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भक्त लाला भगवानसहायजी की मार्मिक कथा
भक्त लाला भगवानसहायजी की अधबुत कहानी - Full Story of भक्त लाला भगवानसहायजी (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [भक्त लाला भगवानसहायजी]- भक्तमाल


भगवानसहायजीका जन्म कायस्थ सक्सेनाकुलमें संवत् 1934 वि0में हुआ कुरावली जिला मैनपुरीको उनकी जन्मभूमि होनेका गौरव प्राप्त हुआ। उनके पिता श्रीशंकरलालजी बड़े भगवद्भक, शिवोपासक और भजनप्रेमी व्यक्ति थे। समयके प्रवाह 1857 में कुरावलीको छोड़ना पड़ा और जीविकोपार्जन के लिये ये ग्वालियर राज्यान्तर्गत नरवर नामक कस्बेमें रहने लगे। यहाँ आकर उन्होंने राजकीय सेवा स्वीकार की।

लाला भगवानसहायजीकी शिक्षा योग्य गुरुओंके अनुशासनमें आरम्भ हुई। बाल्यकालमें वे एक गुरुभक तथा ईश्वरपरायण छात्र थे। युवावस्थामें उनको पुलिस विभाग में नौकरी करनी पड़ी तथा उन्होंने उक्त विभागकी सेवा ग्यारह वर्षोंतक तन-मनसे की। भ्रष्टाचारसे सदैव दूर रहे अपने सहयोगियोंके चंगुल में फँस जानेपर यदि कभी कुछ अनुचित धन लेना ही पड़ता तो उसे घर न लाकर मार्ग में ही निर्धन भिखारियोंमें वितरित कर देते तथा घर आनेपर हाथ धोकर प्रायश्चित्त करते थे।

पुलिस विभागमें यह बड़ी कठिन चीज है। सरकारी कार्यकी अपेक्षा पारलौकिक कर्तव्यका वे विशेष ध्यान रखते थे। ब्रह्ममुहूर्त उठते तथा भगवान्‌के ध्यानमें रत रहते। बड़े प्रेम और श्रद्धासे भगवान्‌का षोडशोपचार पूजन करते और तुलसीकृत रामायणका पाठ करते थे। नित्यका पूजन करनेके पूर्व कुछ भी खाते नहीं थे। यदि राजकीय कार्योंके कारण कभी नित्यकर्ममें बाधा आतीतो उपवास करते थे तथा पूजन-पाठादि करनेके पश्चात् ही अन्न ग्रहण करते थे।

सरकारी कार्यसे निवृत्त होनेके पश्चात् सायङ्काल परिभ्रमणके लिये जाते थे। रात्रिमें 'भक्तमाल' आदि पुस्तकोंका स्वाध्याय तथा प्रार्थना करते थे। ग्यारह बारह बजे भगवान्का स्मरण करते हुए सो जाते थे।

उनके पिता श्रीशंकरलालजी वृद्धावस्थामें नेत्रज्योतिहीन हो गये थे। अतः पिताजीकी सेवा सदैव स्वयं ही करते थे। स्थानान्तरमें विशेष उन्नतिके साथ बदली होनेपर उन्होंने यह कहकर कि 'नौकरियाँ तो और भी मिल सकेंगी परंतु पितृसेवाका अलभ्य लाभ फिर थोड़े ही मिलनेवाला है' त्यागपत्र प्रस्तुत कर दिया।

वे प्रत्येक कार्यको भगवान्‌की आज्ञा मानते थे तथा हर्ष-विषादसे दूर रहकर निर्लिप्त भावसे कर्म करते थे। वे दयावान् मधुरभाषी, सरल प्रकृतिके होकर प्राणिमात्रके हितचिन्तक थे। किसी भी वस्तुको अपनी न कहकर 'रामजी' की कहते थे। कृषि जमींदारी आदिसे जो कुछ प्राप्त हो जाता, उसीमें संतुष्ट रहते थे। सदैव तुलसीकी माला धारण करते तथा पक्षियों और चींटियोंको अन डालते थे।

उनका देहान्त सन् 1944 ई0 के मई मासमें हुआ। देहान्तके समय उनके दोनों पुत्र बाहर गये हुए थे। उनके लौटनेतक प्राणोंको ब्रह्माण्डमें धारण कर लिया। दो -दिनतक इसी स्थितिमें रहे तथा उनके आनेपर शान्तिपूर्वक प्राणत्याग किया।



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bhagavaanasahaayajeeka janm kaayasth saksenaakulamen sanvat 1934 vi0men hua kuraavalee jila mainapureeko unakee janmabhoomi honeka gaurav praapt huaa. unake pita shreeshankaralaalajee bada़e bhagavadbhak, shivopaasak aur bhajanapremee vyakti the. samayake pravaah 1857 men kuraavaleeko chhoda़na pada़a aur jeevikopaarjan ke liye ye gvaaliyar raajyaantargat naravar naamak kasbemen rahane lage. yahaan aakar unhonne raajakeey seva sveekaar kee.

laala bhagavaanasahaayajeekee shiksha yogy guruonke anushaasanamen aarambh huee. baalyakaalamen ve ek gurubhak tatha eeshvaraparaayan chhaatr the. yuvaavasthaamen unako pulis vibhaag men naukaree karanee pada़ee tatha unhonne ukt vibhaagakee seva gyaarah varshontak tana-manase kee. bhrashtaachaarase sadaiv door rahe apane sahayogiyonke changul men phans jaanepar yadi kabhee kuchh anuchit dhan lena hee pada़ta to use ghar n laakar maarg men hee nirdhan bhikhaariyonmen vitarit kar dete tatha ghar aanepar haath dhokar praayashchitt karate the.

pulis vibhaagamen yah bada़ee kathin cheej hai. sarakaaree kaaryakee apeksha paaralaukik kartavyaka ve vishesh dhyaan rakhate the. brahmamuhoort uthate tatha bhagavaan‌ke dhyaanamen rat rahate. bada़e prem aur shraddhaase bhagavaan‌ka shodashopachaar poojan karate aur tulaseekrit raamaayanaka paath karate the. nityaka poojan karaneke poorv kuchh bhee khaate naheen the. yadi raajakeey kaaryonke kaaran kabhee nityakarmamen baadha aateeto upavaas karate the tatha poojana-paathaadi karaneke pashchaat hee ann grahan karate the.

sarakaaree kaaryase nivritt honeke pashchaat saayankaal paribhramanake liye jaate the. raatrimen 'bhaktamaala' aadi pustakonka svaadhyaay tatha praarthana karate the. gyaarah baarah baje bhagavaanka smaran karate hue so jaate the.

unake pita shreeshankaralaalajee vriddhaavasthaamen netrajyotiheen ho gaye the. atah pitaajeekee seva sadaiv svayan hee karate the. sthaanaantaramen vishesh unnatike saath badalee honepar unhonne yah kahakar ki 'naukariyaan to aur bhee mil sakengee parantu pitrisevaaka alabhy laabh phir thoda़e hee milanevaala hai' tyaagapatr prastut kar diyaa.

ve pratyek kaaryako bhagavaan‌kee aajna maanate the tatha harsha-vishaadase door rahakar nirlipt bhaavase karm karate the. ve dayaavaan madhurabhaashee, saral prakritike hokar praanimaatrake hitachintak the. kisee bhee vastuko apanee n kahakar 'raamajee' kee kahate the. krishi jameendaaree aadise jo kuchh praapt ho jaata, useemen santusht rahate the. sadaiv tulaseekee maala dhaaran karate tatha pakshiyon aur cheentiyonko an daalate the.

unaka dehaant san 1944 ee0 ke maee maasamen huaa. dehaantake samay unake donon putr baahar gaye hue the. unake lautanetak praanonko brahmaandamen dhaaran kar liyaa. do -dinatak isee sthitimen rahe tatha unake aanepar shaantipoorvak praanatyaag kiyaa.

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