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एकादशी माहात्म्य कथाएँ (एकादशी व्रत कथा)

Ekadashi Vrat Katha (Ekadasi Katha)

कथा 15 - Katha 15

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आषाढ़मास कृष्ण पक्ष की 'योगिनी' एकादशी का माहात्म्

आषाढ़मास कृष्णपक्षकी 'योगिनी' एकादशीका माहात्म्य

युधिष्ठिरने पूछा- वासुदेव! आषाढके कृष्णपक्षमें जो एकादशी होती है, उसका क्या नाम है ? कृपया उसका वर्णन कीजिये । भगवान् श्रीकृष्ण बोले—नृपश्रेष्ठ! आषाढ़के कृष्णपक्षकी एकादशीका नाम 'योगिनी' है । यह बड़े-बड़े पातकोंका नाश करनेवाली है। संसारसागरमें डूबे हुए प्राणियोंके लिये यह सनातन नौकाके समान है। तीनों लोकोंमें यह सारभूत व्रत है।

अलकापुरीमें राजाधिराज कुबेर रहते हैं। वे सदा भगवान् शिवकी भक्तिमें तत्पर रहनेवाले हैं। उनके हेममाली नामवाला एक यक्ष सेवक था, जो पूजाके लिये फूल लाया करता था । | हेममालीकी पत्नी बड़ी सुन्दरी थी। उसका नाम विशालाक्षी था । वह यक्ष कामपाशमें आबद्ध होकर सदा अपनी पत्नीमें आसक्त रहता था। एक दिनकी बात है, हेममाली मानसरोवरसे फूल लाकर अपने घरमें ही ठहर गया और पत्नीके प्रेमका रसास्वादन करने लगा; अतः कुबेरके भवनमें न जा सका। इधर कुबेर मन्दिरमें बैठकर शिवका पूजन कर रहे थे। उन्होंने दोपहरतक फूल आनेकी प्रतीक्षा की। जब पूजाका समय व्यतीत हो गया
तो यक्षराजने कुपित होकर सेवकोंसे पूछा- 'यक्षो ! दुरात्मा हेममाली क्यों नहीं आ रहा है, इस बातका पता तो लगाओ।' यक्षोंने कहा—राजन्! वह तो पत्नीकी कामनामें आसक्त हो अपनी इच्छा के अनुसार घरमें ही रमण कर रहा है।

उनकी बात सुनकर कुबेर क्रोधमें भर गये और तुरंत ही
हेममालीको बुलवाया। देर हुई जानकर हेममालीके नेत्र भयसेव्याकुल हो रहे थे। वह आकर कुबेरके सामने खड़ा हुआ। उसेदेखकर कुबेरकी आँखें क्रोधसे लाल हो गयीं। वे बोले- -'ओ पापी ! ओ दुष्ट! ओ दुराचारी! तूने भगवान्‌की अवहेलना की है,अतः कोढ़से युक्त और अपनी उस प्रियतमासे वियुक्त होकर इस स्थानसे भ्रष्ट होकर अन्यत्र चला जा ।' कुबेरके ऐसा कहनेपर वहउस स्थानसे नीचे गिर गया। उस समय उसके हृदयमें महान् दुःख हो रहा था। कोढ़ोंसे सारा शरीर पीड़ित था। परन्तु शिव-पूजाके प्रभावसे उसकी स्मरण-शक्ति लुप्त नहीं होती थी। पातकसे दबा होनेपर भी वह अपने पूर्वकर्मको याद रखता था । तदनन्तर इधर उधर घूमता हुआ वह पर्वतोंमें श्रेष्ठ मेरुगिरिके शिखरपर गया । वहाँ उसे तपस्याके पुंज मुनिवर मार्कण्डेयजीका दर्शन हुआ । पापकर्मा यक्षने दूरसे ही मुनिके चरणोंमें प्रणाम किया। मुनिवर मार्कण्डेयने उसे भयसे काँपते देख परोपकारकी इच्छासे निकट बुलाकर कहा-' -'तुझे कोढ़के रोगने कैसे दबा लिया ? इतना अधिक निन्दनीय जान पड़ता है ?' तू क्यों

यक्ष बोला- मुने! मैं कुबेरका अनुचर हूँ। मेरा नाम हेममाली है। मैं प्रतिदिन मानसरोवरसे फूल ले आकर शिव-पूजाके समय कुबेरको दिया करता था। एक दिन पत्नी-सहवासके सुखमें फँस जानेके कारण मुझे समयका ज्ञान ही नहीं रहा; अतः राजाधिराज कुबेरने कुपित होकर मुझे शाप दे दिया, जिससे मैं कोढ़से आक्रान्त होकर अपनी प्रियतमासे बिछुड़ गया। मुनिश्रेष्ठ! इस समय किसी शुभ कर्मके प्रभावसे मैं आपके निकट आ पहुँचा हूँ। संतोंका चित्त स्वभावतः परोपकारमें लगा रहता है, यह

जानकर मुझ अपराधीको कर्तव्यका उपदेश दीजिये । मार्कण्डेयजीने कहा- तुमने यहाँ सच्ची बात कही है, असत्य
भाषण नहीं किया है; इसलिये मैं तुम्हें कल्याणप्रद व्रतका उपदेश करता हूँ। तुम आषाड़के कृष्णपक्षमें 'योगिनी' एकादशीका व्रत करो। इस व्रतके पुण्यसे तुम्हारी कोढ़ निश्चय ही दूर हो जायगी।

भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं-ऋषिके ये वचन सुनकर हेममाली दण्डकी भाँति मुनिके चरणोंमें पड़ गया। मुनिने उसे उठाया, इससे उसको बड़ा हर्ष हुआ। मार्कण्डेयजीके उपदेशसे उसने योगिनी एकादशीका व्रत किया, जिससे उसके शरीरकी कोड़ दूर हो गयी। मुनिके कथनानुसार उस उत्तम व्रतका अनुष्ठान करनेपर वह पूर्ण सुखी हो गया। नृपश्रेष्ठ! यह योगिनीका व्रत ऐसा ही बताया गया है। जो अट्ठासी हजार ब्राह्मणोंको भोजन कराता है, उसके समान ही फल उस मनुष्यको भी मिलता है, जो योगिनी एकादशीका व्रत करता है । 'योगिनी' महान् पापोंको शान्त करनेवाली और महान् पुण्य फल देनेवाली है। इसके पढ़ने और सुननेसे मनुष्य सब पापोंसे मुक्त हो जाता है।

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एकादशी माहात्म्य कथाएँ
Index


  1. [कथा 1]मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की 'उत्पन्ना' एकादशी का माहात्म [एकादशी के जया आदि भेद, नक्तव्रतका स्वरूप]
  2. [कथा 2]मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की 'मोक्षा' एकादशी का माहात्म
  3. [कथा 3]पौषमास कृष्ण पक्ष की ‘सफला ' एकादशी का माहात्म्य
  4. [कथा 4]पौषमास शुक्ल पक्ष की 'पुत्रदा' एकादशी का माहात्म्य
  5. [कथा 5]माघमास कृष्ण पक्ष की ‘षट्तिला' एकादशी का माहात्म्य
  6. [कथा 6]माघमास शुक्ल पक्ष की 'जया' एकादशी का माहात्म्य
  7. [कथा 7]फाल्गुनमास कृष्ण पक्ष की 'विजया' एकादशी का माहात्म्
  8. [कथा 8]फाल्गुनमास शुक्ल पक्ष की 'आमलकी' एकादशी का माहात्म
  9. [कथा 9]चैत्रमास कृष्ण पक्ष की 'पापमोचनी' एकादशी का माहात्म
  10. [कथा 10]चैत्रमास शुक्ल पक्ष की 'कामदा' एकादशी का माहात्म्य
  11. [कथा 11]वैशाखमास कृष्ण पक्ष की 'वरूथिनी' एकादशी का माहात्म
  12. [कथा 12]वैशाखमास शुक्ल पक्ष की 'मोहिनी' एकादशी का माहात्म
  13. [कथा 13]ज्येष्ठमास कृष्ण पक्ष की 'अपरा एकादशी का माहात्म्य
  14. [कथा 14]ज्येष्ठमास शुक्ल पक्ष की 'निर्जला' एकादशी का माहातम
  15. [कथा 15]आषाढ़मास कृष्ण पक्ष की 'योगिनी' एकादशी का माहात्म्
  16. [कथा 16]आषाढ़मास शुक्ल पक्ष की 'शयनी ' एकादशी का माहात्म्य
  17. [कथा 17]श्रावणमास कृष्ण पक्ष की 'कामिका' एकादशी का माहात्म
  18. [कथा 18]श्रावणमास शुक्ल पक्ष की 'पुत्रदा' एकादशी का माहात्
  19. [कथा 19]भाद्रपदमास कृष्ण पक्ष की 'अजा' एकादशी का माहात्म्य
  20. [कथा 20]भाद्रपदमास शुक्ल पक्ष की 'पद्मा' एकादशी का माहात्म
  21. [कथा 21]आश्विनमास कृष्ण पक्ष की 'इन्दिरा' एकादशी का माहात्
  22. [कथा 22]आश्विनमास शुक्ल पक्ष की 'पापांकुशा एकादशी का माहात
  23. [कथा 23]कार्तिकमास कृष्ण पक्ष की 'रमा' एकादशी का माहात्म्य
  24. [कथा 24]कार्तिकमास शुक्ल पक्ष की 'प्रबोधिनी' एकादशी का माह
  25. [कथा 25]पुरुषोत्तममास प्रथम पक्ष की 'कमला' एकादशी का माहात
  26. [कथा 26]पुरुषोत्तममास द्वितीय पक्ष की 'कामदा' एकादशी का महातम्य