श्रीनारायण बोले [हे नारद!] सूर्यपुत्र यमराज सावित्रीको विधिपूर्वक भगवतीके महामन्त्र मायाबीजकी दीक्षा प्रदानकर उसे प्राणियोंके अशुभ कर्मका फल बताने लगे ॥ 1 ॥
धर्मराज बोले- शुभ कर्मके विपाकके कारण मनुष्य नरकमें नहीं जाता है। अब मैं अशुभ कर्मोंका फल कह रहा हूँ, ध्यानपूर्वक सुनो- ॥ 2 ॥
हे भामिनि ! अनेक प्रकारके पुराणोंके अनुसार नामभेदसे अनेकविध स्वर्ग हैं। अपने-अपने कर्मोके अनुसार जीव वहाँ जाता है ॥ 3 ॥
मनुष्य अपने शुभ कर्मके फलसे नरकमें नहीं | जाता है। वह अपने बुरे कर्मके कारण अनेक प्रकारके नरकमें पड़ता है ॥ 4 ॥
नरकोंके अनेक प्रकारके कुण्ड हैं। हे वत्से ! विविध शास्त्रोंके प्रमाणोंके अनुसार तथा जीवोंके कर्मभेदसे प्राप्त होनेवाले अत्यन्त विस्तृत, गहरे, पापियोंके लिये क्लेशदायक, भयंकर, घोर तथा कुत्सित कुल छियासी कुण्ड हैं; इसके अतिरिक्त कुछ अन्य कुण्ड भी हैं। हे साध्वि! उन कुण्डोंके वेदप्रसिद्ध नामोंको बता रहा हूँ ध्यानपूर्वक सुनो ॥5-7॥वह्निकुण्ड, तप्तकुण्ड, भयानक क्षारकुण्ड, विट्कुण्ड, मूत्रकुण्ड, दुःसह श्लेष्मकुण्ड, गरकुण्ड, दृषिकुण्ड वसाकुण्ड, शुक्रकुण्ड, असृकुण्ड, कुत्सित अनुकुण्ड, गात्रमलकुण्ड, कर्णविकुण्ड माकुण्ड, मांसकुण्ड, दुस्तर नक्रकुण्ड, लोमकुण्ड केशकुण्ड, दुस्तर अस्थिकुण्ड, ताम्रकुण्ड, प्रतप्त एवं महान् कष्टदायक लोहकुण्ड, चर्मकुण्ड, तप्तसुराकुण्ड, तीक्ष्ण कण्टककुण्ड, विषपूर्ण विषकुण्ड-ये कुण्ड बताये गये हैं॥ 8-12 ॥
हे सुव्रते ! इसी प्रकार प्रतप्त तैलकुण्ड, दुर्वह कुन्तकुण्ड, कृमिकुण्ड, पूयकुण्ड, अत्यन्त कष्टप्रद सर्पकुण्ड, मशककुण्ड, दंशकुण्ड, भयानक गरलकुण्ड और वज्रके समान दाँतों वाले बिच्छुओंके भी कुण्ड हैं हे शुचिस्मिते। शरकुण्ड, शूलकुण्ड, भयंकर खड्गकुण्ड, गोलकुण्ड, नक्रकुण्ड, कष्टदायक काककुण्ड, मन्धानकुण्ड, बीजकुण्ड, दुःसह वज्रकुण्ड तप्तपाषाणकुण्ड, तीक्ष्णपाषाणकुण्ड, लालाकुण्ड, मसौकुण्ड, चूर्णकुण्ड, चक्रतुण्ड वक्रकुण्ड, महाभयंकर कूर्मकुण्ड, ज्वालाकुण्ड, भस्मकुण्ड, दग्धकुण्ड, सप्तसूचीकुण्ड, असिपत्रकुण्ड, क्षुरधारकुण्ड, सूचीमुखकुण्ड, गोकामुखकुण्ड, नक्रमुखकुण्ड, गजदंशकुण्ड, गोमुखकुण्ड, कुम्भीपाककुण्ड, कालसूत्रकुण्ड, मत्स्योदकुण्ड, कृमितन्तु कुण्ड, पांसुभोज्यकुण्ड, पाशवेष्टकुण्ड, शूलप्रोतकुण्ड, प्रकम्पनकुण्ड, उल्कामुखकुण्ड, अन्धकूपकुण्ड, | वेधनकुण्ड, ताडनकुण्ड, जालरन्ध्रकुण्ड, देहचूर्णकुण्ड, दलनकुण्ड, शोषणकुण्ड, कपकुण्ड, सूर्यकुण्ड, ज्वालामुखकुण्ड, भूमान्धकुण्ड और नागवेष्टनकुण्ड ये कुण्ड कहे गये हैं ।। 13-21 ॥
हे सावित्रि! ये सभी कुण्ड पापियोंके लिये कलेशप्रद है। दस लाख अनुचर सदा इन कुण्डोंकी रखवाली करते रहते हैं। वे सभी निर्दयी, अभिमान चूर तथा भयंकर सेवकगण अपने हाथोंमें दण्ड, पाश, शन्ति गए और तलवार लिये रहते हैं। वे तमोगुण युक्त तथा दयाशून्य रहते हैं और कोई भी उनका प्रतिरोध नहीं कर सकता। उन तेजस्वी तथा निर्भीक | अनुचरोंकी आँखें ताँबेके सदृश तथा कुछ-कुछ पीलेवर्णकी हैं। योगयुक्त तथा सिद्धियोंसे सम्पन्न वे सभी सेवक अनेक प्रकारके रूप धारण कर लिया करते हैं। वे सेवक समस्त पापी प्राणियोंको उनकी मृत्यु निकट आनेपर दिखायी पड़ते हैं। शक्ति, सूर्य तथा गणपतिके उपासकों एवं अपने कर्मोंमें लगे रहनेवाले पुण्यशाली सिद्धों तथा योगियोंको वे दिखायी नहीं पड़ते। इसी प्रकार जो सदा अपने धर्ममें लगे रहते हैं, जिनका हृदय विशाल है, जो पूर्ण स्वतन्त्र हैं तथा जिन्हें स्वप्नमें या कहीं भी अपने इष्टदेवका दर्शन हो चुका है-ऐसे वैष्णवजनोंको वे बलवान् तथा निःशंक यमदूत कभी दिखायी नहीं पड़ते ॥ 22-27 ॥
हे साध्वि ! यह मैंने तुमसे कुण्डोंकी संख्याका निरूपण कर दिया। जिन-जिन पापियोंका जिन-जिन कुण्डोंमें वास होता है, अब मैं तुम्हें यह बता रहा हूँ, ध्यानसे सुनो ॥ 28 ॥