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एकादशी माहात्म्य कथाएँ (एकादशी व्रत कथा)

Ekadashi Vrat Katha (Ekadasi Katha)

कथा 20 - Katha 20

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भाद्रपदमास शुक्ल पक्ष की 'पद्मा' एकादशी का माहात्म

भाद्रपदमास शुक्लपक्षकी 'पद्मा' एकादशीका माहात्म्य

युधिष्ठिरने पूछा- केशव ! भाद्रपदमासके शुक्लपक्षमें जो एकादशी होती है, उसका क्या नाम, कौन देवता और कैसी विधि है ? यह बताइये।

भगवान् श्रीकृष्ण बोले –राजन्! इस विषयमें मैं तुम्हें आश्चर्यजनक कथा सुनाता हूँ; जिसे ब्रह्माजीने महात्मा नारदसे कहा था ।
नारदजीने पूछा- चतुर्मुख! आपको नमस्कार है। मैं भगवान् विष्णुकी आराधनाके लिये आपके मुखसे यह सुनना चाहता हूँ कि भाद्रपदमासके शुक्लपक्षमें कौन-सी एकादशी होती है ? ब्रह्माजीने कहा-मुनिश्रेष्ठ! तुमने बहुत उत्तम बात पूछी है। क्यों न हो, वैष्णव जो ठहरे। भादोंके शुक्लपक्षकी एकादशी 'पद्मा' के नामसे विख्यात है। उस दिन भगवान् हृषीकेशकी पूजा होती है। यह उत्तम व्रत अवश्य करनेयोग्य है ।

सूर्यवंशमें मान्धाता नामक एक चक्रवर्ती, सत्यप्रतिज्ञ और प्रतापी राजर्षि हो गये हैं। वे प्रजाका अपने औरस पुत्रोंकी भाँति धर्मपूर्वक पालन किया करते थे। उनके राज्यमें अकाल नहीं पड़ता था, मानसिक चिन्ताएँ नहीं सताती थीं और व्याधियोंका प्रकोप भी नहीं होता था । उनकी प्रजा निर्भय तथा धन-धान्यसे समृद्ध थी। महाराजके कोष में केवल न्यायोपार्जित धनका ही संग्रह था। उनके राज्यमें समस्त वर्णों और आश्रमोंके लोग अपने-अपने धर्ममें लगे रहते थे। मान्धाताके राज्यकी भूमि कामधेनुके समान फल देनेवाली थी। उनके राज्य करते समय प्रजाको बहुत सुख प्राप्त होता था। एक समय किसी कर्मका फलभोग प्राप्त होनेपर राजाके राज्यमें तीन वर्षोंतक वर्षा नहीं हुई। इससे उनकी प्रजा भूखसे पीड़ित हो नष्ट होने लगी; तब सम्पूर्ण प्रजाने महाराजके पास आकर इस प्रकार कहा

प्रजा बोली–नृपश्रेष्ठ! आपको प्रजाकी बात सुननी चाहिये । पुराणोंमें मनीषी पुरुषोंने जलको 'नारा' कहा है; वह नारा ही भगवान्का अयन - निवासस्थान है; इसलिये वे नारायण कहलाते हैं। । नारायणस्वरूप भगवान् विष्णु सर्वत्र व्यापकरूपमें विराजमान हैं। वे ही मेघस्वरूप होकर वर्षा करते हैं, वर्षासे अन्न पैदा होता है और अन्नसे प्रजा जीवन धारण करती है। नृपश्रेष्ठ! इस समय अन्नके बिना प्रजाका नाश हो रहा है; अतः ऐसा कोई उपाय कीजिये, जिससे हमारे योगक्षेमका निर्वाह हो ।

राजाने कहा – आपलोगोंका कथन सत्य है, क्योंकि अन्नको ब्रह्म कहा गया है । अन्नसे प्राणी उत्पन्न होते हैं और अन्नसे ही जगत् जीवन धारण करता है। लोकमें बहुधा ऐसा सुना जाता है तथा पुराणमें भी बहुत विस्तारके साथ ऐसा वर्णन है कि राजाओंके अत्याचारसे प्रजाको पीड़ा होती है; किन्तु जब मैं बुद्धिसे विचार करता हूँ तो मुझे अपना किया हुआ कोई अपराध नहीं दिखायी देता। फिर भी मैं प्रजाका हित करनेके लिये पूर्ण प्रयत्न करूँगा ।

ऐसा निश्चय करके राजा मान्धाता इने-गिने व्यक्तियोंको साथ ले विधाताको प्रणाम करके सघन वनकी ओर चल दिये।
वहाँ जाकर मुख्य-मुख्य मुनियों और तपस्वियोंके आश्रमोंपर घूमते फिरे। एक दिन उन्हें ब्रह्मपुत्र अंगिरा ऋषिका दर्शन हुआ। उनपर दृष्टि पड़ते ही राजा हर्षमें भरकर अपने वाहनसे उतर पड़े और इन्द्रियोंको वशमें रखते हुए दोनों हाथ जोड़कर उन्होंने मुनिके चरणोंमें प्रणाम किया। मुनिने भी 'स्वस्ति' कहकर राजाका अभिनन्दन किया और उनके राज्यके सातों अंगोंकी कुशल पूछी। राजाने अपनी कुशल बताकर मुनिके स्वास्थ्यका समाचार पूछा । मुनिने राजाको आसन और अर्घ्य दिया। उन्हें ग्रहण करके जब वे मुनिके समीप बैठे तो उन्होंने इनके आगमनका कारण पूछा।

तब राजाने कहा—भगवन्! मैं धर्मानुकूल प्रणालीसे पृथ्वीका पालन कर रहा था। फिर भी मेरे राज्यमें वर्षाका अभाव हो गया । इसका क्या कारण है, इस बातको मैं नहीं जानता ।
ऋषि बोले- राजन् ! यह सब युगोंमें उत्तम सत्ययुग है। इसमें सब लोग परमात्माके चिन्तनमें लगे रहते हैं तथा इस समय धर्म अपने चारों चरणोंसे युक्त होता है। इस युगमें केवल ब्राह्मण ही तपस्वी होते हैं, दूसरे लोग नहीं। किन्तु महाराज! तुम्हारे राज्यमें यह शूद्र तपस्या करता है; इसी कारण मेघ पानी नहीं बरसाते । तुम इसके प्रतीकारका यत्न करो; जिससे यह अनावृष्टिका दोष शान्त हो जाय ।

राजाने कहा - मुनिवर ! एक तो यह तपस्यामें लगा है, दूसरे निरपराध है; अतः मैं इसका अनिष्ट नहीं करूँगा । आप उक्त दोषको शान्त करनेवाले किसी धर्मका उपदेश कीजिये ।

ऋषि बोले- राजन् ! यदि ऐसी बात है तो एकादशीका व्रत करो। भाद्रपदमासके शुक्लपक्षमें जो 'पद्मा' नामसे विख्यात एकादशी होती है, उसके व्रतके प्रभावसे निश्चय ही उत्तम वृष्टि होगी। नरेश! तुम अपनी प्रजा और परिजनोंके साथ इसका व्रत करो। ऋषिका यह वचन सुनकर राजा अपने घर लौट आये। उन्होंने

चारों वर्णोंकी समस्त प्रजाओंके साथ भादोंके शुक्लपक्षकी 'पद्मा'

एकादशीका व्रत किया। इस प्रकार व्रत करनेपर मेघ पानी बरसाने

लगे। पृथ्वी जलसे आप्लावित हो गयी और हरी-भरी खेतीसे

सुशोभित होने लगी। उस व्रतके प्रभावसे सब लोग सुखी हो गये।

भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं-राजन् ! इस कारण इस उत्तम व्रतका अनुष्ठान अवश्य करना चाहिये। 'पद्मा' एकादशीके दिन जलसे भरे हुए घड़ेको वस्त्रसे ढँककर दही और चावलके साथ ब्राह्मणको दान देना चाहिये, साथ ही छाता और जूता भी देने चाहिये। दान करते समय निम्नांकित मन्त्रका उच्चारण करे
नमो नमस्ते गोविन्द बुधश्रवणसंज्ञक ॥ अघौघसंक्षयं कृत्वा सर्वसौख्यप्रदो भव । भुक्तिमुक्तिप्रदश्चैव लोकानां सुखदायकः ॥ (59 । 38-39)

'[ बुधवार और श्रवण नक्षत्रके योगसे युक्त द्वादशीके दिन ] बुद्धश्रवण नाम धारण करनेवाले भगवान् गोविन्द! आपको नमस्कार है, नमस्कार है; मेरी पापराशिका नाश करके आप मुझे सब प्रकारके सुख प्रदान करें। आप पुण्यात्माजनोंको भोग और मोक्ष प्रदान करनेवाले तथा सुखदायक हैं।' राजन्! इसके पढ़ने और सुननेसे मनुष्य सब पापोंसे मुक्त हो
जाता है।

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एकादशी माहात्म्य कथाएँ
Index


  1. [कथा 1]मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की 'उत्पन्ना' एकादशी का माहात्म [एकादशी के जया आदि भेद, नक्तव्रतका स्वरूप]
  2. [कथा 2]मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की 'मोक्षा' एकादशी का माहात्म
  3. [कथा 3]पौषमास कृष्ण पक्ष की ‘सफला ' एकादशी का माहात्म्य
  4. [कथा 4]पौषमास शुक्ल पक्ष की 'पुत्रदा' एकादशी का माहात्म्य
  5. [कथा 5]माघमास कृष्ण पक्ष की ‘षट्तिला' एकादशी का माहात्म्य
  6. [कथा 6]माघमास शुक्ल पक्ष की 'जया' एकादशी का माहात्म्य
  7. [कथा 7]फाल्गुनमास कृष्ण पक्ष की 'विजया' एकादशी का माहात्म्
  8. [कथा 8]फाल्गुनमास शुक्ल पक्ष की 'आमलकी' एकादशी का माहात्म
  9. [कथा 9]चैत्रमास कृष्ण पक्ष की 'पापमोचनी' एकादशी का माहात्म
  10. [कथा 10]चैत्रमास शुक्ल पक्ष की 'कामदा' एकादशी का माहात्म्य
  11. [कथा 11]वैशाखमास कृष्ण पक्ष की 'वरूथिनी' एकादशी का माहात्म
  12. [कथा 12]वैशाखमास शुक्ल पक्ष की 'मोहिनी' एकादशी का माहात्म
  13. [कथा 13]ज्येष्ठमास कृष्ण पक्ष की 'अपरा एकादशी का माहात्म्य
  14. [कथा 14]ज्येष्ठमास शुक्ल पक्ष की 'निर्जला' एकादशी का माहातम
  15. [कथा 15]आषाढ़मास कृष्ण पक्ष की 'योगिनी' एकादशी का माहात्म्
  16. [कथा 16]आषाढ़मास शुक्ल पक्ष की 'शयनी ' एकादशी का माहात्म्य
  17. [कथा 17]श्रावणमास कृष्ण पक्ष की 'कामिका' एकादशी का माहात्म
  18. [कथा 18]श्रावणमास शुक्ल पक्ष की 'पुत्रदा' एकादशी का माहात्
  19. [कथा 19]भाद्रपदमास कृष्ण पक्ष की 'अजा' एकादशी का माहात्म्य
  20. [कथा 20]भाद्रपदमास शुक्ल पक्ष की 'पद्मा' एकादशी का माहात्म
  21. [कथा 21]आश्विनमास कृष्ण पक्ष की 'इन्दिरा' एकादशी का माहात्
  22. [कथा 22]आश्विनमास शुक्ल पक्ष की 'पापांकुशा एकादशी का माहात
  23. [कथा 23]कार्तिकमास कृष्ण पक्ष की 'रमा' एकादशी का माहात्म्य
  24. [कथा 24]कार्तिकमास शुक्ल पक्ष की 'प्रबोधिनी' एकादशी का माह
  25. [कथा 25]पुरुषोत्तममास प्रथम पक्ष की 'कमला' एकादशी का माहात
  26. [कथा 26]पुरुषोत्तममास द्वितीय पक्ष की 'कामदा' एकादशी का महातम्य