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श्रीसुवंशनाथजी त्रिपाठी की मार्मिक कथा
श्रीसुवंशनाथजी त्रिपाठी की अधबुत कहानी - Full Story of श्रीसुवंशनाथजी त्रिपाठी (हिन्दी)

[भक्त चरित्र -भक्त कथा/कहानी - Full Story] [श्रीसुवंशनाथजी त्रिपाठी]- भक्तमाल


प्रायः दो सौ वर्षकी पुरानी कथा है। गोरखपुर प्रान्तमें सरयूके पावन उत्तर तटपर नदौली नामका अति प्राचीन ब्राह्मणाधिवास है। श्रीसुवंशनाथ त्रिपाठीने उसी ग्रामको अपने जन्मसे अलङ्कृत किया था। एकाकी पुत्र थे। माता-पिताके स्नेह और आशीर्वादसे शक्ति पाकर बढ़े, किंतु शिक्षाके लिये सुविधा न होनेके कारण अधिक न पढ़ सके। संस्कार प्रबल थे। बाल्यावस्था से ही माता-पिताकी भक्ति, साधु-सेवा, गुरुजन-पूजा औरसच्छास्त्र - श्रवणमें प्रवृत्ति थी। सात्त्विक गुणोंका उदय होता गया । अहिंसा, सत्य, त्याग, तप, परोपकारादि दैवी सम्पत्तियोंका भण्डार भरने लगा। श्रीसुवंशनाथजी अल्पावस्थामें ही बहुजनप्रिय हो गये

पण्डितजी पूर्ण सदाचारनिष्ठ ब्राह्मण थे। ब्राह्ममुहूर्तमें उठकर नित्य-क्रियासे निवृत्त होकर नियमसे सरयू स्नान करते थे। घंटों स्नेहसे भगवन्नाम-स्मरण करते थे। माता पिताकी सेवा नित्य करते थे। गृहस्थीका भार सम्मानपूर्वकसँभालना कर्तव्य समझकर मनोयोगपूर्वक खेती करते थे। खेत अधिक नहीं था; परंतु उपज बहुत थी। गायें बहुत थीं। वे सुन्दर थीं, स्वस्थ थीं और पण्डितजीसे बहुत हिली हुई थीं। पण्डितजी जहाँ जाते, गायें उन्हें घेरे रहती थीं।

श्रीसुवंशजीके घरमें पर्याप्त अन्न होता था। घी दूधकी नदी बहती थी। परंतु उन्हें इतनेसे सन्तोष कहाँ था! स्नान-पूजा, खेती-बारीसे निश्चित समय निकालकर दीन-दुखियों, पीड़ितों और दलितोंकी बस्तीमें निर्भय प्रवेश कर जाते। उनसे भाई चचाका नाता लग गया था। हृदय बड़ा कोमल था, बड़े परदुःखकातर थे। कहते हैं, निस्सहाय बीमारोंकी परिचर्यामें रात-रातभर जगे रह जाते । प्रातःकालसे पुनः नियमानुसार पूजा-अर्चामें लग जाते। पूर्ण कर्मयोगीकी भाँति 'मामनुस्मर युध्य च' का महामन्त्र उनके जीवनका बल था। संत ऐसे ही परदुःखकातर होते हैं।

कबीर कहते हैं-

कबिरा सोई पीर है जो जान पर पीर।

जो परपीर जानई सो काफिर बेपीर ॥

न भक्तोंके हृदयमें ऐसे जीवनके प्रति प्रबल आकर्षण होता है। महाभागवत तुलसीकी अमर अभिलाषा है-

कबहुँक हाँ एहि रहनि रहाँगो ।

श्रीरघुनाथ कृपालु कृपा तें संत सुभाव गहाँगो ॥

संत जीवनके सम्बन्धमें श्रीभगवत्-रसिकजीकी उक्तिप्रकाश देती है lकथानायक श्रीसुवंशजी ऐसे ही संत-भक्तोंमें थे। इ सरयू तटपर उन्हें प्रायः साधुओंका समागम प्राप्त हो जाता। 7 साधुओंको भोजन करानेमें, फलाहार देनेमें उन्हें अपार आनन्द होता था । पुराने लोगोंका कहना है कि किसी 7 साधुके आशीर्वादसे ही श्रीसुवंशनाथजीको एक पुत्र उत्पन्न हुआ। साधुकी आज्ञासे ही शिशुका नाम सुचित्तनाथ त्रिपाठी रखा गया। पुत्रमें भी पिताके गुण आ गये। पिताको प्रसन्न होनेका अवसर मिला। पुत्र-पौत्रादि-सम्पन्न होकर, पर्याप्त अवस्थामें सरयू-तटपर रामनामोच्चारण करते हुए श्रीसुवंशनाथजी परमधामको प्रस्थान कर गये। उनके वंशमें आज भी गो-सेवा, कृषि, अहिंसा, त्याग, तप, आचरणकी पवित्रता आदिका विशेष मान है।
विश्वमें त्रितापसे मुक्ति देनेवाला, शान्तिका एकमात्र साधन संतचरण ही है।



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praayah do sau varshakee puraanee katha hai. gorakhapur praantamen sarayooke paavan uttar tatapar nadaulee naamaka ati praacheen braahmanaadhivaas hai. shreesuvanshanaath tripaatheene usee graamako apane janmase alankrit kiya thaa. ekaakee putr the. maataa-pitaake sneh aur aasheervaadase shakti paakar badha़e, kintu shikshaake liye suvidha n honeke kaaran adhik n padha़ sake. sanskaar prabal the. baalyaavastha se hee maataa-pitaakee bhakti, saadhu-seva, gurujana-pooja aurasachchhaastr - shravanamen pravritti thee. saattvik gunonka uday hota gaya . ahinsa, saty, tyaag, tap, paropakaaraadi daivee sampattiyonka bhandaar bharane lagaa. shreesuvanshanaathajee alpaavasthaamen hee bahujanapriy ho gaye

panditajee poorn sadaachaaranishth braahman the. braahmamuhoortamen uthakar nitya-kriyaase nivritt hokar niyamase sarayoo snaan karate the. ghanton snehase bhagavannaama-smaran karate the. maata pitaakee seva nity karate the. grihastheeka bhaar sammaanapoorvakasanbhaalana kartavy samajhakar manoyogapoorvak khetee karate the. khet adhik naheen thaa; parantu upaj bahut thee. gaayen bahut theen. ve sundar theen, svasth theen aur panditajeese bahut hilee huee theen. panditajee jahaan jaate, gaayen unhen ghere rahatee theen.

shreesuvanshajeeke gharamen paryaapt ann hota thaa. ghee doodhakee nadee bahatee thee. parantu unhen itanese santosh kahaan thaa! snaana-pooja, khetee-baareese nishchit samay nikaalakar deena-dukhiyon, peeda़iton aur dalitonkee basteemen nirbhay pravesh kar jaate. unase bhaaee chachaaka naata lag gaya thaa. hriday bada़a komal tha, bada़e paraduhkhakaatar the. kahate hain, nissahaay beemaaronkee paricharyaamen raata-raatabhar jage rah jaate . praatahkaalase punah niyamaanusaar poojaa-archaamen lag jaate. poorn karmayogeekee bhaanti 'maamanusmar yudhy cha' ka mahaamantr unake jeevanaka bal thaa. sant aise hee paraduhkhakaatar hote hain.

kabeer kahate hain-

kabira soee peer hai jo jaan par peera.

jo parapeer jaanaee so kaaphir bepeer ..

n bhaktonke hridayamen aise jeevanake prati prabal aakarshan hota hai. mahaabhaagavat tulaseekee amar abhilaasha hai-

kabahunk haan ehi rahani rahaango .

shreeraghunaath kripaalu kripa ten sant subhaav gahaango ..

sant jeevanake sambandhamen shreebhagavat-rasikajeekee uktiprakaash detee hai lkathaanaayak shreesuvanshajee aise hee santa-bhaktonmen the. i sarayoo tatapar unhen praayah saadhuonka samaagam praapt ho jaataa. 7 saadhuonko bhojan karaanemen, phalaahaar denemen unhen apaar aanand hota tha . puraane logonka kahana hai ki kisee 7 saadhuke aasheervaadase hee shreesuvanshanaathajeeko ek putr utpann huaa. saadhukee aajnaase hee shishuka naam suchittanaath tripaathee rakha gayaa. putramen bhee pitaake gun a gaye. pitaako prasann honeka avasar milaa. putra-pautraadi-sampann hokar, paryaapt avasthaamen sarayoo-tatapar raamanaamochchaaran karate hue shreesuvanshanaathajee paramadhaamako prasthaan kar gaye. unake vanshamen aaj bhee go-seva, krishi, ahinsa, tyaag, tap, aacharanakee pavitrata aadika vishesh maan hai.
vishvamen tritaapase mukti denevaala, shaantika ekamaatr saadhan santacharan hee hai.

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