॥ॐ श्री परमात्मने नमः॥ ॥ॐ श्री परमात्मने नमः॥ वक्रतुण्ड महाकाय, सूर्य कोटि समप्रभ निर्विघ्नं कुरु में देव, सर्व-कार्येशु सर्वदा विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय लम्बोदराय सकलाय जगद्धिताय नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते प्रनवऊं पवनकुमार खल बन पावक ज्ञान धन। जासु हृदय आगार बसहिं राम सर चाप धर॥ दो-बलि बाँधत प्रभु बाढेउ सो तनु बरनि न जाई। उभय धरी महँ दीन्ही सात प्रदच्छिन धाइ।।।। मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी अंगद कहइ जाउँ मैं पारा। जियँ संसय कछु फिरती बारा।। जामवंत कह तुम्ह सब लायक। पठइअ किमि सब ही कर नायक।। कहइ रीछपति सुनु हनुमाना। का चुप साधि रहेहु बलवाना।। पवन तनय बल पवन समाना। बुधि बिबेक बिग्यान निधाना।। कवन सो काज कठिन जग माहीं। जो नहिं होइ तात तुम्ह पाहीं।। राम काज लगि तब अवतारा। सुनतहिं भयउ पर्वताकारा।। कनक बरन तन तेज बिराजा। मानहु अपर गिरिन्ह कर राजा।। सिंहनाद करि बारहिं बारा। लीलहीं नाषउँ जलनिधि खारा।। सहित सहाय रावनहि मारी। आनउँ इहाँ त्रिकूट उपारी।। जामवंत मैं पूँछउँ तोही। उचित सिखावनु दीजहु मोही।। एतना करहु तात तुम्ह जाई। सीतहि देखि कहहु सुधि आई।। तब निज भुज बल राजिव नैना। कौतुक लागि संग कपि सेना।। छं–कपि सेन संग सँघारि निसिचर रामु सीतहि आनिहैं। त्रैलोक पावन सुजसु सुर मुनि नारदादि बखानिहैं।। जो सुनत गावत कहत समुझत परम पद नर पावई। रघुबीर पद पाथोज मधुकर दास तुलसी गावई।। दो-भव भेषज रघुनाथ जसु सुनहि जे नर अरु नारि। तिन्ह कर सकल मनोरथ सिद्ध करिहि त्रिसिरारि।।(क।। सो-नीलोत्पल तन स्याम काम कोटि सोभा अधिक। सुनिअ तासु गुन ग्राम जासु नाम अघ खग बधिक।।(ख।। मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी श्री गणेशाय नमः श्रीजानकीवल्लभो विजयते श्रीरामचरितमानस ~~~~~~~~ पञ्चम सोपान सुन्दरकाण्ड शान्तं शाश्वतमप्रमेयमनघं निर्वाणशान्तिप्रदं ब्रह्माशम्भुफणीन्द्रसेव्यमनिशं वेदान्तवेद्यं विभुम् । रामाख्यं जगदीश्वरं सुरगुरुं मायामनुष्यं हरिं वन्देऽहं करुणाकरं रघुवरं भूपालचूड़ामणिम्।।।। नान्या स्पृहा रघुपते हृदयेऽस्मदीये सत्यं वदामि च भवानखिलान्तरात्मा। भक्तिं प्रयच्छ रघुपुङ्गव निर्भरां मे कामादिदोषरहितं कुरु मानसं च।।।। अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्। सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि।।।। मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी जामवंत के बचन सुहाए। सुनि हनुमंत हृदय अति भाए।। तब लगि मोहि परिखेहु तुम्ह भाई। सहि दुख कंद मूल फल खाई।। जब लगि आवौं सीतहि देखी। होइहि काजु मोहि हरष बिसेषी।। यह कहि नाइ सबन्हि कहुँ माथा। चलेउ हरषि हियँ धरि रघुनाथा।। सिंधु तीर एक भूधर सुंदर। कौतुक कूदि चढ़ेउ ता ऊपर।। बार बार रघुबीर सँभारी। तरकेउ पवनतनय बल भारी।। जेहिं गिरि चरन देइ हनुमंता। चलेउ सो गा पाताल तुरंता।। जिमि अमोघ रघुपति कर बाना। एही भाँति चलेउ हनुमाना।। जलनिधि रघुपति दूत बिचारी। तैं मैनाक होहि श्रमहारी।। दो- हनूमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम। राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम।।।। मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी जात पवनसुत देवन्ह देखा। जानैं कहुँ बल बुद्धि बिसेषा।। सुरसा नाम अहिन्ह कै माता। पठइन्हि आइ कही तेहिं बाता।। आजु सुरन्ह मोहि दीन्ह अहारा। सुनत बचन कह पवनकुमारा।। राम काजु करि फिरि मैं आवौं। सीता कइ सुधि प्रभुहि सुनावौं।। तब तव बदन पैठिहउँ आई। सत्य कहउँ मोहि जान दे माई।। कबनेहुँ जतन देइ नहिं जाना। ग्रससि न मोहि कहेउ हनुमाना।। जोजन भरि तेहिं बदनु पसारा। कपि तनु कीन्ह दुगुन बिस्तारा।। सोरह जोजन मुख तेहिं ठयऊ। तुरत पवनसुत बत्तिस भयऊ।। जस जस सुरसा बदनु बढ़ावा। तासु दून कपि रूप देखावा।। सत जोजन तेहिं आनन कीन्हा। अति लघु रूप पवनसुत लीन्हा।। बदन पइठि पुनि बाहेर आवा। मागा बिदा ताहि सिरु नावा।। मोहि सुरन्ह जेहि लागि पठावा। बुधि बल मरमु तोर मै पावा।। दो-राम काजु सबु करिहहु तुम्ह बल बुद्धि निधान। आसिष देह गई सो हरषि चलेउ हनुमान।।।। मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी निसिचरि एक सिंधु महुँ रहई। करि माया नभु के खग गहई।। जीव जंतु जे गगन उड़ाहीं। जल बिलोकि तिन्ह कै परिछाहीं।। गहइ छाहँ सक सो न उड़ाई। एहि बिधि सदा गगनचर खाई।। सोइ छल हनूमान कहँ कीन्हा। तासु कपटु कपि तुरतहिं चीन्हा।। ताहि मारि मारुतसुत बीरा। बारिधि पार गयउ मतिधीरा।। तहाँ जाइ देखी बन सोभा। गुंजत चंचरीक मधु लोभा।। नाना तरु फल फूल सुहाए। खग मृग बृंद देखि मन भाए।। सैल बिसाल देखि एक आगें। ता पर धाइ चढेउ भय त्यागें।। उमा न कछु कपि कै अधिकाई। प्रभु प्रताप जो कालहि खाई।। गिरि पर चढि लंका तेहिं देखी। कहि न जाइ अति दुर्ग बिसेषी।। अति उतंग जलनिधि चहु पासा। कनक कोट कर परम प्रकासा।। छं चउहट्ट हट्ट सुबट्ट बीथीं चारु पुर बहु बिधि बना।। गज बाजि खच्चर निकर पदचर रथ बरूथिन्ह को गनै।। बहुरूप निसिचर जूथ अतिबल सेन बरनत नहिं बनै।।।। बन बाग उपबन बाटिका सर कूप बापीं सोहहीं। नर नाग सुर गंधर्ब कन्या रूप मुनि मन मोहहीं।। कहुँ माल देह बिसाल सैल समान अतिबल गर्जहीं। नाना अखारेन्ह भिरहिं बहु बिधि एक एकन्ह तर्जहीं।।।। करि जतन भट कोटिन्ह बिकट तन नगर चहुँ दिसि रच्छहीं। कहुँ महिष मानषु धेनु खर अज खल निसाचर भच्छहीं।। एहि लागि तुलसीदास इन्ह की कथा कछु एक है कही। रघुबीर सर तीरथ सरीरन्हि त्यागि गति पैहहिं सही।।।। दो-पुर रखवारे देखि बहु कपि मन कीन्ह बिचार। अति लघु रूप धरौं निसि नगर करौं पइसार।।।। मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी मसक समान रूप कपि धरी। लंकहि चलेउ सुमिरि नरहरी।। नाम लंकिनी एक निसिचरी। सो कह चलेसि मोहि निंदरी।। जानेहि नहीं मरमु सठ मोरा। मोर अहार जहाँ लगि चोरा।। मुठिका एक महा कपि हनी। रुधिर बमत धरनीं ढनमनी।। पुनि संभारि उठि सो लंका। जोरि पानि कर बिनय संसका।। जब रावनहि ब्रह्म बर दीन्हा। चलत बिरंचि कहा मोहि चीन्हा।। बिकल होसि तैं कपि कें मारे। तब जानेसु निसिचर संघारे।। तात मोर अति पुन्य बहूता। देखेउँ नयन राम कर दूता।। दो-तात स्वर्ग अपबर्ग सुख धरिअ तुला एक अंग। तूल न ताहि सकल मिलि जो सुख लव सतसंग।।।। मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी प्रबिसि नगर कीजे सब काजा। हृदयँ राखि कौसलपुर राजा।। गरल सुधा रिपु करहिं मिताई। गोपद सिंधु अनल सितलाई।। गरुड़ सुमेरु रेनू सम ताही। राम कृपा करि चितवा जाही।। अति लघु रूप धरेउ हनुमाना। पैठा नगर सुमिरि भगवाना।। मंदिर मंदिर प्रति करि सोधा। देखे जहँ तहँ अगनित जोधा।। गयउ दसानन मंदिर माहीं। अति बिचित्र कहि जात सो नाहीं।। सयन किए देखा कपि तेही। मंदिर महुँ न दीखि बैदेही।। भवन एक पुनि दीख सुहावा। हरि मंदिर तहँ भिन्न बनावा।। दो-रामायुध अंकित गृह सोभा बरनि न जाइ। नव तुलसिका बृंद तहँ देखि हरषि कपिराइ।।।। मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी लंका निसिचर निकर निवासा। इहाँ कहाँ सज्जन कर बासा।। मन महुँ तरक करै कपि लागा। तेहीं समय बिभीषनु जागा।। राम राम तेहिं सुमिरन कीन्हा। हृदयँ हरष कपि सज्जन चीन्हा।। एहि सन हठि करिहउँ पहिचानी। साधु ते होइ न कारज हानी।। बिप्र रुप धरि बचन सुनाए। सुनत बिभीषण उठि तहँ आए।। करि प्रनाम पूँछी कुसलाई। बिप्र कहहु निज कथा बुझाई।। की तुम्ह हरि दासन्ह महँ कोई। मोरें हृदय प्रीति अति होई।। की तुम्ह रामु दीन अनुरागी। आयहु मोहि करन बड़भागी।। दो-तब हनुमंत कही सब राम कथा निज नाम। सुनत जुगल तन पुलक मन मगन सुमिरि गुन ग्राम।।।। मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी सुनहु पवनसुत रहनि हमारी। जिमि दसनन्हि महुँ जीभ बिचारी।। तात कबहुँ मोहि जानि अनाथा। करिहहिं कृपा भानुकुल नाथा।। तामस तनु कछु साधन नाहीं। प्रीति न पद सरोज मन माहीं।। अब मोहि भा भरोस हनुमंता। बिनु हरिकृपा मिलहिं नहिं संता।। जौ रघुबीर अनुग्रह कीन्हा। तौ तुम्ह मोहि दरसु हठि दीन्हा।। सुनहु बिभीषन प्रभु कै रीती। करहिं सदा सेवक पर प्रीती।। कहहु कवन मैं परम कुलीना। कपि चंचल सबहीं बिधि हीना।। प्रात लेइ जो नाम हमारा। तेहि दिन ताहि न मिलै अहारा।। दो-अस मैं अधम सखा सुनु मोहू पर रघुबीर। कीन्ही कृपा सुमिरि गुन भरे बिलोचन नीर।।।। मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी जानतहूँ अस स्वामि बिसारी। फिरहिं ते काहे न होहिं दुखारी।। एहि बिधि कहत राम गुन ग्रामा। पावा अनिर्बाच्य बिश्रामा।। पुनि सब कथा बिभीषन कही। जेहि बिधि जनकसुता तहँ रही।। तब हनुमंत कहा सुनु भ्राता। देखी चहउँ जानकी माता।। जुगुति बिभीषन सकल सुनाई। चलेउ पवनसुत बिदा कराई।। करि सोइ रूप गयउ पुनि तहवाँ। बन असोक सीता रह जहवाँ।। देखि मनहि महुँ कीन्ह प्रनामा। बैठेहिं बीति जात निसि जामा।। कृस तन सीस जटा एक बेनी। जपति हृदयँ रघुपति गुन श्रेनी।। दो-निज पद नयन दिएँ मन राम पद कमल लीन। परम दुखी भा पवनसुत देखि जानकी दीन।।।। मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी तरु पल्लव महुँ रहा लुकाई। करइ बिचार करौं का भाई।। तेहि अवसर रावनु तहँ आवा। संग नारि बहु किएँ बनावा।। बहु बिधि खल सीतहि समुझावा। साम दान भय भेद देखावा।। कह रावनु सुनु सुमुखि सयानी। मंदोदरी आदि सब रानी।। तव अनुचरीं करउँ पन मोरा। एक बार बिलोकु मम ओरा।। तृन धरि ओट कहति बैदेही। सुमिरि अवधपति परम सनेही।। सुनु दसमुख खद्योत प्रकासा। कबहुँ कि नलिनी करइ बिकासा।। अस मन समुझु कहति जानकी। खल सुधि नहिं रघुबीर बान की।। सठ सूने हरि आनेहि मोहि। अधम निलज्ज लाज नहिं तोही।। दो- आपुहि सुनि खद्योत सम रामहि भानु समान। परुष बचन सुनि काढ़ि असि बोला अति खिसिआन।।।। मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी सीता तैं मम कृत अपमाना। कटिहउँ तव सिर कठिन कृपाना।। नाहिं त सपदि मानु मम बानी। सुमुखि होति न त जीवन हानी।। स्याम सरोज दाम सम सुंदर। प्रभु भुज करि कर सम दसकंधर।। सो भुज कंठ कि तव असि घोरा। सुनु सठ अस प्रवान पन मोरा।। चंद्रहास हरु मम परितापं। रघुपति बिरह अनल संजातं।। सीतल निसित बहसि बर धारा। कह सीता हरु मम दुख भारा।। सुनत बचन पुनि मारन धावा। मयतनयाँ कहि नीति बुझावा।। कहेसि सकल निसिचरिन्ह बोलाई। सीतहि बहु बिधि त्रासहु जाई।। मास दिवस महुँ कहा न माना। तौ मैं मारबि काढ़ि कृपाना।। दो-भवन गयउ दसकंधर इहाँ पिसाचिनि बृंद। सीतहि त्रास देखावहि धरहिं रूप बहु मंद।।।। मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी त्रिजटा नाम राच्छसी एका। राम चरन रति निपुन बिबेका।। सबन्हौ बोलि सुनाएसि सपना। सीतहि सेइ करहु हित अपना।। सपनें बानर लंका जारी। जातुधान सेना सब मारी।। खर आरूढ़ नगन दससीसा। मुंडित सिर खंडित भुज बीसा।। एहि बिधि सो दच्छिन दिसि जाई। लंका मनहुँ बिभीषन पाई।। नगर फिरी रघुबीर दोहाई। तब प्रभु सीता बोलि पठाई।। यह सपना में कहउँ पुकारी। होइहि सत्य गएँ दिन चारी।। तासु बचन सुनि ते सब डरीं। जनकसुता के चरनन्हि परीं।। दो-जहँ तहँ गईं सकल तब सीता कर मन सोच। मास दिवस बीतें मोहि मारिहि निसिचर पोच।।।। मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी त्रिजटा सन बोली कर जोरी। मातु बिपति संगिनि तैं मोरी।। तजौं देह करु बेगि उपाई। दुसहु बिरहु अब नहिं सहि जाई।। आनि काठ रचु चिता बनाई। मातु अनल पुनि देहि लगाई।। सत्य करहि मम प्रीति सयानी। सुनै को श्रवन सूल सम बानी।। सुनत बचन पद गहि समुझाएसि। प्रभु प्रताप बल सुजसु सुनाएसि।। निसि न अनल मिल सुनु सुकुमारी। अस कहि सो निज भवन सिधारी।। कह सीता बिधि भा प्रतिकूला। मिलहि न पावक मिटिहि न सूला।। देखिअत प्रगट गगन अंगारा। अवनि न आवत एकउ तारा।। पावकमय ससि स्त्रवत न आगी। मानहुँ मोहि जानि हतभागी।। सुनहि बिनय मम बिटप असोका। सत्य नाम करु हरु मम सोका।। नूतन किसलय अनल समाना। देहि अगिनि जनि करहि निदाना।। देखि परम बिरहाकुल सीता। सो छन कपिहि कलप सम बीता।। सो-कपि करि हृदयँ बिचार दीन्हि मुद्रिका डारी तब। जनु असोक अंगार दीन्हि हरषि उठि कर गहेउ।।।। तब देखी मुद्रिका मनोहर। राम नाम अंकित अति सुंदर।। चकित चितव मुदरी पहिचानी। हरष बिषाद हृदयँ अकुलानी।। जीति को सकइ अजय रघुराई। माया तें असि रचि नहिं जाई।। सीता मन बिचार कर नाना। मधुर बचन बोलेउ हनुमाना।। रामचंद्र गुन बरनैं लागा। सुनतहिं सीता कर दुख भागा।। लागीं सुनैं श्रवन मन लाई। आदिहु तें सब कथा सुनाई।। श्रवनामृत जेहिं कथा सुहाई। कहि सो प्रगट होति किन भाई।। तब हनुमंत निकट चलि गयऊ। फिरि बैंठीं मन बिसमय भयऊ।। राम दूत मैं मातु जानकी। सत्य सपथ करुनानिधान की।। यह मुद्रिका मातु मैं आनी। दीन्हि राम तुम्ह कहँ सहिदानी।। नर बानरहि संग कहु कैसें। कहि कथा भइ संगति जैसें।। दो-कपि के बचन सप्रेम सुनि उपजा मन बिस्वास।। जाना मन क्रम बचन यह कृपासिंधु कर दास।।।। मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी हरिजन जानि प्रीति अति गाढ़ी। सजल नयन पुलकावलि बाढ़ी।। बूड़त बिरह जलधि हनुमाना। भयउ तात मों कहुँ जलजाना।। अब कहु कुसल जाउँ बलिहारी। अनुज सहित सुख भवन खरारी।। कोमलचित कृपाल रघुराई। कपि केहि हेतु धरी निठुराई।। सहज बानि सेवक सुख दायक। कबहुँक सुरति करत रघुनायक।। कबहुँ नयन मम सीतल ताता। होइहहि निरखि स्याम मृदु गाता।। बचनु न आव नयन भरे बारी। अहह नाथ हौं निपट बिसारी।। देखि परम बिरहाकुल सीता। बोला कपि मृदु बचन बिनीता।। मातु कुसल प्रभु अनुज समेता। तव दुख दुखी सुकृपा निकेता।। जनि जननी मानहु जियँ ऊना। तुम्ह ते प्रेमु राम कें दूना।। दो-रघुपति कर संदेसु अब सुनु जननी धरि धीर। अस कहि कपि गद गद भयउ भरे बिलोचन नीर।।।। मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी कहेउ राम बियोग तव सीता। मो कहुँ सकल भए बिपरीता।। नव तरु किसलय मनहुँ कृसानू। कालनिसा सम निसि ससि भानू।। कुबलय बिपिन कुंत बन सरिसा। बारिद तपत तेल जनु बरिसा।। जे हित रहे करत तेइ पीरा। उरग स्वास सम त्रिबिध समीरा।। कहेहू तें कछु दुख घटि होई। काहि कहौं यह जान न कोई।। तत्व प्रेम कर मम अरु तोरा। जानत प्रिया एकु मनु मोरा।। सो मनु सदा रहत तोहि पाहीं। जानु प्रीति रसु एतेनहि माहीं।। प्रभु संदेसु सुनत बैदेही। मगन प्रेम तन सुधि नहिं तेही।। कह कपि हृदयँ धीर धरु माता। सुमिरु राम सेवक सुखदाता।। उर आनहु रघुपति प्रभुताई। सुनि मम बचन तजहु कदराई।। दो-निसिचर निकर पतंग सम रघुपति बान कृसानु। जननी हृदयँ धीर धरु जरे निसाचर जानु।।।। मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी जौं रघुबीर होति सुधि पाई। करते नहिं बिलंबु रघुराई।। रामबान रबि उएँ जानकी। तम बरूथ कहँ जातुधान की।। अबहिं मातु मैं जाउँ लवाई। प्रभु आयसु नहिं राम दोहाई।। कछुक दिवस जननी धरु धीरा। कपिन्ह सहित अइहहिं रघुबीरा।। निसिचर मारि तोहि लै जैहहिं। तिहुँ पुर नारदादि जसु गैहहिं।। हैं सुत कपि सब तुम्हहि समाना। जातुधान अति भट बलवाना।। मोरें हृदय परम संदेहा। सुनि कपि प्रगट कीन्ह निज देहा।। कनक भूधराकार सरीरा। समर भयंकर अतिबल बीरा।। सीता मन भरोस तब भयऊ। पुनि लघु रूप पवनसुत लयऊ।। दो-सुनु माता साखामृग नहिं बल बुद्धि बिसाल। प्रभु प्रताप तें गरुड़हि खाइ परम लघु ब्याल।।।। मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी मन संतोष सुनत कपि बानी। भगति प्रताप तेज बल सानी।। आसिष दीन्हि रामप्रिय जाना। होहु तात बल सील निधाना।। अजर अमर गुननिधि सुत होहू। करहुँ बहुत रघुनायक छोहू।। करहुँ कृपा प्रभु अस सुनि काना। निर्भर प्रेम मगन हनुमाना।। बार बार नाएसि पद सीसा। बोला बचन जोरि कर कीसा।। अब कृतकृत्य भयउँ मैं माता। आसिष तव अमोघ बिख्याता।। सुनहु मातु मोहि अतिसय भूखा। लागि देखि सुंदर फल रूखा।। सुनु सुत करहिं बिपिन रखवारी। परम सुभट रजनीचर भारी।। तिन्ह कर भय माता मोहि नाहीं। जौं तुम्ह सुख मानहु मन माहीं।। दो-देखि बुद्धि बल निपुन कपि कहेउ जानकीं जाहु। रघुपति चरन हृदयँ धरि तात मधुर फल खाहु।।।। मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी चलेउ नाइ सिरु पैठेउ बागा। फल खाएसि तरु तोरैं लागा।। रहे तहाँ बहु भट रखवारे। कछु मारेसि कछु जाइ पुकारे।। नाथ एक आवा कपि भारी। तेहिं असोक बाटिका उजारी।। खाएसि फल अरु बिटप उपारे। रच्छक मर्दि मर्दि महि डारे।। सुनि रावन पठए भट नाना। तिन्हहि देखि गर्जेउ हनुमाना।। सब रजनीचर कपि संघारे। गए पुकारत कछु अधमारे।। पुनि पठयउ तेहिं अच्छकुमारा। चला संग लै सुभट अपारा।। आवत देखि बिटप गहि तर्जा। ताहि निपाति महाधुनि गर्जा।। दो-कछु मारेसि कछु मर्देसि कछु मिलएसि धरि धूरि। कछु पुनि जाइ पुकारे प्रभु मर्कट बल भूरि।।।। मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी सुनि सुत बध लंकेस रिसाना। पठएसि मेघनाद बलवाना।। मारसि जनि सुत बांधेसु ताही। देखिअ कपिहि कहाँ कर आही।। चला इंद्रजित अतुलित जोधा। बंधु निधन सुनि उपजा क्रोधा।। कपि देखा दारुन भट आवा। कटकटाइ गर्जा अरु धावा।। अति बिसाल तरु एक उपारा। बिरथ कीन्ह लंकेस कुमारा।। रहे महाभट ताके संगा। गहि गहि कपि मर्दइ निज अंगा।। तिन्हहि निपाति ताहि सन बाजा। भिरे जुगल मानहुँ गजराजा। मुठिका मारि चढ़ा तरु जाई। ताहि एक छन मुरुछा आई।। उठि बहोरि कीन्हिसि बहु माया। जीति न जाइ प्रभंजन जाया।। दो-ब्रह्म अस्त्र तेहिं साँधा कपि मन कीन्ह बिचार। जौं न ब्रह्मसर मानउँ महिमा मिटइ अपार।।।। मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी ब्रह्मबान कपि कहुँ तेहि मारा। परतिहुँ बार कटकु संघारा।। तेहि देखा कपि मुरुछित भयऊ। नागपास बाँधेसि लै गयऊ।। जासु नाम जपि सुनहु भवानी। भव बंधन काटहिं नर ग्यानी।। तासु दूत कि बंध तरु आवा। प्रभु कारज लगि कपिहिं बँधावा।। कपि बंधन सुनि निसिचर धाए। कौतुक लागि सभाँ सब आए।। दसमुख सभा दीखि कपि जाई। कहि न जाइ कछु अति प्रभुताई।। कर जोरें सुर दिसिप बिनीता। भृकुटि बिलोकत सकल सभीता।। देखि प्रताप न कपि मन संका। जिमि अहिगन महुँ गरुड़ असंका।। दो-कपिहि बिलोकि दसानन बिहसा कहि दुर्बाद। सुत बध सुरति कीन्हि पुनि उपजा हृदयँ बिषाद।।।। मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी कह लंकेस कवन तैं कीसा। केहिं के बल घालेहि बन खीसा।। की धौं श्रवन सुनेहि नहिं मोही। देखउँ अति असंक सठ तोही।। मारे निसिचर केहिं अपराधा। कहु सठ तोहि न प्रान कइ बाधा।। सुन रावन ब्रह्मांड निकाया। पाइ जासु बल बिरचित माया।। जाकें बल बिरंचि हरि ईसा। पालत सृजत हरत दससीसा। जा बल सीस धरत सहसानन। अंडकोस समेत गिरि कानन।। धरइ जो बिबिध देह सुरत्राता। तुम्ह ते सठन्ह सिखावनु दाता। हर कोदंड कठिन जेहि भंजा। तेहि समेत नृप दल मद गंजा।। खर दूषन त्रिसिरा अरु बाली। बधे सकल अतुलित बलसाली।। दो-जाके बल लवलेस तें जितेहु चराचर झारि। तासु दूत मैं जा करि हरि आनेहु प्रिय नारि।।।। मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी जानउँ मैं तुम्हारि प्रभुताई। सहसबाहु सन परी लराई।। समर बालि सन करि जसु पावा। सुनि कपि बचन बिहसि बिहरावा।। खायउँ फल प्रभु लागी भूँखा। कपि सुभाव तें तोरेउँ रूखा।। सब कें देह परम प्रिय स्वामी। मारहिं मोहि कुमारग गामी।। जिन्ह मोहि मारा ते मैं मारे। तेहि पर बाँधेउ तनयँ तुम्हारे।। मोहि न कछु बाँधे कइ लाजा। कीन्ह चहउँ निज प्रभु कर काजा।। बिनती करउँ जोरि कर रावन। सुनहु मान तजि मोर सिखावन।। देखहु तुम्ह निज कुलहि बिचारी। भ्रम तजि भजहु भगत भय हारी।। जाकें डर अति काल डेराई। जो सुर असुर चराचर खाई।। तासों बयरु कबहुँ नहिं कीजै। मोरे कहें जानकी दीजै।। दो-प्रनतपाल रघुनायक करुना सिंधु खरारि। गएँ सरन प्रभु राखिहैं तव अपराध बिसारि।।।। मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी राम चरन पंकज उर धरहू। लंका अचल राज तुम्ह करहू।। रिषि पुलिस्त जसु बिमल मंयका। तेहि ससि महुँ जनि होहु कलंका।। राम नाम बिनु गिरा न सोहा। देखु बिचारि त्यागि मद मोहा।। बसन हीन नहिं सोह सुरारी। सब भूषण भूषित बर नारी।। राम बिमुख संपति प्रभुताई। जाइ रही पाई बिनु पाई।। सजल मूल जिन्ह सरितन्ह नाहीं। बरषि गए पुनि तबहिं सुखाहीं।। सुनु दसकंठ कहउँ पन रोपी। बिमुख राम त्राता नहिं कोपी।। संकर सहस बिष्नु अज तोही। सकहिं न राखि राम कर द्रोही।। दो-मोहमूल बहु सूल प्रद त्यागहु तम अभिमान। भजहु राम रघुनायक कृपा सिंधु भगवान।।।। मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी जदपि कहि कपि अति हित बानी। भगति बिबेक बिरति नय सानी।। बोला बिहसि महा अभिमानी। मिला हमहि कपि गुर बड़ ग्यानी।। मृत्यु निकट आई खल तोही। लागेसि अधम सिखावन मोही।। उलटा होइहि कह हनुमाना। मतिभ्रम तोर प्रगट मैं जाना।। सुनि कपि बचन बहुत खिसिआना। बेगि न हरहुँ मूढ़ कर प्राना।। सुनत निसाचर मारन धाए। सचिवन्ह सहित बिभीषनु आए। नाइ सीस करि बिनय बहूता। नीति बिरोध न मारिअ दूता।। आन दंड कछु करिअ गोसाँई। सबहीं कहा मंत्र भल भाई।। सुनत बिहसि बोला दसकंधर। अंग भंग करि पठइअ बंदर।। दो-कपि कें ममता पूँछ पर सबहि कहउँ समुझाइ। तेल बोरि पट बाँधि पुनि पावक देहु लगाइ।।।। मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी पूँछहीन बानर तहँ जाइहि। तब सठ निज नाथहि लइ आइहि।। जिन्ह कै कीन्हसि बहुत बड़ाई। देखेउँûमैं तिन्ह कै प्रभुताई।। बचन सुनत कपि मन मुसुकाना। भइ सहाय सारद मैं जाना।। जातुधान सुनि रावन बचना। लागे रचैं मूढ़ सोइ रचना।। रहा न नगर बसन घृत तेला। बाढ़ी पूँछ कीन्ह कपि खेला।। कौतुक कहँ आए पुरबासी। मारहिं चरन करहिं बहु हाँसी।। बाजहिं ढोल देहिं सब तारी। नगर फेरि पुनि पूँछ प्रजारी।। पावक जरत देखि हनुमंता। भयउ परम लघु रुप तुरंता।। निबुकि चढ़ेउ कपि कनक अटारीं। भई सभीत निसाचर नारीं।। दो-हरि प्रेरित तेहि अवसर चले मरुत उनचास। अट्टहास करि गर्जा कपि बढ़ि लाग अकास।।।। मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी देह बिसाल परम हरुआई। मंदिर तें मंदिर चढ़ धाई।। जरइ नगर भा लोग बिहाला। झपट लपट बहु कोटि कराला।। तात मातु हा सुनिअ पुकारा। एहि अवसर को हमहि उबारा।। हम जो कहा यह कपि नहिं होई। बानर रूप धरें सुर कोई।। साधु अवग्या कर फलु ऐसा। जरइ नगर अनाथ कर जैसा।। जारा नगरु निमिष एक माहीं। एक बिभीषन कर गृह नाहीं।। ता कर दूत अनल जेहिं सिरिजा। जरा न सो तेहि कारन गिरिजा।। उलटि पलटि लंका सब जारी। कूदि परा पुनि सिंधु मझारी।। दो-पूँछ बुझाइ खोइ श्रम धरि लघु रूप बहोरि। जनकसुता के आगें ठाढ़ भयउ कर जोरि।।।। मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी मातु मोहि दीजे कछु चीन्हा। जैसें रघुनायक मोहि दीन्हा।। चूड़ामनि उतारि तब दयऊ। हरष समेत पवनसुत लयऊ।। कहेहु तात अस मोर प्रनामा। सब प्रकार प्रभु पूरनकामा।। दीन दयाल बिरिदु संभारी। हरहु नाथ मम संकट भारी।। तात सक्रसुत कथा सुनाएहु। बान प्रताप प्रभुहि समुझाएहु।। मास दिवस महुँ नाथु न आवा। तौ पुनि मोहि जिअत नहिं पावा।। कहु कपि केहि बिधि राखौं प्राना। तुम्हहू तात कहत अब जाना।। तोहि देखि सीतलि भइ छाती। पुनि मो कहुँ सोइ दिनु सो राती।। दो-जनकसुतहि समुझाइ करि बहु बिधि धीरजु दीन्ह। चरन कमल सिरु नाइ कपि गवनु राम पहिं कीन्ह।।।। मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी चलत महाधुनि गर्जेसि भारी। गर्भ स्त्रवहिं सुनि निसिचर नारी।। नाघि सिंधु एहि पारहि आवा। सबद किलकिला कपिन्ह सुनावा।। हरषे सब बिलोकि हनुमाना। नूतन जन्म कपिन्ह तब जाना।। मुख प्रसन्न तन तेज बिराजा। कीन्हेसि रामचन्द्र कर काजा।। मिले सकल अति भए सुखारी। तलफत मीन पाव जिमि बारी।। चले हरषि रघुनायक पासा। पूँछत कहत नवल इतिहासा।। तब मधुबन भीतर सब आए। अंगद संमत मधु फल खाए।। रखवारे जब बरजन लागे। मुष्टि प्रहार हनत सब भागे।। दो-जाइ पुकारे ते सब बन उजार जुबराज। सुनि सुग्रीव हरष कपि करि आए प्रभु काज।।।। मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी जौं न होति सीता सुधि पाई। मधुबन के फल सकहिं कि खाई।। एहि बिधि मन बिचार कर राजा। आइ गए कपि सहित समाजा।। आइ सबन्हि नावा पद सीसा। मिलेउ सबन्हि अति प्रेम कपीसा।। पूँछी कुसल कुसल पद देखी। राम कृपाँ भा काजु बिसेषी।। नाथ काजु कीन्हेउ हनुमाना। राखे सकल कपिन्ह के प्राना।। सुनि सुग्रीव बहुरि तेहि मिलेऊ। कपिन्ह सहित रघुपति पहिं चलेऊ। राम कपिन्ह जब आवत देखा। किएँ काजु मन हरष बिसेषा।। फटिक सिला बैठे द्वौ भाई। परे सकल कपि चरनन्हि जाई।। दो-प्रीति सहित सब भेटे रघुपति करुना पुंज। पूँछी कुसल नाथ अब कुसल देखि पद कंज।।।। मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी जामवंत कह सुनु रघुराया। जा पर नाथ करहु तुम्ह दाया।। ताहि सदा सुभ कुसल निरंतर। सुर नर मुनि प्रसन्न ता ऊपर।। सोइ बिजई बिनई गुन सागर। तासु सुजसु त्रेलोक उजागर।। प्रभु कीं कृपा भयउ सबु काजू। जन्म हमार सुफल भा आजू।। नाथ पवनसुत कीन्हि जो करनी। सहसहुँ मुख न जाइ सो बरनी।। पवनतनय के चरित सुहाए। जामवंत रघुपतिहि सुनाए।। सुनत कृपानिधि मन अति भाए। पुनि हनुमान हरषि हियँ लाए।। कहहु तात केहि भाँति जानकी। रहति करति रच्छा स्वप्रान की।। दो-नाम पाहरु दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट। लोचन निज पद जंत्रित जाहिं प्रान केहिं बाट।।।। मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी चलत मोहि चूड़ामनि दीन्ही। रघुपति हृदयँ लाइ सोइ लीन्ही।। नाथ जुगल लोचन भरि बारी। बचन कहे कछु जनककुमारी।। अनुज समेत गहेहु प्रभु चरना। दीन बंधु प्रनतारति हरना।। मन क्रम बचन चरन अनुरागी। केहि अपराध नाथ हौं त्यागी।। अवगुन एक मोर मैं माना। बिछुरत प्रान न कीन्ह पयाना।। नाथ सो नयनन्हि को अपराधा। निसरत प्रान करिहिं हठि बाधा।। बिरह अगिनि तनु तूल समीरा। स्वास जरइ छन माहिं सरीरा।। नयन स्त्रवहि जलु निज हित लागी। जरैं न पाव देह बिरहागी। सीता के अति बिपति बिसाला। बिनहिं कहें भलि दीनदयाला।। दो-निमिष निमिष करुनानिधि जाहिं कलप सम बीति। बेगि चलिय प्रभु आनिअ भुज बल खल दल जीति।।।। मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी सुनि सीता दुख प्रभु सुख अयना। भरि आए जल राजिव नयना।। बचन काँय मन मम गति जाही। सपनेहुँ बूझिअ बिपति कि ताही।। कह हनुमंत बिपति प्रभु सोई। जब तव सुमिरन भजन न होई।। केतिक बात प्रभु जातुधान की। रिपुहि जीति आनिबी जानकी।। सुनु कपि तोहि समान उपकारी। नहिं कोउ सुर नर मुनि तनुधारी।। प्रति उपकार करौं का तोरा। सनमुख होइ न सकत मन मोरा।। सुनु सुत उरिन मैं नाहीं। देखेउँ करि बिचार मन माहीं।। पुनि पुनि कपिहि चितव सुरत्राता। लोचन नीर पुलक अति गाता।। दो-सुनि प्रभु बचन बिलोकि मुख गात हरषि हनुमंत। चरन परेउ प्रेमाकुल त्राहि त्राहि भगवंत।।।। मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी बार बार प्रभु चहइ उठावा। प्रेम मगन तेहि उठब न भावा।। प्रभु कर पंकज कपि कें सीसा। सुमिरि सो दसा मगन गौरीसा।। सावधान मन करि पुनि संकर। लागे कहन कथा अति सुंदर।। कपि उठाइ प्रभु हृदयँ लगावा। कर गहि परम निकट बैठावा।। कहु कपि रावन पालित लंका। केहि बिधि दहेउ दुर्ग अति बंका।। प्रभु प्रसन्न जाना हनुमाना। बोला बचन बिगत अभिमाना।। साखामृग के बड़ि मनुसाई। साखा तें साखा पर जाई।। नाघि सिंधु हाटकपुर जारा। निसिचर गन बिधि बिपिन उजारा। सो सब तव प्रताप रघुराई। नाथ न कछू मोरि प्रभुताई।। दो- ता कहुँ प्रभु कछु अगम नहिं जा पर तुम्ह अनुकुल। तब प्रभावँ बड़वानलहिं जारि सकइ खलु तूल।।।। मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी नाथ भगति अति सुखदायनी। देहु कृपा करि अनपायनी।। सुनि प्रभु परम सरल कपि बानी। एवमस्तु तब कहेउ भवानी।। उमा राम सुभाउ जेहिं जाना। ताहि भजनु तजि भाव न आना।। यह संवाद जासु उर आवा। रघुपति चरन भगति सोइ पावा।। सुनि प्रभु बचन कहहिं कपिबृंदा। जय जय जय कृपाल सुखकंदा।। तब रघुपति कपिपतिहि बोलावा। कहा चलैं कर करहु बनावा।। अब बिलंबु केहि कारन कीजे। तुरत कपिन्ह कहुँ आयसु दीजे।। कौतुक देखि सुमन बहु बरषी। नभ तें भवन चले सुर हरषी।। दो-कपिपति बेगि बोलाए आए जूथप जूथ। नाना बरन अतुल बल बानर भालु बरूथ।।।। मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी प्रभु पद पंकज नावहिं सीसा। गरजहिं भालु महाबल कीसा।। देखी राम सकल कपि सेना। चितइ कृपा करि राजिव नैना।। राम कृपा बल पाइ कपिंदा। भए पच्छजुत मनहुँ गिरिंदा।। हरषि राम तब कीन्ह पयाना। सगुन भए सुंदर सुभ नाना।। जासु सकल मंगलमय कीती। तासु पयान सगुन यह नीती।। प्रभु पयान जाना बैदेहीं। फरकि बाम अँग जनु कहि देहीं।। जोइ जोइ सगुन जानकिहि होई। असगुन भयउ रावनहि सोई।। चला कटकु को बरनैं पारा। गर्जहि बानर भालु अपारा।। नख आयुध गिरि पादपधारी। चले गगन महि इच्छाचारी।। केहरिनाद भालु कपि करहीं। डगमगाहिं दिग्गज चिक्करहीं।। छं-चिक्करहिं दिग्गज डोल महि गिरि लोल सागर खरभरे। मन हरष सभ गंधर्ब सुर मुनि नाग किन्नर दुख टरे।। कटकटहिं मर्कट बिकट भट बहु कोटि कोटिन्ह धावहीं। जय राम प्रबल प्रताप कोसलनाथ गुन गन गावहीं।।।। सहि सक न भार उदार अहिपति बार बारहिं मोहई। गह दसन पुनि पुनि कमठ पृष्ट कठोर सो किमि सोहई।। रघुबीर रुचिर प्रयान प्रस्थिति जानि परम सुहावनी। जनु कमठ खर्पर सर्पराज सो लिखत अबिचल पावनी।।।। दो-एहि बिधि जाइ कृपानिधि उतरे सागर तीर। जहँ तहँ लागे खान फल भालु बिपुल कपि बीर।।।। मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी उहाँ निसाचर रहहिं ससंका। जब ते जारि गयउ कपि लंका।। निज निज गृहँ सब करहिं बिचारा। नहिं निसिचर कुल केर उबारा।। जासु दूत बल बरनि न जाई। तेहि आएँ पुर कवन भलाई।। दूतन्हि सन सुनि पुरजन बानी। मंदोदरी अधिक अकुलानी।। रहसि जोरि कर पति पग लागी। बोली बचन नीति रस पागी।। कंत करष हरि सन परिहरहू। मोर कहा अति हित हियँ धरहु।। समुझत जासु दूत कइ करनी। स्त्रवहीं गर्भ रजनीचर धरनी।। तासु नारि निज सचिव बोलाई। पठवहु कंत जो चहहु भलाई।। तब कुल कमल बिपिन दुखदाई। सीता सीत निसा सम आई।। सुनहु नाथ सीता बिनु दीन्हें। हित न तुम्हार संभु अज कीन्हें।। दो–राम बान अहि गन सरिस निकर निसाचर भेक। जब लगि ग्रसत न तब लगि जतनु करहु तजि टेक।।।। मंगल भवन अमंगल हारी द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी श्रवन सुनी सठ ता करि बानी। बिहसा जगत बिदित अभिमानी।। सभय सुभाउ नारि कर साचा। मंगल महुँ भय मन अति काचा।। जौं आवइ मर्कट कटकाई। जिअहिं बिचारे निसिचर खाई।। कंपहिं लोकप जाकी त्रासा। तासु नारि सभीत बड़ि हासा।। अस कहि बिहसि ताहि उर लाई। चलेउ सभाँ ममता अधिकाई।। मंदोदरी हृदयँ कर चिंता। भयउ कंत पर बिधि बिपरीता।। बैठेउ सभाँ खबरि असि पाई। सिंधु पार सेना सब आई।। बूझेसि सचिव उचित मत कहहू। ते सब हँसे मष्ट करि रहहू।। जितेहु सु sunderkand ..om shri paramaatmane namah.. vakratund mahaakaay, soory 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ganai.. bahuroop nisichar jooth atibal sen baranat nahin banai.... ban baag upaban baatika sar koop baapeen sohaheen. nar naag sur gandharb kanya roop muni man mohaheen.. kahun maal deh bisaal sail samaan atibal garjaheen. naana akhaarenh bhirahin bahu bidhi ek ekanh tarjaheen.... kari jatan bhat kotinh bikat tan nagar chahun disi rachchhaheen. kahun mahish maanshu dhenu khar aj khal nisaachar bhachchhaheen.. ehi laagi tulaseedaas inh ki ktha kchhu ek hai kahi. rghubeer sar teerth sareeranhi tyaagi gati paihahin sahi.... do-pur rkhavaare dekhi bahu kapi man keenh bichaar. ati lghu roop dharaun nisi nagar karaun pisaar.... mangal bhavan amangal haari dravu so dsharth ajir bihaari masak samaan roop kapi dhari. lankahi chaleu sumiri narahari.. naam lankini ek nisichari. so kah chalesi mohi nindari.. jaanehi nahi maramu sth moraa. mor ahaar jahaan lagi choraa.. muthika ek maha kapi hani. rudhir bamat dharaneen dhanamani.. puni sanbhaari uthi so lankaa. jori paani kar binay sansakaa.. jab raavanahi braham bar deenhaa. chalat biranchi kaha mohi cheenhaa.. bikal hosi tain kapi ken maare. tab jaanesu nisichar sanghaare.. taat mor ati puny bahootaa. dekheun nayan ram kar dootaa.. do-taat svarg apabarg sukh dhari tula ek ang. tool n taahi sakal mili jo sukh lav satasang.... mangal bhavan amangal haari dravu so dsharth ajir bihaari prabisi nagar keeje sab kaajaa. haradayan raakhi kausalapur raajaa.. garal sudha ripu karahin mitaai. gopad sindhu anal sitalaai.. garud sumeru renoo sam taahi. ram kripa kari chitava jaahi.. ati lghu roop dhareu hanumanaa. paitha nagar sumiri bhagavaanaa.. mandir mandir prati kari sodhaa. dekhe jahan tahan aganit jodhaa.. gayu dasaanan mandir maaheen. ati bichitr kahi jaat so naaheen.. sayan kie dekha kapi tehi. mandir mahun n deekhi baidehi.. bhavan ek puni deekh suhaavaa. hari mandir tahan bhinn banaavaa.. do-ramaayudh ankit garah sobha barani n jaai. nav tulasika barand tahan dekhi harshi kapiraai.... mangal bhavan amangal haari dravu so dsharth ajir bihaari lanka nisichar nikar nivaasaa. ihaan kahaan sajjan kar baasaa.. man mahun tarak karai kapi laagaa. teheen samay bibheeshanu jaagaa.. ram ram tehin sumiran keenhaa. haradayan harsh kapi sajjan cheenhaa.. ehi san hthi karihun pahichaani. saadhu te hoi n kaaraj haani.. bipr rup dhari bchan sunaae. sunat bibheeshan uthi tahan aae.. kari pranaam poonchhi kusalaai. bipr kahahu nij ktha bujhaai.. ki tumh hari daasanh mahan koi. moren haraday preeti ati hoi.. ki tumh ramu deen anuraagi. aayahu mohi karan badbhaagi.. do-tab hanumant kahi sab ram ktha nij naam. sunat jugal tan pulak man magan sumiri gun gram.... mangal bhavan amangal haari dravu so dsharth ajir bihaari sunahu pavanasut rahani hamaari. jimi dasananhi mahun jeebh bichaari.. taat kabahun mohi jaani anaathaa. karihahin kripa bhaanukul naathaa.. taamas tanu kchhu saadhan naaheen. preeti n pad saroj man maaheen.. ab mohi bha bharos hanumantaa. binu harikripa milahin nahin santaa.. jau rghubeer anugrah keenhaa. tau tumh mohi darasu hthi deenhaa.. sunahu bibheeshan prbhu kai reeti. karahin sada sevak par preeti.. kahahu kavan mainparam kuleenaa. kapi chanchal sabaheen bidhi heenaa.. praat lei jo naam hamaaraa. tehi din taahi n milai ahaaraa.. do-as mainadham skha sunu mohoo par rghubeer. keenhi kripa sumiri gun bhare bilochan neer.... mangal bhavan amangal haari dravu so dsharth ajir bihaari jaanatahoon as svaami bisaari. phirahin te kaahe n hohin dukhaari.. ehi bidhi kahat ram gun gramaa. paava anirbaachy bishramaa.. puni sab ktha bibheeshan kahi. jehi bidhi janakasuta tahan rahi.. tab hanumant kaha sunu bhraataa. dekhi chahun jaanaki maataa.. juguti bibheeshan sakal sunaai. chaleu pavanasut bida karaai.. kari soi roop gayu puni tahavaan. ban asok seeta rah jahavaan.. dekhi manahi mahun keenh pranaamaa. baithehin beeti jaat nisi jaamaa.. kris tan sees jata ek beni. japati haradayan rghupati gun shreni.. do-nij pad nayan dien man ram pad kamal leen. param dukhi bha pavanasut dekhi jaanaki deen.... mangal bhavan amangal haari dravu so dsharth ajir bihaari taru pallav mahun raha lukaai. kari bichaar karaun ka bhaai.. tehi avasar raavanu tahan aavaa. sang naari bahu kien banaavaa.. bahu bidhi khal seetahi samujhaavaa. saam daan bhay bhed dekhaavaa.. kah raavanu sunu sumukhi sayaani. mandodari aadi sab raani.. tav anuchareen karun pan moraa. ek baar biloku mam oraa.. taran dhari ot kahati baidehi. sumiri avdhapati param sanehi.. sunu dasamukh khadyot prakaasaa. kabahun ki nalini kari bikaasaa.. as man samujhu kahati jaanaki. khal sudhi nahin rghubeer baan ki.. sth soone hari aanehi mohi. adham nilajj laaj nahin tohi.. do- aapuhi suni khadyot sam ramhi bhaanu samaan. parush bchan suni kaadahi asi bola ati khisiaan.... mangal bhavan amangal haari dravu so dsharth ajir bihaari seeta tain mam krit apamaanaa. katihun tav sir kthin kripaanaa.. naahin t sapadi maanu mam baani. sumukhi hoti n t jeevan haani.. syaam saroj daam sam sundar. prbhu bhuj kari kar sam dasakandhar.. so bhuj kanth ki tav asi ghoraa. sunu sth as pravaan pan moraa.. chandrahaas haru mam paritaapan. rghupati birah anal sanjaatan.. seetal nisit bahasi bar dhaaraa. kah seeta haru mam dukh bhaaraa.. sunat bchan puni maaran dhaavaa. mayatanayaan kahi neeti bujhaavaa.. kahesi sakal nisicharinh bolaai. seetahi bahu bidhi traasahu jaai.. maas divas mahun kaha n maanaa. tau mainmaarabi kaadahi kripaanaa.. do-bhavan gayu dasakandhar ihaan pisaachini barand. seetahi traas dekhaavahi dharahin roop bahu mand.... mangal bhavan amangal haari dravu so dsharth ajir bihaari trijata naam raachchhasi ekaa. ram charan rati nipun bibekaa.. sabanhau boli sunaaesi sapanaa. seetahi sei karahu hit apanaa.. sapanen baanar lanka jaari. jaatudhaan sena sab maari.. khar aaroodah nagan dasaseesaa. mundit sir khandit bhuj beesaa.. ehi bidhi so dachchhin disi jaai. lanka manahun bibheeshan paai.. nagar phiri rghubeer dohaai. tab prbhu seeta boli pthaai.. yah sapana me kahun pukaari. hoihi saty gen din chaari.. taasu bchan suni te sab dareen. janakasuta ke charananhi pareen.. do-jahan tahan geen sakal tab seeta kar man soch. maas divas beeten mohi maarihi nisichar poch.... mangal bhavan amangal haari dravu so dsharth ajir bihaari trijata san boli kar jori. maatu bipati sangini tain mori.. tajaun deh karu begi upaai. dusahu birahu ab nahin sahi jaai.. aani kaath rchu chita banaai. maatu anal puni dehi lagaai.. saty karahi mam preeti sayaani. sunai ko shrvan sool sam baani.. sunat bchan pad gahi samujhaaesi. prbhu prataap bal sujasu sunaaesi.. nisi n anal mil sunu sukumaari. as kahi so nij bhavan sidhaari.. kah seeta bidhi bha pratikoolaa. milahi n paavak mitihi n soolaa.. dekhiat pragat gagan angaaraa. avani n aavat eku taaraa.. paavakamay sasi strvat n aagi. maanahun mohi jaani hatbhaagi.. sunahi binay mam bitap asokaa. saty naam karu haru mam sokaa.. nootan kisalay anal samaanaa. dehi agini jani karahi nidaanaa.. dekhi param birahaakul seetaa. so chhan kapihi kalap sam beetaa.. so-kapi kari haradayan bichaar deenhi mudrika daari tab. janu asok angaar deenhi harshi uthi kar gaheu.... tab dekhi mudrika manohar. ram naam ankit ati sundar.. chakit chitav mudari pahichaani. harsh bishaad haradayan akulaani.. jeeti ko saki ajay rghuraai. maaya ten asi rchi nahin jaai.. seeta man bichaar kar naanaa. mdhur bchan boleu hanumanaa.. ramchandr gun baranain laagaa. sunatahin seeta kar dukh bhaagaa.. laageen sunain shrvan man laai. aadihu ten sab ktha sunaai.. shrvanaamarat jehin ktha suhaai. kahi so pragat hoti kin bhaai.. tab hanumant nikat chali gayoo. phiri baintheen man bisamay bhayoo.. ram doot mainmaatu jaanaki. saty sapth karunaanidhaan ki.. yah mudrika maatu mainaani. deenhi ram tumh kahan sahidaani.. nar baanarahi sang kahu kaisen. kahi ktha bhi sangati jaisen.. do-kapi ke bchan saprem suni upaja man bisvaas.. jaana man kram bchan yah kripaasindhu kar daas.... mangal bhavan amangal haari dravu so dsharth ajir bihaari harijan jaani preeti ati gaadahi. sajal nayan pulakaavali baadahi.. boodat birah jaldhi hanumanaa. bhayu taat mon kahun jalajaanaa.. ab kahu kusal jaaun balihaari. anuj sahit sukh bhavan kharaari.. komalchit kripaal rghuraai. kapi kehi hetu dhari nithuraai.. sahaj baani sevak sukh daayak. kabahunk surati karat rghunaayak.. kabahun nayan mam seetal taataa. hoihahi nirkhi syaam maradu gaataa.. bchanu n aav nayan bhare baari. ahah naath haun nipat bisaari.. dekhi param birahaakul seetaa. bola kapi maradu bchan bineetaa.. maatu kusal prbhu anuj sametaa. tav dukh dukhi sukripa niketaa.. jani janani maanahu jiyan oonaa. tumh te premu ram ken doonaa.. do-rghupati kar sandesu ab sunu janani dhari dheer. as kahi kapi gad gad bhayu bhare bilochan neer.... mangal bhavan amangal haari dravu so dsharth ajir bihaaree kaheu ram biyog tav seetaa. mo kahun sakal bhe bipareetaa.. nav taru kisalay manahun krisaanoo. kaalanisa sam nisi sasi bhaanoo.. kubalay bipin kunt ban sarisaa. baarid tapat tel janu barisaa.. je hit rahe karat tei peeraa. urag svaas sam tribidh sameeraa.. kahehoo ten kchhu dukh ghati hoi. kaahi kahaun yah jaan n koi.. tatv prem kar mam aru toraa. jaanat priya eku manu moraa.. so manu sada rahat tohi paaheen. jaanu preeti rasu etenahi maaheen.. prbhu sandesu sunat baidehi. magan prem tan sudhi nahin tehi.. kah kapi haradayan dheer dharu maataa. sumiru ram sevak sukhadaataa.. ur aanahu rghupati prbhutaai. suni mam bchan tajahu kadaraai.. do-nisichar nikar patang sam rghupati baan krisaanu. janani haradayan dheer dharu jare nisaachar jaanu.... mangal bhavan amangal haari dravu so dsharth ajir bihaari jaun rghubeer hoti sudhi paai. karate nahin bilanbu rghuraai.. rambaan rabi uen jaanaki. tam barooth kahan jaatudhaan ki.. abahin maatu mainjaaun lavaai. prbhu aayasu nahin ram dohaai.. kchhuk divas janani dharu dheeraa. kapinh sahit aihahin rghubeeraa.. nisichar maari tohi lai jaihahin. tihun pur naaradaadi jasu gaihahin.. hain sut kapi sab tumhahi samaanaa. jaatudhaan ati bhat balavaanaa.. moren haraday param sandehaa. suni kapi pragat keenh nij dehaa.. kanak bhoodharaakaar sareeraa. samar bhayankar atibal beeraa.. seeta man bharos tab bhayoo. puni lghu roop pavanasut layoo.. do-sunu maata saakhaamarag nahin bal buddhi bisaal. prbhu prataap ten garudahi khaai param lghu byaal.... mangal bhavan amangal haari dravu so dsharth ajir bihaari man santosh sunat kapi baani. bhagati prataap tej bal saani.. aasish deenhi rampriy jaanaa. hohu taat bal seel nidhaanaa.. ajar amar gunanidhi sut hohoo. karahun bahut rghunaayak chhohoo.. karahun kripa prbhu as suni kaanaa. nirbhar prem magan hanumanaa.. baar baar naaesi pad seesaa. bola bchan jori kar keesaa.. ab kritakrity bhayun mainmaataa. aasish tav amogh bikhyaataa.. sunahu maatu mohi atisay bhookhaa. laagi dekhi sundar phal rookhaa.. sunu sut karahin bipin rkhavaari. param subhat rajaneechar bhaari.. tinh kar bhay maata mohi naaheen. jaun tumh sukh maanahu man maaheen.. do-dekhi buddhi bal nipun kapi kaheu jaanakeen jaahu. rghupati charan haradayan dhari taat mdhur phal khaahu.... mangal bhavan amangal haari dravu so dsharth ajir bihaaree chaleu naai siru paitheu baagaa. phal khaaesi taru torain laagaa.. rahe tahaan bahu bhat rkhavaare. kchhu maaresi kchhu jaai pukaare.. naath ek aava kapi bhaari. tehin asok baatika ujaari.. khaaesi phal aru bitap upaare. rachchhak mardi mardi mahi daare.. suni raavan pthe bhat naanaa. tinhahi dekhi garjeu hanumanaa.. sab rajaneechar kapi sanghaare. ge pukaarat kchhu adhamaare.. puni pthayu tehin achchhakumaaraa. chala sang lai subhat apaaraa.. aavat dekhi bitap gahi tarjaa. taahi nipaati mahaadhuni garjaa.. do-kchhu maaresi kchhu mardesi kchhu milesi dhari dhoori. kchhu puni jaai pukaare prbhu markat bal bhoori.... mangal bhavan amangal haari dravu so dsharth ajir bihaari suni sut bdh lankes risaanaa. pthesi meghanaad balavaanaa.. maarasi jani sut baandhesu taahi. dekhi kapihi kahaan kar aahi.. chala indrajit atulit jodhaa. bandhu nidhan suni upaja krodhaa.. kapi dekha daarun bhat aavaa. katakataai garja aru dhaavaa.. ati bisaal taru ek upaaraa. birth keenh lankes kumaaraa.. rahe mahaabhat taake sangaa. gahi gahi kapi mardi nij angaa.. tinhahi nipaati taahi san baajaa. bhire jugal maanahun gajaraajaa. muthika maari chadaha taru jaai. taahi ek chhan muruchha aai.. uthi bahori keenhisi bahu maayaa. jeeti n jaai prbhanjan jaayaa.. do-braham astr tehin saandha kapi man keenh bichaar. jaun n brahamasar maanun mahima miti apaar.... mangal bhavan amangal haari dravu so dsharth ajir bihaari brahamabaan kapi kahun tehi maaraa. paratihun baar kataku sanghaaraa.. tehi dekha kapi muruchhit bhayoo. naagapaas baandhesi lai gayoo.. jaasu naam japi sunahu bhavaani. bhav bandhan kaatahin nar gyaani.. taasu doot ki bandh taru aavaa. prbhu kaaraj lagi kapihin bandhaavaa.. kapi bandhan suni nisichar dhaae. kautuk laagi sbhaan sab aae.. dasamukh sbha deekhi kapi jaai. kahi n jaai kchhu ati prbhutaai.. kar joren sur disip bineetaa. bharakuti bilokat sakal sbheetaa.. dekhi prataap n kapi man sankaa. jimi ahigan mahun garud asankaa.. do-kapihi biloki dasaanan bihasa kahi durbaad. sut bdh surati keenhi puni upaja haradayan bishaad.... mangal bhavan amangal haari dravu so dsharth ajir bihaari kah lankes kavan tain keesaa. kehin ke bal ghaalehi ban kheesaa.. ki dhaun shrvan sunehi nahin mohi. dekhun ati asank sth tohi.. maare nisichar kehin aparadhaa. kahu sth tohi n praan ki baadhaa.. sun raavan brahamaand nikaayaa. paai jaasu bal birchit maayaa.. jaaken bal biranchi hari eesaa. paalat sarajat harat dasaseesaa. ja bal sees dharat sahasaanan. andakos samet giri kaanan.. dhari jo bibidh deh suratraataa. tumh te sthanh sikhaavanu daataa. har kodand kthin jehi bhanjaa. tehi samet narap dal mad ganjaa.. khar dooshan trisira aru baali. bdhe sakal atulit balasaali.. do-jaake bal lavales ten jitehu charaachar jhaari. taasu doot mainja kari hari aanehu priy naari.... mangal bhavan amangal haari dravu so dsharth ajir bihaaree jaanun maintumhaari prbhutaai. sahasabaahu san pari laraai.. samar baali san kari jasu paavaa. suni kapi bchan bihasi biharaavaa.. khaayun phal prbhu laagi bhoonkhaa. kapi subhaav ten toreun rookhaa.. sab ken deh param priy svaami. maarahin mohi kumaarag gaami.. jinh mohi maara te mainmaare. tehi par baandheu tanayan tumhaare.. mohi n kchhu baandhe ki laajaa. keenh chahun nij prbhu kar kaajaa.. binati karun jori kar raavan. sunahu maan taji mor sikhaavan.. dekhahu tumh nij kulahi bichaari. bhram taji bhajahu bhagat bhay haari.. jaaken dar ati kaal deraai. jo sur asur charaachar khaai.. taason bayaru kabahun nahin keejai. more kahen jaanaki deejai.. do-pranatapaal rghunaayak karuna sindhu kharaari. gen saran prbhu raakhihain tav aparaadh bisaari.... mangal bhavan amangal haari dravu so dsharth ajir bihaaree ram charan pankaj ur dharahoo. lanka achal raaj tumh karahoo.. rishi pulist jasu bimal manyakaa. tehi sasi mahun jani hohu kalankaa.. ram naam binu gira n sohaa. dekhu bichaari tyaagi mad mohaa.. basan heen nahin soh suraari. sab bhooshan bhooshit bar naari.. ram bimukh sanpati prbhutaai. jaai rahi paai binu paai.. sajal mool jinh saritanh naaheen. barshi ge puni tabahin sukhaaheen.. sunu dasakanth kahun pan ropi. bimukh ram traata nahin kopi.. sankar sahas bishnu aj tohi. sakahin n raakhi ram kar drohi.. do-mohamool bahu sool prad tyaagahu tam abhimaan. bhajahu ram rghunaayak kripa sindhu bhagavaan.... mangal bhavan amangal haari dravu so dsharth ajir bihaari jadapi kahi kapi ati hit baani. bhagati bibek birati nay saani.. bola bihasi maha abhimaani. mila hamahi kapi gur bad gyaani.. maratyu nikat aai khal tohi. laagesi adham sikhaavan mohi.. ulata hoihi kah hanumanaa. matibhram tor pragat mainjaanaa.. suni kapi bchan bahut khisiaanaa. begi n harahun moodah kar praanaa.. sunat nisaachar maaran dhaae. schivanh sahit bibheeshanu aae. naai sees kari binay bahootaa. neeti birodh n maari dootaa.. aan dand kchhu kari gosaani. sabaheen kaha mantr bhal bhaai.. sunat bihasi bola dasakandhar. ang bhang kari pthi bandar.. do-kapi ken mamata poonchh par sabahi kahun samujhaai. tel bori pat baandhi puni paavak dehu lagaai.... mangal bhavan amangal haari dravu so dsharth ajir bihaari poonchhaheen baanar tahan jaaihi. tab sth nij naathahi li aaihi.. jinh kai keenhasi bahut badaai. dekheunûmaintinh kai prbhutaai.. bchan sunat kapi man musukaanaa. bhi sahaay saarad mainjaanaa.. jaatudhaan suni raavan bchanaa. laage rchain moodah soi rchanaa.. raha n nagar basan gharat telaa. baadahi poonchh keenh kapi khelaa.. kautuk kahan aae purabaasi. maarahin charan karahin bahu haansi.. baajahin dhol dehin sab taari. nagar pheri puni poonchh prajaari.. paavak jarat dekhi hanumantaa. bhayu param lghu rup turantaa.. nibuki chadaheu kapi kanak ataareen. bhi sbheet nisaachar naareen.. do-hari prerit tehi avasar chale marut unchaas. attahaas kari garja kapi badahi laag akaas.... mangal bhavan amangal haari dravu so dsharth ajir bihaari deh bisaal param haruaai. mandir ten mandir chadah dhaai.. jari nagar bha log bihaalaa. jhapat lapat bahu koti karaalaa.. taat maatu ha suni pukaaraa. ehi avasar ko hamahi ubaaraa.. ham jo kaha yah kapi nahin hoi. baanar roop dharen sur koi.. saadhu avagya kar phalu aisaa. jari nagar anaath kar jaisaa.. jaara nagaru nimish ek maaheen. ek bibheeshan kar garah naaheen.. ta kar doot anal jehin sirijaa. jara n so tehi kaaran girijaa.. ulati palati lanka sab jaari. koodi para puni sindhu mjhaari.. do-poonchh bujhaai khoi shrm dhari lghu roop bahori. janakasuta ke aagen thaadah bhayu kar jori.... mangal bhavan amangal haari dravu so dsharth ajir bihaari maatu mohi deeje kchhu cheenhaa. jaisen rghunaayak mohi deenhaa.. choodaamani utaari tab dayoo. harsh samet pavanasut layoo.. kahehu taat as mor pranaamaa. sab prakaar prbhu pooranakaamaa.. deen dayaal biridu sanbhaari. harahu naath mam sankat bhaari.. taat sakrasut ktha sunaaehu. baan prataap prbhuhi samujhaaehu.. maas divas mahun naathu n aavaa. tau puni mohi jiat nahin paavaa.. kahu kapi kehi bidhi raakhaun praanaa. tumhahoo taat kahat ab jaanaa.. tohi dekhi seetali bhi chhaati. puni mo kahun soi dinu so raati.. do-janakasutahi samujhaai kari bahu bidhi dheeraju deenh. charan kamal siru naai kapi gavanu ram pahin keenh.... mangal bhavan amangal haari dravu so dsharth ajir bihaari chalat mahaadhuni garjesi bhaari. garbh strvahin suni nisichar naari.. naaghi sindhu ehi paarahi aavaa. sabad kilakila kapinh sunaavaa.. harshe sab biloki hanumanaa. nootan janm kapinh tab jaanaa.. mukh prasann tan tej biraajaa. keenhesi ramchandr kar kaajaa.. mile sakal ati bhe sukhaari. talphat meen paav jimi baari.. chale harshi rghunaayak paasaa. poonchhat kahat naval itihaasaa.. tab mdhuban bheetar sab aae. angad sanmat mdhu phal khaae.. rkhavaare jab barajan laage. mushti prahaar hanat sab bhaage.. do-jaai pukaare te sab ban ujaar jubaraaj. suni sugreev harsh kapi kari aae prbhu kaaj.... mangal bhavan amangal haari dravu so dsharth ajir bihaari jaun n hoti seeta sudhi paai. mdhuban ke phal sakahin ki khaai.. ehi bidhi man bichaar kar raajaa. aai ge kapi sahit samaajaa.. aai sabanhi naava pad seesaa. mileu sabanhi ati prem kapeesaa.. poonchhi kusal kusal pad dekhi. ram kripaan bha kaaju biseshi.. naath kaaju keenheu hanumanaa. raakhe sakal kapinh ke praanaa.. suni sugreev bahuri tehi mileoo. kapinh sahit rghupati pahin chaleoo. ram kapinh jab aavat dekhaa. kien kaaju man harsh biseshaa.. phatik sila baithe dvau bhaai. pare sakal kapi charananhi jaai.. do-preeti sahit sab bhete rghupati karuna punj. poonchhi kusal naath ab kusal dekhi pad kanj.... mangal bhavan amangal haari dravu so dsharth ajir bihaari jaamavant kah sunu rghuraayaa. ja par naath karahu tumh daayaa.. taahi sada subh kusal nirantar. sur nar muni prasann ta oopar.. soi biji bini gun saagar. taasu sujasu trelok ujaagar.. prbhu keen kripa bhayu sabu kaajoo. janm hamaar suphal bha aajoo.. naath pavanasut keenhi jo karani. sahasahun mukh n jaai so barani.. pavanatanay ke charit suhaae. jaamavant rghupatihi sunaae.. sunat kripaanidhi man ati bhaae. puni hanuman harshi hiyan laae.. kahahu taat kehi bhaanti jaanaki. rahati karati rachchha svapraan ki.. do-naam paaharu divas nisi dhayaan tumhaar kapaat. lochan nij pad jantrit jaahin praan kehin baat.... mangal bhavan amangal haari dravu so dsharth ajir bihaari chalat mohi choodaamani deenhi. rghupati haradayan laai soi leenhi.. naath jugal lochan bhari baari. bchan kahe kchhu janakakumaari.. anuj samet gahehu prbhu charanaa. deen bandhu pranataarati haranaa.. man kram bchan charan anuraagi. kehi aparaadh naath haun tyaagi.. avagun ek mor mainmaanaa. bichhurat praan n keenh payaanaa.. naath so nayananhi ko aparadhaa. nisarat praan karihin hthi baadhaa.. birah agini tanu tool sameeraa. svaas jari chhan maahin sareeraa.. nayan strvahi jalu nij hit laagi. jarain n paav deh birahaagi. seeta ke ati bipati bisaalaa. binahin kahen bhali deenadayaalaa.. do-nimish nimish karunaanidhi jaahin kalap sam beeti. begi chaliy prbhu aani bhuj bal khal dal jeeti.... mangal bhavan amangal haari dravu so dsharth ajir bihaari suni seeta dukh prbhu sukh ayanaa. bhari aae jal raajiv nayanaa.. bchan kaany man mam gati jaahi. sapanehun boojhi bipati ki taahi.. kah hanumant bipati prbhu soi. jab tav sumiran bhajan n hoi.. ketik baat prbhu jaatudhaan ki. ripuhi jeeti aanibi jaanaki.. sunu kapi tohi samaan upakaari. nahin kou sur nar muni tanudhaari.. prati upakaar karaun ka toraa. sanamukh hoi n sakat man moraa.. sunu sut urin mainnaaheen. dekheun kari bichaar man maaheen.. puni puni kapihi chitav suratraataa. lochan neer pulak ati gaataa.. do-suni prbhu bchan biloki mukh gaat harshi hanumant. charan pareu premaakul traahi traahi bhagavant.... mangal bhavan amangal haari dravu so dsharth ajir bihaari baar baar prbhu chahi uthaavaa. prem magan tehi uthab n bhaavaa.. prbhu kar pankaj kapi ken seesaa. sumiri so dasa magan gaureesaa.. saavdhaan man kari puni sankar. laage kahan ktha ati sundar.. kapi uthaai prbhu haradayan lagaavaa. kar gahi param nikat baithaavaa.. kahu kapi raavan paalit lankaa. kehi bidhi daheu durg ati bankaa.. prbhu prasann jaana hanumanaa. bola bchan bigat abhimaanaa.. saakhaamarag ke badi manusaai. saakha ten saakha par jaai.. naaghi sindhu haatakapur jaaraa. nisichar gan bidhi bipin ujaaraa. so sab tav prataap rghuraai. naath n kchhoo mori prbhutaai.. do- ta kahun prbhu kchhu agam nahin ja par tumh anukul. tab prbhaavan badavaanalahin jaari saki khalu tool.... mangal bhavan amangal haari dravu so dsharth ajir bihaari naath bhagati ati sukhadaayani. dehu kripa kari anapaayani.. suni prbhu param saral kapi baani. evamastu tab kaheu bhavaani.. uma ram subhaau jehin jaanaa. taahi bhajanu taji bhaav n aanaa.. yah sanvaad jaasu ur aavaa. rghupati charan bhagati soi paavaa.. suni prbhu bchan kahahin kapibarandaa. jay jay jay kripaal sukhakandaa.. tab rghupati kapipatihi bolaavaa. kaha chalain kar karahu banaavaa.. ab bilanbu kehi kaaran keeje. turat kapinh kahun aayasu deeje.. kautuk dekhi suman bahu barshi. nbh ten bhavan chale sur harshi.. do-kapipati begi bolaae aae joothap jooth. naana baran atul bal baanar bhaalu barooth.... mangal bhavan amangal haari dravu so dsharth ajir bihaari prbhu pad pankaj naavahin seesaa. garajahin bhaalu mahaabal keesaa.. dekhi ram sakal kapi senaa. chiti kripa kari raajiv nainaa.. ram kripa bal paai kapindaa. bhe pachchhajut manahun girindaa.. harshi ram tab keenh payaanaa. sagun bhe sundar subh naanaa.. jaasu sakal mangalamay keeti. taasu payaan sagun yah neeti.. prbhu payaan jaana baideheen. pharaki baam ang janu kahi deheen.. joi joi sagun jaanakihi hoi. asagun bhayu raavanahi soi.. chala kataku ko baranain paaraa. garjahi baanar bhaalu apaaraa.. nkh aayudh giri paadapdhaari. chale gagan mahi ichchhaachaari.. keharinaad bhaalu kapi karaheen. dagamagaahin diggaj chikkaraheen.. chhan-chikkarahin diggaj dol mahi giri lol saagar kharbhare. man harsh sbh gandharb sur muni naag kinnar dukh tare.. katakatahin markat bikat bhat bahu koti kotinh dhaavaheen. jay ram prabal prataap kosalanaath gun gan gaavaheen.... sahi sak n bhaar udaar ahipati baar baarahin mohi. gah dasan puni puni kamth parasht kthor so kimi sohi.. rghubeer ruchir prayaan prasthiti jaani param suhaavani. janu kamth kharpar sarparaaj so likhat abichal paavani.... do-ehi bidhi jaai kripaanidhi utare saagar teer. jahan tahan laage khaan phal bhaalu bipul kapi beer.... mangal bhavan amangal haari dravu so dsharth ajir bihaaree uhaan nisaachar rahahin sasankaa. jab te jaari gayu kapi lankaa.. nij nij garahan sab karahin bichaaraa. nahin nisichar kul ker ubaaraa.. jaasu doot bal barani n jaai. tehi aaen pur kavan bhalaai.. dootanhi san suni purajan baani. mandodari adhik akulaani.. rahasi jori kar pati pag laagi. boli bchan neeti ras paagi.. kant karsh hari san pariharahoo. mor kaha ati hit hiyan dharahu.. samujhat jaasu doot ki karani. strvaheen garbh rajaneechar dharani.. taasu naari nij schiv bolaai. pthavahu kant jo chahahu bhalaai.. tab kul kamal bipin dukhadaai. seeta seet nisa sam aai.. sunahu naath seeta binu deenhen. hit n tumhaar sanbhu aj keenhen.. doram baan ahi gan saris nikar nisaachar bhek. jab lagi grasat n tab lagi jatanu karahu taji tek.... mangal bhavan amangal haari dravu so dsharth ajir bihaari shrvan suni sth ta kari baani. bihasa jagat bidit abhimaani.. sbhay subhaau naari kar saachaa. mangal mahun bhay man ati kaachaa.. jaun aavi markat katakaai. jiahin bichaare nisichar khaai.. kanpahin lokap jaaki traasaa. taasu naari sbheet badi haasaa.. as kahi bihasi taahi ur laai. chaleu sbhaan mamata adhikaai.. mandodari haradayan kar chintaa. bhayu kant par bidhi bipareetaa.. baitheu sbhaan khabari asi paai. sindhu paar sena sab aai.. boojhesi schiv uchit mat kahahoo. te sab hanse masht kari rahahoo.. jitehu su SOURCE: http://www.yugalsarkar.com/lyrics/sunderkand-Lyrics