पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति।
तदहं भक्त्युपहृतमश्नामि प्रयतात्मनः।।9.26।।
।।9.26।।जो भक्त पत्र? पुष्प? फल? जल आदि (यथासाध्य प्राप्त वस्तु) को भक्तिपूर्वक मेरे अर्पण करता है? उस मेरेमें तल्लीन हुए अन्तःकरणवाले भक्तके द्वारा भक्तिपूर्वक दिये हुए उपहार(भेंट) को मैं खा लेता हूँ।
।।9.26।। जो कोई भी भक्त मेरे लिए पत्र? पुष्प? फल? जल आदि भक्ति से अर्पण करता है? उस शुद्ध मन के भक्त का वह भक्तिपूर्वक अर्पण किया हुआ (पत्र पुष्पादि) मैं भोगता हूँ अर्थात् स्वीकार करता हूँ।।