि हूँ और हुतं अर्थात् हवन कर्म मैं हूँ।।