येऽप्यन्यदेवता भक्ता यजन्ते श्रद्धयाऽन्विताः।
तेऽपि मामेव कौन्तेय यजन्त्यविधिपूर्वकम्।।9.23।।
।।9.23।।हे कुन्तीनन्दन जो भी भक्त (मनुष्य) श्रद्धापूर्वक अन्य देवताओंका पूजन करते हैं? वे भी करते तो हैं मेरी ही पूजन? पर करते हैं अविधिपूर्वक।
।।9.23।। हे कौन्तेय श्रद्धा से युक्त जो भक्त अन्य देवताओं को पूजते हैं? वे भी मुझे ही अविधिपूर्वक पूजते हैं।।