नारदजी बोले [हे भगवन्!] मैं सावित्री तथा धर्मराजके संवादमें निराकार मूलप्रकृति भगवती गायत्रीका निर्मल यश सुन चुका। उनके गुणोंका कीर्तन सत्यस्वरूप तथा मंगलोंका भी मंगल है। हे प्रभो! अब मैं लक्ष्मीका उपाख्यान सुनना चाहता हूँ ॥ 1-2 ॥ हे वेदवेत्ताओंमें श्रेष्ठ! सर्वप्रथम उन भगवती लक्ष्मीकी पूजा किसने की, उनका स्वरूप क्या है तथा पूर्वकालमें किसने उनके गुणोंका कीर्तन किया? यह सब मुझे बताइये ॥ 3 ॥
श्रीनारायण बोले- हे ब्रह्मन् ! प्राचीन समयमें सृष्टिके आरम्भमें रासमण्डलके मध्य परमात्मा श्रीकृष्णके वाम भागसे भगवती राधा प्रकट हुई ॥ 4 ॥
वे भगवती लावण्यसम्पन्न तथा अत्यन्त सुन्दर थीं, उनके चारों ओर वटवृक्ष सुशोभित थे, वे बारह वर्षकी सुन्दरीकी भाँति दिख रही थीं, सर्वदा स्थिर रहनेवाले तारुण्यसे सम्पन्न थीं, श्वेत चम्पाके पुष्प जैसी कान्तिवाली थीं, उन मनोहारिणी देवीका दर्शन बड़ा ही सुखदायक था, उनका मुखमण्डल शरत्पूर्णिमाके करोड़ों चन्द्रमाओंकी प्रभाको तिरोहित कर रहा था और उनके नेत्र शरद् ऋतुके मध्याह्नकालीन कमलोंकी | शोभाको तिरस्कृत कर रहे थे ।। 5-63 ॥सर्वेश्वर श्रीकृष्णके साथ विराजमान रहनेवाली वे देवी उनकी इच्छासे दो रूपोंमें व्यक्त हो गयीं। ये दोनों ही देवियाँ अपने रूप, वर्ण, तेज, आयु, कान्ति यश, वस्त्र, कृत्य, आभूषण, गुण, मुसकान, अवलोकन प्रेम तथा अनुनय-विनय आदिमें समान थीं। उनके बायें अंशसे महालक्ष्मी आविर्भूत हुई तथा दाहिने | अंशसे राधिका स्वयं ही विद्यमान रहीं ॥ 7-9 ॥
पहले राधिकाने दो भुजाओंवाले परात्पर श्रीकृष्णको पतिरूपसे वरण किया। तत्पश्चात् महालक्ष्मीने भी उन्हीं मनोहर श्रीकृष्णको पति बनानेकी इच्छा प्रकट की। तब उन्हें गौरव प्रदान करनेके विचारसे वे श्रीकृष्ण भी दो रूपोंमें हो गये। वे अपने दाहिने अंशसे दो भुजाधारी श्रीकृष्ण बने रहे और बायें अंशसे चार भुजाओंवाले श्रीविष्णु हो गये। उसके बाद द्विभुज श्रीकृष्णने चतुर्भुज विष्णुको महालक्ष्मी समर्पित कर दी ।। 10-113 ॥
जो भगवती अपनी स्नेहमयी दृष्टिसे निरन्तर विश्वकी देखभाल करती रहती हैं, वे अत्यन्त महत्त्व शालिनी होनेके कारण महालक्ष्मी कही गयी हैं। इस प्रकार दो भुजाओंवाले श्रीकृष्ण राधाके पति बने और चतुर्भुज श्रीविष्णु महालक्ष्मीके पति हुए। ll 12-13॥
शुद्ध सत्त्वस्वरूपिणी भगवती श्रीराधा गोपों और गोपिकाओंसे आवृत होकर अत्यन्त शोभा पाने लगीं और चतुर्भुज भगवान् विष्णु लक्ष्मीके साथ वैकुण्ठ चले गये ॥ 14 ॥ परात्पर श्रीकृष्ण और श्रीविष्णु- वे दोनों ही समस्त अंशोंमें समान हैं। भगवती महालक्ष्मी योगबलसे नाना रूपोंमें विराजमान हुई ।। 15 ।।
वे ही भगवती परिपूर्णतम परम शुद्धस्वरूपा महालक्ष्मी नामसे प्रसिद्ध हो सम्पूर्ण सौभाग्योंसे सम्पन्न होकर वैकुण्ठलोकमें निवास करने लगीं ॥ 16 ॥ वे प्रेमके कारण समस्त नारियोंमें प्रधान हुईं। वे भगवती इन्द्रकी विभवस्वरूपा होकर स्वर्गमें स्वर्गलक्ष्मी नामसे प्रसिद्ध हुई। वे पातालमें नागलक्ष्मी राजाओंके यहाँ राजलक्ष्मी और गृहस्थोंके घरोंमें गृहलक्ष्मीके रूपमें अपनी कलाके एक अंशसे विराजमान हुई। सभी मंगलों का भी मंगल करनेवाली वे भगवती लक्ष्मी | गृहस्थोंके लिये सम्पत्तिस्वरूपिणी । ll 17 183 llगायोंकी जननी सुरभि तथा यज्ञपत्नी दक्षिणाके रूपमें वे ही प्रतिष्ठित हैं। वे महालक्ष्मी ही क्षीर सागरकी कन्याके रूपमें प्रकट हुई। वे कमलिनियों में श्रीरूपसे तथा चन्द्रमामें शोभारूपसे विराजमान हैं और सूर्यमण्डल इन्हींसे सुशोभित है। भूषण, रत्न, फल, जल, राजा, रानी, दिव्य स्त्री, गृह, सभी प्रकारके धान्य, वस्त्र, पवित्र स्थान, देवप्रतिमा, मंगलकलश, माणिक्य, मुक्ता, माला, श्रेष्ठ मणि, होरा, दुग्ध, चन्दन, वृक्षोंकी सुरम्य शाखा तथा नवीन मेघ - इन सभी वस्तुओंमें परम मनोहर महालक्ष्मीका ही अंश विद्यमान है । ll19-233 ॥
हे मुने सर्वप्रथम भगवान् नारायणने वैकुण्ठमें उन भगवती महालक्ष्मीकी पूजा की थी, दूसरी बार ब्रह्माने तथा तीसरी बार शंकरने भक्तिपूर्वक उनकी पूजा की, भगवान् विष्णुने भारतवर्षमें क्षीरसागरमें उन महालक्ष्मीकी पूजा की। उसके बाद स्वायम्भुव मनु सभी राजागण, श्रेष्ठ ऋषि, मुनीश्वर तथा सदाचारी गृहस्थ-इन सभी लोगन जगतमें महालक्ष्मीकी उपासना की। गन्धर्वो तथा नाग आदिके द्वारा वे पाताललोकमें पूजित हुई। ll24- 263 ॥
हे नारद! ब्रह्माजीने भाद्रपदके शुक्लपक्षकी अष्टमी से प्रारम्भ करके पक्षपर्यन्त भक्तिपूर्वक उनकी पूजा की, फिर तीनों लोकोंमें उनकी पूजा होने लगी। चैत्र, पौष तथा भाद्रपदमासोंके पवित्र मंगलवारको विष्णुके द्वारा उनकी पूजा की गयी, बादमें तीनों लोकोंमें सभी लोग भक्तिपूर्वक उनकी उपासना करने लगे ।। 27-283 ॥
वर्षके अन्तमें पौषको संक्रान्तिके अवसरपर मध्याह्नकालमें मनुने मंगलकलशपर आवाहन करके उनकी पूजा की। उसके बाद वे भगवती तीनों लोकोंमें पूज्य हो गयीं। इन्द्रके द्वारा वे पूजित हुई। मंगलने भी उन मंगलमयी भगवतीकी पूजा की उसके बाद केदार, नील, सुबल, नल, ध्रुव, उत्तानपाद, शक्र, बलि कश्यप, दक्ष, कर्दम, विवस्वान्, प्रियव्रत चन्द्र, कुबेर, वायु, यम, अग्नि और वरुणने उनकी उपासना की। इस प्रकार समस्त ऐश्वर्योकी अधिष्ठात्री देवीतथा समग्र सम्पदाओंकी विग्रहस्वरूपिणी वे भगवती महालक्ष्मी सर्वत्र सब लोगोंद्वारा सदा पूजित तथा वन्दित हुई ।। 29 - 33 ॥