नारदजी बोले - भूमिका दान करनेसे होनेवाले पुण्य तथा उसका हरण करनेसे होनेवाले पाप, दूसरेकी भूमि छीननेसे होनेवाले पाप, दूसरेके द्वारा खोदे गये जलहीन कुएँको बिना उसकी आज्ञा लिये खोदने, अम्बुवाची दिनोंमें भूखनन करने, पृथ्वीपर वीर्य त्याग करने तथा दीपक रखनेसे जो पाप होता है, उसे मैं यत्नपूर्वक सुनना चाहता हूँ। हे वेदवेत्ताओंमें श्रेष्ठ! मेरे पूछनेके अतिरिक्त अन्य भी जो पृथ्वीसम्बन्धी पाप हो, उसे तथा उसके निराकरणका उपाय बतलाइये ॥ 1-3 ॥
श्रीनारायण बोले- जो मनुष्य भारतवर्षमें वितस्ति ( बित्ता) मात्र भूमि भी किसी सन्ध्योपासनासे पवित्र हुए ब्राह्मणको दान करता है, वह शिवलोकको प्राप्त होता है ॥ 4 ॥
जो मनुष्य किसी ब्राह्मणको सब प्रकारकी फसलोंसे सम्पन्न भूमि प्रदान करता है, वह उस भूमिमें विद्यमान धूलके कणोंकी संख्याके बराबर वर्षोंतक भगवान् विष्णुके लोकमें निवास करता है ॥ 5 ॥
जो व्यक्ति ब्राह्मणको ग्राम, भूमि और धान्यका दान करता है, उसके पुण्यसे दाता और प्रतिगृहीता दोनों व्यक्ति सम्पूर्ण पापोंसे मुक्त होकर जगदम्बाके लोकमें स्थान पाते हैं ॥ 6 ॥
जो सज्जन भूमिदानके अवसरपर दाताके | इस कर्मका अनुमोदन करता है, वह अपने मित्रों तथा सगोत्री बन्धुओंसहित वैकुण्ठलोकको प्राप्त होता है ॥ 7 ॥
जो मनुष्य किसी ब्राह्मणकी अपने अथवा दूसरेके द्वारा दी गयी आजीविकाको उससे जनता है, वह सूर्य तथा चन्द्रमाके स्थितिपर्यन्त कालसूत्र नरकमें रहता है। इस पापके प्रभावसे उस व्यक्तिके पुत्र-पौत्र आदि भूमिसे होन रहते हैं। वह लक्ष्मीरहित, पुत्रविहीन तथा दरिद्र होकर भीषण रौरवनरकमें पड़ता है ॥ 8-9 ॥जो मनुष्य गोचर भूमिको जोतकर उससे उपार्जित धान्य ब्राह्मणको देता है, वह देवताओंके दिव्य सौं वत कुम्भीपाकनरकमें निवास करता है॥ 10 ॥
जो मनुष्य गायोंके रहनेके स्थान, तड़ाग तथा मार्गको जोड़कर वहाँसे पैदा किये हुए अन्नका दान करता है, वह चौदह इन्द्रोंकी स्थितिपर्यन्त असिपत्र नामक नरकमें पड़ा रहता है ॥ 11 ॥
जो मनुष्य किसी दूसरेके कुएँ, तड़ाग आदिमेंसे पाँच मृतिका पिण्डौको निकाले बिना ही उसमें स्नान करता है, वह नरक प्राप्त करता है और उसका स्नान भी निष्फल होता है ॥ 12 ॥
जो कामास पुरुष एकान्तमें पृथ्वीपर वीर्यका त्याग करता है, वहाँकी जमीनपर जितने धूलकण हैं, उतने वर्षोंतक वह रौरवनरकमें वास करता है ॥ 13 ॥
जो मनुष्य अम्बुवाचीकालमें भूमि खोदनेका कार्य करता है, वह कृमिदंश नामक नरकमें जाता है और वहाँपर चार युगोंतक उसकी स्थिति रहती है ॥ 14 ॥
जो मूर्ख मनुष्य किसी दूसरेके लुप्त कुएँपर अपना कुआँ तथा लुप्त बावलीपर अपनी बावली बनवाता है, उस कार्यका सारा फल उस दूसरे व्यक्तिको | मिल जाता है और वह स्वयं तप्तकुण्ड नामक नरकमें पड़ता है। वहाँपर चौदह इन्द्रोंकी स्थितिपर्यन्त कष्ट भोगते हुए वह पड़ा रहता है ।। 15-16 ॥
जो मनुष्य दूसरेके तड़ागमें पड़ी हुई कीचड़को साफ करके स्नान करता है, उस कीचड़में जितने कण होते हैं, उतने वर्षोंतक वह ब्रह्मलोकमें निवास करता है ॥ 17 ॥
जो मूर्ख मनुष्य भूमिपतिके पितरको पिण्ड दिये बिना श्राद्ध करता है, वह अवश्य ही नरकगामी होता है ॥ 18 ॥
जो व्यक्ति भूमिपर दीपक रखता है, वह सात जन्मोंतक अन्धा रहता है और जो भूमिपर शंख रखता है, वह दूसरे जन्ममें कुष्ठरोगसे ग्रसित होता है ।। 19 ।।
जो मनुष्य मोती, माणिक्य, हीरा, सुवर्ण तथा मणि- इन पाँच रत्नोंको भूमिपर रखता है, वह सात जन्मोंतक अन्धा रहता है ॥ 20 ॥जो मनुष्य शिवलिंग भगवती शिवाकी प्रतिमा तथा शालग्रामशिला भूमिपर रखता है, वह सौ मन्वन्तरतक कृमिभक्ष नामक नरकमें वास
करता है ॥ 21 ॥ जो शंख, यन्त्र, शालग्रामशिलाका जल, पुष्प और तुलसीदलको भूमिपर रखता है; वह निश्चितरूपसे नरकमें वास करता है॥ 22 ॥
जो मन्दबुद्धि मनुष्य जपमाला, पुष्पमाला, कपूर तथा गोरोचनको भूमिपर रखता है, वह निश्चितरूपसे नरकगामी होता है ॥ 23 ॥
चन्दनकाष्ठ, रुद्राक्ष और कुशकी जड़ जमीनपर रखनेवाला मनुष्य एक मन्वन्तरपर्यन्त नरकमें वास करता है ।। 24 ।।
जो मनुष्य पुस्तक तथा यज्ञोपवीत भूमिपर रखता है, वह अगले जन्ममें विप्रयोनिमें उत्पन्न नहीं होता है ॥ 25
जो सभी वर्णोंके द्वारा पूज्य ग्रन्थियुक्त यज्ञोपवीतको
भूमिपर रखता है, वह निश्चितरूपसे इस लोकमें
ब्रह्म हत्या के समान पापका भागी होता है॥ 26 ॥
जो मनुष्य यज्ञ करके वहभूमिको दूधसे नहीं सींचता है, वह सात जन्मोंतक कष्ट भोगता हुआ तप्तभूमि नामक नरकमें निवास करता है ॥ 27 ॥
जो मनुष्य भूकम्प तथा ग्रहणके अवसरपर भूमि खोदता है, वह महापापी जन्मान्तरमें निश्चितरूपसे अंगहीन होता है ॥ 28 ॥
हे महामुने! इस धरतीपर सभी लोगोंके भवन हैं; इसलिये यह 'भूमि', कश्यपकी पुत्री होनेके कारण 'काश्यपी', स्थिररूपमें रहनेके कारण 'अचला', विश्वको धारण करनेसे 'विश्वम्भरा', अनन्त रूपोंवाली होनेके कारण 'अनन्ता' और पृथुकी कन्या होने अथवा सर्वत्र फैली रहनेके कारण 'पृथिवी' कही गयी है ll 29-30 ll