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देवी भागवत महापुराण ( देवी भागवत)

Devi Bhagwat Purana (Devi Bhagwat Katha)

स्कन्ध 12, अध्याय 6 - Skand 12, Adhyay 6

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गायत्रीसहस्त्रनामस्तोत्र तथा उसके पाठका फल

नारदजी बोले - सभी धर्मोंको जाननेवाले तथा सभी शास्त्रोंमें निष्णात हे भगवन्! मैंने आपके मुखसे श्रुतियों, स्मृतियों तथा पुराणोंसे सम्बद्ध सभी प्रकारके पापोंका नाश करनेवाला वह रहस्य सुन लिया,जिससे विद्याकी प्राप्ति होती है। हे देव! किसके द्वारा ब्रह्मज्ञान प्राप्त होता है और मोक्षका साधन क्या है ? हे कमलनयन ! किस साधनसे ब्राह्मणोंको उत्तम गति मिलती है, किससे मृत्युका नाश होता है? और किसके आश्रयसे मनुष्यको इहलोक तथा परलोकमें उत्तम फल प्राप्त होता है? इस सम्बन्धमें प्रारम्भसे लेकर सम्पूर्ण बातें विस्तारपूर्वक बतानेकी कृपा कीजिये ॥ 1-33 ॥

श्रीनारायण बोले- हे महाप्राज्ञ! हे अनघ ! आपको साधुवाद है, जो आपने इतनी उत्तम बात पूछी है। सुनिये, मैं प्रयत्नपूर्वक गायत्रीके दिव्य तथा मंगलकारी एक हजार आठ नामोंवाले सर्वपापहारीस्तोत्रका वर्णन करता हूँ ॥ 4-5 ॥

पूर्वकालमें सृष्टिके आदिमें भगवान्ने जिसे कहा था, वही मैं आपको बता रहा हूँ। इस एक हजार आठ नामवाले स्तोत्रके ऋषि ब्रह्माजी कहे गये हैं। अनुष्टुप् इसका छन्द है तथा भगवती गायत्री इसकी देवता कही गयी हैं। हल् (व्यंजन) वर्ण इसके बीज और स्वर इसकी शक्तियाँ कही गयी हैं। मातृकामन्त्रके छः अक्षर ही इसके छः अंगन्यास और करन्यास कहे जाते हैं ।। 6-73 ॥

अब साधकोंके कल्याणके लिये देवीका ध्यान बताता हूँ। रक्त श्वेत-पीत-नील एवं धवलवर्ण (-वाले मुखों) से सम्पन्न, तीन नेत्रोंसे देदीप्यमान विग्रहवाली, रक्तवर्णवाली, नवीन रक्तपुष्पोंकी माला धारण करनेवाली, अनेक मणिसमूहोंसे युक्त, कमलके आसनपर विराजमान, अपने दो हाथोंमें कमल और कुण्डिका एवं अन्य दो हाथोंमें वर तथा अक्षमाला धारण करनेवाली, कमलके समान नेत्रोंवाली, हंसपर विराजमान रहनेवाली तथा कुमारी अवस्थासे सम्पन्न भगवती गायत्रीकी मैं उपासना करता हूँ ॥ 8-9 ॥ [देवीके सहस्रनाम इस प्रकार हैं- ]

1. अचिन्त्यलक्षणा (बुद्धिकी पहुँचसे परे लक्षणोंवाली) 2. अव्यक्ता, 3. अर्थमातृमहेश्वरी (अर्थ आदि पार्थिव पदार्थोंके परिच्छेदक ब्रह्मा आदि देवताओंपर नियन्त्रण करनेवाली) 4. अमृता (अमृतस्वरूपिणी), 5. अर्णवमध्यस्था (समुद्रके भीतर विराजमान रहनेवाली),6. अजिता, 7. अपराजिता 8. अणिमादिगुणा धारा (आणिमा आदि सिद्धियोंकी आश्रयभूता 9. अर्कमण्डलसंस्थिता (सूर्यमण्डलमें विराजमान), 10. अजरा (सदा तरुण अवस्थामें रहनेवाली), 11. अजा (जन्मरहित), 12. अपरा (जिनसे अतिरिक्त कोई दूसरा नहीं है), 13. अधर्मा ( जात्यादिनिमित्तक लोकधमोंसे रहित), 14. अक्षसूत्रधरा (अक्षसूत्र धारण करनेवाली), 15. अधरा (अपने ही आधारपर स्थित) ॥। 10-11 ॥

16. अकारादिक्षकारान्ता (जिनके आदिमें अकार तथा अन्तमें क्षकार है, वे वर्णमातृकास्वरूपिणी देवी), 17. अरिषड्वर्गभेदिनी (काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद एवं मात्सर्य- इन छः प्रकारके शत्रुओंका भेदन करनेवाली), 18. अञ्जनाद्रिप्रतीकाशा (अंजनगिरिके समान कृष्णवर्णकी प्रभासे सुशोभित), 19. अञ्जनाद्रिनिवासिनी (अंजनगिरिपर निवास करनेवाली ॥ 12 ॥

20. अदिति: (देवताओंकी माता), 21. अजपा (अजपाजपरूपिणी), 22. अविद्या 22. अविद्या (माया), 23. अरविन्दनिभेक्षणा (कमलसदृश नेत्रोंवाली), 24. अन्तर्बहिः स्थिता (सभीके भीतर तथा बाहर स्थित रहनेवाली), 25. अविद्याध्वंसिनी (अविद्याका नाश करनेवाली), 26 अन्तरात्मिका (सभीके अन्तःकरणमें विराजमान रहनेवाली ) ॥ 13 ॥

27. अजा (जन्मसे रहित प्रकृतिस्वरूपिणी), 28. अजमुखावासा (ब्रह्माके मुखमें निवास करनेवाली), 29. अरविन्दनिभानना (कमलके समान प्रफुल्लित मुखवाली), 30. अर्धमात्रा (प्रणवांगभूत अर्धमात्रास्वरूपा), 31. अर्थदानज्ञा (धर्म आदि चारों पुरुषार्थीका दान करनेमें कुशल), 32. अरिमण्डलमर्दिनी (शत्रु-समूहों का मर्दन करनेवाली) ll 14॥

33. असुरघ्नी (राक्षसोंका संहार करनेवाली), 34. अमावास्या (अमावस्यातिथिरूपा, 35 अलक्ष्मी व्यत्यजार्थिता (अलक्ष्मीका संहार करनेवाली अल्पना-मातंगीदेवीने 36. आदि लक्ष्मी:, 37. आदिशक्तिः (महामाया), 38. आकृतिः (आकारस्वरूपिणी), 39. आयतानना (विशाल मुखवाली) ॥ 15 ॥40. आदित्यपदवीचारा (आदित्यमार्गपर चलनेवाली सूर्यगतिरूपा), 41. आदित्यपरिसेविता (सूर्य आदि देवताओंसे सुसेवित), 42. आचार्या (सदाचारकी व्याख्या करनेवाली), 43. आवर्तना (भ्रमणशील जगत्की रचना करनेवाली), 44. आचारा (आचारस्वरूपिणी), 45. आदिमूर्तिनिवासिनी (आदिमूर्ति अर्थात् ब्रह्ममें निवास करनेवाली) ॥ 16 ॥

46. आग्नेयी (अग्निकी अधिष्ठात्री), 47. आमरी (देवताओंकी पुरी जिनका रूप माना जाता है), 48. आद्या (आदिस्वरूपिणी), 49. आराध्या (सभीके द्वारा आराधित), 50. आसनस्थिता (दिव्य आसनपर विराजमान रहनेवाली), 51. आधारनिलया (मूलाधारमें निवास करनेवाली कुण्डलिनीस्वरूपिणी), 52. आधारा ( जगत्को धारण करनेवाली), 53. आकाशान्त निवासिनी (आकाशतत्त्वके अन्तरूप अहंकारमें निवास करनेवाली) ॥ 17॥

54. आद्याक्षरसमायुक्ता (आदि अक्षर अर्थात् अकारसे युक्त), 55. आन्तराकाशरूपिणी (दहराकाश रूपिणी), 56. आदित्यमण्डलगता (सूर्यमण्डलमें विद्यमान), 57. आन्तरध्वान्तनाशिनी (अज्ञानरूप आन्तरिक अन्धकारका नाश करनेवाली ) ॥ 18 ॥

58. इन्दिरा (लक्ष्मी), 59. इष्टदा (मनोरथ पूर्ण करनेवाली), 60. इष्टा (साधकोंकी अभीष्ट देवतारूपिणी), 61. इन्दीवरनिभेक्षणा (सुन्दर नीलकमलके समान नेत्रोंवाली), 62. इरावती (इरा अर्थात् पृथ्वीसे युक्त), 63. इन्द्रपदा (अपनी कृपासे इन्द्रको पद दिलानेवाली), 64. इन्द्राणी (शचीरूपसे विराजमान ), 65. इन्दुरूपिणी (चन्द्रमाके समान सुन्दर रूपवाली ) ॥ 19 ॥

66. इक्षुकोदण्डसंयुक्ता (हाथमें इक्षुका धनुष धारण करनेवाली), 67. इषुसन्धानकारिणी (बाणोंका संधान करनेमें दक्ष), 68. इन्द्रनीलसमाकारा (इन्द्रनील मणिके समान प्रभावाली), 69. इडापिङ्गलरूपिणी (इडा और पिंगला आदि नाड़ीरूपिणी ) ॥ 20 ॥

70. इन्द्राक्षी (शताक्षी नामवाली देवी), 71. ईश्वरी देवी (अखिल ऐश्वर्योंसे युक्त भगवती), 72. ईहात्रयविवर्जिता (तीन प्रकारकी ईहा अर्थात्लोकैषणा, वित्तैषणा और पुत्रैषणासे रहित), 73. उमा, 74. उषा, 75. उडुनिभा (नक्षत्रके सदृश प्रभावाली), 76. उर्वारुकफलानना (ककड़ीके फलके समान सदा प्रफुल्लित मुखवाली ) ॥ 21 ॥

77. उडुप्रभा (जलके समान वर्णवाली), 78. उडुमती (रात्रिरूपिणी), 79. उडुपा (चन्द्रमा अथवा नौकारूपिणी), 80. उडुमध्यगा (नक्षत्रमण्डलके मध्य विराजमान), 81. ऊर्ध्वम् (ऊर्ध्वदेशरूपिणी), 82. ऊर्ध्वकेशी (ऊपरकी ओर उठे हुए केशोंवाली), 83. ऊर्ध्वाधोगतिभेदिनी (ऊर्ध्वगति अर्थात् स्वर्ग और अधोगति अर्थात् नरक दोनोंका भेदन करनेवाली ) ॥ 22 ॥

84. ऊर्ध्वबाहुप्रिया (भुजाओंको ऊपर उठाकर आराधना करनेवाले भक्तोंसे प्रेम करनेवाली), 85. ऊर्मिमालावाग्ग्रन्थदायिनी (तरंगमालाओंके समान श्रेष्ठ वाणीसे सम्पन्न ग्रन्थ-रचनाका सामर्थ्य प्रदान करनेवाली), 86. ऋतम् (सूनृत स्वरूपिणी), 87. ऋषिः (वेदरूपा), 88. ऋतुमती, 89. ऋषिदेव नमस्कृता (ऋषियों तथा देवताओंसे नमस्कृत होनेवाली ) ॥ 23 ॥

90. ऋग्वेदा (ऋग्वेदरूपा), 91. ऋणहर्त्री (देव ऋण, ऋषि ऋण और पितृ ऋणका नाश करनेवाली ), 92. ऋषिमण्डलचारिणी (ऋषियोंकी मण्डलीमें विचरण करनेवाली), 93. ऋद्धिदा (समृद्धि प्रदान करनेवाली), 94. ऋजुमार्गस्था (सदाचारके मार्गपर चलनेवाली), 95. ऋजुधर्मा (सहज धर्मवाली), 96. ऋतुप्रदा (अपनी कृपासे विभिन्न ऋतुएँ प्रदान करनेवाली) ॥ 24 ॥

97. ऋग्वेदनिलया (ऋग्वेदमें निवास करनेवाली), 98. ऋवी (सरल स्वभाववाली), 99. लुप्तधर्म प्रवर्तिनी (लुप्त धर्मोका पुनः प्रवर्तन करनेवाली), 100. लूतारिवरसम्भूता (लूता नामक रोगविशेषके महान् शत्रुरूपी मन्त्रोंको उत्पन्न करनेवाली), 101. लूतादिविषहारिणी ( मकड़ी आदिके विषका हरण करनेवाली) ॥ 25 ॥

102. एकाक्षरा (एक अक्षरसे युक्त), 103. एकमात्रा (एक मात्रामें विराजनेवाली), 104. एका (अद्वितीय), 105. एकनिष्ठा (सर्वदा एकनिष्ठभावमें रहनेवाली), 106. ऐन्द्री (इन्द्रकी शक्तिस्वरूपा), 107. ऐरावतारूढा (ऐरावतपर आरूढ़ रहनेवाली), 108. ऐहिकामुष्मिकप्रदा (इहलोक तथा परलोकका फल प्रदान करनेवाली ) ॥ 26 ॥

109. ओङ्कारा (प्रणवस्वरूपिणी), 110. ओषधी (सांसारिक रोगोंसे ग्रस्त प्राणियोंके लिये ओषधिरूपा), 1911. ओता (मणिमें सूत्रकी भाँति सम्पूर्ण प्राणियोंके अन्तःकरणमें विराजमान), 112. ओतप्रोत निवासिनी (ब्रह्मसे व्याप्त ब्रह्माण्डमें निवास करनेवाली), 113. और्वा (वाडवाग्निस्वरूपिणी), 114. औषधसम्पन्ना ( भवरोगके शमनहेतु औषधियोंसे सम्पन्न), 115. औपासनफलप्रदा (उपासना करनेवालोंको श्रेष्ठ फल प्रदान करनेवाली) ॥ 27 ॥

116. अण्डमध्यस्थिता देवी (ब्रह्माण्डके भीतर विराजमान देवी), 117. अःकारमनुरूपिणी (अकार अर्थात् विसर्गरूप मन्त्रमय विग्रहवाली), 118. कात्यायनी (कात्यायनऋषिद्वारा उपासित), 119. कालरात्रि (दानवोंके संहारके लिये कालरात्रिके रूपमें प्रकट करनेवाली), 120. कामाक्षी (कामको नेत्रोंमें धारण करनेवाली), 121. कामसुन्दरी (यथेच्छ सुन्दर स्वरूप धारण करनेवाली ) ॥ 28 ॥

122. कमला, 123. कामिनी, 124. कान्ता, 125. कामदा, 126. कालकण्ठिनी (कालको अपने कण्ठमें समाहित कर लेनेवाली), 127. करिकुम्भस्तनभरा (हाथीके कुम्भसदृश पयोधरोंवाली), 128. करवीरसुवासिनी (करवीर अर्थात् महालक्ष्मीक्षेत्रमें निवास करनेवाली ) ॥ 29 ॥

129. कल्याणी, 130. कुण्डलवती, 131. कुरुक्षेत्रनिवासिनी, 132. कुरुविन्ददलाकारा (कुरुविन्ददलके समान आकारवाली), 133. कुण्डली, 134. कुमुदालया, 135. कालजिह्वा (राक्षसोंके संहारके लिये कालरूपिणी जिह्वासे सम्पन्न), 136. करालास्या (शत्रुओंके समक्ष विकराल मुखाकृतिवाली), 137. कालिका, 138. कालरूपिणी, 139. कमनीयगुणा (सुन्दर गुणोंसे सम्पन्न), 140. कान्तिः, 141. कलाधारा (समस्त चौंसठ कलाओंको धारण करनेवाली), 142. कुमुद्वती ॥ 30-31 ॥143. कौशिकी, 144. कमलाकारा (कमलके समान सुन्दर आकार धारण करनेवाली), 145. कामचारप्रभञ्जिनी ( स्वेच्छाचारका ध्वंस करनेवाली), 146. कौमारी, 147. करुणापाङ्गी (करुणामय कटाक्षसे भक्तोंपर कृपा करनेवाली), 148. (दिशाओंकी अवसानरूपा), 149. करिप्रिया (जिन्हें हाथी प्रिय है ) ॥ 32 ॥

150. केसरी, 151. केशवनुता ( भगवान् श्रीकृष्णके द्वारा प्रणम्य), 152. कदम्बकुसुमप्रिया (कदम्बके पुष्पसे प्रेम करनेवाली), 153. कालिन्दी, 154. कालिका, 155. काञ्ची, 156. कलशोद्भवसंस्तुता (अगस्त्यमुनिसे स्तुत होनेवाली), 157. काममाता, 158. क्रतुमती (यज्ञमय विग्रह धारण करनेवाली), 159. कामरूपा, 160. कृपावती, 161. कुमारी, 162. कुण्डनिलया (हवन कुण्डमें विराजनेवाली), 163. किराती (भक्तोंका कार्यसाधन करनेके लिये किरात वेष धारण करनेवाली), 164. कीरवाहना (तोतापक्षीको वाहनरूपमें रखनेवाली ) ॥ 33-34॥

165. कैकेयी, 166. कोकिलालापा, 167. केतकी, 168. कुसुमप्रिया, 169. कमण्डलुधरा (ब्रह्मचारिणीके रूपमें कमण्डलु धारण करनेवाली), 170. काली, 171. कर्मनिर्मूलकारिणी (आराधित होनेपर कर्मोंको निर्मूल कर देनेवाली ) ॥ 35 ॥

172. कलहंसगतिः, 173. कक्षा, 174. कृतकौतुकमङ्गला (सर्वदा मंगलमय वैवाहिक वेष धारण करनेवाली), 175. कस्तूरीतिलका, 176. कना ( चंचला), 177. करीन्द्रगमना (ऐरावतपर आरूढ होनेवाली), 178. कुहूः (अमावस्या नामसे प्रसिद्ध) ॥ 36 ॥

179. कर्पूरलेपना, 180. कृष्णा, 181. कपिला, 182. कुहराश्रया (बुद्धिरूपी गुहामें स्थित रहनेवाली), 183. कूटस्था (पर्वतशिखरपर निवास करनेवाली), 184. कुधरा (पृथ्वीको धारण करनेवाली), 185. कम्रा (अत्यन्त सुन्दरी), 186. कुक्षिस्थाखिलविष्टपा (अपनी कुक्षिमें स्थित अखिल जगत्की रक्षा करनेवाली ) ॥ 37 ॥187. खड्गखेटकरा (दानवोंको मारनेके लिये हाथमें ढाल-तलवार धारण करनेवाली), 188. खर्वा (अभिमानिनी), 189. खेचरी, 190. खगवाहना, 191. खट्वाङ्गधारिणी, 192. ख्याता, 193. खगराजोपरिस्थिता (गरुडके ऊपर विराजमान रहनेवाली ) ॥ 38 ॥

194. खलघ्नी, 195. खण्डितजरा (बुढ़ापेसे रहित विग्रहवाली), 196. खण्डाख्यानप्रदायिनी (मधुर कथाओंको प्रदान करनेवाली), 197. | खण्डेन्दुतिलका (ललाटपर खण्डित चन्द्रमा अर्थात् द्वितीयाके चन्द्रमाको तिलकरूपमें धारण करनेवाली), 198. गङ्गा, 199. गणेशगुहपूजिता (गणेश तथा कार्तिकेयसे पूजित ) ॥ 39 ॥

200. गायत्री (अपना गुणगान करनेवालोंकी संरक्षिका), 201. गोमती, 202. गीता, 203. गान्धारी, 204. गानलोलुपा, 205. गौतमी, 206. गामिनी, 207. गाधा (पृथ्वीको आश्रय देनेवाली), 208. गन्धर्वाप्सरसेविता (गन्धर्व तथा अप्सराओंसे सेवित) ॥ 40 ॥

209. गोविन्दचरणाक्रान्ता (श्रीविष्णुके चरणोंसे आक्रान्त अर्थात् पृथ्वीस्वरूपिणी), 210. गुणत्रयविभाविता ( तीन गुणोंके साथ आविर्भूत होनेवाली), 211. गन्धर्वी, 212. गह्वरी ( दुरूह महिमावाली), 213. गोत्रा ( पृथ्वीरूपा), 214. गिरीशा (पर्वतकी अधिष्ठात्री), 215. गहना (गूढ़ स्वभाववाली), 216. गमी (गमनशीला) ॥ 41 ॥ 217. गुहावासा, 218. गुणवती, 219. गुरुपापप्रणाशिनी ( महान् पापोंका नाश करनेवाली), 220. गुर्वी, 221. गुणवती, 222. गुह्या, 223. गोप्तव्या (हृदयमें छिपाये रखनेयोग्य), 224. गुणदायिनी ॥ 42 ॥

225. गिरिजा, 226. गुह्यमातङ्गी (ब्रह्म विद्यास्वरूपिणी), 227. गरुडध्वजवल्लभा (विष्णुकी परम प्रिया), 228. गर्वापहारिणी ( अभिमानका नाश करनेवाली), 229. गोदा (गौ अथवा पृथ्वीका दान करनेवाली), 230. गोकुलस्था, 231. गदाधरा ॥ 43 ॥232. गोकर्णनिलयासक्ता (गोकर्ण नामक तीर्थस्थानमें निवासहेतु तत्पर रहनेवाली), 233. गुह्यमण्डलवर्तिनी (अत्यन्त गोपनीय मण्डलमें विद्यमान रहनेवाली), 234. घर्मदा (ऊष्मा प्रदान करनेवाली), 235. घनदा (मेघ उत्पन्न करनेवाली), 236. घण्टा, 237. घोरदानवमर्दिनी ॥ 44 ॥

238. घृणिमन्त्रमयी (सूर्यको प्रसन्न करनेवाले मन्त्ररूपसे विराजमान), 239. घोषा (युद्धमें भयावह नाद करनेवाली), 240. घनसम्पातदायिनी (मेघोंको जलवृष्टिकी आज्ञा देनेवाली), 241. घण्टारवप्रिया ( घण्टाध्वनिसे प्रसन्न होनेवाली), 242. घ्राणा (घ्राणेन्द्रियकी अधिष्ठात्री देवी), 243. घृणिसन्तुष्ट कारिणी (सूर्यको सन्तुष्ट करनेवाली ) ॥ 45 ॥

244. घनारिमण्डला (अनेकानेक शत्रुओंसे परिवृता), 245. घूर्णा (सर्वत्र भ्रमणशीला), 246. घृताची (सरस्वतीरूपा अथवा रात्रिकी अधिष्ठात्री देवी), 247. घनवेगिनी (प्रचण्ड वेगशाली), 248. ज्ञानधातुमयी (चिन्मय धातुओंसे बनी हुई), 249. चर्चा, 250. चर्चिता (चन्दन आदि सुगन्धित द्रव्योंसे सुपूजित), 251. चारुहासिनी ॥ 46 ॥

252. चटुला, 253. चण्डिका, 254. चित्रा, 255. चित्रमाल्यविभूषिता (अनेक प्रकारके रंगों की मालाओंसे सुशोभित), 256. चतुर्भुजा, 257. चारुदन्ता, 258. चातुरी, 259. चरितप्रदा (सदाचारकी शिक्षा प्रदान करनेवाली) ॥ 47 ॥

260. चूलिका (देवी-देवताओंमें शीर्ष स्थानवाली), 261. चित्रवस्त्रान्ता, 262. चन्द्रमः कर्ण कुण्डला (कानोंमें चन्द्राकार कुण्डल धारण करनेवाली), 263. चन्द्रहासा, 264. चारुदात्री, 265. चकोरी, 266. चन्द्रहासिनी (चन्द्रमाको अपने मुखसौन्दर्यसे आह्लादित करनेवाली) ॥ 48 ॥

267. चन्द्रिका, 268. चन्द्रधात्री, 269. चौरी (अपनी शक्तिको गुप्त रखनेवाली), 270. चौरा (भक्तोंका पाप हरण करनेवाली), 271. चण्डिका, 272. चञ्चद्वाग्वादिनी (चंचलतापूर्वक सम्भाषण करनेवाली), 273. चन्द्रचूडा, 274. चोरविनाशिनी (चौरवृत्तिमें लिप्त लोगोंका विनाश करनेवाली) ॥ 49 ॥275. चारुचन्दनलिप्ताङ्गी (सुन्दर चन्दनसे अनुलिप्त अंगोंवाली), 276. चञ्चच्चामरवीजिता (निरन्तर डुलाये जाते हुए चँवरोंसे सुसेवित), 277. चारुमध्या (सुन्दर कटिप्रदेशवाली), 278. चारुगतिः (मनमोहक गतिवाली), 279. चन्दिला, 280. चन्द्ररूपिणी ॥ 50 ॥

281. चारुहोमप्रिया (श्रेष्ठ हवनसे प्रसन्न होने वाली), 282. चार्वाचरिता (उत्तम आचरणसे सम्पन्न), 283. चक्रबाहुका, 284. चन्द्रमण्डलमध्यस्था, 285. चन्द्रमण्डलदर्पणा (चन्द्रमण्डलरूपी दर्पणको धारण करनेवाली) ॥ 51 ॥

286. चक्रवाकस्तनी (चक्रवाकके समान स्तनोंवाली) 1), 287. चेष्टा, 288. चित्रा, 289. चारुविलासिनी, 290. चित्स्वरूपा (चिन्मय स्वरूपवाली), 291. चन्द्रवती, 292. चन्द्रमा, 293. चन्दनप्रिया ॥ 52 ॥

294. चोदयित्री (भक्तोंको प्रेरणा प्रदान करनेवाली), 295. चिरप्रज्ञा (सनातन विद्यास्वरूपिणी), 296. चातका (चातकके समान दृढ संकल्पवाली), 297. चारुहेतुकी, 298. छत्रयाता (छत्रयुक्त होकर (गमन करनेवाली), 299. छत्रधरा, 300. छाया, 301. छन्दःपरिच्छदा (वेदोंसे ज्ञात होनेवाली) ॥ 53 ॥

302. छायादेवी, 303. छिद्रनखा, 304. छन्नेन्द्रियविसर्पिणी (जितेन्द्रिय योगियोंके पास पधारनेवाली), 305. छन्दोऽनुष्टुप्प्रतिष्ठान्ता (अनुष्टुप् छन्दमें प्रतिष्ठित रहनेवाली), 306. छिद्रोपद्रवभेदिनी (कपटरूप उपद्रवको शान्त करनेवाली) ॥ 54 ॥

307. छेदा (पापोंका उच्छेदन करनेवाली), 308. छत्रेश्वरी, 309, छिन्ना, 310. छुरिका, 311. छेदनप्रिया, 312. जननी, 313. जन्मरहिता, 314. जातवेदा (अग्निस्वरूपिणी), 315. जगन्मयी ॥ 55 ॥

316. जाह्नवी, 317. जटिला, 318. जेत्री, 319. जरामरणवर्जिता, 320. जम्बूद्वीपवती, 321. ज्वाला, 322. जयन्ती, 323. जलशालिनी, 324. जितेन्द्रिया, 325. जितक्रोधा, 326. जितामित्रा, 327. जगत्प्रिया, 328. जातरूपमयी (परम सुन्दर रूपवाली), 329. जिह्वा, 330. जानकी, 331. जगती, 332. जरा (सन्ध्याकालमें वृद्धरूप धारण करनेवाली) ॥ 56-57॥जनित्री, 334. 335. जगत्त्रयहितैषिणी (तीनों लोकोंका हित चाहनेवाली), 336. ज्वालामुखी, 337. जपवती (सदा ब्रह्मके जपमें तत्पर रहनेवाली), 338. ज्वरघ्नी, 339. जितविष्टपा (सम्पूर्ण जगत्पर विजय प्राप्त करनेवाली) ॥ 58 ॥

340. जिताक्रान्तमयी (सबको आक्रान्त करनेके लिये विजयशालिनी देवी), 341. ज्वाला, 342. जाग्रती, 343. ज्वरदेवता, 344. ज्वलन्ती, 345. जलदा, 346. ज्येष्ठा, 347. ज्याघोषास्फोटदिङ्मुखी (दिशाओं विदिशाओंको अपने धनुषकी स्पष्ट तथा भीषण टंकारसे व्याप्त कर देनेवाली) ।। 59 ।।

348. जम्भिनी (अपने दाँतोंसे दानवोंको पीस डालनेवाली), 349. जृम्भणा, 350. जृम्भा, 351. ज्वलन्माणिक्यकुण्डला (प्रभायुक्त मणियोंके कुण्डलोंसे सुशोभित), 352. झिंझिका (झींगुरसदृश तुच्छ प्राणीको भी अपने अंशसे उत्पन्न करनेवाली), 353. झणनिर्घोषा (कंकणकी झंकार ध्वनिसे सर्वदा मुखरित), 354. झंझामारुतवेगिनी (झंझावातके सदृश भयावह वेगशाली ) ॥ 60 ॥

355. झल्लरीवाद्यकुशला (झाँझ नामक वाद्य बजानेमें अत्यन्त निपुण), 356. जरूपा (बलीवर्दके समान रूपवाली), 357. ञभुजा (बलीवर्दके समान पराक्रमी भुजाओंवाली), 358. टङ्कबाणसमायुक्ता, 359. टङ्किनी, 360. टङ्क भेदिनी ॥ 61 ॥

361. टङ्कीगणकृताघोषा (रुद्रगणके समान गम्भीर ध्वनि करनेवाली), 362. टङ्कनीयमहोरसा (वर्णनीय महान् वक्षःस्थलवाली), 363. टङ्कार कारिणीदेवी, 364. ठठशब्दनिनादिनी (ठ ठ शब्दके घोर निनादसे शत्रुओंको भयाक्रान्त करनेवाली) ॥ 62 ॥

365. डामरी, 366. डाकिनी, 367. डिम्भा, | 368. डुण्डुमारैकनिर्जिता (डुण्डुमार नामक राक्षसको | परास्त करनेवाली), 369. डामरीतन्त्रमार्गस्था (डामर | तन्त्रके मार्गपर स्थित), 370. डमडमरुनादिनी (डमरुसे डमड्डमड् ध्वनि उत्पन्न करनेवाली) ॥ 63 ॥371. डिण्डीरवसहा (डिण्डी नामक वाद्यकी ध्वनिको सहन करनेवाली), 372. डिम्भलसत्क्रीडा परायणा (छोटे बच्चोंके साथ प्रेमपूर्वक क्रीडा करनेमें संलग्न), 373. दुण्डिविघ्नेशजननी, 374. ढक्काहस्ता, 375. ढिलिव्रजा (ढिलि नामक गणसमूहाँसे समन्वित ॥ 64 ॥

376. नित्यज्ञाना, 377. निरुपमा, 378. निर्गुणा, 379. नर्मदा, 380. नदी, 3819. त्रिगुणा, 382. त्रिपदा, 383. तन्त्री, 384. तुलसीतरुणातरुः (वृक्षोंमें तरुणी तुलसीरूपसे विराजमान) ॥ 65 ॥

385. त्रिविक्रमपदाक्रान्ता (भगवान् वामनके | तीन डगोंसे आक्रान्त पृथ्वीरूपा), 386. तुरीयपदगामिनी (चतुर्थ पादमें गमन करनेवाली), 387. तरुणादित्य सङ्काशा (प्रचण्ड सूर्यके समान तेजवाली), 388. तामसी, 389. तुहिना (चन्द्रमासदृश शीतल किरणोंवाली), 390. तुरा ( शीघ्र गमन करनेवाली) ॥ 66 ॥

391. त्रिकालज्ञानसम्पन्ना, 392. त्रिवेणी (गंगा-यमुना-सरस्वतीरूपा), 393. त्रिलोचना, 394. त्रिशक्तिः (इच्छाशक्ति क्रियाशक्ति-ज्ञानशक्तिरूपा), 395. त्रिपुरा, 396. तुङ्गा, 397. तुरङ्गवदना ll 67 ॥

398. तिमिङ्गिलगिला (मत्स्यभोजी तिमिंगिलको भी खा जानेवाली), 399. तीव्रा, 400. त्रिस्रोता, 401. तामसादिनी (अज्ञानरूपी अन्धकारका भक्षण करनेवाली), 402. तन्त्रमन्त्रविशेषज्ञा, 403. तनुमध्या, 404. त्रिविष्टपा ॥ 68 ॥

405. त्रिसन्ध्या, 406. त्रिस्तनी (राजा मलय ध्वजके यहाँ कन्याके रूपमें विराजमान), 407. तोषा संस्था (सदा सन्तुष्ट भावमें स्थित), 408. तालप्रतापिनी बजाकर शत्रुओंको आतंकित करनेवाली), 409. ताटङ्किनी, 410. तुषाराभा (बर्फके समान धवल कान्तिवाली), 411. तुहिनाचलवासिनी (हिमालय में | निवास करनेवाली ) ॥ 69 ॥

412. तन्तुजालसमायुक्ता, 413. तारहारा वलिप्रिया (चमकीले तारोंसे युक्त हार-पंक्तियोंसे प्रेम करनेवाली), 414. तिलहोमप्रिया, 415. तीर्था, 416. तमालकुसुमाकृतिः (तमालपुष्पके समान श्याम आकृतिवाली) ॥ 70 ॥417. तारका (भक्तोंको तारनेवाली), 418. त्रियुता, 419. तन्वी, 420. त्रिशङ्कुपरिवारिता (राजा त्रिशंकुके द्वारा उपास्यरूपमें वरण की हुई), 421. तलोदरी (पृथ्वीको उदरके रूपमें धारण करनेवाली), 422. तिलाभूषा (तिलके पुष्पके सदृश नीलकान्तिवाली), 423. ताटङ्कप्रियवाहिनी (कानोंमें सुन्दर कर्णफूल धारण करनेवाली ) ॥ 71 ॥

424. त्रिजटा, 425. तित्तिरी, 426. तृष्णा, 427. त्रिविधा, 428. तरुणाकृतिः, 429. तप्त काञ्चनसङ्काशा (तप्त सोनेके सदृश प्रभावाली), 430. तप्तकाञ्चनभूषणा (तप्त सोनेके सदृश दीप्तिवाले आभूषणोंसे अलंकृत) ॥ 72 ॥

431. त्रैयम्बका, 432. त्रिवर्गा, 433. त्रिकाल ज्ञानदायिनी, 434. तर्पणा, 435. तृप्तिदा, 436. तृप्ता, 437. तामसी, 438. तुम्बुरुस्तुता, 439. तार्क्ष्यस्था (गरुडपर विराजमान रहनेवाली), 440. त्रिगुणाकारा, 441. त्रिभङ्गी, 442. तनुवल्लरिः (कोमल लताकी भाँति कमनीय अंगोंवाली), 443. थात्कारी (युद्धभूमिमें 'थात्' शब्दका उच्चारण करनेवाली), 444. थारवा (भयसे मुक्त करनेवाले शब्दका उच्चारण करनेवाली), 445. थान्ता (मंगलमयी देवी), 446. दोहिनी (यथेच्छ दोहन करनेयोग्य कामधेनुस्वरूपिणी), 447. दीनवत्सला ॥ 73-74 ॥ 448. दानवान्तकरी, 449. दुर्गा, 450. दुर्गासुरनिबर्हिणी ( दुर्ग नामक राक्षसका वध करनेवाली), 451. देवरीतिः (दिव्य मार्गसे सम्पन्न), 452. दिवारात्रि:, 453. द्रौपदी, 454. दुन्दुभिस्वना (दुन्दुभिके समान तीव्र ध्वनि करनेवाली) ॥ 75 ॥ 455. देवयानी, 456. दुरावासा, 457. दारिद्र्योद्धेदिनी (दरिद्रता दूर करनेवाली), 458. दिवा 459. दामोदरप्रिया, 460. दीप्ता, 461. दिग्वासा (दिशारूपी वस्त्रवाली), 462. दिग्विमोहिनी (समस्त दिशाओंको मोहित करनेवाली) ॥ 76 ॥ 463. दण्डकारण्यनिलया, 464. दण्डिनी, 465.
देवपूजिता, 466. देववन्द्या, 467. दिविषदा (सदा स्वर्गमें विराजमान रहनेवाली), 468. द्वेषिणी (राक्षसोंस द्वेष करनेवाली), 469. दानवाकृतिः (समयानुसार दानवसदृश आकृति धारण करनेवाली) ॥ 77 ॥470. दीनानाथस्तुता, 471. दीक्षा, 472. दैवतादिस्वरूपिणी, 473. धात्री, 474. धनुर्धरा, 475. धेनु, 475. धारिणी 477 धर्मचारिणी, 478. धरंधरा, 479. धराधारा, 480. धनदा, 481. धान्यदोहिनी, 482. धर्मशीला, 483. धनाध्यक्षा, 484. धनुर्वेदविशारदा ।। 78-79 ।।

485. धृतिः, 486. धन्या, 487 धृतपदा, 488. धर्मराजप्रिया 489. ध्रुवा 490 धूमावती, 491. धूमकेशी 492. धर्मशास्वप्रकाशिनी, 493. नन्दा, 494. नन्दप्रिया, 495. निद्रा, 496. नृनुता ( मनुष्यों द्वारा नमस्कृत), 497. नन्दनात्मिका, 498. नर्मदा, 499. नलिनी, 500. नीला, 501. नीलकण्ठसमाश्रया (नीलकण्ठ महादेवकी आश्रयरूपा) 80-81 ॥

502. नारायणप्रिया, 503. नित्या, 504, निर्मला, 505. निर्गुणा, 506 निधिः, 507. निराधारा, 508. निरुपमा, 509. नित्यशुद्धा 510. निरञ्जना ( मायासे रहित), 511. नादबिन्दुकलातीता (नाद-बिन्दु-कलासे परे), 512. नादबिन्दुकलात्मिका (नादबिन्दुकला रूपिणी), 513. नृसिंहरूपा, 514. नगधरा, 515. नृपनागविभूषिता (नागराजसे विभूषित) ।। 82-83 ॥

516. नरकक्लेशशमनी, 517. नारायणपदोद्भवा (भगवान् विष्णुके चरणसे प्रकट गंगास्वरूपिणी), 518. निरवद्या (दोषरहित), 519 निराकारा, 520. नारदप्रियकारिणी, 521. नानाज्योति: समाख्याता (अनेकविध ज्योतिरूपसे विख्यात), 522. निधिदा. 523. निर्मलात्मिका (विशुद्धस्वरूपा), 524. नवसूत्रधरा (नवीन सूत्र धारण करनेवाली), 525. नीति: 526. निरुपद्रवकारिणी (समस्त उपद्रवोंको समाप्त कर देनेवाली ) ॥ 84-85 ॥

527. नन्दजा (नन्दकी पुत्री), 528. नवरत्नाढ्या (नौ प्रकारके रत्नोंसे विभूषित), 529. नैमिषारण्यवासिनी (नैमिषारण्य में लिंगधारिणी ललितादेवी के रूपमें विराजमान), 530. नवनीतप्रिया, 531. नारी, 532. नीलजीमूतनिःस्वना (नीले मेघके समान गर्जन करनेवाली), 533. निमेषिणी (निमेषरूपा), 534. नदीरुपा, 535. नीलग्रीवा, 536. निशीश्वरी (रात्रिकी अधिष्ठात्री देवी), 537. नामावलिः (नानाविध नामोंवाली), 538. निशुम्भघ्नी (निशुम्भ दैत्यका संहार करनेवाली), 539. नागलोकनिवासिनी ॥ 86-87 ॥540. नवजाम्बूनदप्रख्या (नवीन सुवर्णसदृश कान्तिसे सम्पन्न), 541. नागलोकाधिदेवता (पाताल लोककी अधिष्ठात्री देवी), 542. नूपुराक्रान्तचरणा (नूपुरोंकी झंकारसे समन्वित चरणोंवाली), 543. नरचित्तप्रमोदिनी, 544. निमग्नारक्तनयना (धँसी हुई लाल आँखोंवाली), 545. निर्घातसमनिःस्वना (वज्रपातके समान भीषण शब्द करनेवाली), 546. नन्दनोद्याननिलया (नन्दनवनमें विहार करनेवाली), 547. निर्व्यूहोपरिचारिणी (बिना व्यूहरचनाके आकाशमें स्वच्छन्द विचरण करनेवाली) ॥ 88-89 ॥

548. पार्वती, 549. परमोदारा, 550. पर ब्रह्मात्मिका, 551. परा, 552. पञ्चकोशविनिर्मुक्ता (अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय और आनन्दमय - इन पाँच कोशोंसे रहित विग्रहवाली), पञ्चपातकनाशिनी (पाँच प्रकारके महापातकोंका नाश करनेवाली), 554. परचित्त विधानज्ञा (दूसरोंके मनोभावोंको समझनेवाली), 555. पञ्चिका (पंचिकादेवीके नामसे प्रसिद्ध), 556. पञ्चरूपिणी, 557. पूर्णिमा, 558. परमा, 559. प्रीतिः, 560. परतेजः (परम तेजस्विनी), 561. प्रकाशिनी ॥ 90-91 ॥ 553.

562. पुराणी, 563. पौरुषी, 564. पुण्या, 565. पुण्डरीकनिभेक्षणा (विकसित कमलके सदृश नेत्रोंवाली), 566. पातालतलनिर्मग्ना (पातालके तलतक प्रविष्ट होनेकी सामर्थ्य से सम्पन्न), 567. प्रीता, 568. प्रीतिविवर्धनी, 569. पावनी, 570. पादसहिता (तीन पदोंसे शोभा पानेवाली), 571. पेशला (परम सुन्दर विग्रहवाली), 572. पवनाशिनी (वायुका भक्षण करनेवाली), 573. प्रजापतिः, 574. परिश्रान्ता (प्रयत्नशीला), 575. पर्वतस्तन मण्डला (विशाल स्तनोंसे सुशोभित) ॥ 92-93॥

576. पद्मप्रिया (कमलपुष्प अर्पित करनेसे प्रसन्न होनेवाली), 577. पद्मसंस्था (कमलके आसनपर स्थित रहनेवाली), 578. पद्माक्षी, 579. पद्मसम्भवा, 580. पद्मपत्रा (कमलपत्रकी भाँति जगत्से निर्लिप्त रहनेवाली), 589. पद्मपदा (कमलके समान कोमल चरणोंवाली), 582. पद्मिनी (हाथमें कमल धारण 4 करनेवाली), 583. प्रियभाषिणी ।। 94 ।।584. पशुपाशविनिर्मुक्ता (पाशविक बन्धनोंसे मुक्त), 585. पुरन्ध्री (गृहस्थीके कार्यमें संलग्न स्त्रीके रूपमें विराजमान), 586. पुरवासिनी, 587. पुष्कला, 588. पुरुषा (पुरुषार्थमयी), 589. पर्वा (पर्वस्वरूपा), 590. पारिजातसुमप्रिया (पारिजात पुष्पसे अत्यधिक प्रेम रखनेवाली), 591. पतिव्रता, 592. पवित्राङ्गी, 593. पुष्पहासपरायणा (खिले हुए पुष्पके समान हँसनेवाली), 594. प्रज्ञावतीसुता, 595. पौत्री, 596. पुत्रपूज्या, 597. पयस्विनी ( प्राणियोंके संवर्धन हेतु अमृततुल्य दुग्ध प्रदान करनेवाली) । ll 95-96 ॥

598. पट्टिपाशधरा, 599. पंक्तिः, 600. पितृलोकप्रदायिनी, 601. पुराणी, 602. पुण्यशीला, 603. प्रणतार्तिविनाशिनी (शरणागतजनोंका क्लेश दूर करनेवाली), 604. प्रद्युम्नजननी, 605. पुष्टा (पुष्टिरूपा), 606. पितामहपरिग्रहा (आदिशक्तिद्वारा पितामह ब्रह्माके लिये अर्पित की गयी देवी), 607. पुण्डरीकपुरावासा (पुण्डरीकपुर अर्थात् चिदम्बरक्षेत्रमें निवास करनेवाली), 608, पुण्डरीकसमानना (कमल सदृश सुन्दर मुखवाली) ॥ 97-98 ॥

609. पृथुजङ्घा (विशाल जाँघोंवाली), 610. पृथुभुजा (दीर्घ भुजाओंवाली), 611. पृथुपादा (बृहत् चरणोंवाली), 612. पृथूदरी (विशाल उदरवाली), 613. प्रवालशोभा (मूँगेके समान कान्तिसे सम्पन्न), 614. पिङ्गाक्षी, 615. पीतवासाः, 616. प्रचापला (अत्यन्त चंचल स्वभाववाली), 617. प्रसवा (सम्पूर्ण जगत्को उत्पन्न करनेवाली), 618. पुष्टिदा, 619. पुण्या, 620. प्रतिष्ठा, 621. प्रणवागतिः (ओंकारकी मूलरूपा), 622. पञ्चवर्णा, 623. पञ्चवाणी, 624. पञ्चिका, 625. पञ्जरस्थिता (प्राणियोंके शरीरमें स्थित रहनेवाली) ॥ 99-100 ॥

626. परमाया (परम मायारूपा), 627. परज्योतिः, 628. परप्रीतिः, 629. परागतिः, 630. पराकाष्ठा (ब्रह्माण्डकी अन्तिम सीमा), 631. परेशानी (परमेश्वरी), 632. पावनी, 633. पावकद्युतिः, 634. पुण्यभद्रा (पवित्र करनेमें अतीव दक्ष),635. परिच्छेद्या (सबसे विलक्षण स्वभाववाली), 636. पुष्पहासा, 637. पृथूदरी, 638. पीताङ्गी, 639. पीतवसना, 640. पीतशय्या (पीले रंगकी शय्यापर शयन करनेवाली), 641. पिशाचिनी (पिशाचोंके गण साथमें रखनेवाली) । 101-102 ॥ 642. पीतक्रिया (मधुपानक्रियारूपा), 643.

पिशाचघ्नी, 644. पाटलाक्षी (विकसित गुलाब पुष्पसदृश नयनोंवाली), 645. पटुक्रिया (चतुरताके साथ कार्य सम्पन्न करनेवाली), 646. पञ्चभक्ष प्रियाचारा (भोज्य- चर्व्य-चोष्य-लेह्य और पेय-इन पाँचों प्रकारके पदार्थोंका प्रेमपूर्वक आहार करनेवाली), 647. पूतनाप्राणघातिनी (पूतनाके प्राणोंका नाश करनेवाली), 648. पुन्नागवनमध्यस्था (जायफलके वनके मध्य भागमें विराजमान रहनेवाली), 649. पुण्यतीर्थनिषेविता (पुण्यमय तीर्थोंमें निवास करनेवाली), 650. पञ्चाङ्गी, 651. पराशक्तिः, 652. परमाह्लादकारिणी (परम आनन्द प्रदान करनेवाली) ॥ 103-104 ॥

653. पुष्पकाण्डस्थिता (फूलोंके डंठलोंपर स्थित रहनेवाली), 654. पूषा, 655. पोषिताखिलविष्टपा (सम्पूर्ण संसारका भरण-पोषण करनेवाली), 656. पानप्रिया, 657. पञ्चशिखा, 658. पन्नगोपरिशायनी (सर्पोंपर शयन करनेवाली), 659. पञ्चमात्रात्मिका, 660. पृथ्वी, 661. पथिका, 662. पृथुदोहिनी (पर्याप्त दोहन करनेवाली), 663. पुराणन्यायमीमांसा (पुराण, न्याय तथा मीमांसास्वरूपिणी), 664. पाटली, 665. पुष्पगन्धिनी, 666. पुण्यप्रजा, 667. पारदात्री, 668. परमार्गैकगोचरा (एकमात्र श्रेष्ठ मार्गद्वारा अनुभवगम्य), 669. प्रवालशोभा (मूँगेसे सुशोभित 670. पूर्णाशा, 671. प्रणवा (ॐकारस्वरूपिणी), 672. पल्लवोदरी (नवीन पल्लवके समान सुकोमल उदरवाली) । 105 - 107॥ विग्रहवाली),

673. फलिनी (फलरूपिणी), 674. फलदा, 675. फल्गुः (फल्गु नामक नदीके रूपमें विद्यमान), 676. फूत्कारी (क्रोधावस्थामें फूत्कार करनेवाली), 677. फलकाकृतिः (बाणके अग्रभागके समान आकारवाली), 678. फणीन्द्रभोगशयना (नागराज शेषनागके फनपर शयन करनेवाली), 679. फणि मण्डलमण्डिता (नागमण्डलोंसे सुशोभित ॥ 108 ॥680. बालबाला (बालिकाओंमें बालारूपिणी), 681. बहुमता, 682. बालातपनिभांशुका (उदयकालके सूर्यकी भाँति अरुण वस्त्र धारण करनेवाली), 683. बलभद्रप्रिया, 684. वन्द्या, 685. वडवा, 686. बुद्धिसंस्तुता, 687. बन्दीदेवी, 688. बिलवती (गुहामें रहनेवाली), 689. बडिशघ्नी (कपटका विनाश करनेवाली), 690. बलिप्रिया, 691. बान्धवी, | 692. बोधिता 693. बुद्धिः, 694. बन्धूककुसुमप्रिया (बन्धूकपुष्पसे प्रसन्न होनेवाली) ॥ 109-110 ॥

695. बालभानुप्रभाकारा (प्रातःकालीन सूर्यकी प्रभासे युक्त विग्रहवाली), 696. ब्राह्मी, 697. ब्राह्मणदेवता, 698. बृहस्पतिस्तुता, 699. वृन्दा, 700. वृन्दावनविहारिणी, 701. बालाकिनी (बगुलोंकी पंक्तिसदृश रूपवाली), 702. बिलाहारा (कर्मोंके दोषका निवारण करनेवाली), 703. बिलवासा (बिलरूपिणी गुहामें निवास करनेवाली), 704. बहूदका, 705. बहुनेत्रा 706. बहुपदा, 707. बहुकर्णावतंसिका (अनेक प्रकारके कर्णभूषणोंसे अलंकृत) ॥। 111-112 ॥

708. बहुबाहुयुता, 709. बीजरूपिणी, 710. बहुरूपिणी, 711. बिन्दुनादकलातीता (बिन्दु, नाद और कलासे सर्वथा परे), 712. बिन्दुनादस्वरूपिणी (बिन्दु और नादके स्वरूपवाली), 713. बद्धगोधा ङ्गुलित्राणा (गोधाके चर्मका अंगुलित्राण धारण करनेवाली), 714. बदर्याश्रमवासिनी (बदरिकाश्रममें निवास करनेवाली), 715. बृन्दारका, 716. बृहत्स्कन्धा (विशाल कन्धोंवाली), 717. बृहती, 718. बाणपातिनी (बाणोंकी वर्षा करनेवाली) ॥ 113-114 ॥

719. वृन्दाध्यक्षा (वृन्दा आदि कृष्णसखियों में प्रमुखतम), 720. बहुनुता (सभीके द्वारा नमस्कृत), 729. वनिता, 722. बहुविक्रमा, 723. बद्धपद्या सनासीना, 724. बिल्वपत्रतलस्थिता, 725. बोधिद्रुम निजावासा (पीपल के वृक्षके नीचे अपना निवासस्थान बनानेवाली), 726. बडिस्था, 727. बिन्दुदर्पणा ( अव्यक्तमायारूप दर्पणवाली), 728. बाला, 729. बाणासनवती (हाथमें धनुष धारण करनेवाली), 730. वडवानलवेगिनी (वडवाग्निके समान वेग धारण करनेवाली) । 115-116 ॥731. ब्रह्माण्डबहिरन्तःस्था (ब्रह्माण्डके भीतर | तथा बाहर दोनों स्थानोंमें रहनेवाली), 732. ब्रह्मकङ्कण | सूत्रिणी (ब्रह्माकी कंकणसूत्रस्वरूपिणी), 733. भवानी, 734. भीषणवती (दानवोंके वधके लिये भयावह रूप धारण करनेवाली), 735. भाविनी (जगत्की उत्पत्ति, पालन तथा संहार करनेवाली), 736. भयहारिणी, 737. भद्रकाली, 738. भुजङ्गाक्षी, 739. भारती 740. भारताशया (अपने ध्यानमें रत पुरुषोंके अन्तःकरणमें विराजमान रहनेवाली), 741. भैरवी, 742. भीषणाकारा, 743. भूतिदा (ऐश्वर्य प्रदान करनेवाली), 744. भूतिमालिनी ( विपुल ऐश्वर्यसे सम्पन्न) ।। 117-118 ॥

745. भामिनी, 746. भोगनिरता, 747. भद्रदा, 748. भूरिविक्रमा (अत्यधिक पराक्रमसे सम्पन्न), 749. भूतवासा (सभी प्राणियोंमें विद्यमान रहनेवाली), 750. भृगुलता, 751. भार्गवी (भृगु मुनिकी शक्तिके रूपमें विराजमान), 752. भूसुरार्चिता (ब्राह्मणोंके द्वारा अर्चित), 753. भागीरथी, 754. भोगवती, 755. भवनस्था, 756. भिषग्वरा (भवरोग दूर करनेके लिये श्रेष्ठ वैद्यरूपा), 757. भामिनी, 758. भोगिनी, 759. भाषा, 760. भवानी, 761. भूरिदक्षिणा ॥ 119-120॥

762. भर्गात्मिका (परम तेजसे सम्पन्न), 763. भीमवती, 764. भवबन्धविमोचिनी, 765. भजनीया, 766. भूतधात्रीरञ्जिता (प्राणियोंका पालन तथा अनुरंजन करनेवाली), 767. भुवनेश्वरी, 768. भुजङ्गवलया (साँपोंको वलयाकृतिके रूपमें हाथों में धारण करनेवाली), 769. भीमा, 770. भेरुण्डा (भेरुण्डा नामसे प्रसिद्ध देवी), 771. भागधेयिनी (परम सौभाग्यवती), 772. माता, 773. माया, 774. मधुमती (मधुपान करनेवाली), 775. मधुजिह्वा, 776. मधुप्रिया (मधुसे अतिशय प्रीति रखनेवाली) ॥ 121-122 ॥

777. महादेवी, 778. महाभागा, 779. मालिनी, 780, मीनलोचना (मछलीके समान नेत्रोंवाली), 781. मायातीता, 782. मधुमती, 783. मधुमांसा, 784. मधुद्रवा (मधुका अर्पण करनेसे भक्तोंपर द्रवित होनेवाली), 785. मानवी (मानवरूप धारणकरनेवाली), 786. मधुसम्भूता (चैत्रमासमें प्रकट होनेवाली), 787. मिथिलापुरवासिनी (मिथिलापुरीमें निवास करनेवाली सीतास्वरूपिणी), 788. मधुकैटभ संहर्त्री (मधु तथा कैटभ दानवोंका संहार करनेवाली), 789. मेदिनी (पृथ्वीस्वरूपिणी), 790. मेघमालिनी (मेघमालाओंसे घिरी हुई) ।। 123-124 ॥

799. मन्दोदरी, 792. महामाया, 793. मैथिली, 794. मसृणप्रिया (मधुर पदार्थोंसे प्रेम करनेवाली), 795. महालक्ष्मी:, 796. महाकाली, 797. महाकन्या, 798. महेश्वरी, 799. माहेन्द्री (शचीके रूपमें विराजमान), 800. मेरुतनया, 801. मन्दारकुसुमार्चिता (मन्दारपुष्पसे पूजित होनेवाली), 802. मञ्जुमञ्जीरचरणा (चरणोंमें सुन्दर पायल धारण करनेवाली), 803. मोक्षदा, 804. मञ्जुभाषिणी ।। 125-126॥

805. मधुरद्राविणी (भक्तिसे द्रवित होकर मधुर वचन बोलनेवाली), 806. मुद्रा, 807. मलया (मलयाचलपर निवास करनेवाली), 808. मलयान्विता (मलयगिरि चन्दनसे युक्त), 809. मेधा, 810. (मरकतमणिके सदृश श्याम वर्णवाली), 811. मागधी, 812. मेनकात्मजा, 813. महामारी, 814. महावीरा, 815. महाश्यामा, 816. मनुस्तुता (मनुके द्वारा स्तुत), 817. मातृका, 818. मिहिराभासा (सूर्यके समान प्रभावाली), 819. मुकुन्दपदविक्रमा (भगवान् विष्णुके पदका अनुसरण करनेवाली ) ॥ 127-128 ॥ मरकतश्यामा
मूलाधारस्थिता (मूलाधारचक्रमें | कुण्डलिनीके रूपमें स्थित रहनेवाली), 821. मुग्धा (सर्वदा प्रसन्नचित्त रहनेवाली), 822. मणिपूरकवासिनी ( मणिपूर नामक चक्रमें निवास करनेवाली), 823. मृगाक्षी (मृगके समान नेत्रोंवाली), 824. महिषारूढा (महिषपर आरूढ़ होनेवाली), 825. महिषासुरमर्दिनी (महिष नामक दानवका वध करनेवाली) ॥ 129 ॥ 820. 826. योगासना, 827. योगगम्या, 828. योगा, 829. यौवनकाश्रया (सदा यौवनावस्थामें विराजमान), 830. यौवनी, 831. युद्धमध्यस्था, 832. यमुना, 833. युगधारिणी, 834. यक्षिणी, 835. योगयुक्ता,836. यक्षराजप्रसूतिनी (यक्षराजको उत्पन्न करनेवाली), 837. यात्रा, 838. यानविधानज्ञा (विमानोंकी व्यवस्थाका विशेष ज्ञान रखनेवाली), 839. यदुवंश समुद्भवा (यदुवंशमें प्रादुर्भूत देवी) ।। 130-131 ॥

840. यकारादिहकारान्ता (यकारसे लेकर हकारतक सभी वर्णोंके रूपवाली), 841. याजुषी (यजुर्वेदस्वरूपिणी), 842. यज्ञरूपिणी, 843. यामिनी, 844. योगनिरता, 845. यातुधानभयङ्करी (राक्षसोंको भय उत्पन्न करनेवाली ) ॥ 132 ॥

846. रुक्मिणी, 847. रमणी, 848. रामा, 849. रेवती, 850. रेणुका, 851. रतिः, 852. रौद्री 853. रौद्रप्रियाकारा ( रौद्र आकृतिसे प्रीति करनेवाली), 854. राममाता (कौसल्यारूपमें विराजमान), 855. रतिप्रिया, 856. रोहिणी, 857. राज्यदा, 858. रेवा (नर्मदासंज्ञक नदी), 859. रमा, 860. राजीवलोचना, 861. राकेशी, 862. रूपसम्पन्ना, 863. रत्नसिंहासनस्थिता (रत्नसे निर्मित सिंहासनपर विराजमान रहनेवाली) | 133-134

864. रक्तमाल्याम्बरधरा, 865. रक्तगन्धानुलेपना, 866. राजहंससमारूढा, 867. रम्भा, 868. रक्तबलि प्रिया, 869. रमणीययुगाधारा ( रमणीय युगकी आश्रय स्वरूपिणी), 870. राजिताखिलभूतला (सम्पूर्ण पृथ्वी तलको सुशोभित करनेवाली), 871. रुरुचर्मपरीधाना (मृगचर्मको वस्त्रके रूपमें धारण करनेवाली), 872. रथिनी, 873. रत्नमालिका ॥ 135-136 ॥

874, रोगेशी (रोगोंपर शासन करनेवाली), 875. रोगशमनी, 876. राविणी ( भयावह गर्जन करनेवाली), 877. रोमहर्षिणी, 878. रामचन्द्रपदाक्रान्ता, 879. रावणच्छेदकारिणी (रावणका संहार करनेवाली), 880. रत्नवस्त्रपरिच्छन्ना (रत्न तथा वस्त्रोंसे सम्यक् आच्छादित), 881. रथस्था, 882. रुक्मभूषणा (स्वर्णमय आभूषणोंसे सुशोभित), 883. लज्जाधिदेवता, 884. लोला ( अत्यन्त चंचल स्वभाववाली), 885. ललिता, 886. लिङ्गधारिणी ।। 137-138

887. लक्ष्मीः, 888. लोला, 889. लुप्तविषा (विषसे निष्प्रभावित रहनेवाली), 890. लोकिनी, 891. लोकविश्रुता, 892. लज्जा, 893. लम्बोदरीदेवी, 894. ललना (स्त्रीस्वरूपा), 895. लोकधारिणी ॥ 139 ॥896. वरदा, 897. वन्दिता, 898. विद्या, 899. वैष्णवी, 100, विमलाकृतिः, 101. वाराही (वराहरूप धारण करनेवाली), 902. विरजा, 903. वर्षा (वृष्टिरूपा), 104. वरलक्ष्मीः 105. विलासिनी, 906. विनता, 907 व्योममध्यस्था, 908. वारि जासनसंस्थिता (कमलके आसनपर विराजमान रहनेवाली), 909. वारुणी ( वरुणकी शक्तिस्वरूपिणी), 910. वेणुसम्भूता (बाँससे प्रकट होनेवाली), 911. वीतिहोत्रा (अग्निस्वरूपिणी), 112. विरूपिणी (विशिष्टरूपसे सम्पन्न) 140-141 ।।

913. वायुमण्डलमध्यस्था, 914. विष्णुरूपा, 915. विधिप्रिया, 916. विष्णुपत्नी, 917. विष्णुमती, 918. विशालाक्षी (विशाल नेत्रोंवाली), 119. वसुन्धरा 220, वामदेवप्रिया (स्द्राणीरूपसे विद्यमान), 921. वेला (समयकी अधिष्ठात्री देवी), 922. वज्रिणी, 923. वसुदोहिनी (सम्पदाका दोहन करनेवाली), 924. वेदाक्षरपरीताङ्गी (वेदाक्षरोंसे युक्त अंगोंवाली), 925. वाजपेयफलप्रदा (वाजपेयफल प्रदान करनेवाली), 926. वासवी, 927. वामजननी (वामदेवकी जननी), 128. वैकुण्ठनिलया, 129. वरा, 930. व्यासप्रिया, 931. वर्मधरा (कवच धारण करनेवाली), 932. वाल्मीकिपरिसेविता (वाल्मीकिके द्वारा भलीभाँति सेवित) ।। 142 - 144 ।।

133. शाकम्भरी (शकम्भरीदेवी नामसे प्रसिद्ध), 934. शिवा, 935. शान्ता, 936. शारदा, 937. शरणागतिः, 938. शातोदरी (तेजसे युक्त उदरवाली), 939. शुभाचारा (पवित्र आचरणवाली), 940. शुम्भा सुरविमर्दिनी (शुम्भ नामक दानवका वध करनेवाली), 141. शोभावती, 942. शिवाकारा (कल्याणमयी आकृति धारण करनेवाली), 143. शङ्कराशरीरिणी (शिवकी अर्धांगिनी), 144. शोणा (रक्त वर्णवाली), 945. शुभाशया (मंगलकारी अभिप्राय से युक्त), 946. शुभा 947. शिरः सन्धानकारिणी (दैत्योंके मस्तकपर संधान करनेवाली) ।। 145-146 ll948. शरावती (वाणोंसे रक्षा करनेवाली), 949. शरानन्दा ( आनन्दपूर्वक बाणका संचालन करनेवाली), 950. शरज्ज्योत्स्ना (शरत्कालीन चन्द्रमाके समान धवल किरणोंवाली), 951. शुभानना, 152. शरभा (हरिणी-स्वरूपा ), 953. शूलिनी, 954. शुद्धा, 955. शबरी, 956. शुकवाहना ( शुकपर सवार होनेवाली), 957. श्रीमती, 958. श्रीधरानन्दा (विष्णुको आनन्द प्रदान करनेवाली), 959. श्रवणानन्ददायिनी (देवी-चरित्र सुननेसे भक्तोंको आनन्द प्रदान करनेवाली), 960. शर्वाणी (शंकरकी शक्तिरूपा भगवती पार्वती), 961. शर्वरीवन्द्या (रात्रिमें पूजित होनेवाली), 962. षड्भाषा (छः भाषाओंके रूपवाली), 963. षॠतुप्रिया (सभी छः ऋतुओंसे प्रीति रखनेवाली) | 147-148 ।।

964. षडाधारस्थितादेवी (छः प्रकारके आधारोंमें विराजमान होनेवाली भगवती), 965. षण्मुख प्रियकारिणी (कार्तिकेयका प्रिय करनेवाली), 966. षडङ्गरूपसुमतिसुरासुरनमस्कृता (षडंग रूपवाले सुमति नामक देवताओं तथा असुरोंद्वारा नमस्कृत), 967. सरस्वती, 968. सदाधारा (सत्यपर प्रतिष्ठित रहनेवाली), 969. सर्वमङ्गलकारिणी (सबका कल्याण करनेवाली), 970. सामगानप्रिया, 971. सूक्ष्मा, 972. सावित्री, 973. सामसम्भवा (सामवेदसे प्रादुर्भूत होनेवाली) ।। 149-150 ।।

974. सर्वावासा (सबमें व्याप्त रहनेवाली), 975. सदानन्दा, 976. सुस्तनी, 977. सागराम्बरा (वस्त्रके रूपमें सागरको धारण करनेवाली), 978. सर्वैश्वर्यप्रिया (समस्त ऐश्वयसे प्रेम करनेवाली), 979. सिद्धिः, 980. साधुबन्धुपराक्रमा (सज्जनों तथा प्रिय भक्तजनोंके लिये पराक्रम प्रदर्शित करनेवाली), 989. सप्तर्षिमण्डलगता, सोममण्डलवासिनी (चन्द्रमण्डलमें विराजमान 982. रहनेवाली), 983. सर्वज्ञा, 984. सान्द्रकरुणा (अतीव करुणामयी), 985. समानाधिकवर्जिता (सदा एक समान रहनेवाली) । 151-152 ॥986. सर्वोत्तुङ्गा (सर्वोच्च स्थान रखनेवाली), 987 सङ्गृहीना (आसक्तिभावनासे रहित), 988. सद्गुणा, 189. सकलेष्टदा (सभी अभीष्ट फल प्रदान करनेवाली), 990. सरघा (मधुमक्षिका स्वरूपिणी), 991. सूर्यतनया (सूर्यपुत्री), 992. सुकेशी (सुन्दर केशोंसे सम्पन्न), 193. सोमसंहतिः (अनेक चन्द्रमाओंकी शोभासे सम्पन्न) 153 ।।

994. हिरण्यवर्णा (स्वर्णके समान वर्णवाली), 995. हरिणी, 196. ह्रींकारी (हीं-बीजस्वरूपिणी), 197. हंसवाहिनी (हंसपर सवार होनेवाली), 998. क्षौमवस्त्रपरीताङ्गी (रेशमी वस्त्रोंसे ढँके हुए अंगोंवाली), 999. क्षीराब्धितनया (क्षीरसागरकी पुत्रीस्वरूपा), 1000 क्षमा, 1001. गायत्री, 1002. सावित्री, 1003. पार्वती, 1004. सरस्वती, 1005, वेदगर्भा, 1006. वरारोहा, 1007. श्रीगायत्री, 1008. पराम्बिका ॥। 154-155

हे नारद! भगवती गायत्रीका यह सहस्रनाम है।

यह अत्यन्त पुण्यदायक, सभी पापोंका नाश करनेवाला

तथा विपुल सम्पदाओंको प्रदान करनेवाला है ॥ 156 इस प्रकार कहे गये ये नाम गायत्रीको सन्तुष्टि प्रदान करनेवाले हैं। ब्राह्मणोंके साथ विशेष करके अष्टमी तिथिको इस सहस्रनामका पाठ करना चाहिये। भलीभाँति जप, होम, पूजा और ध्यान करके इसका पाठ करना चाहिये। जिस किसीको भी इस गायत्रीसहस्रनामका उपदेश नहीं करना चाहिये अपितु योग्य भक्त, उत्तम शिष्य तथा ब्राह्मणको ही इसे बताना चाहिये। पथभ्रष्ट साधकों अथवा ऐसे अपने बन्धुओंके भी समक्ष इसे प्रदर्शित नहीं करना चाहिये ।। 157 - 159 ।।

जिस व्यक्तिके घरमें यह गायत्रीसम्बन्धी शास्त्र लिखा होता है, उसे किसीका भी भय नहीं रहता और अत्यन्त चपल लक्ष्मी भी उस घरमें स्थिर होकर विराजमान रहती हैं ॥ 160 ॥

यह परम रहस्य गुह्यसे भी अत्यन्त गुह्य है। यह मनुष्योंको पुण्य प्रदान करानेवाला, दरिद्रोंको सम्पत्ति | सुलभ करानेवाला, मोक्षकी अभिलाषा रखनेवालोंकोमोक्षप्राप्ति करानेवाला तथा सकाम पुरुषोंको समस्त अभीष्ट फल प्रदान करनेवाला है। इस सहस्रनामके प्रभावसे रोगी रोगमुक्त हो जाता है तथा बन्धनमें पड़ा हुआ मनुष्य बन्धनसे छूट जाता है। ब्रह्महत्या, सुरापान, स्वर्णकी चोरी तथा गुरुपत्नीगमनसदृश महान् पाप करनेवाले भी इसके एक बारके पाठसे पापमुक्त हो जाते हैं ॥ 161-163॥

इसका पाठ करनेसे मनुष्य निन्दनीय दान लेने, अभक्ष्यभक्षण करने, पाखण्डपूर्ण व्यवहार करने और मिथ्याभाषण करने आदि प्रमुख पापोंसे मुक्त हो जाता है। हे ब्रह्मापुत्र नारद! मेरे द्वारा कहा गया यह परम पवित्र रहस्य मनुष्योंको ब्रह्मसायुज्य प्रदान करनेवाला है। यह बात सत्य है, सत्य है; इसमें सन्देह नहीं है ।। 164-165 ॥

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देवी भागवत महापुराण
Index


  1. [अध्याय 1] महर्षि शौनकका सूतजीसे श्रीमद्देवीभागवतपुराण सुनानेकी प्रार्थना करना
  2. [अध्याय 2] सूतजीद्वारा श्रीमद्देवीभागवतके स्कन्ध, अध्याय तथा श्लोकसंख्याका निरूपण और उसमें प्रतिपादित विषयोंका वर्णन
  3. [अध्याय 3] सूतजीद्वारा पुराणोंके नाम तथा उनकी श्लोकसंख्याका कथन, उपपुराणों तथा प्रत्येक द्वापरयुगके व्यासोंका नाम
  4. [अध्याय 4] नारदजीद्वारा व्यासजीको देवीकी महिमा बताना
  5. [अध्याय 5] भगवती लक्ष्मीके शापसे विष्णुका मस्तक कट जाना, वेदोंद्वारा स्तुति करनेपर देवीका प्रसन्न होना, भगवान् विष्णुके हयग्रीवावतारकी कथा
  6. [अध्याय 6] शेषशायी भगवान् विष्णुके कर्णमलसे मधु-कैटभकी उत्पत्ति तथा उन दोनोंका ब्रह्माजीसे युद्धके लिये तत्पर होना
  7. [अध्याय 7] ब्रह्माजीका भगवान् विष्णु तथा भगवती योगनिद्राकी स्तुति करना
  8. [अध्याय 8] भगवान् विष्णु योगमायाके अधीन क्यों हो गये -ऋषियोंके इस प्रश्नके उत्तरमें सूतजीद्वारा उन्हें आद्याशक्ति भगवतीकी महिमा सुनाना
  9. [अध्याय 9] भगवान् विष्णुका मधु-कैटभसे पाँच हजार वर्षोंतक युद्ध करना, विष्णुद्वारा देवीकी स्तुति तथा देवीद्वारा मोहित मधु-कैटभका विष्णुद्वारा वध
  10. [अध्याय 10] व्यासजीकी तपस्या और वर-प्राप्ति
  11. [अध्याय 11] बुधके जन्मकी कथा
  12. [अध्याय 12] राजा सुद्युम्नकी इला नामक स्त्रीके रूपमें परिणति, इलाका बुधसे विवाह और पुरूरवाकां उत्पत्ति, भगवतीकी स्तुति करनेसे इलारूपधारी राजा सुद्युम्नकी सायुज्यमुक्ति
  13. [अध्याय 13] राजा पुरूरवा और उर्वशीकी कथा
  14. [अध्याय 14] व्यासपुत्र शुकदेवके अरणिसे उत्पन्न होनेकी कथा तथा व्यासजीद्वारा उनसे गृहस्थधर्मका वर्णन
  15. [अध्याय 15] शुकदेवजीका विवाहके लिये अस्वीकार करना तथा व्यासजीका उनसे श्रीमद्देवीभागवत पढ़नेके लिये कहना
  16. [अध्याय 16] बालरूपधारी भगवान् विष्णुसे महालक्ष्मीका संवाद, व्यासजीका शुकदेवजीसे देवीभागवतप्राप्तिकी परम्परा बताना तथा शुकदेवजीका
  17. [अध्याय 17] शुकदेवजीका राजा जनकसे मिलनेके लिये मिथिलापुरीको प्रस्थान तथा राजभवनमें प्रवेश
  18. [अध्याय 18] शुकदेवजीके प्रति राजा जनकका उपदेश
  19. [अध्याय 19] शुकदेवजीका व्यासजीके आश्रममें वापस आना, विवाह करके सन्तानोत्पत्ति करना तथा परम सिद्धिकी प्राप्ति करना
  20. [अध्याय 20] सत्यवतीका राजा शन्तनुसे विवाह तथा दो पुत्रोंका जन्म, राजा शन्तनुकी मृत्यु, चित्रांगदका राजा बनना तथा उसकी मृत्यु, विचित्रवीर्यका काशिराजकी कन्याओंसे विवाह और क्षयरोगसे मृत्यु, व्यासजीद्वारा धृतराष्ट्र, पाण्डु और विदुरकी उत्पत्ति
  1. [अध्याय 1] ब्राह्मणके शापसे अद्रिका अप्सराका मछली होना और उससे राजा मत्स्य तथा मत्स्यगन्धाकी उत्पत्ति
  2. [अध्याय 2] व्यासजीकी उत्पत्ति और उनका तपस्याके लिये जाना
  3. [अध्याय 3] राजा शन्तनु, गंगा और भीष्मके पूर्वजन्मकी कथा
  4. [अध्याय 4] गंगाजीद्वारा राजा शन्तनुका पतिरूपमें वरण, सात पुत्रोंका जन्म तथा गंगाका उन्हें अपने जलमें प्रवाहित करना, आठवें पुत्रके रूपमें भीष्मका जन्म तथा उनकी शिक्षा-दीक्षा
  5. [अध्याय 5] मत्स्यगन्धा (सत्यवती) को देखकर राजा शन्तनुका मोहित होना, भीष्मद्वारा आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत धारण करनेकी प्रतिज्ञा करना और शन्तनुका सत्यवतीसे विवाह
  6. [अध्याय 6] दुर्वासाका कुन्तीको अमोघ कामद मन्त्र देना, मन्त्रके प्रभावसे कन्यावस्थामें ही कर्णका जन्म, कुन्तीका राजा पाण्डुसे विवाह, शापके कारण पाण्डुका सन्तानोत्पादनमें असमर्थ होना, मन्त्र-प्रयोगसे कुन्ती और माडीका पुत्रवती होना, पाण्डुकी मृत्यु और पाँचों पुत्रोंको लेकर कुन्तीका हस्तिनापुर आना
  7. [अध्याय 7] धृतराष्ट्रका युधिष्ठिरसे दुर्योधनके पिण्डदानहेतु धन मांगना, भीमसेनका प्रतिरोध; धृतराष्ट्र, गान्धारी, कुन्ती, विदुर और संजयका बनके लिये प्रस्थान, वनवासी धृतराष्ट्र तथा माता कुन्तीसे मिलनेके लिये युधिष्ठिरका भाइयोंके साथ वनगमन, विदुरका महाप्रयाण, धृतराष्ट्रसहित पाण्डवोंका व्यासजीके आश्रमपर आना,
  8. [अध्याय 8] धृतराष्ट्र आदिका दावाग्निमें जल जाना, प्रभासक्षेत्रमें यादवोंका परस्पर युद्ध और संहार, कृष्ण और बलरामका परमधामगमन, परीक्षित्‌को राजा बनाकर पाण्डवोंका हिमालय पर्वतपर जाना, परीक्षितको शापकी प्राप्ति, प्रमद्वरा और रुरुका वृत्तान्त
  9. [अध्याय 9] सर्पके काटनेसे प्रमद्वराकी मृत्यु, रुरुद्वारा अपनी आधी आयु देकर उसे जीवित कराना, मणि-मन्त्र- औषधिद्वारा सुरक्षित राजा परीक्षित्का सात तलवाले भवनमें निवास करना
  10. [अध्याय 10] महाराज परीक्षित्को डँसनेके लिये तक्षकका प्रस्थान, मार्गमें मन्त्रवेत्ता कश्यपसे भेंट, तक्षकका एक वटवृक्षको हँसकर भस्म कर देना और कश्यपका उसे पुनः हरा-भरा कर देना, तक्षकद्वारा धन देकर कश्यपको वापस कर देना, सर्पदंशसे राजा परीक्षित्‌की मृत्यु
  11. [अध्याय 11] जनमेजयका राजा बनना और उत्तंककी प्रेरणासे सर्प सत्र करना, आस्तीकके कहनेसे राजाद्वारा सर्प-सत्र रोकना
  12. [अध्याय 12] आस्तीकमुनिके जन्मकी कथा, कद्रू और विनताद्वारा सूर्यके घोड़ेके रंगके विषयमें शर्त लगाना और विनताको दासीभावकी प्राप्ति, कद्रुद्वारा अपने पुत्रोंको शाप
  1. [अध्याय 1] राजा जनमेजयका ब्रह्माण्डोत्पत्तिविषयक प्रश्न तथा इसके उत्तरमें व्यासजीका पूर्वकालमें नारदजीके साथ हुआ संवाद सुनाना
  2. [अध्याय 2] भगवती आद्याशक्तिके प्रभावका वर्णन
  3. [अध्याय 3] ब्रह्मा, विष्णु और महेशका विभिन्न लोकोंमें जाना तथा अपने ही सदृश अन्य ब्रह्मा, विष्णु और महेशको देखकर आश्चर्यचकित होना, देवीलोकका दर्शन
  4. [अध्याय 4] भगवतीके चरणनखमें त्रिदेवोंको सम्पूर्ण ब्रह्माण्डका दर्शन होना, भगवान् विष्णुद्वारा देवीकी स्तुति करना
  5. [अध्याय 5] ब्रह्मा और शिवजीका भगवतीकी स्तुति करना
  6. [अध्याय 6] भगवती जगदम्बिकाद्वारा अपने स्वरूपका वर्णन तथा 'महासरस्वती', 'महालक्ष्मी' और 'महाकाली' नामक अपनी शक्तियोंको क्रमशः ब्रह्मा, विष्णु और शिवको प्रदान करना
  7. [अध्याय 7] ब्रह्माजीके द्वारा परमात्माके स्थूल और सूक्ष्म स्वरूपका वर्णन; सात्त्विक, राजस और तामस शक्तिका वर्णन; पंचतन्मात्राओं, ज्ञानेन्द्रियों, कर्मेन्द्रियों तथा पंचीकरण क्रियाद्वारा सृष्टिकी उत्पत्तिका वर्णन
  8. [अध्याय 8] सत्त्वगुण, रजोगुण और तमोगुणका वर्णन
  9. [अध्याय 9] गुणोंके परस्पर मिश्रीभावका वर्णन, देवीके बीजमन्त्रकी महिमा
  10. [अध्याय 10] देवीके बीजमन्त्रकी महिमाके प्रसंगमें सत्यव्रतका आख्यान
  11. [अध्याय 11] सत्यव्रतद्वारा बिन्दुरहित सारस्वत बीजमन्त्र 'ऐ-ऐ' का उच्चारण तथा उससे प्रसन्न होकर भगवतीका सत्यव्रतको समस्त विद्याएँ प्रदान करना
  12. [अध्याय 12] सात्त्विक, राजस और तामस यज्ञोंका वर्णन मानसयज्ञकी महिमा और व्यासजीद्वारा राजा जनमेजयको देवी यज्ञके लिये प्रेरित करना
  13. [अध्याय 13] देवीकी आधारशक्तिसे पृथ्वीका अचल होना तथा उसपर सुमेरु आदि पर्वतोंकी रचना, ब्रह्माजीद्वारा मरीचि आदिकी मानसी सृष्टि करना, काश्यपी सृष्टिका वर्णन, ब्रह्मलोक, वैकुण्ठ, कैलास और स्वर्ग आदिका निर्माण; भगवान् विष्णुद्वारा अम्बायज्ञ करना और प्रसन्न होकर भगवती आद्या शक्तिद्वारा आकाशवाणीके माध्यमसे उन्हें वरदान देना
  14. [अध्याय 14] देवीमाहात्म्यसे सम्बन्धित राजा ध्रुवसन्धिकी कथा, ध्रुवसन्धिकी मृत्युके बाद राजा युधाजित् और वीरसेनका अपने-अपने दौहित्रोंके पक्षमें विवाद
  15. [अध्याय 15] राजा युधाजित् और वीरसेनका युद्ध, वीरसेनकी मृत्यु, राजा ध्रुवसन्धिकी रानी मनोरमाका अपने पुत्र सुदर्शनको लेकर भारद्वाजमुनिके आश्रममें जाना तथा वहीं निवास करना
  16. [अध्याय 16] युधाजित्का भारद्वाजमुनिके आश्रमपर आना और उनसे मनोरमाको भेजनेका आग्रह करना, प्रत्युत्तरमें मुनिका 'शक्ति हो तो ले जाओ' ऐसा कहना
  17. [अध्याय 17] धाजित्का अपने प्रधान अमात्यसे परामर्श करना, प्रधान अमात्यका इस सन्दर्भमें वसिष्ठविश्वामित्र प्रसंग सुनाना और परामर्श मानकर युधाजित्‌का वापस लौट जाना, बालक सुदर्शनको दैवयोगसे कामराज नामक बीजमन्त्रकी प्राप्ति, भगवतीकी आराधनासे सुदर्शनको उनका प्रत्यक्ष दर्शन होना तथा काशिराजकी कन्या शशिकलाको स्वप्नमें भगवतीद्वारा सुदर्शनका वरण करनेका आदेश देना
  18. [अध्याय 18] राजकुमारी शशिकलाद्वारा मन-ही-मन सुदर्शनका वरण करना, काशिराजद्वारा स्वयंवरकी घोषणा, शशिकलाका सखीके माध्यमसे अपना निश्चय माताको बताना
  19. [अध्याय 19] माताका शशिकलाको समझाना, शशिकलाका अपने निश्चयपर दृढ़ रहना, सुदर्शन तथा अन्य राजाओंका स्वयंवरमें आगमन, युधाजित्द्वारा सुदर्शनको मार डालनेकी बात कहनेपर केरलनरेशका उन्हें समझाना
  20. [अध्याय 20] राजाओंका सुदर्शनसे स्वयंवरमें आनेका कारण पूछना और सुदर्शनका उन्हें स्वप्नमें भगवतीद्वारा दिया गया आदेश बताना, राजा सुबाहुका शशिकलाको समझाना, परंतु उसका अपने निश्चयपर दृढ़ रहना
  21. [अध्याय 21] राजा सुबाहुका राजाओंसे अपनी कन्याकी इच्छा बताना, युधाजित्‌का क्रोधित होकर सुबाहुको फटकारना तथा अपने दौहित्रसे शशिकलाका विवाह करनेको कहना, माताद्वारा शशिकलाको पुनः समझाना, किंतु शशिकलाका अपने निश्चयपर दृढ़ रहना
  22. [अध्याय 22] शशिकलाका गुप्त स्थानमें सुदर्शनके साथ विवाह, विवाहकी बात जानकर राजाओंका सुबाहुके प्रति क्रोध प्रकट करना तथा सुदर्शनका मार्ग रोकनेका निश्चय करना
  23. [अध्याय 23] सुदर्शनका शशिकलाके साथ भारद्वाज आश्रमके लिये प्रस्थान, युधाजित् तथा अन्य राजाओंसे सुदर्शनका घोर संग्राम, भगवती सिंहवाहिनी दुर्गाका प्राकट्य, भगवतीद्वारा युधाजित् और शत्रुजित्का वध, सुबाहुद्वारा भगवतीकी स्तुति
  24. [अध्याय 24] सुबाहुद्वारा भगवती दुर्गासे सदा काशीमें रहनेका वरदान माँगना तथा देवीका वरदान देना, सुदर्शनद्वारा देवीकी स्तुति तथा देवीका उसे अयोध्या जाकर राज्य करनेका आदेश देना, राजाओंका सुदर्शनसे अनुमति लेकर अपने-अपने राज्योंको प्रस्थान
  25. [अध्याय 25] सुदर्शनका शत्रुजित्की माताको सान्त्वना देना, सुदर्शनद्वारा अयोध्या में तथा राजा सुबाहुद्वारा काशीमें देवी दुर्गाकी स्थापना
  26. [अध्याय 26] नवरात्रव्रत विधान, कुमारीपूजामें प्रशस्त कन्याओंका वर्णन
  27. [अध्याय 27] कुमारीपूजामें निषिद्ध कन्याओंका वर्णन, नवरात्रव्रतके माहात्म्यके प्रसंग में सुशील नामक वणिक्की कथा
  28. [अध्याय 28] श्रीरामचरित्रवर्णन
  29. [अध्याय 29] सीताहरण, रामका शोक और लक्ष्मणद्वारा उन्हें सान्त्वना देना
  30. [अध्याय 30] श्रीराम और लक्ष्मणके पास नारदजीका आना और उन्हें नवरात्रव्रत करनेका परामर्श देना, श्रीरामके पूछनेपर नारदजीका उनसे देवीकी महिमा और नवरात्रव्रतकी विधि बतलाना, श्रीरामद्वारा देवीका पूजन और देवीद्वारा उन्हें विजयका वरदान देना
  1. [अध्याय 1] वसुदेव, देवकी आदिके कष्टोंके कारणके सम्बन्धमें जनमेजयका प्रश्न
  2. [अध्याय 2] व्यासजीका जनमेजयको कर्मकी प्रधानता समझाना
  3. [अध्याय 3] वसुदेव और देवकीके पूर्वजन्मकी कथा
  4. [अध्याय 4] व्यासजीद्वारा जनमेजयको मायाकी प्रबलता समझाना
  5. [अध्याय 5] नर-नारायणकी तपस्यासे चिन्तित होकर इन्द्रका उनके पास जाना और मोहिनी माया प्रकट करना तथा उससे भी अप्रभावित रहनेपर कामदेव, वसन्त और अप्सराओंको भेजना
  6. [अध्याय 6] कामदेवद्वारा नर-नारायणके समीप वसन्त ऋतुकी सृष्टि, नारायणद्वारा उर्वशीकी उत्पत्ति, अप्सराओंद्वारा नारायणसे स्वयंको अंगीकार करनेकी प्रार्थना
  7. [अध्याय 7] अप्सराओंके प्रस्तावसे नारायणके मनमें ऊहापोह और नरका उन्हें समझाना तथा अहंकारके कारण प्रह्लादके साथ हुए युद्धका स्मरण कराना
  8. [अध्याय 8] व्यासजीद्वारा राजा जनमेजयको प्रह्लादकी कथा सुनाना इस प्रसंग में च्यवनॠषिके पाताललोक जानेका वर्णन
  9. [अध्याय 9] प्रह्लादजीका तीर्थयात्राके क्रममें नैमिषारण्य पहुँचना और वहाँ नर-नारायणसे उनका घोर युद्ध, भगवान् विष्णुका आगमन और उनके द्वारा प्रह्लादको नर-नारायणका परिचय देना
  10. [अध्याय 10] राजा जनमेजयद्वारा प्रह्लादके साथ नर-नारायणके बुद्धका कारण पूछना, व्यासजीद्वारा उत्तरमें संसारके मूल कारण अहंकारका निरूपण करना तथा महर्षि भृगुद्वारा भगवान् विष्णुको शाप देनेकी कथा
  11. [अध्याय 11] मन्त्रविद्याकी प्राप्तिके लिये शुक्राचार्यका तपस्यारत होना, देवताओंद्वारा दैत्योंपर आक्रमण, शुक्राचार्यकी माताद्वारा दैत्योंकी रक्षा और इन्द्र तथा विष्णुको संज्ञाशून्य कर देना, विष्णुद्वारा शुक्रमाताका वध
  12. [अध्याय 12] महात्मा भृगुद्वारा विष्णुको मानवयोनिमें जन्म लेनेका शाप देना, इन्द्रद्वारा अपनी पुत्री जयन्तीको शुक्राचार्यके लिये अर्पित करना, देवगुरु बृहस्पतिद्वारा शुक्राचार्यका रूप धारणकर दैत्योंका पुरोहित बनना
  13. [अध्याय 13] शुक्राचार्यरूपधारी बृहस्पतिका दैत्योंको उपदेश देना
  14. [अध्याय 14] शुक्राचार्यद्वारा दैत्योंको बृहस्पतिका पाखण्डपूर्ण कृत्य बताना, बृहस्पतिकी मायासे मोहित दैत्योंका उन्हें फटकारना, क्रुद्ध शुक्राचार्यका दैत्योंको शाप देना, बृहस्पतिका अन्तर्धान हो जाना, प्रह्लादका शुक्राचार्यजीसे क्षमा माँगना और शुक्राचार्यका उन्हें प्रारब्धकी बलवत्ता समझाना
  15. [अध्याय 15] देवता और दैत्योंके युद्धमें दैत्योंकी विजय, इन्द्रद्वारा भगवतीकी स्तुति, भगवतीका प्रकट होकर दैत्योंके पास जाना, प्रह्लादद्वारा भगवतीकी स्तुति, देवीके आदेशसे दैत्योंका पातालगमन
  16. [अध्याय 16] भगवान् श्रीहरिके विविध अवतारोंका संक्षिप्त वर्णन
  17. [अध्याय 17] श्रीनारायणद्वारा अप्सराओंको वरदान देना, राजा जनमेजयद्वारा व्यासजीसे श्रीकृष्णावतारका चरित सुनानेका निवेदन करना
  18. [अध्याय 18] पापभारसे व्यथित पृथ्वीका देवलोक जाना, इन्द्रका देवताओं और पृथ्वीके साथ ब्रह्मलोक जाना, ब्रह्माजीका पृथ्वी तथा इन्द्रादि देवताओंसहित विष्णुलोक जाकर विष्णुकी स्तुति करना, विष्णुद्वारा अपनेको भगवतीके अधीन बताना
  19. [अध्याय 19] देवताओं द्वारा भगवतीका स्तवन, भगवतीद्वारा श्रीकृष्ण और अर्जुनको निमित्त बनाकर अपनी शक्तिसे पृथ्वीका भार दूर करनेका आश्वासन देना
  20. [अध्याय 20] व्यासजीद्वारा जनमेजयको भगवतीकी महिमा सुनाना तथा कृष्णावतारकी कथाका उपक्रम
  21. [अध्याय 21] देवकीके प्रथम पुत्रका जन्म, वसुदेवद्वारा प्रतिज्ञानुसार उसे कंसको अर्पित करना और कंसद्वारा उस नवजात शिशुका वध
  22. [अध्याय 22] देवकीके छः पुत्रोंके पूर्वजन्मकी कथा, सातवें पुत्रके रूपमें भगवान् संकर्षणका अवतार, देवताओं तथा दानवोंके अंशावतारोंका वर्णन
  23. [अध्याय 23] कंसके कारागारमें भगवान् श्रीकृष्णका अवतार, वसुदेवजीका उन्हें गोकुल पहुँचाना और वहाँसे योगमायास्वरूपा कन्याको लेकर आना, कंसद्वारा कन्याके वधका प्रयास, योगमायाद्वारा आकाशवाणी करनेपर कंसका अपने सेवकोंद्वारा नवजात शिशुओंका वध कराना
  24. [अध्याय 24] श्रीकृष्णावतारकी संक्षिप्त कथा, कृष्णपुत्रका प्रसूतिगृहसे हरण, कृष्णद्वारा भगवतीकी स्तुति, भगवती चण्डिकाद्वारा सोलह वर्षके बाद पुनः पुत्रप्राप्तिका वर देना
  25. [अध्याय 25] व्यासजीद्वारा शाम्भवी मायाकी बलवत्ताका वर्णन, श्रीकृष्णद्वारा शिवजीकी प्रसन्नताके लिये तप करना और शिवजीद्वारा उन्हें वरदान देना
  1. [अध्याय 1] व्यासजीद्वारा त्रिदेवोंकी तुलनामें भगवतीकी उत्तमताका वर्णन
  2. [अध्याय 2] महिषासुरके जन्म, तप और वरदान प्राप्तिकी कथा
  3. [अध्याय 3] महिषासुरका दूत भेजकर इन्द्रको स्वर्ग खाली करनेका आदेश देना, दूतद्वारा इन्द्रका युद्धहेतु आमन्त्रण प्राप्तकर महिषासुरका दानववीरोंको युद्धके लिये सुसज्जित होनेका आदेश देना
  4. [अध्याय 4] इन्द्रका देवताओं तथा गुरु बृहस्पतिसे परामर्श करना तथा बृहस्पतिद्वारा जय-पराजयमें दैवकी प्रधानता बतलाना
  5. [अध्याय 5] इन्द्रका ब्रह्मा, शिव और विष्णुके पास जाना, तीनों देवताओंसहित इन्द्रका युद्धस्थलमें आना तथा चिक्षुर, बिडाल और ताम्रको पराजित करना
  6. [अध्याय 6] भगवान् विष्णु और शिवके साथ महिषासुरका भयानक युद्ध
  7. [अध्याय 7] महिषासुरको अवध्य जानकर त्रिदेवोंका अपने-अपने लोक लौट जाना, देवताओंकी पराजय तथा महिषासुरका स्वर्गपर आधिपत्य, इन्द्रका ब्रह्मा और शिवजीके साथ विष्णुलोकके लिये प्रस्थान
  8. [अध्याय 8] ब्रह्माप्रभृति समस्त देवताओंके शरीरसे तेज:पुंजका निकलना और उस तेजोराशिसे भगवतीका प्राकट्य
  9. [अध्याय 9] देवताओंद्वारा भगवतीको आयुध और आभूषण समर्पित करना तथा उनकी स्तुति करना, देवीका प्रचण्ड अट्टहास करना, जिसे सुनकर महिषासुरका उद्विग्न होकर अपने प्रधान अमात्यको देवीके पास भेजना
  10. [अध्याय 10] देवीद्वारा महिषासुरके अमात्यको अपना उद्देश्य बताना तथा अमात्यका वापस लौटकर देवीद्वारा कही गयी बातें महिषासुरको बताना
  11. [अध्याय 11] महिषासुरका अपने मन्त्रियोंसे विचार-विमर्श करना और ताम्रको भगवतीके पास भेजना
  12. [अध्याय 12] देवीके अट्टहाससे भयभीत होकर ताम्रका महिषासुरके पास भाग आना, महिषासुरका अपने मन्त्रियोंके साथ पुनः विचार-विमर्श तथा दुर्धर, दुर्मुख और बाष्कलकी गर्वोक्ति
  13. [अध्याय 13] बाष्कल और दुर्मुखका रणभूमिमें आना, देवीसे उनका वार्तालाप और युद्ध तथा देवीद्वारा उनका वध
  14. [अध्याय 14] चिक्षुर और ताम्रका रणभूमिमें आना, देवीसे उनका वार्तालाप और युद्ध तथा देवीद्वारा उनका वध
  15. [अध्याय 15] बिडालाख्य और असिलोमाका रणभूमिमें आना, देवीसे उनका वार्तालाप और युद्ध तथा देवीद्वारा उनका वध
  16. [अध्याय 16] महिषासुरका रणभूमिमें आना तथा देवीसे प्रणय-याचना करना
  17. [अध्याय 17] महिषासुरका देवीको मन्दोदरी नामक राजकुमारीका आख्यान सुनाना
  18. [अध्याय 18] दुर्धर, त्रिनेत्र, अन्धक और महिषासुरका वध
  19. [अध्याय 19] देवताओंद्वारा भगवतीकी स्तुति
  20. [अध्याय 20] देवीका मणिद्वीप पधारना तथा राजा शत्रुघ्नका भूमण्डलाधिपति बनना
  21. [अध्याय 21] शुम्भ और निशुम्भको ब्रह्माजीके द्वारा वरदान, देवताओंके साथ उनका युद्ध और देवताओंकी पराजय
  22. [अध्याय 22] देवताओंद्वारा भगवतीकी स्तुति और उनका प्राकट्य
  23. [अध्याय 23] भगवतीके श्रीविग्रहसे कौशिकीका प्राकट्य, देवीकी कालिकारूपमें परिणति, चण्ड-मुण्डसे देवीके अद्भुत सौन्दर्यको सुनकर शुम्भका सुग्रीवको दूत बनाकर भेजना, जगदम्बाका विवाहके विषयमें अपनी शर्त बताना
  24. [अध्याय 24] शुम्भका धूम्रलोचनको देवीके पास भेजना और धूम्रलोचनका देवीको समझानेका प्रयास करना
  25. [अध्याय 25] भगवती काली और धूम्रलोचनका संवाद, कालीके हुंकारसे धूम्रलोचनका भस्म होना तथा शुम्भका चण्ड-मुण्डको युद्धहेतु प्रस्थानका आदेश देना
  26. [अध्याय 26] भगवती अम्बिकासे चण्ड ड-मुण्डका संवाद और युद्ध, देवी सुखदानि च सेव्यानि शास्त्र कालिकाद्वारा चण्ड-मुण्डका वध
  27. [अध्याय 27] शुम्भका रक्तबीजको भगवती अम्बिकाके पास भेजना और उसका देवीसे वार्तालाप
  28. [अध्याय 28] देवीके साथ रक्तबीजका युद्ध, विभिन्न शक्तियोंके साथ भगवान् शिवका रणस्थलमें आना तथा भगवतीका उन्हें दूत बनाकर शुम्भके पास भेजना, भगवान् शिवके सन्देशसे दानवोंका क्रुद्ध होकर युद्धके लिये आना
  29. [अध्याय 29] रक्तबीजका वध और निशुम्भका युद्धक्षेत्रके लिये प्रस्थान
  30. [अध्याय 30] देवीद्वारा निशुम्भका वध
  31. [अध्याय 31] शुम्भका रणभूमिमें आना और देवीसे वार्तालाप करना, भगवती कालिकाद्वारा उसका वध, देवीके इस उत्तम चरित्रके पठन और श्रवणका फल
  32. [अध्याय 32] देवीमाहात्म्यके प्रसंगमें राजा सुरथ और समाधि वैश्यकी कथा
  33. [अध्याय 33] मुनि सुमेधाका सुरथ और समाधिको देवीकी महिमा बताना
  34. [अध्याय 34] मुनि सुमेधाद्वारा देवीकी पूजा-विधिका वर्णन
  35. [अध्याय 35] सुरथ और समाधिकी तपस्यासे प्रसन्न भगवतीका प्रकट होना और उन्हें इच्छित वरदान देना
  1. [अध्याय 1] त्रिशिराकी तपस्यासे चिन्तित इन्द्रद्वारा तपभंगहेतु अप्सराओंको भेजना
  2. [अध्याय 2] इन्द्रद्वारा त्रिशिराका वध, क्रुद्ध त्वष्टाद्वारा अथर्ववेदोक्त मन्त्रोंसे हवन करके वृत्रासुरको उत्पन्न करना और उसे इन्द्रके वधके लिये प्रेरित करना
  3. [अध्याय 3] वृत्रासुरका देवलोकपर आक्रमण, बृहस्पतिद्वारा इन्द्रकी भर्त्सना करना और वृत्रासुरको अजेय बतलाना, इन्द्रकी पराजय, त्वष्टाके निर्देशसे वृत्रासुरका ब्रह्माजीको प्रसन्न करनेके लिये तपस्यारत होना
  4. [अध्याय 4] तपस्यासे प्रसन्न होकर ब्रह्माजीका वृत्रासुरको वरदान देना, त्वष्टाकी प्रेरणासे वृत्रासुरका स्वर्गपर आक्रमण करके अपने अधिकारमें कर लेना, इन्द्रका पितामह ब्रह्मा और भगवान् शंकरके साथ वैकुण्ठधाम जाना
  5. [अध्याय 5] भगवान् विष्णुकी प्रेरणासे देवताओंका भगवतीकी स्तुति करना और प्रसन्न होकर भगवतीका वरदान देना
  6. [अध्याय 6] भगवान् विष्णुका इन्द्रको वृत्रासुरसे सन्धिका परामर्श देना, ऋषियोंकी मध्यस्थतासे इन्द्र और वृत्रासुरमें सन्धि, इन्द्रद्वारा छलपूर्वक वृत्रासुरका वध
  7. [अध्याय 7] त्वष्टाका वृत्रासुरकी पारलौकिक क्रिया करके इन्द्रको शाप देना, इन्द्रको ब्रह्महत्या लगना, नहुषका स्वर्गाधिपति बनना और इन्द्राणीपर आसक्त होना
  8. [अध्याय 8] इन्द्राणीको बृहस्पतिकी शरणमें जानकर नहुषका क्रुद्ध होना, देवताओंका नहुषको समझाना, बृहस्पतिके परामर्शसे इन्द्राणीका नहुषसे समय मांगना, देवताओंका भगवान् विष्णुके पास जाना और विष्णुका उन्हें देवीको प्रसन्न करनेके लिये अश्वमेधयज्ञ करने को कहना, बृहस्पतिका शचीको भगवतीकी आराधना करनेको कहना, शचीकी आराधनासे प्रसन्न होकर देवीका प्रकट होना और शचीको इन्द्रका दर्शन होना
  9. [अध्याय 9] शचीका इन्द्रसे अपना दुःख कहना, इन्द्रका शचीको सलाह देना कि वह नहुषसे ऋषियोंद्वारा वहन की जा रही पालकीमें आनेको कहे, नहुषका ऋषियोंद्वारा वहन की जा रही पालकीमें सवार होना और शापित होकर सर्प होना तथा इन्द्रका पुनः स्वर्गाधिपति बनना
  10. [अध्याय 10] कर्मकी गहन गतिका वर्णन तथा इस सम्बन्धमें भगवान् श्रीकृष्ण और अर्जुनका उदाहरण
  11. [अध्याय 11] युगधर्म एवं तत्सम्बन्धी व्यवस्थाका वर्णन
  12. [अध्याय 12] पवित्र तीर्थोका वर्णन, चित्तशुद्धिकी प्रधानता तथा इस सम्बन्धमें विश्वामित्र और वसिष्ठके परस्पर वैरकी कथा, राजा हरिश्चन्द्रका वरुणदेवके शापसे जलोदरग्रस्त होना
  13. [अध्याय 13] राजा हरिश्चन्द्रका शुनःशेपको यज्ञीय पशु बनाकर यज्ञ करना, विश्वामित्रसे प्राप्त वरुणमन्त्र जपसे शुनःशेपका मुक्त होना, परस्पर शापसे विश्वामित्र और वसिष्ठका बक तथा आडी होना
  14. [अध्याय 14] राजा निमि और वसिष्ठका एक-दूसरेको शाप देना, वसिष्ठका मित्रावरुणके पुत्रके रूपमें जन्म लेना
  15. [अध्याय 15] भगवतीकी कृपासे निमिको मनुष्योंके नेत्र पलकोंमें वासस्थान मिलना तथा संसारी प्राणियोंकी त्रिगुणात्मकताका वर्णन
  16. [अध्याय 16] हैहयवंशी क्षत्रियोंद्वारा भृगुवंशी ब्राह्मणोंका संहार
  17. [अध्याय 17] भगवतीकी कृपासे भार्गव ब्राह्मणीकी जंघासे तेजस्वी बालककी उत्पत्ति, हैहयवंशी क्षत्रियोंकी उत्पत्तिकी कथा
  18. [अध्याय 18] भगवती लक्ष्मीद्वारा घोड़ीका रूप धारणकर तपस्या करना
  19. [अध्याय 19] भगवती लक्ष्मीको अश्वरूपधारी भगवान् विष्णुके दर्शन और उनका वैकुण्ठगमन
  20. [अध्याय 20] राजा हरिवर्माको भगवान् विष्णुद्वारा अपना हैहयसंज्ञक पुत्र देना, राजाद्वारा उसका 'एकवीर' नाम रखना
  21. [अध्याय 21] आखेटके लिये वनमें गये राजासे एकावलीकी सखी यशोवतीकी भेंट, एकावलीके जन्मकी कथा
  22. [अध्याय 22] यशोवतीका एकवीरसे कालकेतुद्वारा एकावलीके अपहृत होनेकी बात बताना
  23. [अध्याय 23] भगवतीके सिद्धिप्रदायक मन्यसे दीक्षित एकवीरद्वारा कालकेतुका वध, एकवीर और एकावलीका विवाह तथा हैहयवंशकी परम्परा
  24. [अध्याय 24] धृतराष्ट्रके जन्मकी कथा
  25. [अध्याय 25] पाण्डु और विदुरके जन्मकी कथा, पाण्डवोंका जन्म, पाण्डुकी मृत्यु, द्रौपदीस्वयंवर, राजसूययज्ञ, कपटद्यूत तथा वनवास और व्यासजीके मोहका वर्णन
  26. [अध्याय 26] देवर्षि नारद और पर्वतमुनिका एक-दूसरेको शाप देना, राजकुमारी दमयन्तीका नारदसे विवाह करनेका निश्चय
  27. [अध्याय 27] वानरमुख नारदसे दमयन्तीका विवाह, नारद तथा पर्वतका परस्पर शापमोचन
  28. [अध्याय 28] भगवान् विष्णुका नारदजीसे मायाकी अजेयताका वर्णन करना, मुनि नारदको मायावश स्त्रीरूपकी प्राप्ति तथा राजा तालध्वजका उनसे प्रणय निवेदन करना
  29. [अध्याय 29] राजा तालध्वजसे स्त्रीरूपधारी नारदजीका विवाह, अनेक पुत्र-पौत्रोंकी उत्पत्ति और युद्धमें उन सबकी मृत्यु, नारदजीका शोक और भगवान् विष्णुकी कृपासे पुनः स्वरूपबोध
  30. [अध्याय 30] राजा तालध्वजका विलाप और ब्राह्मणवेशधारी भगवान् विष्णुके प्रबोधनसे उन्हें वैराग्य होना, भगवान् विष्णुका नारदसे मायाके प्रभावका वर्णन करना
  31. [अध्याय 31] व्यासजीका राजा जनमेजयसे भगवतीकी महिमाका वर्णन करना
  1. [अध्याय 1] पितामह ब्रह्माकी मानसी सृष्टिका वर्णन, नारदजीका दक्षके पुत्रोंको सन्तानोत्पत्तिसे विरत करना और दक्षका उन्हें शाप देना, दक्षकन्याओंसे देवताओं और दानवोंकी उत्पत्ति
  2. [अध्याय 2] सूर्यवंशके वर्णनके प्रसंगमें सुकन्याकी कथा
  3. [अध्याय 3] सुकन्याका च्यवनमुनिके साथ विवाह
  4. [अध्याय 4] सुकन्याकी पतिसेवा तथा वनमें अश्विनीकुमारोंसे भेंटका वर्णन
  5. [अध्याय 5] अश्विनीकुमारोंका च्यवनमुनिको नेत्र तथा नवयौवनसे सम्पन्न बनाना
  6. [अध्याय 6] राजा शर्यातिके यज्ञमें च्यवनमुनिका अश्विनीकुमारोंको सोमरस देना
  7. [अध्याय 7] क्रुद्ध इन्द्रका विरोध करना; परंतु च्यवनके प्रभावको देखकर शान्त हो जाना, शर्यातिके बादके सूर्यवंशी राजाओंका विवरण
  8. [अध्याय 8] राजा रेवतकी कथा
  9. [अध्याय 9] सूर्यवंशी राजाओंके वर्णनके क्रममें राजा ककुत्स्थ, युवनाश्व और मान्धाताकी कथा
  10. [अध्याय 10] सूर्यवंशी राजा अरुणद्वारा राजकुमार सत्यव्रतका त्याग, सत्यव्रतका वनमें भगवती जगदम्बाके मन्त्र जपमें रत होना
  11. [अध्याय 11] भगवती जगदम्बाकी कृपासे सत्यव्रतका राज्याभिषेक और राजा अरुणद्वारा उन्हें नीतिशास्त्रकी शिक्षा देना
  12. [अध्याय 12] राजा सत्यव्रतको महर्षि वसिष्ठका शाप तथा युवराज हरिश्चन्द्रका राजा बनना
  13. [अध्याय 13] राजर्षि विश्वामित्रका अपने आश्रममें आना और सत्यव्रतद्वारा किये गये उपकारको जानना
  14. [अध्याय 14] विश्वामित्रका सत्यव्रत (त्रिशंकु ) - को सशरीर स्वर्ग भेजना, वरुणदेवकी आराधनासे राजा हरिश्चन्द्रको पुत्रकी प्राप्ति
  15. [अध्याय 15] प्रतिज्ञा पूर्ण न करनेसे वरुणका क्रुद्ध होना और राजा हरिश्चन्द्रको जलोदरग्रस्त होनेका शाप देना
  16. [अध्याय 16] राजा हरिश्चन्द्रका शुनःशेषको स्तम्भमें बाँधकर यज्ञ प्रारम्भ करना
  17. [अध्याय 17] विश्वामित्रका शुनःशेपको वरुणमन्त्र देना और उसके जपसे वरुणका प्रकट होकर उसे बन्धनमुक्त तथा राजाको रोगमुक्त करना, राजा हरिश्चन्द्रकी प्रशंसासे विश्वामित्रका वसिष्ठपर क्रोधित होना
  18. [अध्याय 18] विश्वामित्रका मायाशूकरके द्वारा हरिश्चन्द्रके उद्यानको नष्ट कराना
  19. [अध्याय 19] विश्वामित्रकी कपटपूर्ण बातोंमें आकर राजा हरिश्चन्द्रका राज्यदान करना
  20. [अध्याय 20] हरिश्चन्द्रका दक्षिणा देनेहेतु स्वयं, रानी और पुत्रको बेचनेके लिये काशी जाना
  21. [अध्याय 21] विश्वामित्रका राजा हरिश्चन्द्रसे दक्षिणा माँगना और रानीका अपनेको विक्रयहेतु प्रस्तुत करना
  22. [अध्याय 22] राजा हरिश्चन्द्रका रानी और राजकुमारका विक्रय करना और विश्वामित्रको ग्यारह करोड़ स्वर्णमुद्राएँ देना तथा विश्वामित्रका और अधिक धनके लिये आग्रह करना
  23. [अध्याय 23] विश्वामित्रका राजा हरिश्चन्द्रको चाण्डालके हाथ बेचकर ऋणमुक्त करना
  24. [अध्याय 24] चाण्डालका राजा हरिश्चन्द्रको श्मशानघाटमें नियुक्त करना
  25. [अध्याय 25] सर्पदंशसे रोहितकी मृत्यु, रानीका करुण विलाप, पहरेदारोंका रानीको राक्षसी समझकर चाण्डालको सौंपना और चाण्डालका हरिश्चन्द्रको उसके वधकी आज्ञा देना
  26. [अध्याय 26] रानीका चाण्डालवेशधारी राजा हरिश्चन्द्रसे अनुमति लेकर पुत्रके शवको लाना और करुण विलाप करना, राजाका पत्नी और पुत्रको पहचानकर मूर्च्छित होना और विलाप करना
  27. [अध्याय 27] चिता बनाकर राजाका रोहितको उसपर लिटाना और राजा-रानीका भगवतीका ध्यानकर स्वयं भी पुत्रकी चितामें जल जानेको उद्यत होना, ब्रह्माजीसहित समस्त देवताओंका राजाके पास आना, इन्द्रका अमृत वर्षा करके रोहितको जीवित करना और राजा-रानीसे स्वर्ग चलनेके लिये आग्रह करना, राजाका सम्पूर्ण अयोध्यावासियोंके साथ स्वर्ग जानेका निश्चय
  28. [अध्याय 28] दुर्गम दैत्यकी तपस्या; वर-प्राप्ति तथा अत्याचार, देवताओंका भगवतीकी प्रार्थना करना, भगवतीका शताक्षी और शाकम्भरीरूपमें प्राकट्य, दुर्गमका वध और देवगणोंद्वारा भगवतीकी स्तुति
  29. [अध्याय 29] व्यासजीका राजा जनमेजयसे भगवतीकी महिमाका वर्णन करना और उनसे उन्हींकी आराधना करनेको कहना, भगवान् शंकर और विष्णुके अभिमानको देखकर गौरी तथा लक्ष्मीका अन्तर्धान होना और शिव तथा विष्णुका शक्तिहीन होना
  30. [अध्याय 30] शक्तिपीठोंकी उत्पत्तिकी कथा तथा उनके नाम एवं उनका माहात्म्य
  31. [अध्याय 31] तारकासुरसे पीड़ित देवताओंद्वारा भगवतीकी स्तुति तथा भगवतीका हिमालयकी पुत्रीके रूपमें प्रकट होनेका आश्वासन देना
  32. [अध्याय 32] देवीगीताके प्रसंगमें भगवतीका हिमालयसे माया तथा अपने स्वरूपका वर्णन
  33. [अध्याय 33] भगवतीका अपनी सर्वव्यापकता बताते हुए विराट्रूप प्रकट करना, भयभीत देवताओंकी स्तुतिसे प्रसन्न भगवतीका पुनः सौम्यरूप धारण करना
  34. [अध्याय 34] भगवतीका हिमालय तथा देवताओंसे परमपदकी प्राप्तिका उपाय बताना
  35. [अध्याय 35] भगवतीद्वारा यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा तथा कुण्डलीजागरणकी विधि बताना
  36. [अध्याय 36] भगवतीके द्वारा हिमालयको ज्ञानोपदेश - ब्रह्मस्वरूपका वर्णन
  37. [अध्याय 37] भगवतीद्वारा अपनी श्रेष्ठ भक्तिका वर्णन
  38. [अध्याय 38] भगवतीके द्वारा देवीतीर्थों, व्रतों तथा उत्सवोंका वर्णन
  39. [अध्याय 39] देवी- पूजनके विविध प्रकारोंका वर्णन
  40. [अध्याय 40] देवीकी पूजा विधि तथा फलश्रुति
  1. [अध्याय 1] प्रजाकी सृष्टिके लिये ब्रह्माजीकी प्रेरणासे मनुका देवीकी आराधना करना तथा देवीका उन्हें वरदान देना
  2. [अध्याय 2] ब्रह्माजीकी नासिकासे वराहके रूपमें भगवान् श्रीहरिका प्रकट होना और पृथ्वीका उद्धार करना, ब्रह्माजीका उनकी स्तुति करना
  3. [अध्याय 3] महाराज मनुकी वंश-परम्पराका वर्णन
  4. [अध्याय 4] महाराज प्रियव्रतका आख्यान तथा समुद्र और द्वीपोंकी उत्पत्तिका प्रसंग
  5. [अध्याय 5] भूमण्डलपर स्थित विभिन्न द्वीपों और वर्षोंका संक्षिप्त परिचय
  6. [अध्याय 6] भूमण्डलके विभिन्न पर्वतोंसे निकलनेवाली विभिन्न नदियोंका वर्णन
  7. [अध्याय 7] सुमेरुपर्वतका वर्णन तथा गंगावतरणका आख्यान
  8. [अध्याय 8] इलावृतवर्षमें भगवान् शंकरद्वारा भगवान् श्रीहरिके संकर्षणरूपकी आराधना तथा भद्राश्ववर्षमें भद्रश्रवाद्वारा हयग्रीवरूपकी उपासना
  9. [अध्याय 9] हरिवर्षमें प्रह्लादके द्वारा नृसिंहरूपकी आराधना, केतुमालवर्षमें श्रीलक्ष्मीजीके द्वारा कामदेवरूपकी तथा रम्यकवर्षमें मनुजीके द्वारा मत्स्यरूपकी स्तुति-उपासना
  10. [अध्याय 10] हिरण्मयवर्षमें अर्यमाके द्वारा कच्छपरूपकी आराधना, उत्तरकुरुवर्षमें पृथ्वीद्वारा वाराहरूपकी एवं किम्पुरुषवर्षमें श्रीहनुमान्जीके द्वारा श्रीरामचन्द्ररूपकी स्तुति-उपासना
  11. [अध्याय 11] जम्बूद्वीपस्थित भारतवर्षमें श्रीनारदजीके द्वारा नारायणरूपकी स्तुति उपासना तथा भारतवर्षकी महिमाका कथन
  12. [अध्याय 12] प्लक्ष, शाल्मलि और कुशद्वीपका वर्णन
  13. [अध्याय 13] क्रौंच, शाक और पुष्करद्वीपका वर्णन
  14. [अध्याय 14] लोकालोकपर्वतका वर्णन
  15. [अध्याय 15] सूर्यकी गतिका वर्णन
  16. [अध्याय 16] चन्द्रमा तथा ग्रहों की गतिका वर्णन
  17. [अध्याय 17] श्रीनारायण बोले- इस सप्तर्षिमण्डलसे
  18. [अध्याय 18] राहुमण्डलका वर्णन
  19. [अध्याय 19] अतल, वितल तथा सुतललोकका वर्णन
  20. [अध्याय 20] तलातल, महातल, रसातल और पाताल तथा भगवान् अनन्तका वर्णन
  21. [अध्याय 21] देवर्षि नारदद्वारा भगवान् अनन्तकी महिमाका गान तथा नरकोंकी नामावली
  22. [अध्याय 22] विभिन्न नरकोंका वर्णन
  23. [अध्याय 23] नरक प्रदान करनेवाले विभिन्न पापोंका वर्णन
  24. [अध्याय 24] देवीकी उपासनाके विविध प्रसंगोंका वर्णन
  1. [अध्याय 1] प्रकृतितत्त्वविमर्श प्रकृतिके अंश, कला एवं कलांशसे उत्पन्न देवियोंका वर्णन
  2. [अध्याय 2] परब्रह्म श्रीकृष्ण और श्रीराधासे प्रकट चिन्मय देवताओं एवं देवियोंका वर्णन
  3. [अध्याय 3] परिपूर्णतम श्रीकृष्ण और चिन्मयी राधासे प्रकट विराट्रूप बालकका वर्णन
  4. [अध्याय 4] सरस्वतीकी पूजाका विधान तथा कवच
  5. [अध्याय 5] याज्ञवल्क्यद्वारा भगवती सरस्वतीकी स्तुति
  6. [अध्याय 6] लक्ष्मी, सरस्वती तथा गंगाका परस्पर शापवश भारतवर्षमें पधारना
  7. [अध्याय 7] भगवान् नारायणका गंगा, लक्ष्मी और सरस्वतीसे उनके शापकी अवधि बताना तथा अपने भक्तोंके महत्त्वका वर्णन करना
  8. [अध्याय 8] कलियुगका वर्णन, परब्रह्म परमात्मा एवं शक्तिस्वरूपा मूलप्रकृतिकी कृपासे त्रिदेवों तथा देवियोंके प्रभावका वर्णन और गोलोकमें राधा-कृष्णका दर्शन
  9. [अध्याय 9] पृथ्वीकी उत्पत्तिका प्रसंग, ध्यान और पूजनका प्रकार तथा उनकी स्तुति
  10. [अध्याय 10] पृथ्वीके प्रति शास्त्र - विपरीत व्यवहार करनेपर नरकोंकी प्राप्तिका वर्णन
  11. [अध्याय 11] गंगाकी उत्पत्ति एवं उनका माहात्म्य
  12. [अध्याय 12] गंगाके ध्यान एवं स्तवनका वर्णन, गोलोकमें श्रीराधा-कृष्णके अंशसे गंगाके प्रादुर्भावकी कथा
  13. [अध्याय 13] श्रीराधाजीके रोषसे भयभीत गंगाका श्रीकृष्णके चरणकमलोंकी शरण लेना, श्रीकृष्णके प्रति राधाका उपालम्भ, ब्रह्माजीकी स्तुतिसे राधाका प्रसन्न होना तथा गंगाका प्रकट होना
  14. [अध्याय 14] गंगाके विष्णुपत्नी होनेका प्रसंग
  15. [अध्याय 15] तुलसीके कथा-प्रसंगमें राजा वृषध्वजका चरित्र- वर्णन
  16. [अध्याय 16] वेदवतीकी कथा, इसी प्रसंगमें भगवान् श्रीरामके चरित्रके एक अंशका कथन, भगवती सीता तथा द्रौपदी के पूर्वजन्मका वृत्तान्त
  17. [अध्याय 17] भगवती तुलसीके प्रादुर्भावका प्रसंग
  18. [अध्याय 18] तुलसीको स्वप्न में शंखचूड़का दर्शन, ब्रह्माजीका शंखचूड़ तथा तुलसीको विवाहके लिये आदेश देना
  19. [अध्याय 19] तुलसीके साथ शंखचूड़का गान्धर्वविवाह, शंखचूड़से पराजित और निर्वासित देवताओंका ब्रह्मा तथा शंकरजीके साथ वैकुण्ठधाम जाना, श्रीहरिका शंखचूड़के पूर्वजन्मका वृत्तान्त बताना
  20. [अध्याय 20] पुष्पदन्तका शंखचूड़के पास जाकर भगवान् शंकरका सन्देश सुनाना, युद्धकी बात सुनकर तुलसीका सन्तप्त होना और शंखचूड़का उसे ज्ञानोपदेश देना
  21. [अध्याय 21] शंखचूड़ और भगवान् शंकरका विशद वार्तालाप
  22. [अध्याय 22] कुमार कार्तिकेय और भगवती भद्रकालीसे शंखचूड़का भयंकर बुद्ध और आकाशवाणीका पाशुपतास्त्रसे शंखचूड़की अवध्यताका कारण बताना
  23. [अध्याय 23] भगवान् शंकर और शंखचूड़का युद्ध, भगवान् श्रीहरिका वृद्ध ब्राह्मणके वेशमें शंखचूड़से कवच माँग लेना तथा शंखचूड़का रूप धारणकर तुलसीसे हास-विलास करना, शंखचूड़का भस्म होना और सुदामागोपके रूपमें गोलोक पहुँचना
  24. [अध्याय 24] शंखचूड़रूपधारी श्रीहरिका तुलसीके भवनमें जाना, तुलसीका श्रीहरिको पाषाण होनेका शाप देना, तुलसी-महिमा, शालग्रामके विभिन्न लक्षण एवं माहात्म्यका वर्णन
  25. [अध्याय 25] तुलसी पूजन, ध्यान, नामाष्टक तथा तुलसीस्तवनका वर्णन
  26. [अध्याय 26] सावित्रीदेवीकी पूजा-स्तुतिका विधान
  27. [अध्याय 27] भगवती सावित्रीकी उपासनासे राजा अश्वपतिको सावित्री नामक कन्याकी प्राप्ति, सत्यवान् के साथ सावित्रीका विवाह, सत्यवान्की मृत्यु, सावित्री और यमराजका संवाद
  28. [अध्याय 28] सावित्री यमराज-संवाद
  29. [अध्याय 29] सावित्री धर्मराजके प्रश्नोत्तर और धर्मराजद्वारा सावित्रीको वरदान
  30. [अध्याय 30] दिव्य लोकोंकी प्राप्ति करानेवाले पुण्यकर्मोंका वर्णन
  31. [अध्याय 31] सावित्रीका यमाष्टकद्वारा धर्मराजका स्तवन
  32. [अध्याय 32] धर्मराजका सावित्रीको अशुभ कर्मोंके फल बताना
  33. [अध्याय 33] विभिन्न नरककुण्डों में जानेवाले पापियों तथा उनके पापोंका वर्णन
  34. [अध्याय 34] विभिन्न पापकर्म तथा उनके कारण प्राप्त होनेवाले नरकका वर्णन
  35. [अध्याय 35] विभिन्न पापकर्मोंसे प्राप्त होनेवाली विभिन्न योनियोंका वर्णन
  36. [अध्याय 36] धर्मराजद्वारा सावित्रीसे देवोपासनासे प्राप्त होनेवाले पुण्यफलोंको कहना
  37. [अध्याय 37] विभिन्न नरककुण्ड तथा वहाँ दी जानेवाली यातनाका वर्णन
  38. [अध्याय 38] धर्मराजका सावित्री से भगवतीकी महिमाका वर्णन करना और उसके पतिको जीवनदान देना
  39. [अध्याय 39] भगवती लक्ष्मीका प्राकट्य, समस्त देवताओंद्वारा उनका पूजन
  40. [अध्याय 40] दुर्वासाके शापसे इन्द्रका श्रीहीन हो जाना
  41. [अध्याय 41] ब्रह्माजीका इन्द्र तथा देवताओंको साथ लेकर श्रीहरिके पास जाना, श्रीहरिका उनसे लक्ष्मीके रुष्ट होनेके कारणोंको बताना, समुद्रमन्थन तथा उससे लक्ष्मीजीका प्रादुर्भाव
  42. [अध्याय 42] इन्द्रद्वारा भगवती लक्ष्मीका षोडशोपचार पूजन एवं स्तवन
  43. [अध्याय 43] भगवती स्वाहाका उपाख्यान
  44. [अध्याय 44] भगवती स्वधाका उपाख्यान
  45. [अध्याय 45] भगवती दक्षिणाका उपाख्यान
  46. [अध्याय 46] भगवती षष्ठीकी महिमाके प्रसंगमें राजा प्रियव्रतकी कथा
  47. [अध्याय 47] भगवती मंगलचण्डी तथा भगवती मनसाका आख्यान
  48. [अध्याय 48] भगवती मनसाका पूजन- विधान, मनसा-पुत्र आस्तीकका जनमेजयके सर्पसत्रमें नागोंकी रक्षा करना, इन्द्रद्वारा मनसादेवीका स्तवन करना
  49. [अध्याय 49] आदि गौ सुरभिदेवीका आख्यान
  50. [अध्याय 50] भगवती श्रीराधा तथा श्रीदुर्गाके मन्त्र, ध्यान, पूजा-विधान तथा स्तवनका वर्णन
  1. [अध्याय 1] स्वायम्भुव मनुकी उत्पत्ति, उनके द्वारा भगवतीकी आराधना
  2. [अध्याय 2] देवीद्वारा मनुको वरदान, नारदजीका विन्ध्यपर्वतसे सुमेरुपर्वतकी श्रेष्ठता कहना
  3. [अध्याय 3] विन्ध्यपर्वतका आकाशतक बढ़कर सूर्यके मार्गको अवरुद्ध कर लेना
  4. [अध्याय 4] देवताओंका भगवान् शंकरसे विव्यपर्वतकी वृद्धि रोकनेकी प्रार्थना करना और शिवजीका उन्हें भगवान् विष्णुके पास भेजना
  5. [अध्याय 5] देवताओंका वैकुण्ठलोकमें जाकर भगवान् विष्णुकी स्तुति करना
  6. [अध्याय 6] भगवान् विष्णुका देवताओंको काशीमें अगस्त्यजीके पास भेजना, देवताओंकी अगस्त्यजीसे प्रार्थना
  7. [अध्याय 7] अगस्त्यजीकी कृपासे सूर्यका मार्ग खुलना
  8. [अध्याय 8] चाक्षुष मनुकी कथा, उनके द्वारा देवीकी आराधनाका वर्णन
  9. [अध्याय 9] वैवस्वत मनुका भगवतीकी कृपासे मन्वन्तराधिप होना, सावर्णि मनुके पूर्वजन्मकी कथा
  10. [अध्याय 10] सावर्णि मनुके पूर्वजन्मकी कथाके प्रसंगमें मधु-कैटभकी उत्पत्ति और भगवान् विष्णुद्वारा उनके वधका वर्णन
  11. [अध्याय 11] समस्त देवताओंके तेजसे भगवती महिषमर्दिनीका प्राकट्य और उनके द्वारा महिषासुरका वध, शुम्भ निशुम्भका अत्याचार और देवीद्वारा चण्ड-मुण्डसहित शुम्भ निशुम्भका वध
  12. [अध्याय 12] मनुपुत्रोंकी तपस्या, भगवतीका उन्हें मन्वन्तराधिपति होनेका वरदान देना, दैत्यराज अरुणकी तपस्या और ब्रह्माजीका वरदान, देवताओंद्वारा भगवतीकी स्तुति और भगवतीका भ्रामरीके रूपमें अवतार लेकर अरुणका वध करना
  13. [अध्याय 13] स्वारोचिष, उत्तम, तामस और रैवत नामक मनुओंका वर्णन
  1. [अध्याय 1] भगवान् नारायणका नारदजीसे देवीको प्रसन्न करनेवाले सदाचारका वर्णन
  2. [अध्याय 2] शौचाचारका वर्णन
  3. [अध्याय 3] सदाचार-वर्णन और रुद्राक्ष धारणका माहात्म्य
  4. [अध्याय 4] रुद्राक्षकी उत्पत्ति तथा उसके विभिन्न स्वरूपोंका वर्णन
  5. [अध्याय 5] जपमालाका स्वरूप तथा रुद्राक्ष धारणका विधान
  6. [अध्याय 6] रुद्राक्षधारणकी महिमाके सन्दर्भमें गुणनिधिका उपाख्यान
  7. [अध्याय 7] विभिन्न प्रकारके रुद्राक्ष और उनके अधिदेवता
  8. [अध्याय 8] भूतशुद्धि
  9. [अध्याय 9] भस्म - धारण ( शिरोव्रत )
  10. [अध्याय 10] भस्म - धारणकी विधि
  11. [अध्याय 11] भस्मके प्रकार
  12. [अध्याय 12] भस्म न धारण करनेपर दोष
  13. [अध्याय 13] भस्म तथा त्रिपुण्ड्र धारणका माहात्म्य
  14. [अध्याय 14] भस्मस्नानका महत्त्व
  15. [अध्याय 15] भस्म-माहात्यके सम्बन्धर्मे दुर्वासामुनि और कुम्भीपाकस्थ जीवोंका आख्यान, ऊर्ध्वपुण्ड्रका माहात्म्य
  16. [अध्याय 16] सन्ध्योपासना तथा उसका माहात्म्य
  17. [अध्याय 17] गायत्री-महिमा
  18. [अध्याय 18] भगवतीकी पूजा-विधिका वर्णन, अन्नपूर्णादेवीके माहात्म्यमें राजा बृहद्रथका आख्यान
  19. [अध्याय 19] मध्याह्नसन्ध्या तथा गायत्रीजपका फल
  20. [अध्याय 20] तर्पण तथा सायंसन्ध्याका वर्णन
  21. [अध्याय 21] गायत्रीपुरश्चरण और उसका फल
  22. [अध्याय 22] बलिवैश्वदेव और प्राणाग्निहोत्रकी विधि
  23. [अध्याय 23] कृच्छ्रचान्द्रायण, प्राजापत्य आदि व्रतोंका वर्णन
  24. [अध्याय 24] कामना सिद्धि और उपद्रव शान्तिके लिये गायत्रीके विविध प्रयोग
  1. [अध्याय 1] गायत्रीजपका माहात्म्य तथा गायत्रीके चौबीस वर्णोंके ऋषि, छन्द आदिका वर्णन
  2. [अध्याय 2] गायत्रीके चौबीस वर्णोंकी शक्तियों, रंगों एवं मुद्राओंका वर्णन
  3. [अध्याय 3] श्रीगायत्रीका ध्यान और गायत्रीकवचका वर्णन
  4. [अध्याय 4] गायत्रीहृदय तथा उसका अंगन्यास
  5. [अध्याय 5] गायत्रीस्तोत्र तथा उसके पाठका फल
  6. [अध्याय 6] गायत्रीसहस्त्रनामस्तोत्र तथा उसके पाठका फल
  7. [अध्याय 7] दीक्षाविधि
  8. [अध्याय 8] देवताओंका विजयगर्व तथा भगवती उमाद्वारा उसका भंजन, भगवती उमाका इन्द्रको दर्शन देकर ज्ञानोपदेश देना
  9. [अध्याय 9] भगवती गायत्रीकी कृपासे गौतमके द्वारा अनेक ब्राह्मणपरिवारोंकी रक्षा, ब्राह्मणोंकी कृतघ्नता और गौतमके द्वारा ब्राह्मणोंको घोर शाप प्रदान
  10. [अध्याय 10] मणिद्वीपका वर्णन
  11. [अध्याय 11] मणिद्वीपके रत्नमय नौ प्राकारोंका वर्णन
  12. [अध्याय 12] भगवती जगदम्बाके मण्डपका वर्णन तथा मणिद्वीपकी महिमा
  13. [अध्याय 13] राजाजनमेजयद्वाराअम्बायज्ञऔरश्रीमद्देवीभागवतमहापुराणका माहात्म्य
  14. [अध्याय 14] श्रीमद्देवीभागवतमहापुराणकी महिमा
  15. [अध्याय 15] सप्तश्लोकी दुर्गा
  16. [अध्याय 16] देव्यपराधक्षमापनस्तोत्रम्
  17. [अध्याय 17] श्रीदुर्गाजीकी आरती