अपि चेत्सुदुराचारो भजते मामनन्यभाक्।
साधुरेव स मन्तव्यः सम्यग्व्यवसितो हि सः।।9.30।।
।।9.30।।अगर कोई दुराचारीसेदुराचारी भी अनन्यभावसे मेरा भजन करता है? तो उसको साधु ही मानना चाहिये। कारण कि उसने निश्चय बहुत अच्छी तरह कर लिया है।
।।9.30।। यदि कोई अतिशय दुराचारी भी अनन्यभाव से मेरा भक्त होकर मुझे भजता है? वह साधु ही मानने योग्य है? क्योंकि वह यथार्थ निश्चय वाला है।।