सर्वभूतानि कौन्तेय प्रकृतिं यान्ति मामिकाम्।
कल्पक्षये पुनस्तानि कल्पादौ विसृजाम्यहम्।।9.7।।
।।9.7।।हे कुन्तीनन्दन कल्पोंका क्षय होनेपर सम्पूर्ण प्राणी मेरी प्रकृतिको प्राप्त होते हैं और कल्पोंके आदिमें मैं फिर उनकी रचना करता हूँ।
।।9.7।। हे कौन्तेय (एक) कल्प के अन्त में समस्त भूत मेरी प्रकृति को प्राप्त होते हैं और (दूसरे) कल्प के प्रारम्भ में उनको मैं फिर रचता हूँ।।