नारदजी बोले - [ हे प्रभो!] यह तो मैंने आपसे सुन लिया कि लक्ष्मी, सरस्वती, गंगा और विश्वपावनी तुलसी- ये चारों ही भगवान् नारायणकी पत्नियाँ हैं और उनमेंसे गंगा वैकुण्ठ चली गयीं। किंतु वे गंगा विष्णुकी पत्नी कैसे हुई- यह प्रसंग मैंने नहीं सुना ॥ 1-2 ॥
श्रीनारायण बोले- [ हे नारद!] जब गंगाजी वैकुण्ठ चली गयीं, उसके पश्चात् जगत्की रचना करनेवाले ब्रह्माजी भी वहाँ पहुँचे। गंगाके साथ | जगदीश्वर विष्णुके पास पहुँचकर उन्हें प्रणाम करके वे उनसे कहने लगे ॥ 3 ॥ब्रह्माजी बोले-राधा और श्रीकृष्णके अंगसे आविर्भूत जो द्रवरूपिणी देवी गंगा हैं, वे | इस समय नवीन यौवनसे सम्पन्न तथा उत्तम स्वभाव वाली श्रेष्ठ सुन्दरीके रूपमें विराजमान हैं। ये देवी शुद्धसत्त्वस्वरूपिणी तथा क्रोध और अहंकारसे रहित हैं। उन श्रीकृष्णके अंगसे प्रादुर्भूत ये गंगा उन्हें छोड़कर किसी अन्यका पतिरूपमें वरण नहीं करना चाहतीं ॥ 4-5 ॥
किंतु अतिमानिनी राधा वहाँ विद्यमान हैं। वे श्रेष्ठ तथा तेजस्विनी राधा इन गंगाको पी जानेके | लिये उद्यत थीं। इससे अत्यन्त भयभीत ये गंगा बड़ी बुद्धिमानीके साथ परमात्मा श्रीकृष्णके चरणकमलमें समाविष्ट हो गयीं ॥ 6 ॥
उस समय सर्वत्र ब्रह्माण्ड गोलकको शुष्क हुआ देखकर मैं गोलोक गया, जहाँपर सर्वान्तर्यामी श्रीकृष्ण सम्पूर्ण वृत्तान्त जाननेके लिये विराजमान थे। उन्होंने सबका अभिप्राय समझकर अपने चरणके अंगुष्ठ- नखके अग्रभागसे गंगाको बाहर निकाल दिया। तब मैंने इन गंगाको राधिका - मन्त्र प्रदानकर इनके जलसे ब्रह्माण्ड- गोलकको पूर्ण करके उन राधा तथा राधापति श्रीकृष्णको प्रणाम करके मैं इन्हें साथ लेकर यहाँ आया। हे प्रभो ! अब आप गान्धर्व विवाहके द्वारा इन सुरेश्वरी गंगाको स्वीकार कर लीजिये श्रेष्ठ देवताओंमें आप परम रसिक हैं और यहाँ विराजमान ये गंगा भी रसिका हैं। हे देवेश! आप पुरुषोंमें रत्न हैं और ये साध्वी गंगा भी स्त्रियोंमें रत्न हैं। विदग्ध नारीका विदग्ध पुरुषके साथ सम्मिलन कल्याणकारी होता है। ll 7-113 ॥
जो पुरुष स्वतः प्राप्त कन्याको नहीं ग्रहण करता, उससे महालक्ष्मी रुष्ट हो जाती हैं और उसे छोड़कर चली जाती हैं इसमें सन्देह नहीं है। जो विद्वान् होता है, वह कभी प्रकृतिका अपमान नहीं करता ।। 12-13 ॥
सभी पुरुष प्रकृतिसे उत्पन्न हुए हैं और स्विय भी उसी प्रकृतिकी कलाएँ हैं। केवल आप भगवान् जगन्नाथ ही निर्गुण और प्रकृतिसे परे हैं ॥ 14 ॥वे श्रीकृष्ण ही आधे अंगसे दो भुजावाले श्रीकृष्ण बने रहे और आधे भागसे चतुर्भुज हो गये। इसी प्रकार पूर्वकालमें श्रीकृष्णके वाम अंगसे प्रादुर्भूत राधा भी दो भागों में विभक्त हो गयी थीं। दाहिने अंशसे तो वे स्वयं राधा बनी रहीं और बायें अंशसे कमला हो गयीं। इसलिये ये गंगा आपको ही पतिरूपमें वरण करना चाहती हैं; क्योंकि ये आपके ही देहसे उत्पन्न हुई हैं। हे प्रभो! प्रकृति और पुरुषकी भाँति स्त्री-पुरुष दोनोंका शरीर एक ही होता है ।। 15-163 ॥
ऐसा कहकर वे ब्रह्माजी श्रीहरिको गंगा सौंपकर वहाँसे चल दिये। तत्पश्चात् नारायण श्रीहरिने गंगाका पुष्प-चन्दनचर्चित हाथ पकड़कर गान्धर्व विवाह विधिके अनुसार उन्हें पत्नीरूपमें ग्रहण किया। इसके बाद वे रमापति श्रीहरि गंगाके साथ प्रसन्नतापूर्वक विहार करने लगे। इस प्रकार जो गंगा पृथ्वीपर गयी हुई थीं, वे अपने स्थानपर पुनः आ गयीं। ये गंगा भगवान् विष्णुके चरण-कमलसे निकली हैं, इसलिये विष्णुपदी-इस नामसे विख्यात हुई ॥ 17 - 193 ॥
अब रसिकेश्वर भगवान् श्रीहरिके साथ प्रथम रतिक्रीड़ामें अतिशय सुखानुभूतिके कारण वे रसिका देवी गंगा मूच्छित हो गयीं। उन गंगाको देखकर सरस्वती नित्य दुःखित रहती थीं। लक्ष्मीके बार-बार मना करनेपर भी सरस्वती उन गंगासे सदा ईर्ष्या करती थीं, किंतु गंगाने सरस्वतीके प्रति ऐसा नहीं किया। अन्तमें विष्णुप्रिया गंगाने कोप करके सरस्वतीको भारतवर्षमें जानेका शाप दे दिया था ॥ 20-22 ॥
हे मुने! इस प्रकार उन रमापति श्रीहरिकी गंगासहित तीन भार्याएँ हैं। इसके बादमें तुलसीको | लेकर उनकी चार पत्नियाँ हुईं ॥ 23 ॥