अहं हि सर्वयज्ञानां भोक्ता च प्रभुरेव च।
न तु मामभिजानन्ति तत्त्वेनातश्च्यवन्ति ते।।9.24।।
।।9.24।। क्योंकि सब यज्ञों का भोक्ता और स्वामी मैं ही हूँ? परन्तु वे मुझे तत्त्वत नहीं जानते हैं? इसलिए वे गिरते हैं? अर्थात् संसार को प्राप्त होते हैं।।
Although the Supreme Lord Krishna is the object of all propitiation and worship there is no relation or reciprocation by Him if it is not within the parampara or authorised disciplic succession performed according to the prescribed injunctions of the Vedic scriptures.