श्रीनारायण बोले- हे महामुने! उन वर्णोंकी कौन-कौन-सी शक्तियाँ हैं, अब आप उन्हें सुनिये। वामदेवी, प्रिया, सत्या विश्वा भविलासिनी, प्रभावती, जया, शान्ता, कान्ता, दुर्गा, सरस्वती, विद्रुमा, विशालेश, व्यापिनी, विमला, तमोपहारिणी, सूक्ष्मा, विश्वयोनि, जया, वशा, पद्मालया, पराशोभा, भद्रा तथा त्रिपदा - चौबीस गायत्रीवर्णोंकी ये शक्तियाँ कही गयी हैं ।। 1-33 ॥
[हे मुने!] अब मैं उन अक्षरोंके वास्तविक वर्णों (रंगों) के विषयमें बता रहा हूँ। गायत्रीके चौबीस वर्णोंके रंग क्रमशः चम्पा, अलसी-पु -पुष्प, मूँगा, स्फटिक, कमल-पुष्प, तरुण सूर्य, शंख-कुन्द चन्द्रमा, रक्त कमलपत्र, पद्मराग, इन्द्रनीलमणि, मोती, कुमकुम, अंजन, रक्तचन्दन, वैदूर्य, मधु, हरिद्रा, कुन्द एवं दुग्ध, सूर्यकान्तमणि, तोतेकी पूँछ, कमल, केतकीपुष्प, मल्लिकापुष्प और कनेरके पुष्पकी आभाके समान कहे गये हैं। चौबीस अक्षरोंके बताये गये ये चौबीस वर्ण महान् पापोंको नष्ट करनेवाले हैं । ll 4-93 ॥
पृथ्वी, जल, तेज, वायु, आकाश, गन्ध, रस, रूप, शब्द, स्पर्श, जननेन्द्रिय, गुदा, पाद, हस्त, वागिन्द्रिय, नासिका, जिह्वा, नेत्र, त्वचा, कान, प्राण, अपान, व्यान तथा समान-ये वर्णोंके क्रमश: चौबीस तत्त्व कहे गये हैं । ll 10-126 ॥
[हे नारद!] अब मैं क्रमशः वर्णोंकी मुद्राओंका वर्णन करूँगा सुमुख, सम्पुट वितत् विस्तृत द्विमुख त्रिमुख, चतुर्मुख, पंचमुख, षण्मुख, अधोमुख, व्यापकांजलि, शकट, यमपाश, ग्रथित, सन्मुखोन्मुख,विलम्ब, मुष्टिक, मत्स्य, कूर्म, वराह, सिंहाक्रान्त, महाक्रान्त, मुद्गर तथा पल्लव-गायत्रीके अक्षरोंकी ये चौबीस मुद्राएँ हैं। त्रिशूल, योनि, सुरभि, अक्षमाला, लिंग और अम्बुज-ये महामुद्राएँ गायत्रीके चौथे चरणकी कही गयी हैं। हे महामुने! गायत्रीके वर्णोंकी | इन मुद्राओंको मैंने आपको बता दिया। हे मुने! ये मुद्राएँ महान् पापोंका नाश करनेवाली, कीर्ति देनेवाली तथा कान्ति प्रदान करनेवाली हैं ॥ 13-18 ॥