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एकादशी माहात्म्य कथाएँ (एकादशी व्रत कथा)

Ekadashi Vrat Katha (Ekadasi Katha)

कथा 25 - Katha 25

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पुरुषोत्तममास प्रथम पक्ष की 'कमला' एकादशी का माहात

पुरुषोत्तममास प्रथमपक्षकी 'कमला' एकादशीका माहात्म्य

युधिष्ठिरने पूछा- भगवन्! अब मैं श्रीविष्णुके व्रतोंमें उत्तम व्रतका, जो सब पापों को हर लेनेवाला तथा व्रती मनुष्योंको मनोवांछित फल देनेवाला हो, श्रवण करना चाहता हूँ। जनार्दन! पुरुषोत्तममासकी एकादशीकी कथा कहिये, उसका क्या फल है ? और उसमें किस देवताका पूजन किया जाता है ? प्रभो! किस दानका क्या पुण्य है ? मनुष्योंको क्या करना चाहिये ? उस समय कैसे स्नान किया जाता है ? किस मन्त्रका जप होता है ? कैसी पूजन-विधि बतायी गयी है ? पुरुषोत्तम! पुरुषोत्तममासमें किस अन्नका भोजन उत्तम है ?

भगवान् श्रीकृष्ण बोले- राजेन्द्र ! अधिकमास आनेपर जो एकादशी होती है, वह 'कमला' नामसे प्रसिद्ध है । वह तिथियों में उत्तम तिथि है। उसके व्रतके प्रभावसे लक्ष्मी अनुकूल होती हैं। उस दिन ब्राह्म मुहूर्तमें उठकर भगवान् पुरुषोत्तमका स्मरण करे और विधिपूर्वक स्नान करके व्रती पुरुष व्रतका नियम ग्रहण करे। घरपर जप करनेका एक गुना, नदीके तटपर दूना, गोशालामें सहस्रगुना, अग्निहोत्रगृहमें एक हजार एक सौ गुना, शिवके क्षेत्रोंमें, तीर्थोंमें, देवताओंके निकट तथा तुलसीके समीप लाख गुना और भगवान् विष्णुके निकट अनन्त गुना फल होता है। अवन्तीपुरीमें शिवशर्मा नामक एक श्रेष्ठ ब्राह्मण रहते थे, उनके पाँच पुत्र थे। इनमें जो सबसे छोटा था, वह पापाचारी हो गया; इसलिये पिता तथा स्वजनोंने उसे त्याग दिया। अपने बुरे कर्मोंके कारण निर्वासित होकर वह बहुत दूर वनमें चला गया। दैवयोगसे एक दिन वह तीर्थराज प्रयागमें जा पहुँचा। भूखसे दुर्बल शरीर और दीन मुख लिये उसने त्रिवेणीमें स्नान किया। फिर क्षुधासे पीड़ित होकर वह वहाँ मुनियोंके आश्रम खोजने लगा। इतनेमें उसे वहाँ हरिमित्र मुनिका उत्तम आश्रम दिखायी दिया।। पुरुषोत्तममासमें वहाँ बहुत-से मनुष्य एकत्रित हुए थे। आश्रम पर पापनाशक कथा कहनेवाले ब्राह्मणोंके मुखसे उसने श्रद्धापूर्वक 'कमला' एकादशीकी महिमा सुनी, जो परम पुण्यमयी तथा भोग और मोक्ष प्रदान करनेवाली है। जयशर्माने विधिपूर्वक 'कमला' एकादशीकी कथा सुनकर उन सबके साथ मुनिके आश्रमपर ही व्रत किया। जब आधी रात हुई तो भगवती लक्ष्मी उसके पास आकर बोलीं

'ब्रह्मन् ! इस समय 'कमला' एकादशीके व्रतके प्रभावसे मैं तुमपर बहुत प्रसन्न हूँ और देवाधिदेव श्रीहरिकी आज्ञा पाकर वैकुण्ठधामसे आयी हूँ। मैं तुम्हें वर दूँगी ।'

ब्राह्मण बोला-माता लक्ष्मी! यदि आप मुझपर प्रसन्न हैं तो वह व्रत बताइये, जिसकी कथा-वार्तामें साधु-ब्राह्मण सदा संलग्न रहते हैं।

लक्ष्मीने कहा-ब्राह्मण! एकादशी व्रतका माहात्म्य श्रोताओंके सुननेयोग्य सर्वोत्तम विषय है। यह पवित्र वस्तुओंमें सबसे उत्तम है। इससे दुःस्वप्नका नाश तथा पुण्यकी प्राप्ति होती है, अतः इसका यत्नपूर्वक श्रवण करना चाहिये। उत्तम पुरुष श्रद्धासे युक्त हो एक या आधे श्लोकका पाठ करनेसे भी करोड़ों महापातकोंसे तत्काल मुक्त हो जाता है। जैसे मासोंमें पुरुषोत्तममास, पक्षियोंमें गरुड़ तथा नदियोंमें गंगा श्रेष्ठ हैं; उसी प्रकार तिथियोंमें द्वादशी तिथि उत्तम है । समस्त देवता आज भी [ एकादशी व्रतके ही लोभसे] भारतवर्षमें जन्म लेनेकी इच्छा रखते हैं । देवगण सदा ही रोग-शोकसे रहित भगवान् नारायणका पूजन करते हैं। जो लोग मेरे प्रभु भगवान् नारायणके नामका सदा भक्तिपूर्वक जप करते हैं, उनकी ब्रह्मा आदि देवता सर्वदा पूजा करते हैं। जो लोग श्रीहरिके नाम-जपमें संलग्न हैं, उनकी लीला-कथाओंके कीर्तनमें तत्पर हैं तथा निरन्तर श्रीहरिकी पूजामें ही प्रवृत्त रहते हैं; वे मनुष्य कलियुगमें कृतार्थ हैं। यदि दिनमें एकादशी और द्वादशी तथा रात्रि बीतते-बीतते त्रयोदशी आ जाय तो उस त्रयोदशीके पारणमें सौ यज्ञोंका फल प्राप्त होता है। व्रत करनेवाला पुरुष चक्रसुदर्शनधारी देवाधिदेव श्रीविष्णुके समक्ष निम्नांकित मन्त्रका उच्चारण करके भक्तिभावसे सन्तुष्टचित्त होकर उपवास करे। वह मन्त्र इस प्रकार है एकादश्यां निराहारः स्थित्वाहमपरेऽहनि । भोक्ष्यामि पुण्डरीकाक्ष शरणं मे भवाच्युत । (64 । 34)

'कमलनयन ! भगवान् अच्युत! मैं एकादशीको निराहार रहकर दूसरे दिन भोजन करूँगा। आप मुझे शरण दें। ' तत्पश्चात् व्रत करनेवाला मनुष्य मन और इन्द्रियोंको वशमें करके गीत, वाद्य, नृत्य और पुराण-पाठ आदिके द्वारा रात्रिमें भगवान् के समक्ष जागरण करे। फिर द्वादशीके दिन उठकर स्नानके पश्चात् जितेन्द्रियभावसे विधिपूर्वक श्रीविष्णुकी पूजा करे। एकादशीको पंचामृतसे जनार्दनको नहलाकर द्वादशीको केवल दूधमें स्नान करानेसे श्रीहरिका सायुज्य प्राप्त होता है। पूजा करके भगवान्से इस प्रकार प्रार्थना करे अज्ञानतिमिरान्धस्य व्रतेनानेन केशव ।

प्रसीद सुमुखो भूत्वा ज्ञानदृष्टिप्रदो भव ॥ (64 / 39) 'केशव! मैं अज्ञानरूपी रतौंधीसे अंधा हो गया हूँ। आप इस व्रतसे प्रसन्न हों और प्रसन्न होकर मुझे ज्ञानदृष्टि प्रदान करें।' इस प्रकार देवताओंके स्वामी देवाधिदेव भगवान् गदाधरसे निवेदन करके भक्तिपूर्वक ब्राह्मणोंको भोजन कराये तथा उन्हें दक्षिणा दे। उसके बाद भगवान् नारायणके शरणागत होकर बलिवैश्वदेवकी विधिसे पंचमहायज्ञोंका अनुष्ठान करके स्वयं मौन हो अपने बन्धु-बान्धवोंके साथ भोजन करे। इस प्रकार जो शुद्ध भावसे पुण्यमय एकादशीका व्रत करता है, वह पुनरावृत्तिसे

रहित वैकुण्ठधामको प्राप्त होता है। भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं-राजन्! ऐसा कहकर लक्ष्मीदेवी उस ब्राह्मणको वरदान दे अन्तर्धान हो गयीं। फिर वह ब्राह्मण भी धनी होकर पिताके घरपर आ गया। इस प्रकार जो 'कमला' का उत्तम व्रत करता है तथा एकादशीके दिन इसका माहात्म्य सुनता है, वह सब पापोंसे मुक्त हो जाता है।

युधिष्ठिर बोले- जनार्दन! पापका नाश और पुण्यका दान करनेवाली एकादशीके माहात्म्यका पुनः वर्णन कीजिये, जिसे इस लोकमें करके मनुष्य परम पदको प्राप्त होता है।

भगवान् श्रीकृष्णने कहा- राजन्! शुक्ल या कृष्णपक्षमें जभी एकादशी प्राप्त हो, उसका परित्याग न करे, क्योंकि वह मोक्षरूप सुखको बढ़ानेवाली है। कलियुगमें तो एकादशी ही भव-बन्धनसे मुक्त करनेवाली, सम्पूर्ण मनोवांछित कामनाओंको देनेवाली तथा पापोंका नाश करनेवाली है। एकादशी रविवारको, किसी मंगलमय पर्वके समय अथवा संक्रान्तिके ही दिन क्यों न हो, सदा ही उसका व्रत करना चाहिये। भगवान् विष्णुके प्रिय भक्तोंको एकादशीका त्याग कभी नहीं करना चाहिये। जो शास्त्रोक्त विधि इस लोकमें एकादशीका व्रत करते हैं, वे जीवन्मुक्त देखे जाते हैं, इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है।

युधिष्ठिरने पूछा - श्रीकृष्ण! वे जीवन्मुक्त कैसे हैं? तथा विष्णुरूप कैसे होते हैं? मुझे इस विषयको जाननेके लिये बड़ी उत्सुकता हो रही है।

भगवान् श्रीकृष्ण बोले- राजन्! जो कलियुगमें भक्तिपूर्वक शास्त्रीय विधिके अनुसार निर्जल रहकर एकादशीका उत्तम व्रत करते हैं, वे विष्णुरूप तथा जीवन्मुक्त क्यों नहीं हो सकते हैं ? एकादशी व्रतके समान सब पापोंको हरनेवाला तथा मनुष्योंकी समस्त कामनाओं को पूर्ण करनेवाला पवित्र व्रत दूसरा कोई नहीं है। दशमीको एक बार भोजन, एकादशीको निर्जल व्रत तथा द्वादशीको पारण करके मनुष्य श्रीविष्णुके समान हो जाते हैं।

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एकादशी माहात्म्य कथाएँ
Index


  1. [कथा 1]मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की 'उत्पन्ना' एकादशी का माहात्म [एकादशी के जया आदि भेद, नक्तव्रतका स्वरूप]
  2. [कथा 2]मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की 'मोक्षा' एकादशी का माहात्म
  3. [कथा 3]पौषमास कृष्ण पक्ष की ‘सफला ' एकादशी का माहात्म्य
  4. [कथा 4]पौषमास शुक्ल पक्ष की 'पुत्रदा' एकादशी का माहात्म्य
  5. [कथा 5]माघमास कृष्ण पक्ष की ‘षट्तिला' एकादशी का माहात्म्य
  6. [कथा 6]माघमास शुक्ल पक्ष की 'जया' एकादशी का माहात्म्य
  7. [कथा 7]फाल्गुनमास कृष्ण पक्ष की 'विजया' एकादशी का माहात्म्
  8. [कथा 8]फाल्गुनमास शुक्ल पक्ष की 'आमलकी' एकादशी का माहात्म
  9. [कथा 9]चैत्रमास कृष्ण पक्ष की 'पापमोचनी' एकादशी का माहात्म
  10. [कथा 10]चैत्रमास शुक्ल पक्ष की 'कामदा' एकादशी का माहात्म्य
  11. [कथा 11]वैशाखमास कृष्ण पक्ष की 'वरूथिनी' एकादशी का माहात्म
  12. [कथा 12]वैशाखमास शुक्ल पक्ष की 'मोहिनी' एकादशी का माहात्म
  13. [कथा 13]ज्येष्ठमास कृष्ण पक्ष की 'अपरा एकादशी का माहात्म्य
  14. [कथा 14]ज्येष्ठमास शुक्ल पक्ष की 'निर्जला' एकादशी का माहातम
  15. [कथा 15]आषाढ़मास कृष्ण पक्ष की 'योगिनी' एकादशी का माहात्म्
  16. [कथा 16]आषाढ़मास शुक्ल पक्ष की 'शयनी ' एकादशी का माहात्म्य
  17. [कथा 17]श्रावणमास कृष्ण पक्ष की 'कामिका' एकादशी का माहात्म
  18. [कथा 18]श्रावणमास शुक्ल पक्ष की 'पुत्रदा' एकादशी का माहात्
  19. [कथा 19]भाद्रपदमास कृष्ण पक्ष की 'अजा' एकादशी का माहात्म्य
  20. [कथा 20]भाद्रपदमास शुक्ल पक्ष की 'पद्मा' एकादशी का माहात्म
  21. [कथा 21]आश्विनमास कृष्ण पक्ष की 'इन्दिरा' एकादशी का माहात्
  22. [कथा 22]आश्विनमास शुक्ल पक्ष की 'पापांकुशा एकादशी का माहात
  23. [कथा 23]कार्तिकमास कृष्ण पक्ष की 'रमा' एकादशी का माहात्म्य
  24. [कथा 24]कार्तिकमास शुक्ल पक्ष की 'प्रबोधिनी' एकादशी का माह
  25. [कथा 25]पुरुषोत्तममास प्रथम पक्ष की 'कमला' एकादशी का माहात
  26. [कथा 26]पुरुषोत्तममास द्वितीय पक्ष की 'कामदा' एकादशी का महातम्य