सूतजी बोले- वैकुण्ठमें जाकर उन देवताओंने कमलपत्रके समान नेत्रोंवाले, देवदेवेश्वर, रमाकान्त, जगद्गुरु भगवान् विष्णुको लक्ष्मीजी के साथ विराजमान देखा। वे गद्गद वाणीसे सत्कार करते हुए भक्तिपूर्वक स्तोत्रसे उनकी स्तुति करने लगे ॥ 13 ॥
देवता बोले- हे विष्णो! हे रमेश! हे आद्य ! हे महापुरुष! हे पूर्वज ! हे दैत्यशत्रु ! हे कामजनक ! हे सम्पूर्ण कामनाओंके फल प्रदान करनेवाले! हे महावराह ! हे गोविन्द ! हे महायज्ञस्वरूप! आपकी जय हो । ll 2-3 ॥
हे महाविष्णो हे ध्रुवेश! हे आद्य हे जगत्की उत्पत्तिके कारण ! हे मत्स्यावतारमें वेदोंका उद्धार करनेके लिये आधारस्वरूप ! हे सत्यव्रत! हे धराधीश ! आप मत्स्यरूपधारीको नमस्कार है ॥ 43 ॥
हे कच्छपावतार! हे दैत्यशत्रु हे देवकार्यसमर्पक! आपकी जय हो अमृतकी प्राप्ति करानेवाले हे ईश्वर ! आप कूर्मरूपधारीको नमस्कार है ॥ 53 ॥ आदिदैत्य हिरण्याक्षका संहार करनेके लिये सूकररूप धारी हे ईश्वर! आपकी जय हो। पृथ्वीका उद्धार करने हेतु उद्योगपरायण आप वराहरूपधारीको नमस्कार है ॥ 63 ॥ नृसिंहका रूप धारणकर जिन्होंने वरदानसे उन्मत्त अंगोंवाले महान् दैत्य हिरण्यकशिपुको अपने नखोंसे विदीर्ण कर डाला, उन नृसिंहभगवान्को नमस्कार है ।। 73 ।।
वामनरूप धारणकर जिन्होंने त्रिलोकीके ऐश्वर्यसे मोहित राजा बलिको छला था, उन वामनरूपधारीको नमस्कार है ॥ 83 ॥दुष्ट क्षत्रियोंका संहार करनेवाले, कार्तवीर्य सहस्रार्जुनके शत्रु तथा रेणुकाके गर्भसे उत्पन्न आप जमदग्निपुत्र परशुरामको नमस्कार है ॥ 93 ॥ पुलस्त्यनन्दन दुराचारी राक्षस रावणके सिर काटने में परम पटु, अनन्त पराक्रमवाले आप दशरथपुत्र श्रीमान् रामको नमस्कार है ।। 103 ॥
राजाओंके लिये कलंकस्वरूप कंस, दुर्योधन आदि दैत्योंके द्वारा भाराक्रान्त पृथ्वीका जिन महाप्रभुने उद्धार किया तथा पापका अन्त करके जिन्होंने धर्मकी स्थापना की, हे विभो ! उन आप श्रीकृष्णभगवान्को बार-बार नमस्कार है ॥। 11-123 ॥
दुष्ट यज्ञोंको विनष्ट करने तथा पशुहिंसा रोकनेके लिये जिन्होंने बौद्धरूप धारण किया; उन आप बुद्धदेवको नमस्कार है ॥ 133 ॥
सम्पूर्ण जगत् में म्लेच्छोंका बाहुल्य हो जानेपर तथा दुष्ट राजाओंद्वारा प्रजाओंको पीड़ित किये जानेपर | आपने कल्किरूप धारण किया था उन आप देवाधिदेवको नमस्कार है॥ 143 ॥
हे देव! आपके ये दसों अवतार भक्तोंकी रक्षाके लिये तथा दुष्ट राक्षसोंके विनाशके लिये ही हुए हैं, अतएव आप सभी प्राणियोंका दुःख हरनेवाले हैं। ॥ 153 ॥
भोंका दुःख दूर करनेके लिये आपने मोहिनी स्त्री तथा जल-जन्तुओंका रूप धारण किया, अतएव हे देव! आपके अतिरिक्त दूसरा कौन दयासागर हो सकता है? आपकी जय हो ॥ 163 ॥
इस प्रकार पीताम्बरधारी देवदेवेश श्रीहरिका स्तवन करके उन श्रेष्ठ देवताओंने भक्तिपूर्वक उन्हें साष्टांग प्रणाम किया ॥ 173 ॥
उनकी स्तुति सुनकर गदाधर पुरुषोत्तम भगवान् विष्णु सभी देवताओंको हर्षित करते हुए बोले- ॥183॥
श्रीभगवान् बोले- हे देवताओ! मैं आपलोगोंकी स्तुतिसे प्रसन्न हूँ, आपलोग शोकका त्याग कर दें। मैं आपलोगोंके इस परम दुःसह कष्टको दूर करूँगा ॥ 193 ॥हे देवताओ! आपलोग मुझसे परम दुर्लभ वर माँग लीजिये; [ आपलोगोंकी] इस स्तुतिके प्रभावसे अति प्रसन्न होकर मैं वर प्रदान करूँगा ॥ 203 ॥
जो मनुष्य प्रातःकाल उठकर मुझमें दृढ़ भक्ति रखकर इस स्तोत्रका पाठ करेगा, उसे कभी शोक स्पर्श नहीं कर सकेगा। हे देवताओ! दरिद्रता तथा | दुर्भाग्य उसके घरपर आक्रमण नहीं कर सकेंगे। विघ्न-बाधाएँ, वेताल, ग्रह तथा ब्रह्मराक्षस उसे पीड़ित नहीं कर सकते। वात-पित्त-कफसम्बन्धी रोग भी उसे नहीं होंगे। उसकी अकाल-मृत्यु कभी नहीं होगी और उसकी सन्तानें दीर्घ कालतक जीवित रहेंगी। जो इस स्तोत्रका पाठ करेगा, उस मनुष्यके घरमें सुख आदि सभी भोग-साधन विद्यमान रहेंगे । अधिक कहनेसे क्या प्रयोजन, यह स्तोत्र सभी अर्थोंका परम साधन करनेवाला है ॥ 21-25॥
इस स्तोत्रका पाठ करनेसे मनुष्योंके लिये भोग तथा मोक्ष उनसे दूर नहीं रहेंगे। हे देवताओ ! आपलोगोंको जो कष्ट हो, उसे आप नि:संकोच बताइये, मैं उसे दूर करूँगा; इसमें आपलोगों को अणुमात्र भी सन्देह नहीं करना चाहिये ॥ 263 ॥
इस प्रकार श्रीभगवान्का वचन सुनकर सभी | देवताओंका मन प्रसन्नतासे भर गया और वे पुनः | वृषाकपि भगवान् विष्णुसे कहने लगे ॥ 27 ॥