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देवी भागवत महापुराण ( देवी भागवत)

Devi Bhagwat Purana (Devi Bhagwat Katha)

स्कन्ध 9, अध्याय 32 - Skand 9, Adhyay 32

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धर्मराजका सावित्रीको अशुभ कर्मोंके फल बताना

श्रीनारायण बोले [हे नारद!] सूर्यपुत्र यमराज सावित्रीको विधिपूर्वक भगवतीके महामन्त्र मायाबीजकी दीक्षा प्रदानकर उसे प्राणियोंके अशुभ कर्मका फल बताने लगे ॥ 1 ॥

धर्मराज बोले- शुभ कर्मके विपाकके कारण मनुष्य नरकमें नहीं जाता है। अब मैं अशुभ कर्मोंका फल कह रहा हूँ, ध्यानपूर्वक सुनो- ॥ 2 ॥

हे भामिनि ! अनेक प्रकारके पुराणोंके अनुसार नामभेदसे अनेकविध स्वर्ग हैं। अपने-अपने कर्मोके अनुसार जीव वहाँ जाता है ॥ 3 ॥

मनुष्य अपने शुभ कर्मके फलसे नरकमें नहीं | जाता है। वह अपने बुरे कर्मके कारण अनेक प्रकारके नरकमें पड़ता है ॥ 4 ॥

नरकोंके अनेक प्रकारके कुण्ड हैं। हे वत्से ! विविध शास्त्रोंके प्रमाणोंके अनुसार तथा जीवोंके कर्मभेदसे प्राप्त होनेवाले अत्यन्त विस्तृत, गहरे, पापियोंके लिये क्लेशदायक, भयंकर, घोर तथा कुत्सित कुल छियासी कुण्ड हैं; इसके अतिरिक्त कुछ अन्य कुण्ड भी हैं। हे साध्वि! उन कुण्डोंके वेदप्रसिद्ध नामोंको बता रहा हूँ ध्यानपूर्वक सुनो ॥5-7॥वह्निकुण्ड, तप्तकुण्ड, भयानक क्षारकुण्ड, विट्कुण्ड, मूत्रकुण्ड, दुःसह श्लेष्मकुण्ड, गरकुण्ड, दृषिकुण्ड वसाकुण्ड, शुक्रकुण्ड, असृकुण्ड, कुत्सित अनुकुण्ड, गात्रमलकुण्ड, कर्णविकुण्ड माकुण्ड, मांसकुण्ड, दुस्तर नक्रकुण्ड, लोमकुण्ड केशकुण्ड, दुस्तर अस्थिकुण्ड, ताम्रकुण्ड, प्रतप्त एवं महान् कष्टदायक लोहकुण्ड, चर्मकुण्ड, तप्तसुराकुण्ड, तीक्ष्ण कण्टककुण्ड, विषपूर्ण विषकुण्ड-ये कुण्ड बताये गये हैं॥ 8-12 ॥

हे सुव्रते ! इसी प्रकार प्रतप्त तैलकुण्ड, दुर्वह कुन्तकुण्ड, कृमिकुण्ड, पूयकुण्ड, अत्यन्त कष्टप्रद सर्पकुण्ड, मशककुण्ड, दंशकुण्ड, भयानक गरलकुण्ड और वज्रके समान दाँतों वाले बिच्छुओंके भी कुण्ड हैं हे शुचिस्मिते। शरकुण्ड, शूलकुण्ड, भयंकर खड्गकुण्ड, गोलकुण्ड, नक्रकुण्ड, कष्टदायक काककुण्ड, मन्धानकुण्ड, बीजकुण्ड, दुःसह वज्रकुण्ड तप्तपाषाणकुण्ड, तीक्ष्णपाषाणकुण्ड, लालाकुण्ड, मसौकुण्ड, चूर्णकुण्ड, चक्रतुण्ड वक्रकुण्ड, महाभयंकर कूर्मकुण्ड, ज्वालाकुण्ड, भस्मकुण्ड, दग्धकुण्ड, सप्तसूचीकुण्ड, असिपत्रकुण्ड, क्षुरधारकुण्ड, सूचीमुखकुण्ड, गोकामुखकुण्ड, नक्रमुखकुण्ड, गजदंशकुण्ड, गोमुखकुण्ड, कुम्भीपाककुण्ड, कालसूत्रकुण्ड, मत्स्योदकुण्ड, कृमितन्तु कुण्ड, पांसुभोज्यकुण्ड, पाशवेष्टकुण्ड, शूलप्रोतकुण्ड, प्रकम्पनकुण्ड, उल्कामुखकुण्ड, अन्धकूपकुण्ड, | वेधनकुण्ड, ताडनकुण्ड, जालरन्ध्रकुण्ड, देहचूर्णकुण्ड, दलनकुण्ड, शोषणकुण्ड, कपकुण्ड, सूर्यकुण्ड, ज्वालामुखकुण्ड, भूमान्धकुण्ड और नागवेष्टनकुण्ड ये कुण्ड कहे गये हैं ।। 13-21 ॥

हे सावित्रि! ये सभी कुण्ड पापियोंके लिये कलेशप्रद है। दस लाख अनुचर सदा इन कुण्डोंकी रखवाली करते रहते हैं। वे सभी निर्दयी, अभिमान चूर तथा भयंकर सेवकगण अपने हाथोंमें दण्ड, पाश, शन्ति गए और तलवार लिये रहते हैं। वे तमोगुण युक्त तथा दयाशून्य रहते हैं और कोई भी उनका प्रतिरोध नहीं कर सकता। उन तेजस्वी तथा निर्भीक | अनुचरोंकी आँखें ताँबेके सदृश तथा कुछ-कुछ पीलेवर्णकी हैं। योगयुक्त तथा सिद्धियोंसे सम्पन्न वे सभी सेवक अनेक प्रकारके रूप धारण कर लिया करते हैं। वे सेवक समस्त पापी प्राणियोंको उनकी मृत्यु निकट आनेपर दिखायी पड़ते हैं। शक्ति, सूर्य तथा गणपतिके उपासकों एवं अपने कर्मोंमें लगे रहनेवाले पुण्यशाली सिद्धों तथा योगियोंको वे दिखायी नहीं पड़ते। इसी प्रकार जो सदा अपने धर्ममें लगे रहते हैं, जिनका हृदय विशाल है, जो पूर्ण स्वतन्त्र हैं तथा जिन्हें स्वप्नमें या कहीं भी अपने इष्टदेवका दर्शन हो चुका है-ऐसे वैष्णवजनोंको वे बलवान् तथा निःशंक यमदूत कभी दिखायी नहीं पड़ते ॥ 22-27 ॥

हे साध्वि ! यह मैंने तुमसे कुण्डोंकी संख्याका निरूपण कर दिया। जिन-जिन पापियोंका जिन-जिन कुण्डोंमें वास होता है, अब मैं तुम्हें यह बता रहा हूँ, ध्यानसे सुनो ॥ 28 ॥

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देवी भागवत महापुराण
Index


  1. [अध्याय 1] प्रकृतितत्त्वविमर्श प्रकृतिके अंश, कला एवं कलांशसे उत्पन्न देवियोंका वर्णन
  2. [अध्याय 2] परब्रह्म श्रीकृष्ण और श्रीराधासे प्रकट चिन्मय देवताओं एवं देवियोंका वर्णन
  3. [अध्याय 3] परिपूर्णतम श्रीकृष्ण और चिन्मयी राधासे प्रकट विराट्रूप बालकका वर्णन
  4. [अध्याय 4] सरस्वतीकी पूजाका विधान तथा कवच
  5. [अध्याय 5] याज्ञवल्क्यद्वारा भगवती सरस्वतीकी स्तुति
  6. [अध्याय 6] लक्ष्मी, सरस्वती तथा गंगाका परस्पर शापवश भारतवर्षमें पधारना
  7. [अध्याय 7] भगवान् नारायणका गंगा, लक्ष्मी और सरस्वतीसे उनके शापकी अवधि बताना तथा अपने भक्तोंके महत्त्वका वर्णन करना
  8. [अध्याय 8] कलियुगका वर्णन, परब्रह्म परमात्मा एवं शक्तिस्वरूपा मूलप्रकृतिकी कृपासे त्रिदेवों तथा देवियोंके प्रभावका वर्णन और गोलोकमें राधा-कृष्णका दर्शन
  9. [अध्याय 9] पृथ्वीकी उत्पत्तिका प्रसंग, ध्यान और पूजनका प्रकार तथा उनकी स्तुति
  10. [अध्याय 10] पृथ्वीके प्रति शास्त्र - विपरीत व्यवहार करनेपर नरकोंकी प्राप्तिका वर्णन
  11. [अध्याय 11] गंगाकी उत्पत्ति एवं उनका माहात्म्य
  12. [अध्याय 12] गंगाके ध्यान एवं स्तवनका वर्णन, गोलोकमें श्रीराधा-कृष्णके अंशसे गंगाके प्रादुर्भावकी कथा
  13. [अध्याय 13] श्रीराधाजीके रोषसे भयभीत गंगाका श्रीकृष्णके चरणकमलोंकी शरण लेना, श्रीकृष्णके प्रति राधाका उपालम्भ, ब्रह्माजीकी स्तुतिसे राधाका प्रसन्न होना तथा गंगाका प्रकट होना
  14. [अध्याय 14] गंगाके विष्णुपत्नी होनेका प्रसंग
  15. [अध्याय 15] तुलसीके कथा-प्रसंगमें राजा वृषध्वजका चरित्र- वर्णन
  16. [अध्याय 16] वेदवतीकी कथा, इसी प्रसंगमें भगवान् श्रीरामके चरित्रके एक अंशका कथन, भगवती सीता तथा द्रौपदी के पूर्वजन्मका वृत्तान्त
  17. [अध्याय 17] भगवती तुलसीके प्रादुर्भावका प्रसंग
  18. [अध्याय 18] तुलसीको स्वप्न में शंखचूड़का दर्शन, ब्रह्माजीका शंखचूड़ तथा तुलसीको विवाहके लिये आदेश देना
  19. [अध्याय 19] तुलसीके साथ शंखचूड़का गान्धर्वविवाह, शंखचूड़से पराजित और निर्वासित देवताओंका ब्रह्मा तथा शंकरजीके साथ वैकुण्ठधाम जाना, श्रीहरिका शंखचूड़के पूर्वजन्मका वृत्तान्त बताना
  20. [अध्याय 20] पुष्पदन्तका शंखचूड़के पास जाकर भगवान् शंकरका सन्देश सुनाना, युद्धकी बात सुनकर तुलसीका सन्तप्त होना और शंखचूड़का उसे ज्ञानोपदेश देना
  21. [अध्याय 21] शंखचूड़ और भगवान् शंकरका विशद वार्तालाप
  22. [अध्याय 22] कुमार कार्तिकेय और भगवती भद्रकालीसे शंखचूड़का भयंकर बुद्ध और आकाशवाणीका पाशुपतास्त्रसे शंखचूड़की अवध्यताका कारण बताना
  23. [अध्याय 23] भगवान् शंकर और शंखचूड़का युद्ध, भगवान् श्रीहरिका वृद्ध ब्राह्मणके वेशमें शंखचूड़से कवच माँग लेना तथा शंखचूड़का रूप धारणकर तुलसीसे हास-विलास करना, शंखचूड़का भस्म होना और सुदामागोपके रूपमें गोलोक पहुँचना
  24. [अध्याय 24] शंखचूड़रूपधारी श्रीहरिका तुलसीके भवनमें जाना, तुलसीका श्रीहरिको पाषाण होनेका शाप देना, तुलसी-महिमा, शालग्रामके विभिन्न लक्षण एवं माहात्म्यका वर्णन
  25. [अध्याय 25] तुलसी पूजन, ध्यान, नामाष्टक तथा तुलसीस्तवनका वर्णन
  26. [अध्याय 26] सावित्रीदेवीकी पूजा-स्तुतिका विधान
  27. [अध्याय 27] भगवती सावित्रीकी उपासनासे राजा अश्वपतिको सावित्री नामक कन्याकी प्राप्ति, सत्यवान् के साथ सावित्रीका विवाह, सत्यवान्की मृत्यु, सावित्री और यमराजका संवाद
  28. [अध्याय 28] सावित्री यमराज-संवाद
  29. [अध्याय 29] सावित्री धर्मराजके प्रश्नोत्तर और धर्मराजद्वारा सावित्रीको वरदान
  30. [अध्याय 30] दिव्य लोकोंकी प्राप्ति करानेवाले पुण्यकर्मोंका वर्णन
  31. [अध्याय 31] सावित्रीका यमाष्टकद्वारा धर्मराजका स्तवन
  32. [अध्याय 32] धर्मराजका सावित्रीको अशुभ कर्मोंके फल बताना
  33. [अध्याय 33] विभिन्न नरककुण्डों में जानेवाले पापियों तथा उनके पापोंका वर्णन
  34. [अध्याय 34] विभिन्न पापकर्म तथा उनके कारण प्राप्त होनेवाले नरकका वर्णन
  35. [अध्याय 35] विभिन्न पापकर्मोंसे प्राप्त होनेवाली विभिन्न योनियोंका वर्णन
  36. [अध्याय 36] धर्मराजद्वारा सावित्रीसे देवोपासनासे प्राप्त होनेवाले पुण्यफलोंको कहना
  37. [अध्याय 37] विभिन्न नरककुण्ड तथा वहाँ दी जानेवाली यातनाका वर्णन
  38. [अध्याय 38] धर्मराजका सावित्री से भगवतीकी महिमाका वर्णन करना और उसके पतिको जीवनदान देना
  39. [अध्याय 39] भगवती लक्ष्मीका प्राकट्य, समस्त देवताओंद्वारा उनका पूजन
  40. [अध्याय 40] दुर्वासाके शापसे इन्द्रका श्रीहीन हो जाना
  41. [अध्याय 41] ब्रह्माजीका इन्द्र तथा देवताओंको साथ लेकर श्रीहरिके पास जाना, श्रीहरिका उनसे लक्ष्मीके रुष्ट होनेके कारणोंको बताना, समुद्रमन्थन तथा उससे लक्ष्मीजीका प्रादुर्भाव
  42. [अध्याय 42] इन्द्रद्वारा भगवती लक्ष्मीका षोडशोपचार पूजन एवं स्तवन
  43. [अध्याय 43] भगवती स्वाहाका उपाख्यान
  44. [अध्याय 44] भगवती स्वधाका उपाख्यान
  45. [अध्याय 45] भगवती दक्षिणाका उपाख्यान
  46. [अध्याय 46] भगवती षष्ठीकी महिमाके प्रसंगमें राजा प्रियव्रतकी कथा
  47. [अध्याय 47] भगवती मंगलचण्डी तथा भगवती मनसाका आख्यान
  48. [अध्याय 48] भगवती मनसाका पूजन- विधान, मनसा-पुत्र आस्तीकका जनमेजयके सर्पसत्रमें नागोंकी रक्षा करना, इन्द्रद्वारा मनसादेवीका स्तवन करना
  49. [अध्याय 49] आदि गौ सुरभिदेवीका आख्यान
  50. [अध्याय 50] भगवती श्रीराधा तथा श्रीदुर्गाके मन्त्र, ध्यान, पूजा-विधान तथा स्तवनका वर्णन