डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं चकार चण्ड्ताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् || १||सघन जटा-वन-प्रवहित गंग-सलिल प्रक्षालित. पावन कंठ कराल काल नागों से रक्षित.. डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं चकार चण्ड्ताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् || १||सघन जटा-वन-प्रवहित गंग-सलिल प्रक्षालित. पावन कंठ कराल काल नागों से रक्षित.. डम-डम, डिम-डिम, डम-डम, डमरू का निनादकर- तांडवरत शिव वर दें, हों प्रसन्न, कर मम हित..१..सघन जटामंडलरूपी वनसे प्रवहित हो रही गंगाजल की धाराएँ जिन शिवजी के पवित्र कंठ को प्रक्षालित करती (धोती) हैं, जिनके गले में लंबे-लंबे, विकराल सर्पों की मालाएँ सुशोभित हैं, जो डमरू को डम-डम बजाकर प्रचंड तांडव नृत्य कर रहे हैं-वे शिवजी मेरा कल्याण करें.१.*जटाकटाहसंभ्रमभ्रमन्निलिम्पनिर्झरी- विलोलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्धनि | धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम || २|| सुर-सलिला की चंचल लहरें, हहर-हहरकर, करें विलास जटा में शिव की भटक-घहरकर. प्रलय-अग्नि सी ज्वाल प्रचंड धधक मस्तक में, हो शिशु शशि-भूषित शशीश से प्रेम अनश्वर.. २.. जटाओं के गहन कटावों में भटककर अति वेग से विलासपूर्वक भ्रमण करती हुई देवनदी गंगाजी की लहरें जिन शिवजी के मस्तक पर लहरा रही हैं, जिनके मस्तक में अग्नि की प्रचंड ज्वालायें धधक-धधककर प्रज्वलित हो रही हैं, ऐसे बाल-चन्द्रमा से विभूषित मस्तकवाले शिवजी में मेरा अनुराग प्रतिपल बढ़ता रहे.२. धराधरेन्द्रनंदिनीविलासबन्धुबन्धुरस्फुरद्दिगन्तसन्ततिप्रमोदमानमानसे | कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि क्वचिद्दिगम्बरे मनोविनोदमेतु वस्तुनि || ३||पर्वतेश-तनया-विलास से परमानन्दित, संकट हर भक्तों को मुक्त करें जग-वन्दित! वसन दिशाओं के धारे हे देव दिगंबर!! तव आराधन कर मम चित्त रहे आनंदित..३..पर्वतराज-सुता पार्वती के विलासमय रमणीय कटाक्षों से परमानन्दित (शिव), जिनकी कृपादृष्टि से भक्तजनों की बड़ी से बड़ी विपत्तियाँ दूर हो जाती हैं, दिशाएँ ही जिनके वस्त्र हैं, उन शिवजी की आराधना में मेरा चित्त कब आनंदित होगा?.३. *लताभुजङ्गपिङ्गलस्फुरत्फणामणिप्रभा कदम्बकुङ्कुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे | मदान्धसिन्धुरस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरे मनोविनोदमद्भुतं विभर्तुभूतभर्तरि || ४||केशालिंगित सर्पफणों के मणि-प्रकाश की, पीताभा केसरी सुशोभा दिग्वधु-मुख की. लख मतवाले सिन्धु सदृश मदांध गज दानव- चरम-विभूषित प्रभु पूजे, मन हो आनंदी..४..जटाओं से लिपटे विषधरों के फण की मणियों के पीले प्रकाशमंडल की केसर-सदृश्य कांति (प्रकाश) से चमकते दिशारूपी वधुओं के मुखमंडल की शोभा निरखकर मतवाले हुए सागर की तरह मदांध गजासुर के चरमरूपी वस्त्र से सुशोभित, जगरक्षक शिवजी में रमकर मेरे मन को अद्भुत आनंद (सुख) प्राप्त हो.४. * ललाटचत्वरज्वलद्धनंजस्फुल्लिंगया, निपीतपंचसायकं नमन्निलिम्पनायकं | सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं, महाकपालिसंपदे सरिज्जटालमस्तुनः ||५||ज्वाला से ललाट की, काम भस्मकर पलमें, इन्द्रादिक देवों का गर्व चूर्णकर क्षण में. अमियकिरण-शशिकांति, गंग-भूषित शिवशंकर, तेजरूप नरमुंडसिंगारी प्रभु संपत्ति दें..५..अपने विशाल मस्तक की प्रचंड अग्नि की ज्वाला से कामदेव को भस्मकर इंद्र आदि देवताओं का गर्व चूर करनेवाले, अमृत-किरणमय चन्द्र-कांति तथा गंगाजी से सुशोभित जटावाले नरमुंडधारी तेजस्वी शिवजी हमें अक्षय संपत्ति प्रदान करें.५. *सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर प्रसूनधूलिधोरणी विधूसराङ्घ्रिपीठभूः | भुजङ्गराजमालया निबद्धजाटजूटक: श्रियै चिराय जायतां चकोरबन्धुशेखरः ||६|| सहसनयन देवेश-देव-मस्तक पर शोभित, सुमनराशि की धूलि सुगन्धित दिव्य धूसरित. पादपृष्ठमयनाग, जटाहार बन भूषित- अक्षय-अटल सम्पदा दें प्रभु शेखर-सोहित..६..इंद्र आदि समस्त देवताओं के शीश पर सुसज्जित पुष्पों की धूलि (पराग) से धूसरित पाद-पृष्ठवाले सर्पराजों की मालाओं से अलंकृत जटावाले भगवान चन्द्रशेखर हमें चिरकाल तक स्थाई रहनेवाली सम्पदा प्रदान करें.६. * करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वलद्ध नञ्जयाहुतीकृतप्रचण्डपञ्चसायके | धराधरेन्द्रनन्दिनीकुचाग्रचित्रपत्रक-प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचनेरतिर्मम || ७|| धक-धक धधके अग्नि सदा मस्तक में जिनके, किया पंचशर काम-क्षार बस एक निमिष में. जो अतिदक्ष नगेश-सुता कुचाग्र-चित्रण में- प्रीत अटल हो मेरी उन्हीं त्रिलोचन-पद में..७.. * अपने मस्तक की धक-धक करती जलती हुई प्रचंड ज्वाला से कामदेव को भस्म करनेवाले, पर्वतराजसुता (पार्वती) के स्तन के अग्र भाग पर विविध चित्रकारी करने में अतिप्रवीण त्रिलोचन में मेरी प्रीत अटल हो.७. नवीनमेघमण्डली निरुद्धदुर्धरस्फुरत् – कुहूनिशीथिनीतमः प्रबन्धबद्धकन्धरः | निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिन्धुरः कलानिधानबन्धुरः श्रियं जगद्धुरंधरः ||८|| नूतन मेघछटा-परिपूर्ण अमा-तम जैसे, कृष्णकंठमय गूढ़ देव भगवती उमा के. चन्द्रकला, सुरसरि, गजचर्म सुशोभित सुंदर- जगदाधार महेश कृपाकर सुख-संपद दें..८..नयी मेघ घटाओं से परिपूर्ण अमावस्या की रात्रि के सघन अन्धकार की तरह अति श्यामल कंठवाले, देवनदी गंगा को धारण करनेवाले शिवजी हमें सब प्रकार की संपत्ति दें.८. * प्रफुल्लनीलपङ्कजप्रपञ्चकालिमप्रभा-वलम्बिकण्ठकन्दलीरुचिप्रबद्धकन्धरम् | स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छिदांधकछिदं तमंतकच्छिदंभजे || ९||पुष्पित नीलकमल की श्यामल छटा समाहित, नीलकंठ सुंदर धारे कंधे उद्भासित. गज, अन्धक, त्रिपुरासुर भव-दुःख काल विनाशक- दक्षयज्ञ-रतिनाथ-ध्वंसकर्ता हों प्रमुदित..खिले हुए नीलकमल की सुंदर श्याम-प्रभा से विभूषित कंठ की शोभा से उद्भासित कन्धोंवाले, गज, अन्धक, कामदेव तथा त्रिपुरासुर के विनाशक, संसार के दुखों को मिटानेवाले, दक्ष के यज्ञ का विध्वंस करनेवाले श्री शिवजी का मैं भजन करता हूँ.९. * अखर्वसर्वमङ्गलाकलाकदंबमञ्जरी रसप्रवाहमाधुरी विजृंभणामधुव्रतम् | स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं गजान्तकान्धकान्तकंतमन्तकान्तकं भजे || १०||शुभ अविनाशी कला-कली प्रवहित रस-मधुकर, दक्ष-यज्ञ-विध्वंसक, भव-दुःख-काम क्षारकर. गज-अन्धक असुरों के हंता, यम के भी यम- भजूँ महेश-उमेश हरो बाधा-संकट हर..१०..नष्ट न होनेवाली, सबका कल्याण करनेवाली, समस्त कलारूपी कलियों से नि:सृत, रस का रसास्वादन करने में भ्रमर रूप, कामदेव को भस्म करनेवाले, त्रिपुर नामक राक्षस का वध करनेवाले, संसार के समस्त दु:खों के हर्ता, प्रजापति दक्ष के यज्ञ का ध्वंस करनेवाले, गजासुर व अंधकासुर को मारनेवाले, यमराज के भी यमराज शिवजी का मैं भजन करता हूँ.१०. * जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजङ्गमश्वसद्विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालभालहव्यवाट् | धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्डताण्डवःशिवः || ११|| वेगवान विकराल विषधरों की फुफकारें, दहकाएं गरलाग्नि भाल में जब हुंकारें. डिम-डिम डिम-डिम ध्वनि मृदंग की, सुन मनमोहक. मस्त सुशोभित तांडवरत शिवजी उपकारें..११..अत्यंत वेगपूर्वक भ्रमण करते हुए सर्पों के फुफकार छोड़ने से ललाट में बढ़ी हुई प्रचंड अग्निवाले, मृदंग की मंगलमय डिम-डिम ध्वनि के उच्च आरोह-अवरोह से तांडव नृत्य में तल्लीन होनेवाले शिवजी सब प्रकार से सुशोभित हो रहे हैं.११. * दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजङ्गमौक्तिकस्रजोर्गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः| तृणारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः समप्रवृत्तिकः कदा सदाशिवंभजाम्यहत || १२||कड़ी-कठोर शिला या कोमलतम शैया को, मृदा-रत्न या सर्प-मोतियों की माला को. शत्रु-मित्र, तृण-नीरजनयना, नर-नरेश को- मान समान भजूँगा कब त्रिपुरारि-उमा को..१२..कड़े पत्थर और कोमल विचित्र शैया, सर्प और मोतियों की माला, मिट्टी के ढेलों और बहुमूल्य रत्नों, शत्रु और मित्र, तिनके और कमललोचनी सुंदरियों, प्रजा और महाराजाधिराजों के प्रति समान दृष्टि रखते हुए कब मैं सदाशिव का भजन करूँगा? * कदा निलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे वसन् विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरस्थमञ्जलिंवहन् | विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः शिवेति मंत्रमुच्चरन् कदा सुखीभवाम्यहम् || १३|| कुञ्ज-कछारों में रेवा सम निर्मल मन हो, सिर पर अंजलि धारणकर कब भक्तिलीन हो? चंचलनयना ललनाओं में परमसुंदरी, उमा-भाल-अंकित शिव-मन्त्र गुंजाऊँ सुखी हो?१३..मैं कब नर्मदा जी के कछार-कुंजों में निवास करता हुआ, निष्कपट होकर सिर पर अंजलि धारण किये हुए, चंचल नेत्रोंवाली ललनाओं में परमसुंदरी पार्वती जी के मस्तक पर अंकित शिवमन्त्र का उच्चारण करते हुए अक्षय सुख प्राप्त करूँगा.१३. * निलिम्पनाथनागरी कदंबमौलिमल्लिका, निगुम्फ़ निर्भरक्षन्म धूष्णीका मनोहरः. तनोतु नो मनोमुदं, विनोदिनीं महर्नीशं, परश्रियं परं पदं तदंगजत्विषां चय: || १४||सुरबाला-सिर-गुंथे पुष्पहारों से झड़ते, परिमलमय पराग-कण से शिव-अंग महकते. शोभाधाम, मनोहर, परमानन्दप्रदाता, शिवदर्शनकर सफल साधन सुमन महकते..१४..देवांगनाओं के सिर में गुंथे पुष्पों की मालाओं से झड़ते सुगंधमय पराग से मनोहर परम शोभा के धाम श्री शिवजी के अंगों की सुंदरताएँ परमानन्दयुक्त हमारे मनकी प्रसन्नता को सर्वदा बढ़ाती रहें.१४.प्रचंडवाडवानल प्रभाशुभप्रचारिणी, महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूतजल्पना. विमुक्तवामलोचनो विवाहकालिकध्वनि:, शिवेतिमन्त्रभूषणों जगज्जयाम जायतां|| १५||पापभस्मकारी प्रचंड बडवानल शुभदा, अष्टसिद्धि अणिमादिक मंगलमयी नर्मदा. शिव-विवाह-बेला में सुरबाला-गुंजारित, परमश्रेष्ठ शिवमंत्र पाठ ध्वनि भव-भयहर्ता..१५.. प्रचंड बड़वानल की भाँति पापकर्मों को भस्मकर कल्याणकारी आभा बिखेरनेवाली शक्ति (नारी) स्वरूपिणी अणिमादिक अष्ट महासिद्धियों तथा चंचल नेत्रोंवाली देवकन्याओं द्वारा शिव-विवाह के समय की गयी परमश्रेष्ठ शिवमंत्र से पूरित, मंगलध्वनि सांसारिक दुखों को नष्टकर विजयी हो.१५. *इदम् हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरोविशुद्धिमेतिसंततम् | हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्यचिंतनम् || १६|| शिवतांडवस्तोत्र उत्तमोत्तम फलदायक, मुक्तकंठ से पाठ करें नित प्रति जो गायक. हो सन्ततिमय भक्ति अखंड रखें हरि-गुरु में. गति न दूसरी, शिव-गुणगान करे सब लायक..१६..इस सर्वोत्तम शिवतांडव स्तोत्र का नित्य प्रति मुक्त कंठ से पाठ करने से भरपूर सन्तति-सुख, हरि एवं गुरु के प्रति भक्ति अविचल रहती है, दूसरी गति नहीं होती तथा हमेशा शिव जी की शरण प्राप्त होती है.१६. * पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं यः शंभुपूजनपरं पठति प्रदोषे | तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शंभुः || १७|| करें प्रदोषकाल में शिव-पूजन रह अविचल, पढ़ दशमुखकृत शिवतांडवस्तोत्र यह अविकल. रमा रमी रह दे समृद्धि, धन, वाहन, परिचर. करें कृपा शिव-शिवा ‘सलिल’-साधना सफलकर..१७..परम पावन, भूत भवन भगवन सदाशिव के पूजन के नत में रावण द्वारा रचित इस शिवतांडव स्तोत्र का प्रदोष काल में पाठ (गायन) करने से शिवजी की कृपा से रथ, गज, वाहन, अश्व आदि से संपन्न होकर लक्ष्मी सदा स्थिर रहती है.१७.|| इतिश्री रावण विरचितं शिवतांडवस्तोत्रं सम्पूर्णं|| || रावणलिखित(सलिलपद्यानुवादित)शिवतांडवस्तोत्र संपूर्ण|| ***************** Shiv Taandav Strotam - Shiv Bhajan damaddamaddamaddamanninaadavaddamarvayan chakaar chandtaandavan tanotu nah shivah shivam || 1||sghan jataa-van-pravahit gang-salil prakshaalit. paavan kanth karaal kaal naagon se rakshit.. dam-dam, dim-dim, dam-dam, damaroo ka ninaadakar- taandavarat shiv var den, hon prasann, kar mam hit..1..sghan jataamandalaroopi vanase pravahit ho rahi gangaajal ki dhaaraaen jin shivaji ke pavitr kanth ko prakshaalit karati (dhotee) hain, jinake gale me lanbe-lanbe, vikaraal sarpon ki maalaaen sushobhit hain, jo damaroo ko dam-dam bajaakar prchand taandav naraty kar rahe hain-ve shivaji mera kalyaan karen.1.*jataakataahasanbhramabhramannilimpanirjhari- vilolaveechivallareeviraajamaanamoordhani | dhagaddhagaddhagajjvalallalaatapattapaavake kishorchandrshekhare ratih pratikshnan mam || 2|| sur-salila ki chanchal laharen, hahar-haharakar, karen vilaas jata me shiv ki bhatak-ghaharakar. pralay-agni si jvaal prchand dhdhak mastak me, ho shishu shshi-bhooshit shsheesh se prem anashvar.. 2.. jataaon ke gahan kataavon me bhatakakar ati veg se vilaasapoorvak bhraman karati hui devanadi gangaaji ki laharen jin shivaji ke mastak par lahara rahi hain, jinake mastak me agni ki prchand jvaalaayen dhdhak-dhdhakakar prajvalit ho rahi hain, aise baal-chandrama se vibhooshit mastakavaale shivaji me mera anuraag pratipal badahata rahe.2. dharaadharendranandineevilaasabandhubandhurasphuraddigantasantatipramodamaanamaanase | kripaakataakshdhoraneeniruddhadurdharaapadi kvchiddigambare manovinodametu vastuni || 3||parvatesh-tanayaa-vilaas se paramaanandit, sankat har bhakton ko mukt karen jag-vandit! vasan dishaaon ke dhaare he dev diganbar!! tav aaraadhan kar mam chitt rahe aanandit..3..parvataraaj-suta paarvati ke vilaasamay ramaneey kataakshon se paramaanandit (shiv), jinaki kripaadarashti se bhaktajanon ki bi se bi vipattiyaan door ho jaati hain, dishaaen hi jinake vastr hain, un shivaji ki aaraadhana me mera chitt kab aanandit hogaa.3. *lataabhujangapingalasphuratphanaamaniprbha kadambakunkumadravapraliptadigvdhoomukhe | madaandhasindhurasphurattvaguttareeyamedure manovinodamadbhutan vibhartubhootbhartari || 4||keshaalingit sarpphanon ke mani-prakaash ki, peetaabha kesari sushobha digvdhu-mukh ki. lkh matavaale sindhu sadarsh madaandh gaj daanav- charam-vibhooshit prbhu pooje, man ho aanandi..4..jataaon se lipate vishdharon ke phan ki maniyon ke peele prakaashamandal ki kesar-sadarashy kaanti (prakaash) se chamakate dishaaroopi vdhuon ke mukhamandal ki shobha nirkhakar matavaale hue saagar ki tarah madaandh gajaasur ke charamaroopi vastr se sushobhit, jagarakshk shivaji me ramakar mere man ko adbhut aanand (sukh) praapt ho.4. * lalaatchatvarajvaladdhananjasphullingaya, nipeetapanchasaayakan namannilimpanaayakan | sudhaamayookhalekhaya viraajamaanshekharan, mahaakapaalisanpade sarijjataalamastunah ||5||jvaala se lalaat ki, kaam bhasmakar palame, indraadik devon ka garv choornakar kshn me. amiyakiran-shshikaanti, gang-bhooshit shivshankar, tejaroop naramundasingaari prbhu sanpatti den..5..apane vishaal mastak ki prchand agni ki jvaala se kaamadev ko bhasmakar indr aadi devataaon ka garv choor karanevaale, amarat-kiranamay chandr-kaanti ttha gangaaji se sushobhit jataavaale naramunddhaari tejasvi shivaji hame akshy sanpatti pradaan karen.5. *sahasralochanaprbharatysheshalekhshekhar prasoondhoolidhorani vidhoosaraanghripeethbhooh | bhujangaraajamaalaya nibaddhajaatajootak: shriyai chiraay jaayataan chakorabandhushekharah ||6|| sahasanayan devesh-dev-mastak par shobhit, sumanaraashi ki dhooli sugandhit divy dhoosarit. paadaparashthamayanaag, jataahaar ban bhooshit- akshy-atal sampada den prbhu shekhar-sohit..6..indr aadi samast devataaon ke sheesh par susajjit pushpon ki dhooli (paraag) se dhoosarit paad-parashthavaale sarparaajon ki maalaaon se alankrit jataavaale bhagavaan chandrshekhar hame chirakaal tak sthaai rahanevaali sampada pradaan karen.6. * karaalbhaalapattikaadhagaddhagaddhagajjvaladdh nanjayaahuteekritaprchandapanchasaayake | dharaadharendranandineekuchaagrchitrpatrk-prakalpanaikshilpini trilochaneratirmam || 7|| dhak-dhak dhdhake agni sada mastak me jinake, kiya panchshar kaam-kshaar bas ek nimish me. jo atidaksh nagesh-suta kuchaagr-chitrn me- preet atal ho meri unheen trilochan-pad me..7.. * apane mastak ki dhak-dhak karati jalati hui prchand jvaala se kaamadev ko bhasm karanevaale, parvataraajasuta (paarvatee) ke stan ke agr bhaag par vividh chitrkaari karane me atipraveen trilochan me meri preet atal ho.7. naveenameghamandali niruddhadurdharasphurat kuhoonisheethineetamah prabandhabaddhakandharah | nilimpanirjhareedharastanotu krittisindhurah kalaanidhaanabandhurah shriyan jagaddhurandharah ||8|| nootan meghchhataa-paripoorn amaa-tam jaise, krishnakanthamay goodah dev bhagavati uma ke. chandrakala, surasari, gajcharm sushobhit sundar- jagadaadhaar mahesh kripaakar sukh-sanpad den..8..nayi megh ghataaon se paripoorn amaavasya ki raatri ke sghan andhakaar ki tarah ati shyaamal kanthavaale, devanadi ganga ko dhaaran karanevaale shivaji hame sab prakaar ki sanpatti den.8. * prphullaneelapankajaprapanchakaalimaprbhaa-valambikanthakandaleeruchiprabaddhakandharam | smarachchhidan purachchhidan bhavachchhidan mkhachchhidan gajachchhidaandhakchhidan tamantakachchhidanbhaje || 9||pushpit neelakamal ki shyaamal chhata samaahit, neelakanth sundar dhaare kandhe udbhaasit. gaj, andhak, tripuraasur bhav-duhkh kaal vinaashak- dakshyagy-ratinaath-dhavansakarta hon pramudit..khile hue neelakamal ki sundar shyaam-prbha se vibhooshit kanth ki shobha se udbhaasit kandhonvaale, gaj, andhak, kaamadev ttha tripuraasur ke vinaashak, sansaar ke dukhon ko mitaanevaale, daksh ke yagy ka vidhavans karanevaale shri shivaji ka mainbhajan karata hoon.9. * akharvasarvamangalaakalaakadanbamanjari rasapravaahamaadhuri vijaranbhanaamdhuvratam | smaraantakan puraantakan bhavaantakan mkhaantakan gajaantakaandhakaantakantamantakaantakan bhaje || 10||shubh avinaashi kalaa-kali pravahit ras-mdhukar, daksh-yagy-vidhavansak, bhav-duhkh-kaam kshaarakar. gaj-andhak asuron ke hanta, yam ke bhi yam- bhajoon mahesh-umesh haro baadhaa-sankat har..10..nasht n honevaali, sabaka kalyaan karanevaali, samast kalaaroopi kaliyon se ni:sarat, ras ka rasaasvaadan karane me bhramar roop, kaamadev ko bhasm karanevaale, tripur naamak raakshs ka vdh karanevaale, sansaar ke samast du:khon ke harta, prajaapati daksh ke yagy ka dhavans karanevaale, gajaasur v andhakaasur ko maaranevaale, yamaraaj ke bhi yamaraaj shivaji ka mainbhajan karata hoon.10. * jayatvadabhravibhramabhramadbhujangamashvasadvinirgamatkramasphuratkaraalbhaalahavyavaat | dhimiddhimiddhimidhavananmaradangatungamangal dhavanikramapravartit prchandataandavahshivah || 11|| vegavaan vikaraal vishdharon ki phuphakaaren, dahakaaen garalaagni bhaal me jab hunkaaren. dim-dim dim-dim dhavani maradang ki, sun manamohak. mast sushobhit taandavarat shivaji upakaaren..11..atyant vegapoorvak bhraman karate hue sarpon ke phuphakaar chhodane se lalaat me badahi hui prchand agnivaale, maradang ki mangalamay dim-dim dhavani ke uchch aaroh-avaroh se taandav naraty me talleen honevaale shivaji sab prakaar se sushobhit ho rahe hain.11. * darshadvichitrtalpayorbhujangamauktikasrajorgarishtharatnaloshthayoh suharadvipakshpakshyoh| taranaaravindchakshushoh prajaamaheemahendrayoh samapravrittikah kada sadaashivanbhajaamyahat || 12||kadi-kthor shila ya komalatam shaiya ko, maradaa-ratn ya sarp-motiyon ki maala ko. shatru-mitr, taran-neerajanayana, nar-naresh ko- maan samaan bhajoonga kab tripuraari-uma ko..12..ke patthar aur komal vichitr shaiya, sarp aur motiyon ki maala, mitti ke dhelon aur bahumooly ratnon, shatru aur mitr, tinake aur kamalalochani sundariyon, praja aur mahaaraajaadhiraajon ke prati samaan darashti rkhate hue kab mainsadaashiv ka bhajan karoongaa * kada nilimpanirjhareenikunjakotare vasan vimuktadurmatih sada shirasthamanjalinvahan | vimuktalolalochano lalaambhaalalagnakah shiveti mantrmuchcharan kada sukheebhavaamyaham || 13|| kunj-kchhaaron me reva sam nirmal man ho, sir par anjali dhaaranakar kab bhaktileen ho chanchalanayana lalanaaon me paramasundari, umaa-bhaal-ankit shiv-mantr gunjaaoon sukhi ho13..mainkab narmada ji ke kchhaar-kunjon me nivaas karata hua, nishkapat hokar sir par anjali dhaaran kiye hue, chanchal netronvaali lalanaaon me paramasundari paarvati ji ke mastak par ankit shivamantr ka uchchaaran karate hue akshy sukh praapt karoongaa.13. * nilimpanaathanaagari kadanbamaulimallika, nigumpah nirbharakshnm dhooshneeka manoharah. tanotu no manomudan, vinodineen maharneeshan, parashriyan paran padan tadangajatvishaan chay: || 14||surabaalaa-sir-gunthe pushpahaaron se jhadate, parimalamay paraag-kan se shiv-ang mahakate. shobhaadhaam, manohar, paramaanandapradaata, shivadarshanakar sphal saadhan suman mahakate..14..devaanganaaon ke sir me gunthe pushpon ki maalaaon se jhadate sugandhamay paraag se manohar param shobha ke dhaam shri shivaji ke angon ki sundarataaen paramaanandayukt hamaare manaki prasannata ko sarvada badahaati rahen.14.prchandavaadavaanal prbhaashubhaprchaarini, mahaashtasiddhikaamini janaavahootajalpanaa. vimuktavaamalochano vivaahakaalikdhavani:, shivetimantrbhooshanon jagajjayaam jaayataan|| 15||paapbhasmakaari prchand badavaanal shubhada, ashtasiddhi animaadik mangalamayi narmadaa. shiv-vivaah-bela me surabaalaa-gunjaarit, paramashreshth shivamantr paath dhavani bhav-bhayahartaa..15.. prchand badavaanal ki bhaanti paapakarmon ko bhasmakar kalyaanakaari aabha bikheranevaali shakti (naaree) svaroopini animaadik asht mahaasiddhiyon ttha chanchal netronvaali devakanyaaon dvaara shiv-vivaah ke samay ki gayi paramashreshth shivamantr se poorit, mangaldhavani saansaarik dukhon ko nashtakar vijayi ho.15. *idam hi nityamevamuktamuttamottaman stavan pthansmaranbruvannarovishuddhimetisantatam | hare gurau subhaktimaashu yaati naanytha gatin vimohanan hi dehinaan sushankarasychintanam || 16|| shivataandavastotr uttamottam phaladaayak, muktakanth se paath karen nit prati jo gaayak. ho santatimay bhakti akhand rkhen hari-guru me. gati n doosari, shiv-gunagaan kare sab laayak..16..is sarvottam shivataandav stotr ka nity prati mukt kanth se paath karane se bharapoor santati-sukh, hari evan guru ke prati bhakti avichal rahati hai, doosari gati nahi hoti ttha hamesha shiv ji ki sharan praapt hoti hai.16. * poojaavasaanasamaye dshavaktrgeetan yah shanbhupoojanaparan pthati pradoshe | tasy sthiraan rthagajendraturangayuktaan lakshmeen sadaiv sumukhin pradadaati shanbhuh || 17|| karen pradoshakaal me shiv-poojan rah avichal, padah dshamukhakrit shivataandavastotr yah avikal. rama rami rah de samaraddhi, dhan, vaahan, parichar. karen kripa shiv-shiva salil-saadhana sphalakar..17..param paavan, bhoot bhavan bhagavan sadaashiv ke poojan ke nat me raavan dvaara rchit is shivataandav stotr ka pradosh kaal me paath (gaayan) karane se shivaji ki kripa se rth, gaj, vaahan, ashv aadi se sanpann hokar lakshmi sada sthir rahati hai.17.|| itishri raavan virchitan shivataandavastotrn sampoornan|| || raavanalikhit(salilapadyaanuvaadit)shivataandavastotr sanpoorn|| ***************** SOURCE: http://www.yugalsarkar.com/lyrics/shiv-taandav-strotam-shiv-bhajan-Lyrics