ते तं भुक्त्वा स्वर्गलोकं विशालं
क्षीणे पुण्ये मर्त्यलोकं विशन्ति।
एव त्रयीधर्ममनुप्रपन्ना
गतागतं कामकामा लभन्ते।।9.21।।
।।9.21।।वे उस विशाल स्वर्गलोकके भोगोंको भोगकर पुण्य क्षीण होनेपर मृत्युलोकमें आ जाते हैं। इस प्रकार तीनों वेदोंमें कहे हुए सकाम धर्मका आश्रय लिये हुए भोगोंकी कामना करनेवाले मनुष्य आवागमनको प्राप्त होते हैं।
।।9.21।। व्याख्या -- ते तं भुक्त्वा स्वर्गलोकं ৷৷. कामकामा लभन्ते -- स्वर्गलोक भी विशाल (विस्तृत) है? वहाँकी आयु भी विशाल (लम्बी) है और वहाँकी भोगसामग्री भी विशाल (बहुत) है। इसलिये इन्द्रलोकको विशाल कहा गया है।स्वर्गकी प्राप्ति चाहनेवाले न तो भगवान्का आश्रय लेते हैं और न भगवत्प्राप्तिके किसी साधनका ही आश्रय लेते हैं। वे तो केवल तीनों वेदोंमें कहे हुए सकाम धर्मों(अनुष्ठानों) का ही आश्रय लेते हैं। इसलिये उनको त्रयीधर्मके शरण बताया गया है।गतागतम् का अर्थ है -- जाना और आना। सकाम अनुष्ठान करनेवाले स्वर्गके प्रापक जिन पुण्योंके फलस्वरूप स्वर्गमें जाते हैं? उन पुण्योंके समाप्त होनेपर वे पुनः मृत्युलोकमें लौट आते हैं। इस प्रकार उनका घटीयन्त्रकी तरह बारबार सकाम शुभकर्म करके स्वर्गमें जाने और फिर लौटकर मृत्युलोकमें आनेका चक्कर चलता ही रहता है। इस चक्करसे वे कभी छूट नहीं पाते।अगर पूर्वश्लोकमें आये पूतपापाः पदसे जिनके सम्पूर्ण पाप नष्ट हो गये हैं और यहाँ आये क्षीणे पुण्ये पदोंसे जिनके सम्पूर्ण पुण्य क्षीण हो गये हैं -- ऐसा अर्थ लिया जाय? तो उनको (पापपुण्य दोनों क्षीण होनेसे) मुक्त हो जाना चाहिये परन्तु वे मुक्त नहीं होते? प्रत्युत आवागमनको प्राप्त होते हैं। इसलिये यहाँ पूतपापाः पदसे वे लिये गये हैं? जिनके स्वर्गके प्रतिबन्धक पाप यज्ञ करनेसे नष्ट हो गये हैं और क्षीणे पुण्ये पदोंसे वे लिये गये हैं? जिनके स्वर्गके प्रापक पुण्य वहाँका सुख भोगनेसे समाप्त हो गये हैं। अतः सम्पूर्ण पापों और पुण्योंके नाशकी बात यहाँ नहीं आयी है। सम्बन्ध -- जो त्रयीधर्मका आश्रय लेते हैं? उनको तो देवताओंसे प्रार्थना -- याचना करनी पड़ती है परन्तु जो केवल मेरा ही आश्रय लेते हैं? उनको अपने योगक्षेमके लिये मनमें चिन्ता? संकल्प अथवा याचना नहीं करनी पड़ती -- यह बात भगवान् आगेके श्लोकमें बताते हैं।