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एकादशी माहात्म्य कथाएँ (एकादशी व्रत कथा)

Ekadashi Vrat Katha (Ekadasi Katha)

कथा 4 - Katha 4

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पौषमास शुक्ल पक्ष की 'पुत्रदा' एकादशी का माहात्म्य

पौषमास शुक्लपक्षकी 'पुत्रदा' एकादशीका माहात्म्य

युधिष्ठिर बोले – श्रीकृष्ण ! आपने शुभकारिणी 'सफला' एकादशीका वर्णन किया। अब कृपा करके शुक्लपक्षकी एकादशीका महत्त्व बतलाइये । उसका क्या नाम है ? कौन-सी विधि है ? तथा उसमें किस देवताका पूजन किया जाता है ?
भगवान् श्रीकृष्णने कहा- राजन्! पौषके शुक्लपक्षकी जो एकादशी है, उसे बतलाता हूँ; सुनो। महाराज! संसारके हितकी इच्छासे मैं इसका वर्णन करता हूँ । राजन्! पूर्वोक्त विधिसे ही यत्नपूर्वक इसका व्रत करना चाहिये। इसका नाम 'पुत्रदा' है। यह सब पापोंको हरनेवाली उत्तम तिथि है। समस्त कामनाओं तथा सिद्धियोंके दाता भगवान् नारायण इस तिथिके अधिदेवता हैं। चराचर प्राणियोंसहित समस्त त्रिलोकीमें इससे बढ़कर दूसरी कोई तिथि नहीं है। पूर्वकालकी बात है, भद्रावती पुरीमें राजा सुकेतुमान् राज्य करते थे। उनकी रानीका नाम चम्पा था । राजाको बहुत समयतक कोई वंशधर पुत्र नहीं प्राप्त हुआ। इसलिये दोनों पति-पत्नी सदा चिन्ता और शोकमें डूबे रहते थे। राजाके पितर उनके दिये हुए जलको शोकोच्छ्वाससे गरम करके पीते थे। 'राजाके बाद और कोई ऐसा नहीं दिखायी देता, जो हमलोगोंका तर्पण करेगा' यह सोच-सोचकर पितर दुःखी रहते थे।

एक दिन राजा घोड़ेपर सवार हो गहन वनमें चले गये। पुरोहित आदि किसीको भी इस बातका पता न था । मृग और पक्षियोंसे सेवित उस सघन काननमें राजा भ्रमण करने लगे। मार्गमें कहीं सियारकी बोली सुनायी पड़ती थी तो कहीं उल्लुओंकी । जहाँ-तहाँ रीछ और मृग दृष्टिगोचर हो रहे थे। इस प्रकार घूम-घूमकर राजा वनकी शोभा देख रहे थे, इतनेमें दोपहर हो गया। राजाको भूख और प्यास सताने लगी। वे जलकी खोजमें इधर-उधर दौड़ने लगे। किसी पुण्यके प्रभावसे उन्हें एक उत्तम सरोवर दिखायी दिया, जिसके समीप मुनियोंके बहुत-से आश्रम थे। शोभाशाली नरेशने उन आश्रमोंकी ओर देखा। उस समय शुभकी सूचना देनेवाले शकुन होने लगे । राजाका दाहिना नेत्र और दाहिना हाथ फड़कने लगा, जो उत्तम फलकी सूचना दे रहा था। सरोवर के तटपर बहुत-से मुनि वेदपाठ कर रहे थे। उन्हें देखकर राजाको बड़ा हर्ष हुआ । वे घोड़ेसे उतरकर मुनियोंके सामने खड़े हो गये और पृथक्-पृथक् उन सबकी वन्दना करने लगे वे मुनि उत्तम व्रतका पालन करनेवाले थे। जब राजाने हाथ जोड़कर बारम्बार दण्डवत् किया, तब मुनि बोले- 'राजन् ! हमलोग तुमपर प्रसन्न हैं । '

राजा बोले- आपलोग कौन हैं ? आपके नाम क्या हैं तथा आपलोग किसलिये यहाँ एकत्रित हुए हैं? यह सब सच-सच बताइये ।

मुनि बोले- राजन् ! हमलोग विश्वेदेव हैं, यहाँ स्नानके लिये आये हैं। माघ निकट आया है। आजसे पाँचवें दिन माघका स्नान आरम्भ हो जायगा। आज ही 'पुत्रदा' नामकी एकादशी है, जो व्रत करनेवाले मनुष्योंको पुत्र देती है।

राजाने कहा - विश्वेदेवगण! यदि आपलोग प्रसन्न हैं तो मुझे

पुत्र दीजिये ।

मुनि बोले- राजन् ! आजके ही दिन 'पुत्रदा' नामकी एकादशी है । इसका व्रत बहुत विख्यात है। तुम आज इस उत्तम व्रतका पालन करो। महाराज! भगवान् केशवके प्रसादसे तुम्हें अवश्य पुत्र प्राप्त होगा।

भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं—युधिष्ठिर! इस प्रकार उन मुनियोंके कहनेसे राजाने उत्तम व्रतका पालन किया। महर्षियोंके उपदेशके अनुसार विधिपूर्वक पुत्रदा एकादशीका अनुष्ठान किया। फिर द्वादशीको पारण करके मुनियोंके चरणोंमें बारम्बार मस्तक झुकाकर राजा अपने घर आये। तदनन्तर रानीने गर्भ धारण किया। प्रसवकाल आनेपर पुण्यकर्मा राजाको तेजस्वी पुत्र प्राप्त हुआ, जिसने अपने गुणोंसे पिताको संतुष्ट कर दिया। वह प्रजाओंका पालक हुआ। इसलिये राजन्! 'पुत्रदा' का उत्तम व्रत अवश्य करना चाहिये। मैंने लोगोंके हितके लिये तुम्हारे सामने इसका वर्णन किया है। जो मनुष्य एकाग्रचित्त होकर 'पुत्रदा' का व्रत करते हैं, वे इस लोकमें पुत्र पाकर मृत्युके पश्चात् स्वर्गगामी होते हैं। इस माहात्म्यको पढ़ने और सुननेसे अग्निष्टोम यज्ञका फल मिलता है!

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एकादशी माहात्म्य कथाएँ
Index


  1. [कथा 1]मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की 'उत्पन्ना' एकादशी का माहात्म [एकादशी के जया आदि भेद, नक्तव्रतका स्वरूप]
  2. [कथा 2]मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की 'मोक्षा' एकादशी का माहात्म
  3. [कथा 3]पौषमास कृष्ण पक्ष की ‘सफला ' एकादशी का माहात्म्य
  4. [कथा 4]पौषमास शुक्ल पक्ष की 'पुत्रदा' एकादशी का माहात्म्य
  5. [कथा 5]माघमास कृष्ण पक्ष की ‘षट्तिला' एकादशी का माहात्म्य
  6. [कथा 6]माघमास शुक्ल पक्ष की 'जया' एकादशी का माहात्म्य
  7. [कथा 7]फाल्गुनमास कृष्ण पक्ष की 'विजया' एकादशी का माहात्म्
  8. [कथा 8]फाल्गुनमास शुक्ल पक्ष की 'आमलकी' एकादशी का माहात्म
  9. [कथा 9]चैत्रमास कृष्ण पक्ष की 'पापमोचनी' एकादशी का माहात्म
  10. [कथा 10]चैत्रमास शुक्ल पक्ष की 'कामदा' एकादशी का माहात्म्य
  11. [कथा 11]वैशाखमास कृष्ण पक्ष की 'वरूथिनी' एकादशी का माहात्म
  12. [कथा 12]वैशाखमास शुक्ल पक्ष की 'मोहिनी' एकादशी का माहात्म
  13. [कथा 13]ज्येष्ठमास कृष्ण पक्ष की 'अपरा एकादशी का माहात्म्य
  14. [कथा 14]ज्येष्ठमास शुक्ल पक्ष की 'निर्जला' एकादशी का माहातम
  15. [कथा 15]आषाढ़मास कृष्ण पक्ष की 'योगिनी' एकादशी का माहात्म्
  16. [कथा 16]आषाढ़मास शुक्ल पक्ष की 'शयनी ' एकादशी का माहात्म्य
  17. [कथा 17]श्रावणमास कृष्ण पक्ष की 'कामिका' एकादशी का माहात्म
  18. [कथा 18]श्रावणमास शुक्ल पक्ष की 'पुत्रदा' एकादशी का माहात्
  19. [कथा 19]भाद्रपदमास कृष्ण पक्ष की 'अजा' एकादशी का माहात्म्य
  20. [कथा 20]भाद्रपदमास शुक्ल पक्ष की 'पद्मा' एकादशी का माहात्म
  21. [कथा 21]आश्विनमास कृष्ण पक्ष की 'इन्दिरा' एकादशी का माहात्
  22. [कथा 22]आश्विनमास शुक्ल पक्ष की 'पापांकुशा एकादशी का माहात
  23. [कथा 23]कार्तिकमास कृष्ण पक्ष की 'रमा' एकादशी का माहात्म्य
  24. [कथा 24]कार्तिकमास शुक्ल पक्ष की 'प्रबोधिनी' एकादशी का माह
  25. [कथा 25]पुरुषोत्तममास प्रथम पक्ष की 'कमला' एकादशी का माहात
  26. [कथा 26]पुरुषोत्तममास द्वितीय पक्ष की 'कामदा' एकादशी का महातम्य