किसी जंगलमें हरिनको फँसानेके लिये पालतू हरिनकी आवश्यकता होती है। इसी प्रकार जगद्गुरु भगवान् नारायण भी भक्तोंके द्वारा ही जीवोंका उद्धार करते हैं। भगवान् जाति, कुल, विद्या आदिका विचार नहीं करते। वे तो केवल प्रेमसे ही वशीभूत होते हैं। नीलन् (तिरुमङ्गैयाळवार) का जन्म चोळ देशके किसी ग्राम में एक शैवके घरानेमें हुआ था। इनके पिता बहुत बड़े योद्धा थे। उन्होंने इन्हें युद्धविद्यामें भलीभाँति निपुण कर दिया। ये बाण चलाने में, घोड़ेकी सवारी करनेमें तथा सेनाका नेतृत्व करनेमें बड़े कुशल हो गये। चोळ देशके राजाने इनकी वीरतापर प्रसन्न होकर इन्हें अपने सेनानायक के पदपर प्रतिष्ठित किया। जिस समय नीलन् सेना लेकर किसी शत्रुपर आक्रमण करते, लोगोंके मनमें यह निश्चय हो जाता कि विजय इन्हींके पक्षमें होगी। राजाने इन्हें कुछ भूमि भी प्रदान की। यद्यपि इनकी अध्यात्मकी ओररुचि थी, तथापि वह रुचि उसी राजसी जीवनके कारण एक प्रकार दब-सी गयी थी।
दक्षिणके तिरुवालि नामक क्षेत्रमें कुमुदवल्ली नामकी एक कुमारी कन्या रहती थी। जिस प्रकार विष्णुचित्तने आण्डाळका पालन-पोषण किया था, उसी प्रकार इसका लालन-पालन भी किसी भक्तके द्वारा ही हुआ था। यह कुमारी तिरुवालिके मन्दिरमें स्थित भगवान् श्रीनारायणकी बड़ी भक्त थी। वह देखनेमें भी बड़ी सुन्दर थी। बड़े बड़े राजालोग उसका पाणिग्रहण करनेके लिये लालायित थे, परन्तु उसने किसीके साथ विवाह करना स्वीकार नहीं किया। जब नीलन्ने यह समाचार सुना, तब उनके मनमें भी उस बालिकाके प्रति बड़ा आकर्षण हुआ। उन्होंने कुमुदवल्लीके पिताके पास जाकर उनसे अपने हृदयका भाव कहा। पिताने इस विषयमें कुमुदवल्लीकी राय पूछी। | कुमुदवल्लीने कहा- 'मेरा विवाह किसी विष्णुभक्तसे हीहो सकता है।' नीलन्ने यह शर्त मंजूर कर ली। वे तुरन्त किसी वैष्णव आचार्यके पास गये और उनसे दीक्षा लेकर चले आये। कुमुदवल्लीने कहा- 'केवल बाह्य परिवर्तन पर्याप्त नहीं है; यदि मुझसे विवाह करना है तो अपनी वैष्णवताका क्रियात्मक परिचय देना होगा। तुम्हें एक सालतक प्रतिदिन एक हजार आठ भक्तोंको भोजन करवाकर मुझे उनका प्रसाद लाकर देना होगा।' नीलन्ने कुमुदवल्लोकी यह दूसरी शर्त भी मंजूर कर ली और शर्तके अनुसार दोनोंका विवाह हो गया।
इस प्रकार प्रतिदिन हजारसे ऊपर ब्राह्मणोंको भोजन करानेसे उनके अन्दर बड़ा परिवर्तन हो गया। उनका चित्त निरन्तर भगवान्का चिन्तन करने लगा। उनके नेत्रोंसे अज्ञानका पर्दा हट गया। अपनी भक्तिमती पत्नीके सङ्गके प्रभावसे वे भी भगवान् श्रीनारायणके अनन्य भक्त हो गये। उन्होंने सोचा- 'मेरी सारी सम्पत्ति और शक्ति भक्तोंकी चरण-धूलिके समान भी नहीं है।' यह विचारकर वे बड़े प्रेमसे भक्तोंकी सेवामें लग गये और प्रतिदिन हजारोंकी संख्या उन्हें भोजन कराने लगे। यहाँतक कि उन्होंने अपनी सारी सम्पत्ति इसी काममें लगा दी और उनके पास कुछ भी नहीं बचा।
परन्तु फिर भी उन्होंने भक्तोंको भोजन करानेका काम बन्द नहीं किया। उन्होंने अपने मनमें यह दृढ़ निश्चय कर लिया कि 'चाहे हम भूखों मर जायें, किंतु इस सेवा कार्यको नहीं छोड़ सकते भगवान् नारायण हमारी रक्षा करेंगे।' उन्होंने चोळ देशके राजाको वार्षिक कर देनेके लिये जो रुपया बचा रखा था, वह भी इसी काममें खर्च हो गया। महीनों बीत गये, राजाके कोषमें नीलनुका कर नहीं पहुँचा। अब लोगोंको उनके विरुद्ध राजाके कान भरनेका अच्छा मौका हाथ लगा। राजाने उन्हें गिरफ्तार करनेके लिये एक बहुत बड़ी सेना भेजी। नीलन्ने बड़ी वीरताके साथ राजकीय सेनाका मुकाबला किया और उसे भगा दिया। तब राजा स्वयं बहुत बड़ी सेना लेकर आये। परन्तु नीलन् फिर भी बड़ी निर्भीकताके 1 साथ युद्ध करता रहा। राजा उसकी वीरताको देखकर दंग रह गये और उन्होंने उसके सामने सन्धिका प्रस्ताव भेजा। जब वे राजाके सामने आये, तब राजाने उनसेकहा- 'तुमने सेनापति होकर मेरी ही सेनाके साथ युद्ध किया, यह उचित नहीं था; फिर भी तुम्हारे इस अपराधको मैं क्षमा करता हूँ। किंतु तुम्हें अपना वार्षिक कर तो भरना ही होगा और जबतक तुम्हारा कर राज्यके कोषमें जमा न हो जाय तबतक तुम्हें मेरे कारागारमें बन्दी होकर रहना होगा।'
नीलन् राजाके कारागारमें बन्द हो गये; परन्तु उन्होंने यह प्रण कर लिया था कि 'मैं भगवान्के भक्तोंको भोजन कराकर ही उनका प्रसाद ग्रहण करूंगा।' भोजन करानेकी व्यवस्था कैदखानेमें हो नहीं सकती थी, इसलिये उन्होंने वहाँपर अन्न-जल कुछ भी नहीं लिया। | उनके इस व्रतको देखकर भगवान् प्रसन्न हो गये। उन्होंने नीलनको स्वप्रमें दर्शन देकर कहा-'काञ्चीनगरीमें वेगवती नदीके तटपर अमुक स्थानमें विपुल सम्पत्ति गड़ी हुई है, उस सम्पत्तिको स्वायत्तकर उससे अपना सेवाका कार्य चालू रख सकते हो।' नोलन्ने राजासे कहला भेजा म काञ्चीनगरीमें जाकर अपना कर चुका दूंगा।' राजाने उनकी प्रार्थना स्वीकार कर ली और उन्हें कई अधिकारियोंके साथ काञ्ची भेज दिया। नीलन्को निर्दिष्ट स्थानमें अपार सम्पत्ति प्राप्त हो गयी, जिससे उन्होंने व्याजसहित राजाका कर भी चुका दिया और भक्तोंको भोजन करानेका कार्य फिरसे शुरू कर दिया। काञ्चीमें भगवान् वरदराजने नीलन्को दर्शन दिये। तब चोळदेशके राजाको यह निश्चय हो गया कि नीलन् कोई साधारण मनुष्य नहीं हैं, वे भगवान्के बड़े भक्त और कृपापात्र हैं और भगवान् | सदा उनकी रक्षा करते हैं। राजा स्वयं भक्तके पास आये और उनके चरणोंपर गिरकर उनसे क्षमा माँगने लगे। जो रुपया करके रूपमें उनसे वसूल किया गया था, वह भी उन्होंने लौटा दिया और कहा कि इसे अपने पवित्र काममें लगा देना।'
नीलन्ने अब और भी अधिक उत्साहके साथ भक्तोंको भोजन करानेका कार्य प्रारम्भ कर दिया। भोजन करनेवालोंकी संख्या प्रतिदिन बढ़ती जाती थी। भगवान्को कृपासे इन्हें जो कुछ धन प्राप्त हुआ था। वह भी खर्च हो गया और भक्त पहलेको भाँति फिर कंगाल हो गये; परंतु कुमुदवल्ली और नीलन्ने अपना आग्रह नहीं छोड़ा।जबतक उन्हें भक्तोंका प्रसाद नहीं मिल जाता; तबतक | अत्र- जल ग्रहण नहीं करते; परंतु भक्तोंको भोजन | करानेके लिये धन कहाँसे आये ? अन्तमें नीलन्ने सोचा- 'मैं एक बलवान् सिपाही हूँ। धनवानोंको क्या अधिकार है कि वे आवश्यकतासे अधिक धन अपने बटोरकर रखें और हजारों मनुष्य निर्धन होकर उनका मुंह ताका करें। अच्छा, मैं इन लोगोंको लूटकर | इनके अन्यायोपार्जित धनको दरिद्रोंमें बाँट दूंगा; तब इन लोगों की आँखें खुलेंगी।' यह कहकर उन्होंने एक बहुत । बड़ा गिरोह बनाया और दिनदहाड़े अमीरोंको लूटना | आरम्भ कर दिया; परंतु वे लूटके मालमेंसे अपने पास एक पैसा भी नहीं रखते थे, सारा-का-सारा गरीब भोंको बाँट देते थे।
नीलनका उद्देश्य अच्छा होनेपर भी उनका यह कार्य कदापि अनुमोदनीय नहीं था। भगवान्ने जब देखा कि मेरा भक्त विपरीत मार्गपर चल रहा है, तब उन्होंने उसे रास्ते पर लाकर अपने लक्ष्यपर स्थिर करनेका विचार किया।
आज नीलन्को गहरा माल हाथ लगनेवाला है। सामनेसे एक बहुत बड़ा धनी गहनोंसे लदी हुई अपनी पत्नीके साथ आ रहा है। ज्यों ही वे दम्पति निकट पहुँचे, नीलनके दलने उन्हें घेर लिया और कहा कि भगवान्के नामपर अपना सारा मालमता हमारे सुपुर्द कर दो, नहीं तो अपनी जानसे भी हाथ धो बैठोगे।' यों कहकर उन्होंने उस धनीको स्त्रीके सारे गहने छीन लिये। उनके सामने सोने और जवाहरातका ढेर लग गया; परंतु गठरी इतनी भारी हो गयी कि वह किसीके उठाये न उठी। सब-के-सब अपना-अपना जोर लगाकर हार गये, किंतु वह गठरी टस से मस न हुई। अब तो नीलन्के मनमें कुछ सन्देह हुआ कि अवश्य ही इसमें कोई जादू है। उन्होंने उस धनीसे कहा- 'अवश्य तुमने किसी मन्त्रके बलसे इस गठरीको भारी बना दिया है; अतः या तो वह मन्त्र मुझे बताओ, नहीं तो मैं तुम्हें यहाँसे जाने न दूंगा।' धनीने नोलनूको अलग ले जाकर उसके कानमें 'ॐ नमो नारायणाय' यह अष्टाक्षर मन्त्र पढ़ दिया। उस मन्त्रके कानमें पढ़ते ही नौलनके शरीरमें मानो बिजली सी दौड़गयी। वह उस मन्त्रका उच्चारण करते हुए नाचने लगा। इतनेमें ही उन्होंने देखा कि न तो वे दम्पति हैं और न वह धनका देर ही है। अब तो नीलनके आश्चर्यका ठिकाना न रहा। उन्होंने आँख उठाकर ऊपरकी और देखा तो उनके नेत्र वहीं अटक गये। उन्होंने देखा-साक्षात् भगवान् नारायण लक्ष्मीजीके सहित गरुड़पर सवार होकर आकाशमार्ग से जा रहे हैं। अब तो नीलनको सारा रहस्य मालूम हो गया। वे मन-ही-मन पछताने लगे और कहने लगे कि में कैसा दुष्ट और पापी हूँ कि मुझे इस पापकर्मसे बचाने के लिये साक्षात् मेरे इष्टदेव और इष्टदेवीको इतना कष्ट उठाना पड़ा। हाय मैंने अपने इन पापी हाथोंसे उनके शरीरपर हाथ लगाया, उन्हें डराया धमकाया और उन्हें मारनेपर उतारू हो गया। हाय! मैं कितना नीच हूँ। किंतु साथ ही अहा मेरे स्वामी कितने दयालु हैं। प्रभो। मेरे अपराधोंको क्षमा कीजिये और मुझे अपनी शरणमें लीजिये। प्रभो! आज तुमने मुझे बचा लिया। प्रभो। मैंने आपके साथ कितने अत्याचार किये; परंतु आपने मेरे अपराधोंकी ओर न देखकर मेरी रक्षा की।' उनकी इस आत्मग्लानिको सुनकर ऊपरसे आवाज आयो- 'मेरे प्यारे नीलन्। में तुमपर प्रसन्न हूँ, तुम किसी प्रकारको ग्लानि मनमें न लाओ। अब तुम श्रीरंगम् जाकर वहाँके मन्दिरको पूर्ण कराओ और अपने भजनरूपी हारोंसे मेरी पूजा करो। जबतक जिओ, मेरी भक्ति और प्रेमका प्रचार करो और शरीर त्यागनेपर मेरे धाममें मुझसे मिलो।'
उस दिनसे नीलनका जीवन पलट गया। उन्हें वह मन्त्र मिल गया, जिससे उनके सारे पाप धुल गये। उन्होंने भगवान् विष्णुको स्तुतिके हजारों पद बनाये, जिन्हें लोग 'महावाक्य' कहते हैं। ये भगवान्के शार्ङ्गधनुषके अवतार माने जाते हैं। इन्होंने लाखों रुपये लगाकर भगवान् श्रीरंगजोके मन्दिरको पूर्ण करवाया। वे भगवान्को दास्यभावसे उपासना करते थे और इनके जीवनका प्रत्येक क्षण भगवान्की सेवामें बीतता था। ये प्रसिद्ध शैवाचार्य श्रीज्ञानसम्बन्ध के समसामयिक थे और वे भी इनके पदोंका बड़ा आदर करते थे। इन्होंने एक बार बौद्धोंको | शास्त्रार्थमें हराकर विशिष्टाद्वैत सिद्धान्तको स्थापना की थी।
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parantu phir bhee unhonne bhaktonko bhojan karaaneka kaam band naheen kiyaa. unhonne apane manamen yah driढ़ nishchay kar liya ki 'chaahe ham bhookhon mar jaayen, kintu is seva kaaryako naheen chhoda़ sakate bhagavaan naaraayan hamaaree raksha karenge.' unhonne chol deshake raajaako vaarshik kar deneke liye jo rupaya bacha rakha tha, vah bhee isee kaamamen kharch ho gayaa. maheenon beet gaye, raajaake koshamen neelanuka kar naheen pahunchaa. ab logonko unake viruddh raajaake kaan bharaneka achchha mauka haath lagaa. raajaane unhen giraphtaar karaneke liye ek bahut bada़ee sena bhejee. neelanne bada़ee veerataake saath raajakeey senaaka mukaabala kiya aur use bhaga diyaa. tab raaja svayan bahut bada़ee sena lekar aaye. parantu neelan phir bhee bada़ee nirbheekataake 1 saath yuddh karata rahaa. raaja usakee veerataako dekhakar dang rah gaye aur unhonne usake saamane sandhika prastaav bhejaa. jab ve raajaake saamane aaye, tab raajaane unasekahaa- 'tumane senaapati hokar meree hee senaake saath yuddh kiya, yah uchit naheen thaa; phir bhee tumhaare is aparaadhako main kshama karata hoon. kintu tumhen apana vaarshik kar to bharana hee hoga aur jabatak tumhaara kar raajyake koshamen jama n ho jaay tabatak tumhen mere kaaraagaaramen bandee hokar rahana hogaa.'
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