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देवी भागवत महापुराण ( देवी भागवत)

Devi Bhagwat Purana (Devi Bhagwat Katha)

स्कन्ध 9, अध्याय 27 - Skand 9, Adhyay 27

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भगवती सावित्रीकी उपासनासे राजा अश्वपतिको सावित्री नामक कन्याकी प्राप्ति, सत्यवान् के साथ सावित्रीका विवाह, सत्यवान्की मृत्यु, सावित्री और यमराजका संवाद

श्रीनारायण बोले- हे नारद! राजा अश्वपतिने विधिपूर्वक भगवती सावित्रीकी पूजा करके इस स्तोत्रसे उनकी स्तुति करनेके अनन्तर उसी स्थानपर हजारों सूयोंके समान तेजसे सम्पन्न उन देवीके दर्शन किये ॥ 1 ॥

अपने प्रभामण्डलसे दिशाओंको आलोकित करती हुई प्रसन्नवदना भगवतीने मुसकराते हुए इस प्रकार राजाको सम्बोधित किया, जैसे माता अपने पुत्रको कहती है ॥ 2 ॥

सावित्री बोलीं- हे महाराज! मैं जानती हूँ कि आपके मनमें क्या कामना है और आपकी पत्नी क्या चाहती है, मैं निश्चितरूपसे वह सब प्रदान करूँगी ॥ 3 ॥

आपकी साध्वी पत्नी कन्याकी कामना करती है और आप पुत्रकी इच्छा रखते हैं, ये दोनों ही अभिलाषाएँ क्रमसे पूर्ण होंगी ॥ 4 ॥

ऐसा कहकर वे भगवती सावित्री ब्रह्मलोक चली गयीं और राजा अश्वपति अपने घर लौट गये। उन्हें समयपर पहले कन्या उत्पन्न हुई। भगवती सावित्रीकी आराधनाके प्रभावसे श्रेष्ठ देवी कमला ही पुत्रीरूपमें उत्पन्न हुई थीं। राजा अश्वपतिने उस कन्याका नाम 'सावित्री' रखा ll 5-6 ll

वह कन्या शुक्लपक्षके चन्द्रमाके समान दिनोंदिन बढ़ने लगी और यथासमय रूप तथा यौवनसे सम्पन्न हो गयी ॥ 7 ॥

उसने द्युमत्सेनके सत्यनिष्ठ तथा अनेक गुणोंसे युक्त पुत्र सत्यवान्का पतिरूपमें वरण किया। तब राजाने रत्नमय भूषणोंसे अलंकृत उस कन्याको उन्हें समर्पित कर दिया। सत्यवान् भी बड़े हर्ष के साथ उस कन्याको लेकर अपने घर चले गये ॥ 8-9 ॥एक वर्ष बीतनेके पश्चात् वे सत्यपराक्रमी | सत्यवान् अपने पिताकी आज्ञाके अनुसार हर्षपूर्वक | फल तथा लकड़ी लानेके लिये वनमें गये ॥ 10 ॥ साध्वी सावित्री भी उनके पीछे-पीछे गयी। दैवयोगसे सत्यवान् वृक्षसे गिर पड़े और उनके प्राण निकल गये ॥ 11 ॥

हे मुने! सत्यवान्को मृत देखकर जब यमराजने उनके अंगुष्ठ-प्रमाण सूक्ष्म शरीरको साथ लेकर प्रस्थान किया, तब साध्वी सावित्री भी उनके पीछे जाने लगी ॥ 12 ॥

संयमनीपुरीके स्वामी और साधुओंमें परम श्रेष्ठ धर्मराज सुन्दर दाँतोंवाली उस सावित्रीको अपने पीछे पीछे आते देखकर मधुर वाणीमें उससे कहने लगे ॥ 13 ॥

धर्मराज बोले- हे सावित्रि! तुम यह मानव शरीर धारण किये कहाँ जा रही हो? यदि तुम अपने पतिके साथ जानेकी इच्छा रखती हो, तो पहले इस शरीरका त्याग करो ॥ 14 ॥

विनाशशील मनुष्य अपने इस नश्वर तथा पांच भौतिक शरीरको लेकर मेरे लोक कभी नहीं जा सकता है ।। 15 ।।

हे साध्वि! भारतवर्षमें आये हुए तुम्हारे पतिकी आयु अब पूर्ण हो चुकी है। अपने कर्मोंका फल भोगनेके लिये अब यह सत्यवान् मेरे लोकमें जा रहा है ॥ 16 ॥

प्राणी कर्मके अनुसार ही जन्म प्राप्त करता है। और कर्मानुसार ही मृत्युको भी प्राप्त होता है। सुख दुःख, भय और शोक भी कर्मसे ही मिलते रहते हैं। जीव अपने कर्मके प्रभावसे इन्द्र हो सकता है, वह अपने कर्मसे ब्रह्मपुत्र बन सकता है और अपने कर्मके द्वारा वह हरिका दास बनकर जन्म-मरणके बन्धनसे मुक्त हो जाता है। मनुष्य अपने कर्मके प्रभावसे सम्पूर्ण सिद्धियाँ, अमरत्व और भगवान् विष्णुके सालोक्य आदि चार प्रकारके मोक्षपद निश्चितरूपसे प्राप्त कर सकता है ।। 17-19 ॥

मनुष्यको अपने कर्मके द्वारा देवता, मनु, राजेन्द्र, शिव तथा गणेशतकका पद सुलभ हो जाता है। उसी प्रकार अपने कर्मके प्रभावसे ही मनुष्यश्रेष्ठ मुनि, तपस्वी ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा म्लेच्छ बन जाता है; इसमें कोई सन्देह नहीं है। अपने कर्मानुसार ही प्राणीको जंगम, पर्वत, राक्षस, किन्नर, अधिपति, वृक्ष, पशु, वनके प्राणी, अत्यन्त सूक्ष्म जन्तु, कीट, दैत्य, दानव तथा असुर आदि योनियाँ प्राप्त होती हैं। सावित्रीसे ऐसा कहकर वे यमराज
चुप हो गये ॥ 20 - 25 ॥

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देवी भागवत महापुराण
Index


  1. [अध्याय 1] प्रकृतितत्त्वविमर्श प्रकृतिके अंश, कला एवं कलांशसे उत्पन्न देवियोंका वर्णन
  2. [अध्याय 2] परब्रह्म श्रीकृष्ण और श्रीराधासे प्रकट चिन्मय देवताओं एवं देवियोंका वर्णन
  3. [अध्याय 3] परिपूर्णतम श्रीकृष्ण और चिन्मयी राधासे प्रकट विराट्रूप बालकका वर्णन
  4. [अध्याय 4] सरस्वतीकी पूजाका विधान तथा कवच
  5. [अध्याय 5] याज्ञवल्क्यद्वारा भगवती सरस्वतीकी स्तुति
  6. [अध्याय 6] लक्ष्मी, सरस्वती तथा गंगाका परस्पर शापवश भारतवर्षमें पधारना
  7. [अध्याय 7] भगवान् नारायणका गंगा, लक्ष्मी और सरस्वतीसे उनके शापकी अवधि बताना तथा अपने भक्तोंके महत्त्वका वर्णन करना
  8. [अध्याय 8] कलियुगका वर्णन, परब्रह्म परमात्मा एवं शक्तिस्वरूपा मूलप्रकृतिकी कृपासे त्रिदेवों तथा देवियोंके प्रभावका वर्णन और गोलोकमें राधा-कृष्णका दर्शन
  9. [अध्याय 9] पृथ्वीकी उत्पत्तिका प्रसंग, ध्यान और पूजनका प्रकार तथा उनकी स्तुति
  10. [अध्याय 10] पृथ्वीके प्रति शास्त्र - विपरीत व्यवहार करनेपर नरकोंकी प्राप्तिका वर्णन
  11. [अध्याय 11] गंगाकी उत्पत्ति एवं उनका माहात्म्य
  12. [अध्याय 12] गंगाके ध्यान एवं स्तवनका वर्णन, गोलोकमें श्रीराधा-कृष्णके अंशसे गंगाके प्रादुर्भावकी कथा
  13. [अध्याय 13] श्रीराधाजीके रोषसे भयभीत गंगाका श्रीकृष्णके चरणकमलोंकी शरण लेना, श्रीकृष्णके प्रति राधाका उपालम्भ, ब्रह्माजीकी स्तुतिसे राधाका प्रसन्न होना तथा गंगाका प्रकट होना
  14. [अध्याय 14] गंगाके विष्णुपत्नी होनेका प्रसंग
  15. [अध्याय 15] तुलसीके कथा-प्रसंगमें राजा वृषध्वजका चरित्र- वर्णन
  16. [अध्याय 16] वेदवतीकी कथा, इसी प्रसंगमें भगवान् श्रीरामके चरित्रके एक अंशका कथन, भगवती सीता तथा द्रौपदी के पूर्वजन्मका वृत्तान्त
  17. [अध्याय 17] भगवती तुलसीके प्रादुर्भावका प्रसंग
  18. [अध्याय 18] तुलसीको स्वप्न में शंखचूड़का दर्शन, ब्रह्माजीका शंखचूड़ तथा तुलसीको विवाहके लिये आदेश देना
  19. [अध्याय 19] तुलसीके साथ शंखचूड़का गान्धर्वविवाह, शंखचूड़से पराजित और निर्वासित देवताओंका ब्रह्मा तथा शंकरजीके साथ वैकुण्ठधाम जाना, श्रीहरिका शंखचूड़के पूर्वजन्मका वृत्तान्त बताना
  20. [अध्याय 20] पुष्पदन्तका शंखचूड़के पास जाकर भगवान् शंकरका सन्देश सुनाना, युद्धकी बात सुनकर तुलसीका सन्तप्त होना और शंखचूड़का उसे ज्ञानोपदेश देना
  21. [अध्याय 21] शंखचूड़ और भगवान् शंकरका विशद वार्तालाप
  22. [अध्याय 22] कुमार कार्तिकेय और भगवती भद्रकालीसे शंखचूड़का भयंकर बुद्ध और आकाशवाणीका पाशुपतास्त्रसे शंखचूड़की अवध्यताका कारण बताना
  23. [अध्याय 23] भगवान् शंकर और शंखचूड़का युद्ध, भगवान् श्रीहरिका वृद्ध ब्राह्मणके वेशमें शंखचूड़से कवच माँग लेना तथा शंखचूड़का रूप धारणकर तुलसीसे हास-विलास करना, शंखचूड़का भस्म होना और सुदामागोपके रूपमें गोलोक पहुँचना
  24. [अध्याय 24] शंखचूड़रूपधारी श्रीहरिका तुलसीके भवनमें जाना, तुलसीका श्रीहरिको पाषाण होनेका शाप देना, तुलसी-महिमा, शालग्रामके विभिन्न लक्षण एवं माहात्म्यका वर्णन
  25. [अध्याय 25] तुलसी पूजन, ध्यान, नामाष्टक तथा तुलसीस्तवनका वर्णन
  26. [अध्याय 26] सावित्रीदेवीकी पूजा-स्तुतिका विधान
  27. [अध्याय 27] भगवती सावित्रीकी उपासनासे राजा अश्वपतिको सावित्री नामक कन्याकी प्राप्ति, सत्यवान् के साथ सावित्रीका विवाह, सत्यवान्की मृत्यु, सावित्री और यमराजका संवाद
  28. [अध्याय 28] सावित्री यमराज-संवाद
  29. [अध्याय 29] सावित्री धर्मराजके प्रश्नोत्तर और धर्मराजद्वारा सावित्रीको वरदान
  30. [अध्याय 30] दिव्य लोकोंकी प्राप्ति करानेवाले पुण्यकर्मोंका वर्णन
  31. [अध्याय 31] सावित्रीका यमाष्टकद्वारा धर्मराजका स्तवन
  32. [अध्याय 32] धर्मराजका सावित्रीको अशुभ कर्मोंके फल बताना
  33. [अध्याय 33] विभिन्न नरककुण्डों में जानेवाले पापियों तथा उनके पापोंका वर्णन
  34. [अध्याय 34] विभिन्न पापकर्म तथा उनके कारण प्राप्त होनेवाले नरकका वर्णन
  35. [अध्याय 35] विभिन्न पापकर्मोंसे प्राप्त होनेवाली विभिन्न योनियोंका वर्णन
  36. [अध्याय 36] धर्मराजद्वारा सावित्रीसे देवोपासनासे प्राप्त होनेवाले पुण्यफलोंको कहना
  37. [अध्याय 37] विभिन्न नरककुण्ड तथा वहाँ दी जानेवाली यातनाका वर्णन
  38. [अध्याय 38] धर्मराजका सावित्री से भगवतीकी महिमाका वर्णन करना और उसके पतिको जीवनदान देना
  39. [अध्याय 39] भगवती लक्ष्मीका प्राकट्य, समस्त देवताओंद्वारा उनका पूजन
  40. [अध्याय 40] दुर्वासाके शापसे इन्द्रका श्रीहीन हो जाना
  41. [अध्याय 41] ब्रह्माजीका इन्द्र तथा देवताओंको साथ लेकर श्रीहरिके पास जाना, श्रीहरिका उनसे लक्ष्मीके रुष्ट होनेके कारणोंको बताना, समुद्रमन्थन तथा उससे लक्ष्मीजीका प्रादुर्भाव
  42. [अध्याय 42] इन्द्रद्वारा भगवती लक्ष्मीका षोडशोपचार पूजन एवं स्तवन
  43. [अध्याय 43] भगवती स्वाहाका उपाख्यान
  44. [अध्याय 44] भगवती स्वधाका उपाख्यान
  45. [अध्याय 45] भगवती दक्षिणाका उपाख्यान
  46. [अध्याय 46] भगवती षष्ठीकी महिमाके प्रसंगमें राजा प्रियव्रतकी कथा
  47. [अध्याय 47] भगवती मंगलचण्डी तथा भगवती मनसाका आख्यान
  48. [अध्याय 48] भगवती मनसाका पूजन- विधान, मनसा-पुत्र आस्तीकका जनमेजयके सर्पसत्रमें नागोंकी रक्षा करना, इन्द्रद्वारा मनसादेवीका स्तवन करना
  49. [अध्याय 49] आदि गौ सुरभिदेवीका आख्यान
  50. [अध्याय 50] भगवती श्रीराधा तथा श्रीदुर्गाके मन्त्र, ध्यान, पूजा-विधान तथा स्तवनका वर्णन