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श्रीघनानन्दजी की मार्मिक कथा
श्रीघनानन्दजी की अधबुत कहानी - Full Story of श्रीघनानन्दजी (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [श्रीघनानन्दजी]- भक्तमाल


श्रीघनानन्दजीका जन्म संवत् 1746 के लगभग हुआ था। वे भटनागर कायस्थ थे। फारसी, व्रजभाषा और संस्कृतसाहित्यमें उनकी विशेष अभिरुचि और पहुँच थी। पहले वे मुगल बादशाहके राजकार्यालय में एक साधारण अधिकारी थे। पर बादमें अपनी कार्यदक्षता, स्वामिभक्ति और परिश्रमके प्रभावसे वे बादशाह मुहम्मदशाहके 'खास कलम' हो गये। काव्य और सङ्गीतका उन्हें अच्छा अभ्यास था। उनकी कविता बड़ी सरस, मधुर और भक्तिपूर्ण होती थी। आरम्भसे ही वे भगवान् श्रीकृष्णकी सरस लीलाओंके प्रेमी थे। श्रीनन्दकुमारके दरबारका आश्रय ही उनके लिये परम मान्य था। वे उच्च कोटिके प्रेमी थे। लौकिक प्रेमको अलौकिक, सर्वथा दिव्य अथवा ईश्वरीय बनानेमें उन्होंने जो सफलता पायी, वह भक्ति जगत्की एक अत्यन्त मौलिक और अपूर्व देन है। पहले वे 'सुजान' नामक एक वेश्याके रूप और सौन्दर्यपर आसक्त थे। पर बादमें उन्होंने अपनी आसक्ति भगवान् श्रीकृष्णकी भक्तिके चरणोंपर समर्पित कर दी। उनके जीवनमें एक अभूतपूर्व घटना हुई-वे मुहम्मदशाहकी राजसभामें बैठे हुए थे। कुछ दरबारियोंने बादशाहसे कहा कि 'घनानन्द बहुत अच्छा गाते हैं।' बादशाहके कहनेपर घनानन्दने नहीं गाया, पर 'सुजान' के कहनेपर उन्होंने उसीकी ओर मुख करके गाया। सारी सभामें आनन्द छा गया। बादशाहने उनकी प्रशंसा की, पर आज्ञा- अवहेलनाके अपराधमें उनको राजधानीसे बाहर निकाल दिया। घनानन्दतो नन्दकुमारकी छविपर बिक चुके थे। देशपति रूठे तो रूठ जाय, पर व्रजराज न रूठें। बादशाहके उच्चाधिकारीने संसारकी मायाका त्याग कर दिया, वे चल पड़े व्रजकी ओर। भगवान् राधारमणकी लीला भूमिमें पहुँच ही तो गये। कालिन्दीके नीले जलको देखकर नीलमणि नन्दनन्दनका स्मरण हो आया। नयनोंमें जल उमड़ पड़ा, उनके प्राण कलप उठे, अधरोंने कण्ठकी वाणीका भाष्य किया।

गुरनि बतायौ, राधा मोहन हू गायौ

सदा सुखद सुहायौ बूंदाबन गाढ़े गहि रे ।

अदभुत अभूत महिमंडन परे ते परे,

जीवन कौ लाहु हाहा क्यौं न ताहि लहि रे ।।

आनँद कौ घन छाया रहत निरंतर ही

सरस सुदेय सों पपीहा पन बहि रे

जमुनाके तीर केलि कोलाहल भीर,

ऐसे पावन पुलिन पै पतित ! परि रहि रे ॥

जगत्के नयनोंमें पतित और भगवान्‌के नयनोंमें परम पावन घनानन्दने रासस्थली-वंशीवटके मनोरम क्षेत्रमें धरना देकर रासेश्वरके दर्शनकी इच्छा की। वे समय समयपर भगवान्‌को वियोग-शृङ्गारसे सजाया करते थे। आकाशमें उमड़ते बादलोंको देखकर अनुनयपूर्वक कहा करते कि 'तुम मेरे नयनोंके अश्रु-जलको सुजान घनश्यामके अँगनेमें बरसा दो।' कभी-कभी चातककी तरह प्रियतमको सम्बोधन कर कह उठते थे -

आरतवंत पपीहन कों घनआनँद जू पहिचानौ कहा तुम ।
प्रेमकी गूढ़-से-गूढ़ अन्तर्दशाकी सूक्ष्मताका परिचय उनकी उक्तिमें अच्छी तरह मिलता है।

वे प्रायः वंशीवटके निकट वृक्षके ही तले रहा करते थे। कभी-कभी समाधिमें दो-तीन दिन बीत जाते थे । व्रजवास-कालमें ही इन्होंने 'सुजान सागर' की रचना की। वे निम्बार्क-सम्प्रदायमें दीक्षित थे।

सं0 1796 वि0 में नादिरशाहने भारतपर आक्रमण किया। वृन्दावनमें नादिरशाहके सिपाहियोंने बादशाह मुहम्मदशाहके 'खास कलम' को फक्कड़के वेषमें देखकर 'जर, जर, जर' कहा। खजाना माँगा। घनानन्दके पाससिवा व्रज रजके और कुछ भी नहीं था। उन्होंने तीन बार 'रज, रज,रज' कहा और उनके ऊपर व्रजरज डाल दिया। सिपाहियोंने उनका दाहिना हाथ काट डाला। विरही घनानन्दके प्राण सुजान नन्दलालके विरहमें चीख उठे। उनकी काव्यभारतीने करुण स्वरमें गाया।

अधर लगे हैं आनि करि कै पयान प्रान

चाहत चलन ये सँदेसौ लै सुजान कौ ॥

उन्होंने पूरा छन्द अपने खूनसे तकियेपर लिखा । सैनिकोंने थोड़े समयके बाद उन्हें जानसे मार डाला। अन्तिम समयमें भी विरहीने घनश्यामको ही पुकारा !



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shreeghanaanandajeeka janm sanvat 1746 ke lagabhag hua thaa. ve bhatanaagar kaayasth the. phaarasee, vrajabhaasha aur sanskritasaahityamen unakee vishesh abhiruchi aur pahunch thee. pahale ve mugal baadashaahake raajakaaryaalay men ek saadhaaran adhikaaree the. par baadamen apanee kaaryadakshata, svaamibhakti aur parishramake prabhaavase ve baadashaah muhammadashaahake 'khaas kalama' ho gaye. kaavy aur sangeetaka unhen achchha abhyaas thaa. unakee kavita bada़ee saras, madhur aur bhaktipoorn hotee thee. aarambhase hee ve bhagavaan shreekrishnakee saras leelaaonke premee the. shreenandakumaarake darabaaraka aashray hee unake liye param maany thaa. ve uchch kotike premee the. laukik premako alaukik, sarvatha divy athava eeshvareey banaanemen unhonne jo saphalata paayee, vah bhakti jagatkee ek atyant maulik aur apoorv den hai. pahale ve 'sujaana' naamak ek veshyaake roop aur saundaryapar aasakt the. par baadamen unhonne apanee aasakti bhagavaan shreekrishnakee bhaktike charanonpar samarpit kar dee. unake jeevanamen ek abhootapoorv ghatana huee-ve muhammadashaahakee raajasabhaamen baithe hue the. kuchh darabaariyonne baadashaahase kaha ki 'ghanaanand bahut achchha gaate hain.' baadashaahake kahanepar ghanaanandane naheen gaaya, par 'sujaana' ke kahanepar unhonne useekee or mukh karake gaayaa. saaree sabhaamen aanand chha gayaa. baadashaahane unakee prashansa kee, par aajnaa- avahelanaake aparaadhamen unako raajadhaaneese baahar nikaal diyaa. ghanaanandato nandakumaarakee chhavipar bik chuke the. deshapati roothe to rooth jaay, par vrajaraaj n roothen. baadashaahake uchchaadhikaareene sansaarakee maayaaka tyaag kar diya, ve chal pada़e vrajakee ora. bhagavaan raadhaaramanakee leela bhoomimen pahunch hee to gaye. kaalindeeke neele jalako dekhakar neelamani nandanandanaka smaran ho aayaa. nayanonmen jal umada़ pada़a, unake praan kalap uthe, adharonne kanthakee vaaneeka bhaashy kiyaa.

gurani bataayau, raadha mohan hoo gaayau

sada sukhad suhaayau boondaaban gaadha़e gahi re .

adabhut abhoot mahimandan pare te pare,

jeevan kau laahu haaha kyaun n taahi lahi re ..

aanand kau ghan chhaaya rahat nirantar hee

saras sudey son papeeha pan bahi re

jamunaake teer keli kolaahal bheer,

aise paavan pulin pai patit ! pari rahi re ..

jagatke nayanonmen patit aur bhagavaan‌ke nayanonmen param paavan ghanaanandane raasasthalee-vansheevatake manoram kshetramen dharana dekar raaseshvarake darshanakee ichchha kee. ve samay samayapar bhagavaan‌ko viyoga-shringaarase sajaaya karate the. aakaashamen umada़te baadalonko dekhakar anunayapoorvak kaha karate ki 'tum mere nayanonke ashru-jalako sujaan ghanashyaamake anganemen barasa do.' kabhee-kabhee chaatakakee tarah priyatamako sambodhan kar kah uthate the -

aaratavant papeehan kon ghanaaanand joo pahichaanau kaha tum .
premakee gooढ़-se-gooढ़ antardashaakee sookshmataaka parichay unakee uktimen achchhee tarah milata hai.

ve praayah vansheevatake nikat vrikshake hee tale raha karate the. kabhee-kabhee samaadhimen do-teen din beet jaate the . vrajavaasa-kaalamen hee inhonne 'sujaan saagara' kee rachana kee. ve nimbaarka-sampradaayamen deekshit the.

san0 1796 vi0 men naadirashaahane bhaaratapar aakraman kiyaa. vrindaavanamen naadirashaahake sipaahiyonne baadashaah muhammadashaahake 'khaas kalama' ko phakkada़ke veshamen dekhakar 'jar, jar, jara' kahaa. khajaana maangaa. ghanaanandake paasasiva vraj rajake aur kuchh bhee naheen thaa. unhonne teen baar 'raj, raj,raja' kaha aur unake oopar vrajaraj daal diyaa. sipaahiyonne unaka daahina haath kaat daalaa. virahee ghanaanandake praan sujaan nandalaalake virahamen cheekh uthe. unakee kaavyabhaarateene karun svaramen gaayaa.

adhar lage hain aani kari kai payaan praana

chaahat chalan ye sandesau lai sujaan kau ..

unhonne poora chhand apane khoonase takiyepar likha . sainikonne thoda़e samayake baad unhen jaanase maar daalaa. antim samayamen bhee viraheene ghanashyaamako hee pukaara !

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