किं पुनर्ब्राह्मणाः पुण्या भक्ता राजर्षयस्तथा।
अनित्यमसुखं लोकमिमं प्राप्य भजस्व माम्।।9.33।।
।।9.33।। फिर क्या कहना है कि पुण्यशील ब्राह्मण और राजर्षि भक्तजन (परम गति को प्राप्त होते हैं) (इसलिए) इस अनित्य और सुखरहित लोक को प्राप्त होकर (अब) तुम भक्तिपूर्वक मेरी ही पूजा करो।।
।।9.33।। यदि पूर्व श्लोक में वर्णित गुणहीन और साधनहीन लोग भी भक्ति के द्वारा ईश्वर को प्राप्त हो सकते हैं? तो फिर साधन सम्पन्न व्यक्तियों के लिए परमार्थ की प्राप्ति कितनी सरल होगी? यह कहने की आवश्यकता नहीं है। ये साधनसम्पन्न लोग हैं ब्राह्मण अर्थात् शुद्धान्तकरण का व्यक्ति? तथा राजा माने उदार हृदय और दूर दृष्टि का बुद्धिमान व्यक्ति। जिस राजा ने बुद्धिमत्तापूर्वक अपनी राजसत्ता एवं धनवैभव का उपयोग किया हो? वह आत्मानुसंधान के द्वारा वास्तविक शान्ति का अनुभव प्राप्त करता है। ऐसे राजा को ही राजर्षि कहते हैं।सब प्रकार के सम्भावित बुद्धि और हृदय के लोगों का वर्णन करके? और आत्मज्ञान के लिए सबको उपयुक्त साधना का विधान करने के पश्चात्? अब? भगवान् इस प्रकरण का उपसंहार करते हुए कहते हैं? इस अनित्य और सुखरहित लोक को प्राप्त करके अब तुम मेरा भजन करो। अर्जुन के निमित्त दिया गया उपदेश हम सबके लिए ही है क्योंकि यदि श्रीकृष्ण आत्मा का प्रतिनिधित्व करते हैं? तो अर्जुन उस मनुष्य का प्रतिनिधि है? जो जीवन संघर्षों की चुनौतियों का सामना करने में अपने आप को असमर्थ पाता है।असंख्य विषय? इन्द्रियाँ और मन के भाव इनसे युक्त जगत् में ही हमें जीवन जीना होता है। ये तीनों ही सदा बदलते रहते हैं। स्वाभाविक ही? इन्द्रियों के द्वारा विषयोपभोग का सुख अनित्य ही होगा। और दो सुखों के बीच का अन्तराल केवल दुखपूर्ण ही होगा।आशावाद का जो विधेयात्मक और शक्तिप्रद ज्ञान गीता सिखाती है? उसी स्वर में? भगवान् श्रीकृष्ण यहाँ कहते हैं कि यह जगत् केवल दुख का गर्त या निराशा की खाई या एक सुखरहित क्षेत्र है।भगवान् श्रीकृष्ण अर्जुन को उपदेश देते हैं कि इस अनित्य और सुखरहित लोक को प्राप्त होकर अब उसको नित्य और आनन्दस्वरूप आत्मा की पूजा में प्रवृत्त होना चाहिए। इस साधना में अर्जुन को प्रोत्साहित करने के लिए भगवान् ने यह कहा है कि गुणहीन लोगों के विपरीत जिस व्यक्ति में ब्राह्मण और राजर्षि के गुण होते हैं? उसके लिए सफलता सरल और निश्चित होती है। इसलिए भक्तिपूर्वक मेरी पूजा करो।हे मेरे प्रभु जब मुझे युद्धभूमि में शत्रुओं का सामना करना हो? तब मैं आपकी पूजा किस प्रकार कर सकता हूँ इस पर भगवान् कहते हैं --