नारदजी बोले - हे भक्तोंपर अनुकम्पा करनेवाले ! हे सर्वज्ञ ! आपने पापोंका नाश करनेवाले गायत्रीहृदयका तो
वर्णन कर दिया; अब गायत्रीस्तोत्रका कथन कीजिये ॥ 1 ॥
श्रीनारायण बोले- हे आदिशक्ते! हे जगन्मातः ! | हे भक्तोंपर कृपा करनेवाली! हे सर्वत्र व्याप्त रहनेवाली ! हे अनन्ते! हे श्रीसन्ध्ये! आपको नमस्कार है ॥ 2 ॥ आप ही सन्ध्या, गायत्री, सावित्री, सरस्वती, ब्राह्मी, वैष्णवी तथा रौद्री हैं। आप रक्त, श्वेत तथा कृष्ण वर्णोंवाली हैं ॥ 3 ॥
आप प्रात:कालमें बाल्यावस्थावाली, मध्याह्नकालमें युवावस्थासे युक्त तथा सायंकालमें वृद्धावस्थासे सम्पन्न हो जाती हैं। मुनिगण इन रूपोंमें आप भगवतीका सदा चिन्तन करते रहते हैं ॥ 4 ॥
आप प्रातः काल हंसपर, मध्याह्नकालमें गरुडपर तथा सायंकालमें वृषभपर विराजमान रहती हैं। आप ऋग्वेदका पाठ करती हुई भूमण्डलपर तपस्वियोंको दृष्टिगोचर होती हैं। आप यजुर्वेदका पाठ करती हुई अन्तरिक्षमें विराजमान रहती हैं। वही आप सामगान करती हुई भूमण्डलपर सर्वत्र भ्रमण करती रहती हैं ॥ 5-6 ॥विष्णुलोक में निवास करनेवाली आप रुद्रलोकमें भी गमन करती हैं। देवताओंपर अनुग्रह करनेवाली आप ब्रह्मलोकमें भी विराजमान रहती हैं ॥ 7 ॥
मायास्वरूपिणी आप सप्तर्षियोंको प्रसन्न करनेवाली तथा अनेक प्रकारके वर प्रदान करनेवाली हैं। आप शिवशक्तिके हाथ, नेत्र, अश्रु तथा स्वेदसे दस प्रकारकी दुर्गाके रूपमें प्रादुर्भूत हुई हैं। आप आनन्दकी जननी हैं। वरेण्या, वरदा, वरिष्ठा, वरवर्णिनी, गरिष्ठा, वरार्हा, सातवीं वरारोहा, नीलगंगा, सन्ध्या और भोगमोक्षदा- आपके ये दस नाम हैं । ll 8-10 ॥
आप मृत्युलोकमें भागीरथी, पातालमें भोगवती और स्वर्गमें त्रिलोकवाहिनी (मन्दाकिनी) -देवीके रूपमें तीनों लोकोंमें निवास करती हैं ॥ 11 ॥
लोकको धारण करनेवाली आप ही धरित्रीरूपसे भूलोकमें निवास करती हैं। आप भुवर्लोकमें वायुशक्ति, स्वर्लोकमें तेजोनिधि, महर्लोकमें महासिद्धि, जनलोकमें जना, तपोलोकमें तपस्विनी, सत्यलोकमें सत्यवाक्, विष्णुलोक में कमला, ब्रह्मलोकमें गायत्री और रुद्रलोकमें शंकरके अर्धांगमें निवास करनेवाली गौरीके रूपमें स्थित हैं । ll 12 - 14 ॥
अहंकार और महत् तत्त्वोंकी प्रकृतिके रूपमें आप ही कही जाती हैं। नित्य साम्य अवस्थामें विराजमान आप शबल ब्रह्मस्वरूपिणी हैं ॥ 15 ॥ आप उससे भी बड़ी 'पराशक्ति' तथा 'परमा' कही गयी हैं। आप इच्छाशक्ति, क्रियाशक्ति और ज्ञानशक्तिके रूपमें विद्यमान हैं और इन तीनों शक्तियोंको प्रदान करनेवाली हैं ॥ 16 ॥
आप गंगा, यमुना, विपाशा, सरस्वती, सरयू, देविका, सिन्धु, नर्मदा, इरावती, गोदावरी, शतद्रु, देवलोक गमन करनेवाली कावेरी, कौशिकी, चन्द्रभागा, वितस्ता, सरस्वती, गण्डकी, तापिनी, तोया, गोमती तथा वेत्रवती नदियोंके रूपमें विराजमान हैं और इडा, पिंगला, तीसरी सुषुम्ना, गान्धारी, हस्तिजिह्वा, पूषा, अपूषा, अलम्बुषा, कुहू और शंखिनी-इन प्राणवाहिनी नाड़ियोंके रूपमें आपको ही प्राचीन विद्वानोंने शरीरमें स्थित बताया है। आप हृदयकमलमें प्राणशक्तिके रूपमें, कण्ठदेशमें स्वप्ननायिकाके रूपमें, तालुओंमेंसर्वाधारस्वरूपिणीके रूपमें और भ्रूमध्यमें बिन्दु मालिनीके रूपमें विराजमान रहती हैं। आप मूलाधारमें कुण्डलीशक्तिके रूपमें तथा चूडामूलपर्यन्त व्यापिनीशक्तिके रूपमें स्थित हैं। शिखाके मध्यभागमें परमात्मशक्तिके | रूपमें तथा शिखाके अग्रभागमें मनोन्मनीशक्तिके रूपमें आप ही विराजमान रहती हैं। हे महादेवि ! अधिक कहनेसे क्या लाभ? तीनों लोकोंमें जो कुछ भी है, वह सब आप ही हैं। हे सन्ध्ये! मोक्षलक्ष्मीकी प्राप्तिके लिये आपको नमस्कार है ।। 17 - 233 ॥
[हे नारद!] सन्ध्याके समय पढ़ा गया यह स्तोत्र अत्यधिक पुण्य प्रदान करनेवाला, महान् पापोंका नाश करनेवाला तथा महान् सिद्धियोंकी प्राप्ति करानेवाला है। जो व्यक्ति एकाग्रचित्त होकर सन्ध्याकालमें इस गायत्रीस्तोत्रका पाठ करता है, वह यदि पुत्रहीन है तो पुत्र और यदि धनका अभिलाषी है तो धन प्राप्त कर लेता है। ऐसा करनेवालेको समस्त तीर्थ, तप, दान, यज्ञ तथा योगका फल प्राप्त हो जाता है और दीर्घ कालतक सुखोंका उपभोग करके अन्तमें वह मोक्षको प्राप्त होता है । ll 24 - 263 ॥
हे नारद! जो पुरुष स्नानकालमें तपस्वियोंद्वारा किये गये इस स्तोत्रका पाठ करता है, वह जहाँ कहीं भी जलमें स्नान करे, उसे सन्ध्यारूपी मज्जनसे होनेवाला फल प्राप्त हो जाता है, इसमें सन्देह नहीं है; मेरा यह कथन सत्य है, सत्य है । ll 27-28 ॥
हे नारद! सन्ध्याको उद्देश्य करके कहे गये इस अमृततुल्य स्तोत्रको जो भी व्यक्ति भक्तिपूर्वक सुनता है, वह पापसे मुक्त हो जाता है ॥ 29 ॥