नारदजी बोले - सभी धर्मोंको जाननेवाले तथा सभी शास्त्रोंमें निष्णात हे भगवन्! मैंने आपके मुखसे श्रुतियों, स्मृतियों तथा पुराणोंसे सम्बद्ध सभी प्रकारके पापोंका नाश करनेवाला वह रहस्य सुन लिया,जिससे विद्याकी प्राप्ति होती है। हे देव! किसके द्वारा ब्रह्मज्ञान प्राप्त होता है और मोक्षका साधन क्या है ? हे कमलनयन ! किस साधनसे ब्राह्मणोंको उत्तम गति मिलती है, किससे मृत्युका नाश होता है? और किसके आश्रयसे मनुष्यको इहलोक तथा परलोकमें उत्तम फल प्राप्त होता है? इस सम्बन्धमें प्रारम्भसे लेकर सम्पूर्ण बातें विस्तारपूर्वक बतानेकी कृपा कीजिये ॥ 1-33 ॥
श्रीनारायण बोले- हे महाप्राज्ञ! हे अनघ ! आपको साधुवाद है, जो आपने इतनी उत्तम बात पूछी है। सुनिये, मैं प्रयत्नपूर्वक गायत्रीके दिव्य तथा मंगलकारी एक हजार आठ नामोंवाले सर्वपापहारीस्तोत्रका वर्णन करता हूँ ॥ 4-5 ॥
पूर्वकालमें सृष्टिके आदिमें भगवान्ने जिसे कहा था, वही मैं आपको बता रहा हूँ। इस एक हजार आठ नामवाले स्तोत्रके ऋषि ब्रह्माजी कहे गये हैं। अनुष्टुप् इसका छन्द है तथा भगवती गायत्री इसकी देवता कही गयी हैं। हल् (व्यंजन) वर्ण इसके बीज और स्वर इसकी शक्तियाँ कही गयी हैं। मातृकामन्त्रके छः अक्षर ही इसके छः अंगन्यास और करन्यास कहे जाते हैं ।। 6-73 ॥
अब साधकोंके कल्याणके लिये देवीका ध्यान बताता हूँ। रक्त श्वेत-पीत-नील एवं धवलवर्ण (-वाले मुखों) से सम्पन्न, तीन नेत्रोंसे देदीप्यमान विग्रहवाली, रक्तवर्णवाली, नवीन रक्तपुष्पोंकी माला धारण करनेवाली, अनेक मणिसमूहोंसे युक्त, कमलके आसनपर विराजमान, अपने दो हाथोंमें कमल और कुण्डिका एवं अन्य दो हाथोंमें वर तथा अक्षमाला धारण करनेवाली, कमलके समान नेत्रोंवाली, हंसपर विराजमान रहनेवाली तथा कुमारी अवस्थासे सम्पन्न भगवती गायत्रीकी मैं उपासना करता हूँ ॥ 8-9 ॥ [देवीके सहस्रनाम इस प्रकार हैं- ]
1. अचिन्त्यलक्षणा (बुद्धिकी पहुँचसे परे लक्षणोंवाली) 2. अव्यक्ता, 3. अर्थमातृमहेश्वरी (अर्थ आदि पार्थिव पदार्थोंके परिच्छेदक ब्रह्मा आदि देवताओंपर नियन्त्रण करनेवाली) 4. अमृता (अमृतस्वरूपिणी), 5. अर्णवमध्यस्था (समुद्रके भीतर विराजमान रहनेवाली),6. अजिता, 7. अपराजिता 8. अणिमादिगुणा धारा (आणिमा आदि सिद्धियोंकी आश्रयभूता 9. अर्कमण्डलसंस्थिता (सूर्यमण्डलमें विराजमान), 10. अजरा (सदा तरुण अवस्थामें रहनेवाली), 11. अजा (जन्मरहित), 12. अपरा (जिनसे अतिरिक्त कोई दूसरा नहीं है), 13. अधर्मा ( जात्यादिनिमित्तक लोकधमोंसे रहित), 14. अक्षसूत्रधरा (अक्षसूत्र धारण करनेवाली), 15. अधरा (अपने ही आधारपर स्थित) ॥। 10-11 ॥
16. अकारादिक्षकारान्ता (जिनके आदिमें अकार तथा अन्तमें क्षकार है, वे वर्णमातृकास्वरूपिणी देवी), 17. अरिषड्वर्गभेदिनी (काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद एवं मात्सर्य- इन छः प्रकारके शत्रुओंका भेदन करनेवाली), 18. अञ्जनाद्रिप्रतीकाशा (अंजनगिरिके समान कृष्णवर्णकी प्रभासे सुशोभित), 19. अञ्जनाद्रिनिवासिनी (अंजनगिरिपर निवास करनेवाली ॥ 12 ॥
20. अदिति: (देवताओंकी माता), 21. अजपा (अजपाजपरूपिणी), 22. अविद्या 22. अविद्या (माया), 23. अरविन्दनिभेक्षणा (कमलसदृश नेत्रोंवाली), 24. अन्तर्बहिः स्थिता (सभीके भीतर तथा बाहर स्थित रहनेवाली), 25. अविद्याध्वंसिनी (अविद्याका नाश करनेवाली), 26 अन्तरात्मिका (सभीके अन्तःकरणमें विराजमान रहनेवाली ) ॥ 13 ॥
27. अजा (जन्मसे रहित प्रकृतिस्वरूपिणी), 28. अजमुखावासा (ब्रह्माके मुखमें निवास करनेवाली), 29. अरविन्दनिभानना (कमलके समान प्रफुल्लित मुखवाली), 30. अर्धमात्रा (प्रणवांगभूत अर्धमात्रास्वरूपा), 31. अर्थदानज्ञा (धर्म आदि चारों पुरुषार्थीका दान करनेमें कुशल), 32. अरिमण्डलमर्दिनी (शत्रु-समूहों का मर्दन करनेवाली) ll 14॥
33. असुरघ्नी (राक्षसोंका संहार करनेवाली), 34. अमावास्या (अमावस्यातिथिरूपा, 35 अलक्ष्मी व्यत्यजार्थिता (अलक्ष्मीका संहार करनेवाली अल्पना-मातंगीदेवीने 36. आदि लक्ष्मी:, 37. आदिशक्तिः (महामाया), 38. आकृतिः (आकारस्वरूपिणी), 39. आयतानना (विशाल मुखवाली) ॥ 15 ॥40. आदित्यपदवीचारा (आदित्यमार्गपर चलनेवाली सूर्यगतिरूपा), 41. आदित्यपरिसेविता (सूर्य आदि देवताओंसे सुसेवित), 42. आचार्या (सदाचारकी व्याख्या करनेवाली), 43. आवर्तना (भ्रमणशील जगत्की रचना करनेवाली), 44. आचारा (आचारस्वरूपिणी), 45. आदिमूर्तिनिवासिनी (आदिमूर्ति अर्थात् ब्रह्ममें निवास करनेवाली) ॥ 16 ॥
46. आग्नेयी (अग्निकी अधिष्ठात्री), 47. आमरी (देवताओंकी पुरी जिनका रूप माना जाता है), 48. आद्या (आदिस्वरूपिणी), 49. आराध्या (सभीके द्वारा आराधित), 50. आसनस्थिता (दिव्य आसनपर विराजमान रहनेवाली), 51. आधारनिलया (मूलाधारमें निवास करनेवाली कुण्डलिनीस्वरूपिणी), 52. आधारा ( जगत्को धारण करनेवाली), 53. आकाशान्त निवासिनी (आकाशतत्त्वके अन्तरूप अहंकारमें निवास करनेवाली) ॥ 17॥
54. आद्याक्षरसमायुक्ता (आदि अक्षर अर्थात् अकारसे युक्त), 55. आन्तराकाशरूपिणी (दहराकाश रूपिणी), 56. आदित्यमण्डलगता (सूर्यमण्डलमें विद्यमान), 57. आन्तरध्वान्तनाशिनी (अज्ञानरूप आन्तरिक अन्धकारका नाश करनेवाली ) ॥ 18 ॥
58. इन्दिरा (लक्ष्मी), 59. इष्टदा (मनोरथ पूर्ण करनेवाली), 60. इष्टा (साधकोंकी अभीष्ट देवतारूपिणी), 61. इन्दीवरनिभेक्षणा (सुन्दर नीलकमलके समान नेत्रोंवाली), 62. इरावती (इरा अर्थात् पृथ्वीसे युक्त), 63. इन्द्रपदा (अपनी कृपासे इन्द्रको पद दिलानेवाली), 64. इन्द्राणी (शचीरूपसे विराजमान ), 65. इन्दुरूपिणी (चन्द्रमाके समान सुन्दर रूपवाली ) ॥ 19 ॥
66. इक्षुकोदण्डसंयुक्ता (हाथमें इक्षुका धनुष धारण करनेवाली), 67. इषुसन्धानकारिणी (बाणोंका संधान करनेमें दक्ष), 68. इन्द्रनीलसमाकारा (इन्द्रनील मणिके समान प्रभावाली), 69. इडापिङ्गलरूपिणी (इडा और पिंगला आदि नाड़ीरूपिणी ) ॥ 20 ॥
70. इन्द्राक्षी (शताक्षी नामवाली देवी), 71. ईश्वरी देवी (अखिल ऐश्वर्योंसे युक्त भगवती), 72. ईहात्रयविवर्जिता (तीन प्रकारकी ईहा अर्थात्लोकैषणा, वित्तैषणा और पुत्रैषणासे रहित), 73. उमा, 74. उषा, 75. उडुनिभा (नक्षत्रके सदृश प्रभावाली), 76. उर्वारुकफलानना (ककड़ीके फलके समान सदा प्रफुल्लित मुखवाली ) ॥ 21 ॥
77. उडुप्रभा (जलके समान वर्णवाली), 78. उडुमती (रात्रिरूपिणी), 79. उडुपा (चन्द्रमा अथवा नौकारूपिणी), 80. उडुमध्यगा (नक्षत्रमण्डलके मध्य विराजमान), 81. ऊर्ध्वम् (ऊर्ध्वदेशरूपिणी), 82. ऊर्ध्वकेशी (ऊपरकी ओर उठे हुए केशोंवाली), 83. ऊर्ध्वाधोगतिभेदिनी (ऊर्ध्वगति अर्थात् स्वर्ग और अधोगति अर्थात् नरक दोनोंका भेदन करनेवाली ) ॥ 22 ॥
84. ऊर्ध्वबाहुप्रिया (भुजाओंको ऊपर उठाकर आराधना करनेवाले भक्तोंसे प्रेम करनेवाली), 85. ऊर्मिमालावाग्ग्रन्थदायिनी (तरंगमालाओंके समान श्रेष्ठ वाणीसे सम्पन्न ग्रन्थ-रचनाका सामर्थ्य प्रदान करनेवाली), 86. ऋतम् (सूनृत स्वरूपिणी), 87. ऋषिः (वेदरूपा), 88. ऋतुमती, 89. ऋषिदेव नमस्कृता (ऋषियों तथा देवताओंसे नमस्कृत होनेवाली ) ॥ 23 ॥
90. ऋग्वेदा (ऋग्वेदरूपा), 91. ऋणहर्त्री (देव ऋण, ऋषि ऋण और पितृ ऋणका नाश करनेवाली ), 92. ऋषिमण्डलचारिणी (ऋषियोंकी मण्डलीमें विचरण करनेवाली), 93. ऋद्धिदा (समृद्धि प्रदान करनेवाली), 94. ऋजुमार्गस्था (सदाचारके मार्गपर चलनेवाली), 95. ऋजुधर्मा (सहज धर्मवाली), 96. ऋतुप्रदा (अपनी कृपासे विभिन्न ऋतुएँ प्रदान करनेवाली) ॥ 24 ॥
97. ऋग्वेदनिलया (ऋग्वेदमें निवास करनेवाली), 98. ऋवी (सरल स्वभाववाली), 99. लुप्तधर्म प्रवर्तिनी (लुप्त धर्मोका पुनः प्रवर्तन करनेवाली), 100. लूतारिवरसम्भूता (लूता नामक रोगविशेषके महान् शत्रुरूपी मन्त्रोंको उत्पन्न करनेवाली), 101. लूतादिविषहारिणी ( मकड़ी आदिके विषका हरण करनेवाली) ॥ 25 ॥
102. एकाक्षरा (एक अक्षरसे युक्त), 103. एकमात्रा (एक मात्रामें विराजनेवाली), 104. एका (अद्वितीय), 105. एकनिष्ठा (सर्वदा एकनिष्ठभावमें रहनेवाली), 106. ऐन्द्री (इन्द्रकी शक्तिस्वरूपा), 107. ऐरावतारूढा (ऐरावतपर आरूढ़ रहनेवाली), 108. ऐहिकामुष्मिकप्रदा (इहलोक तथा परलोकका फल प्रदान करनेवाली ) ॥ 26 ॥
109. ओङ्कारा (प्रणवस्वरूपिणी), 110. ओषधी (सांसारिक रोगोंसे ग्रस्त प्राणियोंके लिये ओषधिरूपा), 1911. ओता (मणिमें सूत्रकी भाँति सम्पूर्ण प्राणियोंके अन्तःकरणमें विराजमान), 112. ओतप्रोत निवासिनी (ब्रह्मसे व्याप्त ब्रह्माण्डमें निवास करनेवाली), 113. और्वा (वाडवाग्निस्वरूपिणी), 114. औषधसम्पन्ना ( भवरोगके शमनहेतु औषधियोंसे सम्पन्न), 115. औपासनफलप्रदा (उपासना करनेवालोंको श्रेष्ठ फल प्रदान करनेवाली) ॥ 27 ॥
116. अण्डमध्यस्थिता देवी (ब्रह्माण्डके भीतर विराजमान देवी), 117. अःकारमनुरूपिणी (अकार अर्थात् विसर्गरूप मन्त्रमय विग्रहवाली), 118. कात्यायनी (कात्यायनऋषिद्वारा उपासित), 119. कालरात्रि (दानवोंके संहारके लिये कालरात्रिके रूपमें प्रकट करनेवाली), 120. कामाक्षी (कामको नेत्रोंमें धारण करनेवाली), 121. कामसुन्दरी (यथेच्छ सुन्दर स्वरूप धारण करनेवाली ) ॥ 28 ॥
122. कमला, 123. कामिनी, 124. कान्ता, 125. कामदा, 126. कालकण्ठिनी (कालको अपने कण्ठमें समाहित कर लेनेवाली), 127. करिकुम्भस्तनभरा (हाथीके कुम्भसदृश पयोधरोंवाली), 128. करवीरसुवासिनी (करवीर अर्थात् महालक्ष्मीक्षेत्रमें निवास करनेवाली ) ॥ 29 ॥
129. कल्याणी, 130. कुण्डलवती, 131. कुरुक्षेत्रनिवासिनी, 132. कुरुविन्ददलाकारा (कुरुविन्ददलके समान आकारवाली), 133. कुण्डली, 134. कुमुदालया, 135. कालजिह्वा (राक्षसोंके संहारके लिये कालरूपिणी जिह्वासे सम्पन्न), 136. करालास्या (शत्रुओंके समक्ष विकराल मुखाकृतिवाली), 137. कालिका, 138. कालरूपिणी, 139. कमनीयगुणा (सुन्दर गुणोंसे सम्पन्न), 140. कान्तिः, 141. कलाधारा (समस्त चौंसठ कलाओंको धारण करनेवाली), 142. कुमुद्वती ॥ 30-31 ॥143. कौशिकी, 144. कमलाकारा (कमलके समान सुन्दर आकार धारण करनेवाली), 145. कामचारप्रभञ्जिनी ( स्वेच्छाचारका ध्वंस करनेवाली), 146. कौमारी, 147. करुणापाङ्गी (करुणामय कटाक्षसे भक्तोंपर कृपा करनेवाली), 148. (दिशाओंकी अवसानरूपा), 149. करिप्रिया (जिन्हें हाथी प्रिय है ) ॥ 32 ॥
150. केसरी, 151. केशवनुता ( भगवान् श्रीकृष्णके द्वारा प्रणम्य), 152. कदम्बकुसुमप्रिया (कदम्बके पुष्पसे प्रेम करनेवाली), 153. कालिन्दी, 154. कालिका, 155. काञ्ची, 156. कलशोद्भवसंस्तुता (अगस्त्यमुनिसे स्तुत होनेवाली), 157. काममाता, 158. क्रतुमती (यज्ञमय विग्रह धारण करनेवाली), 159. कामरूपा, 160. कृपावती, 161. कुमारी, 162. कुण्डनिलया (हवन कुण्डमें विराजनेवाली), 163. किराती (भक्तोंका कार्यसाधन करनेके लिये किरात वेष धारण करनेवाली), 164. कीरवाहना (तोतापक्षीको वाहनरूपमें रखनेवाली ) ॥ 33-34॥
165. कैकेयी, 166. कोकिलालापा, 167. केतकी, 168. कुसुमप्रिया, 169. कमण्डलुधरा (ब्रह्मचारिणीके रूपमें कमण्डलु धारण करनेवाली), 170. काली, 171. कर्मनिर्मूलकारिणी (आराधित होनेपर कर्मोंको निर्मूल कर देनेवाली ) ॥ 35 ॥
172. कलहंसगतिः, 173. कक्षा, 174. कृतकौतुकमङ्गला (सर्वदा मंगलमय वैवाहिक वेष धारण करनेवाली), 175. कस्तूरीतिलका, 176. कना ( चंचला), 177. करीन्द्रगमना (ऐरावतपर आरूढ होनेवाली), 178. कुहूः (अमावस्या नामसे प्रसिद्ध) ॥ 36 ॥
179. कर्पूरलेपना, 180. कृष्णा, 181. कपिला, 182. कुहराश्रया (बुद्धिरूपी गुहामें स्थित रहनेवाली), 183. कूटस्था (पर्वतशिखरपर निवास करनेवाली), 184. कुधरा (पृथ्वीको धारण करनेवाली), 185. कम्रा (अत्यन्त सुन्दरी), 186. कुक्षिस्थाखिलविष्टपा (अपनी कुक्षिमें स्थित अखिल जगत्की रक्षा करनेवाली ) ॥ 37 ॥187. खड्गखेटकरा (दानवोंको मारनेके लिये हाथमें ढाल-तलवार धारण करनेवाली), 188. खर्वा (अभिमानिनी), 189. खेचरी, 190. खगवाहना, 191. खट्वाङ्गधारिणी, 192. ख्याता, 193. खगराजोपरिस्थिता (गरुडके ऊपर विराजमान रहनेवाली ) ॥ 38 ॥
194. खलघ्नी, 195. खण्डितजरा (बुढ़ापेसे रहित विग्रहवाली), 196. खण्डाख्यानप्रदायिनी (मधुर कथाओंको प्रदान करनेवाली), 197. | खण्डेन्दुतिलका (ललाटपर खण्डित चन्द्रमा अर्थात् द्वितीयाके चन्द्रमाको तिलकरूपमें धारण करनेवाली), 198. गङ्गा, 199. गणेशगुहपूजिता (गणेश तथा कार्तिकेयसे पूजित ) ॥ 39 ॥
200. गायत्री (अपना गुणगान करनेवालोंकी संरक्षिका), 201. गोमती, 202. गीता, 203. गान्धारी, 204. गानलोलुपा, 205. गौतमी, 206. गामिनी, 207. गाधा (पृथ्वीको आश्रय देनेवाली), 208. गन्धर्वाप्सरसेविता (गन्धर्व तथा अप्सराओंसे सेवित) ॥ 40 ॥
209. गोविन्दचरणाक्रान्ता (श्रीविष्णुके चरणोंसे आक्रान्त अर्थात् पृथ्वीस्वरूपिणी), 210. गुणत्रयविभाविता ( तीन गुणोंके साथ आविर्भूत होनेवाली), 211. गन्धर्वी, 212. गह्वरी ( दुरूह महिमावाली), 213. गोत्रा ( पृथ्वीरूपा), 214. गिरीशा (पर्वतकी अधिष्ठात्री), 215. गहना (गूढ़ स्वभाववाली), 216. गमी (गमनशीला) ॥ 41 ॥ 217. गुहावासा, 218. गुणवती, 219. गुरुपापप्रणाशिनी ( महान् पापोंका नाश करनेवाली), 220. गुर्वी, 221. गुणवती, 222. गुह्या, 223. गोप्तव्या (हृदयमें छिपाये रखनेयोग्य), 224. गुणदायिनी ॥ 42 ॥
225. गिरिजा, 226. गुह्यमातङ्गी (ब्रह्म विद्यास्वरूपिणी), 227. गरुडध्वजवल्लभा (विष्णुकी परम प्रिया), 228. गर्वापहारिणी ( अभिमानका नाश करनेवाली), 229. गोदा (गौ अथवा पृथ्वीका दान करनेवाली), 230. गोकुलस्था, 231. गदाधरा ॥ 43 ॥232. गोकर्णनिलयासक्ता (गोकर्ण नामक तीर्थस्थानमें निवासहेतु तत्पर रहनेवाली), 233. गुह्यमण्डलवर्तिनी (अत्यन्त गोपनीय मण्डलमें विद्यमान रहनेवाली), 234. घर्मदा (ऊष्मा प्रदान करनेवाली), 235. घनदा (मेघ उत्पन्न करनेवाली), 236. घण्टा, 237. घोरदानवमर्दिनी ॥ 44 ॥
238. घृणिमन्त्रमयी (सूर्यको प्रसन्न करनेवाले मन्त्ररूपसे विराजमान), 239. घोषा (युद्धमें भयावह नाद करनेवाली), 240. घनसम्पातदायिनी (मेघोंको जलवृष्टिकी आज्ञा देनेवाली), 241. घण्टारवप्रिया ( घण्टाध्वनिसे प्रसन्न होनेवाली), 242. घ्राणा (घ्राणेन्द्रियकी अधिष्ठात्री देवी), 243. घृणिसन्तुष्ट कारिणी (सूर्यको सन्तुष्ट करनेवाली ) ॥ 45 ॥
244. घनारिमण्डला (अनेकानेक शत्रुओंसे परिवृता), 245. घूर्णा (सर्वत्र भ्रमणशीला), 246. घृताची (सरस्वतीरूपा अथवा रात्रिकी अधिष्ठात्री देवी), 247. घनवेगिनी (प्रचण्ड वेगशाली), 248. ज्ञानधातुमयी (चिन्मय धातुओंसे बनी हुई), 249. चर्चा, 250. चर्चिता (चन्दन आदि सुगन्धित द्रव्योंसे सुपूजित), 251. चारुहासिनी ॥ 46 ॥
252. चटुला, 253. चण्डिका, 254. चित्रा, 255. चित्रमाल्यविभूषिता (अनेक प्रकारके रंगों की मालाओंसे सुशोभित), 256. चतुर्भुजा, 257. चारुदन्ता, 258. चातुरी, 259. चरितप्रदा (सदाचारकी शिक्षा प्रदान करनेवाली) ॥ 47 ॥
260. चूलिका (देवी-देवताओंमें शीर्ष स्थानवाली), 261. चित्रवस्त्रान्ता, 262. चन्द्रमः कर्ण कुण्डला (कानोंमें चन्द्राकार कुण्डल धारण करनेवाली), 263. चन्द्रहासा, 264. चारुदात्री, 265. चकोरी, 266. चन्द्रहासिनी (चन्द्रमाको अपने मुखसौन्दर्यसे आह्लादित करनेवाली) ॥ 48 ॥
267. चन्द्रिका, 268. चन्द्रधात्री, 269. चौरी (अपनी शक्तिको गुप्त रखनेवाली), 270. चौरा (भक्तोंका पाप हरण करनेवाली), 271. चण्डिका, 272. चञ्चद्वाग्वादिनी (चंचलतापूर्वक सम्भाषण करनेवाली), 273. चन्द्रचूडा, 274. चोरविनाशिनी (चौरवृत्तिमें लिप्त लोगोंका विनाश करनेवाली) ॥ 49 ॥275. चारुचन्दनलिप्ताङ्गी (सुन्दर चन्दनसे अनुलिप्त अंगोंवाली), 276. चञ्चच्चामरवीजिता (निरन्तर डुलाये जाते हुए चँवरोंसे सुसेवित), 277. चारुमध्या (सुन्दर कटिप्रदेशवाली), 278. चारुगतिः (मनमोहक गतिवाली), 279. चन्दिला, 280. चन्द्ररूपिणी ॥ 50 ॥
281. चारुहोमप्रिया (श्रेष्ठ हवनसे प्रसन्न होने वाली), 282. चार्वाचरिता (उत्तम आचरणसे सम्पन्न), 283. चक्रबाहुका, 284. चन्द्रमण्डलमध्यस्था, 285. चन्द्रमण्डलदर्पणा (चन्द्रमण्डलरूपी दर्पणको धारण करनेवाली) ॥ 51 ॥
286. चक्रवाकस्तनी (चक्रवाकके समान स्तनोंवाली) 1), 287. चेष्टा, 288. चित्रा, 289. चारुविलासिनी, 290. चित्स्वरूपा (चिन्मय स्वरूपवाली), 291. चन्द्रवती, 292. चन्द्रमा, 293. चन्दनप्रिया ॥ 52 ॥
294. चोदयित्री (भक्तोंको प्रेरणा प्रदान करनेवाली), 295. चिरप्रज्ञा (सनातन विद्यास्वरूपिणी), 296. चातका (चातकके समान दृढ संकल्पवाली), 297. चारुहेतुकी, 298. छत्रयाता (छत्रयुक्त होकर (गमन करनेवाली), 299. छत्रधरा, 300. छाया, 301. छन्दःपरिच्छदा (वेदोंसे ज्ञात होनेवाली) ॥ 53 ॥
302. छायादेवी, 303. छिद्रनखा, 304. छन्नेन्द्रियविसर्पिणी (जितेन्द्रिय योगियोंके पास पधारनेवाली), 305. छन्दोऽनुष्टुप्प्रतिष्ठान्ता (अनुष्टुप् छन्दमें प्रतिष्ठित रहनेवाली), 306. छिद्रोपद्रवभेदिनी (कपटरूप उपद्रवको शान्त करनेवाली) ॥ 54 ॥
307. छेदा (पापोंका उच्छेदन करनेवाली), 308. छत्रेश्वरी, 309, छिन्ना, 310. छुरिका, 311. छेदनप्रिया, 312. जननी, 313. जन्मरहिता, 314. जातवेदा (अग्निस्वरूपिणी), 315. जगन्मयी ॥ 55 ॥
316. जाह्नवी, 317. जटिला, 318. जेत्री, 319. जरामरणवर्जिता, 320. जम्बूद्वीपवती, 321. ज्वाला, 322. जयन्ती, 323. जलशालिनी, 324. जितेन्द्रिया, 325. जितक्रोधा, 326. जितामित्रा, 327. जगत्प्रिया, 328. जातरूपमयी (परम सुन्दर रूपवाली), 329. जिह्वा, 330. जानकी, 331. जगती, 332. जरा (सन्ध्याकालमें वृद्धरूप धारण करनेवाली) ॥ 56-57॥जनित्री, 334. 335. जगत्त्रयहितैषिणी (तीनों लोकोंका हित चाहनेवाली), 336. ज्वालामुखी, 337. जपवती (सदा ब्रह्मके जपमें तत्पर रहनेवाली), 338. ज्वरघ्नी, 339. जितविष्टपा (सम्पूर्ण जगत्पर विजय प्राप्त करनेवाली) ॥ 58 ॥
340. जिताक्रान्तमयी (सबको आक्रान्त करनेके लिये विजयशालिनी देवी), 341. ज्वाला, 342. जाग्रती, 343. ज्वरदेवता, 344. ज्वलन्ती, 345. जलदा, 346. ज्येष्ठा, 347. ज्याघोषास्फोटदिङ्मुखी (दिशाओं विदिशाओंको अपने धनुषकी स्पष्ट तथा भीषण टंकारसे व्याप्त कर देनेवाली) ।। 59 ।।
348. जम्भिनी (अपने दाँतोंसे दानवोंको पीस डालनेवाली), 349. जृम्भणा, 350. जृम्भा, 351. ज्वलन्माणिक्यकुण्डला (प्रभायुक्त मणियोंके कुण्डलोंसे सुशोभित), 352. झिंझिका (झींगुरसदृश तुच्छ प्राणीको भी अपने अंशसे उत्पन्न करनेवाली), 353. झणनिर्घोषा (कंकणकी झंकार ध्वनिसे सर्वदा मुखरित), 354. झंझामारुतवेगिनी (झंझावातके सदृश भयावह वेगशाली ) ॥ 60 ॥
355. झल्लरीवाद्यकुशला (झाँझ नामक वाद्य बजानेमें अत्यन्त निपुण), 356. जरूपा (बलीवर्दके समान रूपवाली), 357. ञभुजा (बलीवर्दके समान पराक्रमी भुजाओंवाली), 358. टङ्कबाणसमायुक्ता, 359. टङ्किनी, 360. टङ्क भेदिनी ॥ 61 ॥
361. टङ्कीगणकृताघोषा (रुद्रगणके समान गम्भीर ध्वनि करनेवाली), 362. टङ्कनीयमहोरसा (वर्णनीय महान् वक्षःस्थलवाली), 363. टङ्कार कारिणीदेवी, 364. ठठशब्दनिनादिनी (ठ ठ शब्दके घोर निनादसे शत्रुओंको भयाक्रान्त करनेवाली) ॥ 62 ॥
365. डामरी, 366. डाकिनी, 367. डिम्भा, | 368. डुण्डुमारैकनिर्जिता (डुण्डुमार नामक राक्षसको | परास्त करनेवाली), 369. डामरीतन्त्रमार्गस्था (डामर | तन्त्रके मार्गपर स्थित), 370. डमडमरुनादिनी (डमरुसे डमड्डमड् ध्वनि उत्पन्न करनेवाली) ॥ 63 ॥371. डिण्डीरवसहा (डिण्डी नामक वाद्यकी ध्वनिको सहन करनेवाली), 372. डिम्भलसत्क्रीडा परायणा (छोटे बच्चोंके साथ प्रेमपूर्वक क्रीडा करनेमें संलग्न), 373. दुण्डिविघ्नेशजननी, 374. ढक्काहस्ता, 375. ढिलिव्रजा (ढिलि नामक गणसमूहाँसे समन्वित ॥ 64 ॥
376. नित्यज्ञाना, 377. निरुपमा, 378. निर्गुणा, 379. नर्मदा, 380. नदी, 3819. त्रिगुणा, 382. त्रिपदा, 383. तन्त्री, 384. तुलसीतरुणातरुः (वृक्षोंमें तरुणी तुलसीरूपसे विराजमान) ॥ 65 ॥
385. त्रिविक्रमपदाक्रान्ता (भगवान् वामनके | तीन डगोंसे आक्रान्त पृथ्वीरूपा), 386. तुरीयपदगामिनी (चतुर्थ पादमें गमन करनेवाली), 387. तरुणादित्य सङ्काशा (प्रचण्ड सूर्यके समान तेजवाली), 388. तामसी, 389. तुहिना (चन्द्रमासदृश शीतल किरणोंवाली), 390. तुरा ( शीघ्र गमन करनेवाली) ॥ 66 ॥
391. त्रिकालज्ञानसम्पन्ना, 392. त्रिवेणी (गंगा-यमुना-सरस्वतीरूपा), 393. त्रिलोचना, 394. त्रिशक्तिः (इच्छाशक्ति क्रियाशक्ति-ज्ञानशक्तिरूपा), 395. त्रिपुरा, 396. तुङ्गा, 397. तुरङ्गवदना ll 67 ॥
398. तिमिङ्गिलगिला (मत्स्यभोजी तिमिंगिलको भी खा जानेवाली), 399. तीव्रा, 400. त्रिस्रोता, 401. तामसादिनी (अज्ञानरूपी अन्धकारका भक्षण करनेवाली), 402. तन्त्रमन्त्रविशेषज्ञा, 403. तनुमध्या, 404. त्रिविष्टपा ॥ 68 ॥
405. त्रिसन्ध्या, 406. त्रिस्तनी (राजा मलय ध्वजके यहाँ कन्याके रूपमें विराजमान), 407. तोषा संस्था (सदा सन्तुष्ट भावमें स्थित), 408. तालप्रतापिनी बजाकर शत्रुओंको आतंकित करनेवाली), 409. ताटङ्किनी, 410. तुषाराभा (बर्फके समान धवल कान्तिवाली), 411. तुहिनाचलवासिनी (हिमालय में | निवास करनेवाली ) ॥ 69 ॥
412. तन्तुजालसमायुक्ता, 413. तारहारा वलिप्रिया (चमकीले तारोंसे युक्त हार-पंक्तियोंसे प्रेम करनेवाली), 414. तिलहोमप्रिया, 415. तीर्था, 416. तमालकुसुमाकृतिः (तमालपुष्पके समान श्याम आकृतिवाली) ॥ 70 ॥417. तारका (भक्तोंको तारनेवाली), 418. त्रियुता, 419. तन्वी, 420. त्रिशङ्कुपरिवारिता (राजा त्रिशंकुके द्वारा उपास्यरूपमें वरण की हुई), 421. तलोदरी (पृथ्वीको उदरके रूपमें धारण करनेवाली), 422. तिलाभूषा (तिलके पुष्पके सदृश नीलकान्तिवाली), 423. ताटङ्कप्रियवाहिनी (कानोंमें सुन्दर कर्णफूल धारण करनेवाली ) ॥ 71 ॥
424. त्रिजटा, 425. तित्तिरी, 426. तृष्णा, 427. त्रिविधा, 428. तरुणाकृतिः, 429. तप्त काञ्चनसङ्काशा (तप्त सोनेके सदृश प्रभावाली), 430. तप्तकाञ्चनभूषणा (तप्त सोनेके सदृश दीप्तिवाले आभूषणोंसे अलंकृत) ॥ 72 ॥
431. त्रैयम्बका, 432. त्रिवर्गा, 433. त्रिकाल ज्ञानदायिनी, 434. तर्पणा, 435. तृप्तिदा, 436. तृप्ता, 437. तामसी, 438. तुम्बुरुस्तुता, 439. तार्क्ष्यस्था (गरुडपर विराजमान रहनेवाली), 440. त्रिगुणाकारा, 441. त्रिभङ्गी, 442. तनुवल्लरिः (कोमल लताकी भाँति कमनीय अंगोंवाली), 443. थात्कारी (युद्धभूमिमें 'थात्' शब्दका उच्चारण करनेवाली), 444. थारवा (भयसे मुक्त करनेवाले शब्दका उच्चारण करनेवाली), 445. थान्ता (मंगलमयी देवी), 446. दोहिनी (यथेच्छ दोहन करनेयोग्य कामधेनुस्वरूपिणी), 447. दीनवत्सला ॥ 73-74 ॥ 448. दानवान्तकरी, 449. दुर्गा, 450. दुर्गासुरनिबर्हिणी ( दुर्ग नामक राक्षसका वध करनेवाली), 451. देवरीतिः (दिव्य मार्गसे सम्पन्न), 452. दिवारात्रि:, 453. द्रौपदी, 454. दुन्दुभिस्वना (दुन्दुभिके समान तीव्र ध्वनि करनेवाली) ॥ 75 ॥ 455. देवयानी, 456. दुरावासा, 457. दारिद्र्योद्धेदिनी (दरिद्रता दूर करनेवाली), 458. दिवा 459. दामोदरप्रिया, 460. दीप्ता, 461. दिग्वासा (दिशारूपी वस्त्रवाली), 462. दिग्विमोहिनी (समस्त दिशाओंको मोहित करनेवाली) ॥ 76 ॥ 463. दण्डकारण्यनिलया, 464. दण्डिनी, 465.
देवपूजिता, 466. देववन्द्या, 467. दिविषदा (सदा स्वर्गमें विराजमान रहनेवाली), 468. द्वेषिणी (राक्षसोंस द्वेष करनेवाली), 469. दानवाकृतिः (समयानुसार दानवसदृश आकृति धारण करनेवाली) ॥ 77 ॥470. दीनानाथस्तुता, 471. दीक्षा, 472. दैवतादिस्वरूपिणी, 473. धात्री, 474. धनुर्धरा, 475. धेनु, 475. धारिणी 477 धर्मचारिणी, 478. धरंधरा, 479. धराधारा, 480. धनदा, 481. धान्यदोहिनी, 482. धर्मशीला, 483. धनाध्यक्षा, 484. धनुर्वेदविशारदा ।। 78-79 ।।
485. धृतिः, 486. धन्या, 487 धृतपदा, 488. धर्मराजप्रिया 489. ध्रुवा 490 धूमावती, 491. धूमकेशी 492. धर्मशास्वप्रकाशिनी, 493. नन्दा, 494. नन्दप्रिया, 495. निद्रा, 496. नृनुता ( मनुष्यों द्वारा नमस्कृत), 497. नन्दनात्मिका, 498. नर्मदा, 499. नलिनी, 500. नीला, 501. नीलकण्ठसमाश्रया (नीलकण्ठ महादेवकी आश्रयरूपा) 80-81 ॥
502. नारायणप्रिया, 503. नित्या, 504, निर्मला, 505. निर्गुणा, 506 निधिः, 507. निराधारा, 508. निरुपमा, 509. नित्यशुद्धा 510. निरञ्जना ( मायासे रहित), 511. नादबिन्दुकलातीता (नाद-बिन्दु-कलासे परे), 512. नादबिन्दुकलात्मिका (नादबिन्दुकला रूपिणी), 513. नृसिंहरूपा, 514. नगधरा, 515. नृपनागविभूषिता (नागराजसे विभूषित) ।। 82-83 ॥
516. नरकक्लेशशमनी, 517. नारायणपदोद्भवा (भगवान् विष्णुके चरणसे प्रकट गंगास्वरूपिणी), 518. निरवद्या (दोषरहित), 519 निराकारा, 520. नारदप्रियकारिणी, 521. नानाज्योति: समाख्याता (अनेकविध ज्योतिरूपसे विख्यात), 522. निधिदा. 523. निर्मलात्मिका (विशुद्धस्वरूपा), 524. नवसूत्रधरा (नवीन सूत्र धारण करनेवाली), 525. नीति: 526. निरुपद्रवकारिणी (समस्त उपद्रवोंको समाप्त कर देनेवाली ) ॥ 84-85 ॥
527. नन्दजा (नन्दकी पुत्री), 528. नवरत्नाढ्या (नौ प्रकारके रत्नोंसे विभूषित), 529. नैमिषारण्यवासिनी (नैमिषारण्य में लिंगधारिणी ललितादेवी के रूपमें विराजमान), 530. नवनीतप्रिया, 531. नारी, 532. नीलजीमूतनिःस्वना (नीले मेघके समान गर्जन करनेवाली), 533. निमेषिणी (निमेषरूपा), 534. नदीरुपा, 535. नीलग्रीवा, 536. निशीश्वरी (रात्रिकी अधिष्ठात्री देवी), 537. नामावलिः (नानाविध नामोंवाली), 538. निशुम्भघ्नी (निशुम्भ दैत्यका संहार करनेवाली), 539. नागलोकनिवासिनी ॥ 86-87 ॥540. नवजाम्बूनदप्रख्या (नवीन सुवर्णसदृश कान्तिसे सम्पन्न), 541. नागलोकाधिदेवता (पाताल लोककी अधिष्ठात्री देवी), 542. नूपुराक्रान्तचरणा (नूपुरोंकी झंकारसे समन्वित चरणोंवाली), 543. नरचित्तप्रमोदिनी, 544. निमग्नारक्तनयना (धँसी हुई लाल आँखोंवाली), 545. निर्घातसमनिःस्वना (वज्रपातके समान भीषण शब्द करनेवाली), 546. नन्दनोद्याननिलया (नन्दनवनमें विहार करनेवाली), 547. निर्व्यूहोपरिचारिणी (बिना व्यूहरचनाके आकाशमें स्वच्छन्द विचरण करनेवाली) ॥ 88-89 ॥
548. पार्वती, 549. परमोदारा, 550. पर ब्रह्मात्मिका, 551. परा, 552. पञ्चकोशविनिर्मुक्ता (अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय और आनन्दमय - इन पाँच कोशोंसे रहित विग्रहवाली), पञ्चपातकनाशिनी (पाँच प्रकारके महापातकोंका नाश करनेवाली), 554. परचित्त विधानज्ञा (दूसरोंके मनोभावोंको समझनेवाली), 555. पञ्चिका (पंचिकादेवीके नामसे प्रसिद्ध), 556. पञ्चरूपिणी, 557. पूर्णिमा, 558. परमा, 559. प्रीतिः, 560. परतेजः (परम तेजस्विनी), 561. प्रकाशिनी ॥ 90-91 ॥ 553.
562. पुराणी, 563. पौरुषी, 564. पुण्या, 565. पुण्डरीकनिभेक्षणा (विकसित कमलके सदृश नेत्रोंवाली), 566. पातालतलनिर्मग्ना (पातालके तलतक प्रविष्ट होनेकी सामर्थ्य से सम्पन्न), 567. प्रीता, 568. प्रीतिविवर्धनी, 569. पावनी, 570. पादसहिता (तीन पदोंसे शोभा पानेवाली), 571. पेशला (परम सुन्दर विग्रहवाली), 572. पवनाशिनी (वायुका भक्षण करनेवाली), 573. प्रजापतिः, 574. परिश्रान्ता (प्रयत्नशीला), 575. पर्वतस्तन मण्डला (विशाल स्तनोंसे सुशोभित) ॥ 92-93॥
576. पद्मप्रिया (कमलपुष्प अर्पित करनेसे प्रसन्न होनेवाली), 577. पद्मसंस्था (कमलके आसनपर स्थित रहनेवाली), 578. पद्माक्षी, 579. पद्मसम्भवा, 580. पद्मपत्रा (कमलपत्रकी भाँति जगत्से निर्लिप्त रहनेवाली), 589. पद्मपदा (कमलके समान कोमल चरणोंवाली), 582. पद्मिनी (हाथमें कमल धारण 4 करनेवाली), 583. प्रियभाषिणी ।। 94 ।।584. पशुपाशविनिर्मुक्ता (पाशविक बन्धनोंसे मुक्त), 585. पुरन्ध्री (गृहस्थीके कार्यमें संलग्न स्त्रीके रूपमें विराजमान), 586. पुरवासिनी, 587. पुष्कला, 588. पुरुषा (पुरुषार्थमयी), 589. पर्वा (पर्वस्वरूपा), 590. पारिजातसुमप्रिया (पारिजात पुष्पसे अत्यधिक प्रेम रखनेवाली), 591. पतिव्रता, 592. पवित्राङ्गी, 593. पुष्पहासपरायणा (खिले हुए पुष्पके समान हँसनेवाली), 594. प्रज्ञावतीसुता, 595. पौत्री, 596. पुत्रपूज्या, 597. पयस्विनी ( प्राणियोंके संवर्धन हेतु अमृततुल्य दुग्ध प्रदान करनेवाली) । ll 95-96 ॥
598. पट्टिपाशधरा, 599. पंक्तिः, 600. पितृलोकप्रदायिनी, 601. पुराणी, 602. पुण्यशीला, 603. प्रणतार्तिविनाशिनी (शरणागतजनोंका क्लेश दूर करनेवाली), 604. प्रद्युम्नजननी, 605. पुष्टा (पुष्टिरूपा), 606. पितामहपरिग्रहा (आदिशक्तिद्वारा पितामह ब्रह्माके लिये अर्पित की गयी देवी), 607. पुण्डरीकपुरावासा (पुण्डरीकपुर अर्थात् चिदम्बरक्षेत्रमें निवास करनेवाली), 608, पुण्डरीकसमानना (कमल सदृश सुन्दर मुखवाली) ॥ 97-98 ॥
609. पृथुजङ्घा (विशाल जाँघोंवाली), 610. पृथुभुजा (दीर्घ भुजाओंवाली), 611. पृथुपादा (बृहत् चरणोंवाली), 612. पृथूदरी (विशाल उदरवाली), 613. प्रवालशोभा (मूँगेके समान कान्तिसे सम्पन्न), 614. पिङ्गाक्षी, 615. पीतवासाः, 616. प्रचापला (अत्यन्त चंचल स्वभाववाली), 617. प्रसवा (सम्पूर्ण जगत्को उत्पन्न करनेवाली), 618. पुष्टिदा, 619. पुण्या, 620. प्रतिष्ठा, 621. प्रणवागतिः (ओंकारकी मूलरूपा), 622. पञ्चवर्णा, 623. पञ्चवाणी, 624. पञ्चिका, 625. पञ्जरस्थिता (प्राणियोंके शरीरमें स्थित रहनेवाली) ॥ 99-100 ॥
626. परमाया (परम मायारूपा), 627. परज्योतिः, 628. परप्रीतिः, 629. परागतिः, 630. पराकाष्ठा (ब्रह्माण्डकी अन्तिम सीमा), 631. परेशानी (परमेश्वरी), 632. पावनी, 633. पावकद्युतिः, 634. पुण्यभद्रा (पवित्र करनेमें अतीव दक्ष),635. परिच्छेद्या (सबसे विलक्षण स्वभाववाली), 636. पुष्पहासा, 637. पृथूदरी, 638. पीताङ्गी, 639. पीतवसना, 640. पीतशय्या (पीले रंगकी शय्यापर शयन करनेवाली), 641. पिशाचिनी (पिशाचोंके गण साथमें रखनेवाली) । 101-102 ॥ 642. पीतक्रिया (मधुपानक्रियारूपा), 643.
पिशाचघ्नी, 644. पाटलाक्षी (विकसित गुलाब पुष्पसदृश नयनोंवाली), 645. पटुक्रिया (चतुरताके साथ कार्य सम्पन्न करनेवाली), 646. पञ्चभक्ष प्रियाचारा (भोज्य- चर्व्य-चोष्य-लेह्य और पेय-इन पाँचों प्रकारके पदार्थोंका प्रेमपूर्वक आहार करनेवाली), 647. पूतनाप्राणघातिनी (पूतनाके प्राणोंका नाश करनेवाली), 648. पुन्नागवनमध्यस्था (जायफलके वनके मध्य भागमें विराजमान रहनेवाली), 649. पुण्यतीर्थनिषेविता (पुण्यमय तीर्थोंमें निवास करनेवाली), 650. पञ्चाङ्गी, 651. पराशक्तिः, 652. परमाह्लादकारिणी (परम आनन्द प्रदान करनेवाली) ॥ 103-104 ॥
653. पुष्पकाण्डस्थिता (फूलोंके डंठलोंपर स्थित रहनेवाली), 654. पूषा, 655. पोषिताखिलविष्टपा (सम्पूर्ण संसारका भरण-पोषण करनेवाली), 656. पानप्रिया, 657. पञ्चशिखा, 658. पन्नगोपरिशायनी (सर्पोंपर शयन करनेवाली), 659. पञ्चमात्रात्मिका, 660. पृथ्वी, 661. पथिका, 662. पृथुदोहिनी (पर्याप्त दोहन करनेवाली), 663. पुराणन्यायमीमांसा (पुराण, न्याय तथा मीमांसास्वरूपिणी), 664. पाटली, 665. पुष्पगन्धिनी, 666. पुण्यप्रजा, 667. पारदात्री, 668. परमार्गैकगोचरा (एकमात्र श्रेष्ठ मार्गद्वारा अनुभवगम्य), 669. प्रवालशोभा (मूँगेसे सुशोभित 670. पूर्णाशा, 671. प्रणवा (ॐकारस्वरूपिणी), 672. पल्लवोदरी (नवीन पल्लवके समान सुकोमल उदरवाली) । 105 - 107॥ विग्रहवाली),
673. फलिनी (फलरूपिणी), 674. फलदा, 675. फल्गुः (फल्गु नामक नदीके रूपमें विद्यमान), 676. फूत्कारी (क्रोधावस्थामें फूत्कार करनेवाली), 677. फलकाकृतिः (बाणके अग्रभागके समान आकारवाली), 678. फणीन्द्रभोगशयना (नागराज शेषनागके फनपर शयन करनेवाली), 679. फणि मण्डलमण्डिता (नागमण्डलोंसे सुशोभित ॥ 108 ॥680. बालबाला (बालिकाओंमें बालारूपिणी), 681. बहुमता, 682. बालातपनिभांशुका (उदयकालके सूर्यकी भाँति अरुण वस्त्र धारण करनेवाली), 683. बलभद्रप्रिया, 684. वन्द्या, 685. वडवा, 686. बुद्धिसंस्तुता, 687. बन्दीदेवी, 688. बिलवती (गुहामें रहनेवाली), 689. बडिशघ्नी (कपटका विनाश करनेवाली), 690. बलिप्रिया, 691. बान्धवी, | 692. बोधिता 693. बुद्धिः, 694. बन्धूककुसुमप्रिया (बन्धूकपुष्पसे प्रसन्न होनेवाली) ॥ 109-110 ॥
695. बालभानुप्रभाकारा (प्रातःकालीन सूर्यकी प्रभासे युक्त विग्रहवाली), 696. ब्राह्मी, 697. ब्राह्मणदेवता, 698. बृहस्पतिस्तुता, 699. वृन्दा, 700. वृन्दावनविहारिणी, 701. बालाकिनी (बगुलोंकी पंक्तिसदृश रूपवाली), 702. बिलाहारा (कर्मोंके दोषका निवारण करनेवाली), 703. बिलवासा (बिलरूपिणी गुहामें निवास करनेवाली), 704. बहूदका, 705. बहुनेत्रा 706. बहुपदा, 707. बहुकर्णावतंसिका (अनेक प्रकारके कर्णभूषणोंसे अलंकृत) ॥। 111-112 ॥
708. बहुबाहुयुता, 709. बीजरूपिणी, 710. बहुरूपिणी, 711. बिन्दुनादकलातीता (बिन्दु, नाद और कलासे सर्वथा परे), 712. बिन्दुनादस्वरूपिणी (बिन्दु और नादके स्वरूपवाली), 713. बद्धगोधा ङ्गुलित्राणा (गोधाके चर्मका अंगुलित्राण धारण करनेवाली), 714. बदर्याश्रमवासिनी (बदरिकाश्रममें निवास करनेवाली), 715. बृन्दारका, 716. बृहत्स्कन्धा (विशाल कन्धोंवाली), 717. बृहती, 718. बाणपातिनी (बाणोंकी वर्षा करनेवाली) ॥ 113-114 ॥
719. वृन्दाध्यक्षा (वृन्दा आदि कृष्णसखियों में प्रमुखतम), 720. बहुनुता (सभीके द्वारा नमस्कृत), 729. वनिता, 722. बहुविक्रमा, 723. बद्धपद्या सनासीना, 724. बिल्वपत्रतलस्थिता, 725. बोधिद्रुम निजावासा (पीपल के वृक्षके नीचे अपना निवासस्थान बनानेवाली), 726. बडिस्था, 727. बिन्दुदर्पणा ( अव्यक्तमायारूप दर्पणवाली), 728. बाला, 729. बाणासनवती (हाथमें धनुष धारण करनेवाली), 730. वडवानलवेगिनी (वडवाग्निके समान वेग धारण करनेवाली) । 115-116 ॥731. ब्रह्माण्डबहिरन्तःस्था (ब्रह्माण्डके भीतर | तथा बाहर दोनों स्थानोंमें रहनेवाली), 732. ब्रह्मकङ्कण | सूत्रिणी (ब्रह्माकी कंकणसूत्रस्वरूपिणी), 733. भवानी, 734. भीषणवती (दानवोंके वधके लिये भयावह रूप धारण करनेवाली), 735. भाविनी (जगत्की उत्पत्ति, पालन तथा संहार करनेवाली), 736. भयहारिणी, 737. भद्रकाली, 738. भुजङ्गाक्षी, 739. भारती 740. भारताशया (अपने ध्यानमें रत पुरुषोंके अन्तःकरणमें विराजमान रहनेवाली), 741. भैरवी, 742. भीषणाकारा, 743. भूतिदा (ऐश्वर्य प्रदान करनेवाली), 744. भूतिमालिनी ( विपुल ऐश्वर्यसे सम्पन्न) ।। 117-118 ॥
745. भामिनी, 746. भोगनिरता, 747. भद्रदा, 748. भूरिविक्रमा (अत्यधिक पराक्रमसे सम्पन्न), 749. भूतवासा (सभी प्राणियोंमें विद्यमान रहनेवाली), 750. भृगुलता, 751. भार्गवी (भृगु मुनिकी शक्तिके रूपमें विराजमान), 752. भूसुरार्चिता (ब्राह्मणोंके द्वारा अर्चित), 753. भागीरथी, 754. भोगवती, 755. भवनस्था, 756. भिषग्वरा (भवरोग दूर करनेके लिये श्रेष्ठ वैद्यरूपा), 757. भामिनी, 758. भोगिनी, 759. भाषा, 760. भवानी, 761. भूरिदक्षिणा ॥ 119-120॥
762. भर्गात्मिका (परम तेजसे सम्पन्न), 763. भीमवती, 764. भवबन्धविमोचिनी, 765. भजनीया, 766. भूतधात्रीरञ्जिता (प्राणियोंका पालन तथा अनुरंजन करनेवाली), 767. भुवनेश्वरी, 768. भुजङ्गवलया (साँपोंको वलयाकृतिके रूपमें हाथों में धारण करनेवाली), 769. भीमा, 770. भेरुण्डा (भेरुण्डा नामसे प्रसिद्ध देवी), 771. भागधेयिनी (परम सौभाग्यवती), 772. माता, 773. माया, 774. मधुमती (मधुपान करनेवाली), 775. मधुजिह्वा, 776. मधुप्रिया (मधुसे अतिशय प्रीति रखनेवाली) ॥ 121-122 ॥
777. महादेवी, 778. महाभागा, 779. मालिनी, 780, मीनलोचना (मछलीके समान नेत्रोंवाली), 781. मायातीता, 782. मधुमती, 783. मधुमांसा, 784. मधुद्रवा (मधुका अर्पण करनेसे भक्तोंपर द्रवित होनेवाली), 785. मानवी (मानवरूप धारणकरनेवाली), 786. मधुसम्भूता (चैत्रमासमें प्रकट होनेवाली), 787. मिथिलापुरवासिनी (मिथिलापुरीमें निवास करनेवाली सीतास्वरूपिणी), 788. मधुकैटभ संहर्त्री (मधु तथा कैटभ दानवोंका संहार करनेवाली), 789. मेदिनी (पृथ्वीस्वरूपिणी), 790. मेघमालिनी (मेघमालाओंसे घिरी हुई) ।। 123-124 ॥
799. मन्दोदरी, 792. महामाया, 793. मैथिली, 794. मसृणप्रिया (मधुर पदार्थोंसे प्रेम करनेवाली), 795. महालक्ष्मी:, 796. महाकाली, 797. महाकन्या, 798. महेश्वरी, 799. माहेन्द्री (शचीके रूपमें विराजमान), 800. मेरुतनया, 801. मन्दारकुसुमार्चिता (मन्दारपुष्पसे पूजित होनेवाली), 802. मञ्जुमञ्जीरचरणा (चरणोंमें सुन्दर पायल धारण करनेवाली), 803. मोक्षदा, 804. मञ्जुभाषिणी ।। 125-126॥
805. मधुरद्राविणी (भक्तिसे द्रवित होकर मधुर वचन बोलनेवाली), 806. मुद्रा, 807. मलया (मलयाचलपर निवास करनेवाली), 808. मलयान्विता (मलयगिरि चन्दनसे युक्त), 809. मेधा, 810. (मरकतमणिके सदृश श्याम वर्णवाली), 811. मागधी, 812. मेनकात्मजा, 813. महामारी, 814. महावीरा, 815. महाश्यामा, 816. मनुस्तुता (मनुके द्वारा स्तुत), 817. मातृका, 818. मिहिराभासा (सूर्यके समान प्रभावाली), 819. मुकुन्दपदविक्रमा (भगवान् विष्णुके पदका अनुसरण करनेवाली ) ॥ 127-128 ॥ मरकतश्यामा
मूलाधारस्थिता (मूलाधारचक्रमें | कुण्डलिनीके रूपमें स्थित रहनेवाली), 821. मुग्धा (सर्वदा प्रसन्नचित्त रहनेवाली), 822. मणिपूरकवासिनी ( मणिपूर नामक चक्रमें निवास करनेवाली), 823. मृगाक्षी (मृगके समान नेत्रोंवाली), 824. महिषारूढा (महिषपर आरूढ़ होनेवाली), 825. महिषासुरमर्दिनी (महिष नामक दानवका वध करनेवाली) ॥ 129 ॥ 820. 826. योगासना, 827. योगगम्या, 828. योगा, 829. यौवनकाश्रया (सदा यौवनावस्थामें विराजमान), 830. यौवनी, 831. युद्धमध्यस्था, 832. यमुना, 833. युगधारिणी, 834. यक्षिणी, 835. योगयुक्ता,836. यक्षराजप्रसूतिनी (यक्षराजको उत्पन्न करनेवाली), 837. यात्रा, 838. यानविधानज्ञा (विमानोंकी व्यवस्थाका विशेष ज्ञान रखनेवाली), 839. यदुवंश समुद्भवा (यदुवंशमें प्रादुर्भूत देवी) ।। 130-131 ॥
840. यकारादिहकारान्ता (यकारसे लेकर हकारतक सभी वर्णोंके रूपवाली), 841. याजुषी (यजुर्वेदस्वरूपिणी), 842. यज्ञरूपिणी, 843. यामिनी, 844. योगनिरता, 845. यातुधानभयङ्करी (राक्षसोंको भय उत्पन्न करनेवाली ) ॥ 132 ॥
846. रुक्मिणी, 847. रमणी, 848. रामा, 849. रेवती, 850. रेणुका, 851. रतिः, 852. रौद्री 853. रौद्रप्रियाकारा ( रौद्र आकृतिसे प्रीति करनेवाली), 854. राममाता (कौसल्यारूपमें विराजमान), 855. रतिप्रिया, 856. रोहिणी, 857. राज्यदा, 858. रेवा (नर्मदासंज्ञक नदी), 859. रमा, 860. राजीवलोचना, 861. राकेशी, 862. रूपसम्पन्ना, 863. रत्नसिंहासनस्थिता (रत्नसे निर्मित सिंहासनपर विराजमान रहनेवाली) | 133-134
864. रक्तमाल्याम्बरधरा, 865. रक्तगन्धानुलेपना, 866. राजहंससमारूढा, 867. रम्भा, 868. रक्तबलि प्रिया, 869. रमणीययुगाधारा ( रमणीय युगकी आश्रय स्वरूपिणी), 870. राजिताखिलभूतला (सम्पूर्ण पृथ्वी तलको सुशोभित करनेवाली), 871. रुरुचर्मपरीधाना (मृगचर्मको वस्त्रके रूपमें धारण करनेवाली), 872. रथिनी, 873. रत्नमालिका ॥ 135-136 ॥
874, रोगेशी (रोगोंपर शासन करनेवाली), 875. रोगशमनी, 876. राविणी ( भयावह गर्जन करनेवाली), 877. रोमहर्षिणी, 878. रामचन्द्रपदाक्रान्ता, 879. रावणच्छेदकारिणी (रावणका संहार करनेवाली), 880. रत्नवस्त्रपरिच्छन्ना (रत्न तथा वस्त्रोंसे सम्यक् आच्छादित), 881. रथस्था, 882. रुक्मभूषणा (स्वर्णमय आभूषणोंसे सुशोभित), 883. लज्जाधिदेवता, 884. लोला ( अत्यन्त चंचल स्वभाववाली), 885. ललिता, 886. लिङ्गधारिणी ।। 137-138
887. लक्ष्मीः, 888. लोला, 889. लुप्तविषा (विषसे निष्प्रभावित रहनेवाली), 890. लोकिनी, 891. लोकविश्रुता, 892. लज्जा, 893. लम्बोदरीदेवी, 894. ललना (स्त्रीस्वरूपा), 895. लोकधारिणी ॥ 139 ॥896. वरदा, 897. वन्दिता, 898. विद्या, 899. वैष्णवी, 100, विमलाकृतिः, 101. वाराही (वराहरूप धारण करनेवाली), 902. विरजा, 903. वर्षा (वृष्टिरूपा), 104. वरलक्ष्मीः 105. विलासिनी, 906. विनता, 907 व्योममध्यस्था, 908. वारि जासनसंस्थिता (कमलके आसनपर विराजमान रहनेवाली), 909. वारुणी ( वरुणकी शक्तिस्वरूपिणी), 910. वेणुसम्भूता (बाँससे प्रकट होनेवाली), 911. वीतिहोत्रा (अग्निस्वरूपिणी), 112. विरूपिणी (विशिष्टरूपसे सम्पन्न) 140-141 ।।
913. वायुमण्डलमध्यस्था, 914. विष्णुरूपा, 915. विधिप्रिया, 916. विष्णुपत्नी, 917. विष्णुमती, 918. विशालाक्षी (विशाल नेत्रोंवाली), 119. वसुन्धरा 220, वामदेवप्रिया (स्द्राणीरूपसे विद्यमान), 921. वेला (समयकी अधिष्ठात्री देवी), 922. वज्रिणी, 923. वसुदोहिनी (सम्पदाका दोहन करनेवाली), 924. वेदाक्षरपरीताङ्गी (वेदाक्षरोंसे युक्त अंगोंवाली), 925. वाजपेयफलप्रदा (वाजपेयफल प्रदान करनेवाली), 926. वासवी, 927. वामजननी (वामदेवकी जननी), 128. वैकुण्ठनिलया, 129. वरा, 930. व्यासप्रिया, 931. वर्मधरा (कवच धारण करनेवाली), 932. वाल्मीकिपरिसेविता (वाल्मीकिके द्वारा भलीभाँति सेवित) ।। 142 - 144 ।।
133. शाकम्भरी (शकम्भरीदेवी नामसे प्रसिद्ध), 934. शिवा, 935. शान्ता, 936. शारदा, 937. शरणागतिः, 938. शातोदरी (तेजसे युक्त उदरवाली), 939. शुभाचारा (पवित्र आचरणवाली), 940. शुम्भा सुरविमर्दिनी (शुम्भ नामक दानवका वध करनेवाली), 141. शोभावती, 942. शिवाकारा (कल्याणमयी आकृति धारण करनेवाली), 143. शङ्कराशरीरिणी (शिवकी अर्धांगिनी), 144. शोणा (रक्त वर्णवाली), 945. शुभाशया (मंगलकारी अभिप्राय से युक्त), 946. शुभा 947. शिरः सन्धानकारिणी (दैत्योंके मस्तकपर संधान करनेवाली) ।। 145-146 ll948. शरावती (वाणोंसे रक्षा करनेवाली), 949. शरानन्दा ( आनन्दपूर्वक बाणका संचालन करनेवाली), 950. शरज्ज्योत्स्ना (शरत्कालीन चन्द्रमाके समान धवल किरणोंवाली), 951. शुभानना, 152. शरभा (हरिणी-स्वरूपा ), 953. शूलिनी, 954. शुद्धा, 955. शबरी, 956. शुकवाहना ( शुकपर सवार होनेवाली), 957. श्रीमती, 958. श्रीधरानन्दा (विष्णुको आनन्द प्रदान करनेवाली), 959. श्रवणानन्ददायिनी (देवी-चरित्र सुननेसे भक्तोंको आनन्द प्रदान करनेवाली), 960. शर्वाणी (शंकरकी शक्तिरूपा भगवती पार्वती), 961. शर्वरीवन्द्या (रात्रिमें पूजित होनेवाली), 962. षड्भाषा (छः भाषाओंके रूपवाली), 963. षॠतुप्रिया (सभी छः ऋतुओंसे प्रीति रखनेवाली) | 147-148 ।।
964. षडाधारस्थितादेवी (छः प्रकारके आधारोंमें विराजमान होनेवाली भगवती), 965. षण्मुख प्रियकारिणी (कार्तिकेयका प्रिय करनेवाली), 966. षडङ्गरूपसुमतिसुरासुरनमस्कृता (षडंग रूपवाले सुमति नामक देवताओं तथा असुरोंद्वारा नमस्कृत), 967. सरस्वती, 968. सदाधारा (सत्यपर प्रतिष्ठित रहनेवाली), 969. सर्वमङ्गलकारिणी (सबका कल्याण करनेवाली), 970. सामगानप्रिया, 971. सूक्ष्मा, 972. सावित्री, 973. सामसम्भवा (सामवेदसे प्रादुर्भूत होनेवाली) ।। 149-150 ।।
974. सर्वावासा (सबमें व्याप्त रहनेवाली), 975. सदानन्दा, 976. सुस्तनी, 977. सागराम्बरा (वस्त्रके रूपमें सागरको धारण करनेवाली), 978. सर्वैश्वर्यप्रिया (समस्त ऐश्वयसे प्रेम करनेवाली), 979. सिद्धिः, 980. साधुबन्धुपराक्रमा (सज्जनों तथा प्रिय भक्तजनोंके लिये पराक्रम प्रदर्शित करनेवाली), 989. सप्तर्षिमण्डलगता, सोममण्डलवासिनी (चन्द्रमण्डलमें विराजमान 982. रहनेवाली), 983. सर्वज्ञा, 984. सान्द्रकरुणा (अतीव करुणामयी), 985. समानाधिकवर्जिता (सदा एक समान रहनेवाली) । 151-152 ॥986. सर्वोत्तुङ्गा (सर्वोच्च स्थान रखनेवाली), 987 सङ्गृहीना (आसक्तिभावनासे रहित), 988. सद्गुणा, 189. सकलेष्टदा (सभी अभीष्ट फल प्रदान करनेवाली), 990. सरघा (मधुमक्षिका स्वरूपिणी), 991. सूर्यतनया (सूर्यपुत्री), 992. सुकेशी (सुन्दर केशोंसे सम्पन्न), 193. सोमसंहतिः (अनेक चन्द्रमाओंकी शोभासे सम्पन्न) 153 ।।
994. हिरण्यवर्णा (स्वर्णके समान वर्णवाली), 995. हरिणी, 196. ह्रींकारी (हीं-बीजस्वरूपिणी), 197. हंसवाहिनी (हंसपर सवार होनेवाली), 998. क्षौमवस्त्रपरीताङ्गी (रेशमी वस्त्रोंसे ढँके हुए अंगोंवाली), 999. क्षीराब्धितनया (क्षीरसागरकी पुत्रीस्वरूपा), 1000 क्षमा, 1001. गायत्री, 1002. सावित्री, 1003. पार्वती, 1004. सरस्वती, 1005, वेदगर्भा, 1006. वरारोहा, 1007. श्रीगायत्री, 1008. पराम्बिका ॥। 154-155
हे नारद! भगवती गायत्रीका यह सहस्रनाम है।
यह अत्यन्त पुण्यदायक, सभी पापोंका नाश करनेवाला
तथा विपुल सम्पदाओंको प्रदान करनेवाला है ॥ 156 इस प्रकार कहे गये ये नाम गायत्रीको सन्तुष्टि प्रदान करनेवाले हैं। ब्राह्मणोंके साथ विशेष करके अष्टमी तिथिको इस सहस्रनामका पाठ करना चाहिये। भलीभाँति जप, होम, पूजा और ध्यान करके इसका पाठ करना चाहिये। जिस किसीको भी इस गायत्रीसहस्रनामका उपदेश नहीं करना चाहिये अपितु योग्य भक्त, उत्तम शिष्य तथा ब्राह्मणको ही इसे बताना चाहिये। पथभ्रष्ट साधकों अथवा ऐसे अपने बन्धुओंके भी समक्ष इसे प्रदर्शित नहीं करना चाहिये ।। 157 - 159 ।।
जिस व्यक्तिके घरमें यह गायत्रीसम्बन्धी शास्त्र लिखा होता है, उसे किसीका भी भय नहीं रहता और अत्यन्त चपल लक्ष्मी भी उस घरमें स्थिर होकर विराजमान रहती हैं ॥ 160 ॥
यह परम रहस्य गुह्यसे भी अत्यन्त गुह्य है। यह मनुष्योंको पुण्य प्रदान करानेवाला, दरिद्रोंको सम्पत्ति | सुलभ करानेवाला, मोक्षकी अभिलाषा रखनेवालोंकोमोक्षप्राप्ति करानेवाला तथा सकाम पुरुषोंको समस्त अभीष्ट फल प्रदान करनेवाला है। इस सहस्रनामके प्रभावसे रोगी रोगमुक्त हो जाता है तथा बन्धनमें पड़ा हुआ मनुष्य बन्धनसे छूट जाता है। ब्रह्महत्या, सुरापान, स्वर्णकी चोरी तथा गुरुपत्नीगमनसदृश महान् पाप करनेवाले भी इसके एक बारके पाठसे पापमुक्त हो जाते हैं ॥ 161-163॥
इसका पाठ करनेसे मनुष्य निन्दनीय दान लेने, अभक्ष्यभक्षण करने, पाखण्डपूर्ण व्यवहार करने और मिथ्याभाषण करने आदि प्रमुख पापोंसे मुक्त हो जाता है। हे ब्रह्मापुत्र नारद! मेरे द्वारा कहा गया यह परम पवित्र रहस्य मनुष्योंको ब्रह्मसायुज्य प्रदान करनेवाला है। यह बात सत्य है, सत्य है; इसमें सन्देह नहीं है ।। 164-165 ॥