यथाऽऽकाशस्थितो नित्यं वायुः सर्वत्रगो महान्।
तथा सर्वाणि भूतानि मत्स्थानीत्युपधारय।।9.6।।
।।9.6।।जैसे सब जगह विचरनेवाली महान् वायु नित्य ही आकाशमें स्थित रहती है? ऐसे ही सम्पूर्ण प्राणी मुझमें ही स्थित रहते हैं -- ऐसा तुम मान लो।
।।9.6।। जैसे सर्वत्र विचरण करने वाली महान् वायु सदा आकाश में स्थित रहती हैं? वैसे ही सम्पूर्ण भूत मुझमें स्थित हैं? ऐसा तुम जानो।।