View All Puran & Books

देवी भागवत महापुराण ( देवी भागवत)

Devi Bhagwat Purana (Devi Bhagwat Katha)

स्कन्ध 10, अध्याय 4 - Skand 10, Adhyay 4

Previous Page 276 of 326 Next

देवताओंका भगवान् शंकरसे विव्यपर्वतकी वृद्धि रोकनेकी प्रार्थना करना और शिवजीका उन्हें भगवान् विष्णुके पास भेजना

सूतजी बोले [हे मुनियो!] तत्पश्चात् इन्द्र आदि सभी प्रधान देवगण ब्रह्माजीको आगे करके भगवान् शिवकी शरणमें गये ॥ 1 ॥

गिरिपर शयन करनेवाले तथा चन्द्रमासे सुशोभित मस्तकवाले देवदेव शिवको प्रणाम करके वे देवता उनके सम्मुख खड़े हो गये और सुन्दर महिमासे युक्त स्तोत्रोंसे उनका स्तवन करने लगे ॥ 2 ॥

देवता बोले- हे देव! हे गणाध्यक्ष ! हे पार्वतीद्वारा पूजित चरणकमलवाले! हे भक्तजनको आठों सिद्धियोंकी विभूतियाँ प्रदान करनेवाले आपकी जय हो ॥ 3 ॥

महामायारूपी स्थलीमें विलास करनेवाले, परमात्मा वृषांक, अमरेश, कैलासवासी, अहिर्बुध्य मान्य, मनु, मान प्रदान करनेवाले, अज, अनेक रूपोंवाले, अपनी आत्मामें रमण करनेवाले, शम्भु गगेकि नाथ, गिरिपर शयन करनेवाले, महान् ऐश्वर्य | प्रदान करनेवाले तथा महाविष्णुके द्वारा स्तुत किये जानेवाले आप महादेवको नमस्कार है । ll 4-6 ॥

विष्णुके हृदयकमल निवास करनेवाले महायोगमें रत रहनेवाले, योगसे प्राप्त होनेवाले, योगस्वरूप तथा | योगियोंके अधीश्वरको नमस्कार है ॥ 7 ॥

योगीश, योगोंके फलदाता, दीनोंको दान | देने में तत्पर तथा दयासागरकी साक्षात् मूर्ति आपको नमस्कार है ॥ 8 ॥आर्त प्राणियोंका कष्ट निवारण करनेवाले, उग्र पराक्रमवाले, गुणमूर्ति, वृषध्वज, कालस्वरूप तथा कालोंके भी काल आपको नमस्कार है ॥ 9 ॥

सूतजी बोले- यज्ञभोक्ता देवताओंके द्वारा इस प्रकार स्तुत किये गये वृषध्वज देवेश शिव उन श्रेष्ठ देवताओंसे हँसते हुए गम्भीर वाणीमें कहने लगे - ॥ 10 ॥

श्रीभगवान् बोले- हे स्वर्गमें निवास करनेवाले ! हे उत्तम पुरुषो! मैं [आपलोगोंकी] स्तुतिसे प्रसन्न हूँ। हे श्रेष्ठ देवताओ! मैं आप सभीका मनोरथ पूर्ण करूँगा ॥ 11 ॥ देवता बोले- हे सर्वदेवेश ! हे गिरिश ! हे शशिशेखर ! हे महाबल ! आप दुःखी प्राणियोंका कल्याण करनेवाले हैं, अतएव हमारा भी कल्याण कीजिये ॥ 12 ॥

हे पुण्यात्मन्! विन्ध्य नामक एक पर्वत है, जिसने सुमेरुगिरिसे द्वेष करके आकाशमें अत्यधिक ऊपर उठकर सूर्यका मार्ग रोक दिया है और वह सबके लिये दुःखदायी बन गया है ॥ 13 ॥

हे ईशान ! उसकी वृद्धिको रोक दीजिये और सबके लिये कल्याणकारी बन जाइये सूर्यकी गति अवरुद्ध हो जानेपर लोगोंको कालज्ञान कैसे होगा ? लोकमें स्वाहा तथा स्वधाकारके विलुप्त हो जानेपर हमें कौन शरण देगा? भयसे पीड़ित हम देवताओंके लिये एकमात्र शरणदाता तो केवल आप ही परिलक्षित हो रहे हैं। हे पार्वतीपते! हे देव आप हमपर प्रसन्न होइये और हमारे कष्टका निवारण कीजिये ॥ 14-153 ॥

श्रीशिव बोले- हे देवताओ! उस विन्ध्यगिरिकी वृद्धिको रोकनेकी शक्ति इस समय मुझमें नहीं है। अब हमलोग भगवान् लक्ष्मीकान्तसे यह समाचार कहेंगे ॥ 163 ॥

वे कारणरूपधारी, समस्त कारणोंके कारण, आत्मारूप, गोविन्द भगवान् श्रीविष्णु हमलोगोंके पूज्य स्वामी हैं। अतएव उन्हींके पास जाकर हम कहेंगे और वे हमारा दुःख दूर करनेवाले होंगे ।। 17-18 ॥इस प्रकार भगवान् शिवका कथन सुनकर इन्द्र तथा ब्रह्मासहित समस्त देवता शंकरजीको आगे करके थर-थर काँपते हुए शीघ्रतापूर्वक वैकुण्ठलोकके लिये प्रस्थित हुए ॥ 19 ॥

Previous Page 276 of 326 Next

देवी भागवत महापुराण
Index


  1. [अध्याय 1] स्वायम्भुव मनुकी उत्पत्ति, उनके द्वारा भगवतीकी आराधना
  2. [अध्याय 2] देवीद्वारा मनुको वरदान, नारदजीका विन्ध्यपर्वतसे सुमेरुपर्वतकी श्रेष्ठता कहना
  3. [अध्याय 3] विन्ध्यपर्वतका आकाशतक बढ़कर सूर्यके मार्गको अवरुद्ध कर लेना
  4. [अध्याय 4] देवताओंका भगवान् शंकरसे विव्यपर्वतकी वृद्धि रोकनेकी प्रार्थना करना और शिवजीका उन्हें भगवान् विष्णुके पास भेजना
  5. [अध्याय 5] देवताओंका वैकुण्ठलोकमें जाकर भगवान् विष्णुकी स्तुति करना
  6. [अध्याय 6] भगवान् विष्णुका देवताओंको काशीमें अगस्त्यजीके पास भेजना, देवताओंकी अगस्त्यजीसे प्रार्थना
  7. [अध्याय 7] अगस्त्यजीकी कृपासे सूर्यका मार्ग खुलना
  8. [अध्याय 8] चाक्षुष मनुकी कथा, उनके द्वारा देवीकी आराधनाका वर्णन
  9. [अध्याय 9] वैवस्वत मनुका भगवतीकी कृपासे मन्वन्तराधिप होना, सावर्णि मनुके पूर्वजन्मकी कथा
  10. [अध्याय 10] सावर्णि मनुके पूर्वजन्मकी कथाके प्रसंगमें मधु-कैटभकी उत्पत्ति और भगवान् विष्णुद्वारा उनके वधका वर्णन
  11. [अध्याय 11] समस्त देवताओंके तेजसे भगवती महिषमर्दिनीका प्राकट्य और उनके द्वारा महिषासुरका वध, शुम्भ निशुम्भका अत्याचार और देवीद्वारा चण्ड-मुण्डसहित शुम्भ निशुम्भका वध
  12. [अध्याय 12] मनुपुत्रोंकी तपस्या, भगवतीका उन्हें मन्वन्तराधिपति होनेका वरदान देना, दैत्यराज अरुणकी तपस्या और ब्रह्माजीका वरदान, देवताओंद्वारा भगवतीकी स्तुति और भगवतीका भ्रामरीके रूपमें अवतार लेकर अरुणका वध करना
  13. [अध्याय 13] स्वारोचिष, उत्तम, तामस और रैवत नामक मनुओंका वर्णन