व्यासजी बोले- हे राजन्! उस यशोवतीकी बात सुनकर लक्ष्मीपुत्र प्रतापी एकवीरका मुखारविन्द प्रसन्नतासे खिल उठा और वे उससे कहने लगे - ॥ 1 ॥
राजा बोले- हे रम्भोरु! जो तुमने सुन्दर वाणीमें मेरा वृत्तान्त पूछा है, वह सुनो। एकवीर नामसे प्रसिद्ध लक्ष्मीपुत्र हैहय मैं ही हूँ ॥ 2 ll [एकावली विषयमें वर्णन करके] तुमने मेरे मनको परतन्त्र बना दिया है। विरहसे अत्यन्त पीडित मैं अब क्या करूँ, कहाँ जाऊँ ? ॥ 3 ॥
तुमने सर्वप्रथम एकावलीके सम्पूर्ण लोकको तिरस्कृत कर देनेवाले रूपका जो वर्णन किया है, उससे मेरा मन कामबाणसे आहत होकर व्याकुल हो उठा है ll 4 ॥
तत्पश्चात् तुमने उसके जिन गुणोंका मुझसे वर्णन किया है, उनके द्वारा मेरा चित्त हर लिया गया है। पुनः तुमने जो बात कही, इससे मुझे बहुत विस्मय हो गया है। दानव कालकेतुके सामने एकावलीने यह बात कही थी कि मैं हैहयका वरण कर चुकी है, उसके अतिरिक्त मैं किसी अन्यका वरण नहीं कर सकती; यह मेरा निश्चय है। हे तत्वंगि एकावलीके इस कथन के द्वारा तुमने मुझे उसका दास बना दिया है। हे सुन्दर केशोंवाली! तुम्हीं बताओ, अब मैं तुम दोनोंके लिये क्या करूँ ? ll5-7॥हे सुलोचने। मैं उस दुष्टात्मा राक्षस कालकेतुके स्थानको नहीं जानता। और फिर उस नगरतक पहुँच सकनेकी मेरी सामर्थ्य भी नहीं है। हे विशाल नयनोंवाली। अब तुम्हीं उपाय बताओ मुझे वहाँ पहुँचाने में तुम्हीं समर्थ हो। अतएव जहाँ तुम्हारी सुन्दर सखी एकावली विराजमान है, वहाँ मुझे शीघ्र पहुँचाओ ।। 8-9 ।।
उस क्रूर राक्षसका वध करके मैं इसी समय विवश तथा शोक सन्तप्त तुम्हारी प्रिय सखी राजकुमारी एकावलीको मुक्त करा लूँगा ॥ 10 ॥
राजकुमारी एकावलीको संकटसे मुक्ति दिलाकर शीघ्र ही उसे तुम्हारे पुरमें पहुँचा दूँगा और उसके पिताको सौंप दूंगा ॥ 11 ॥
तत्पश्चात् शत्रुतापक राजा रैभ्य अपनी पुत्रीका विवाह कर सकेंगे। हे प्रियंवदे! इस प्रकार तुम्हारे सहयोगसे मेरे तथा तुम्हारे मनकी कामना अब पूरी हो जायगी। तुम मुझे उस कालकेतुका नगर शीघ्र दिखा दो, फिर मेरा पराक्रम देखो। हे वरवर्णिनि! मैं जिस प्रकार उस दुराचारी तथा परस्त्रीका हरण करनेवाले कालकेतुका वध कर सकूँ, तुम वैसा ही उपाय करो; क्योंकि तुम हित-साधन करनेमें पूर्ण सक्षम हो। उस दानवके दुर्गम नगरका मार्ग तुम मुझे आज ही दिखाओ ।। 12 - 143 ॥
व्यासजी बोले- एकवीरकी यह प्रिय वाणी सुनकर यशोवती प्रसन्न हो गयी और वह लक्ष्मीपुत्र एकवीरसे नगर पहुँचनेका उपाय आदरपूर्वक बताने लगी- हे राजेन्द्र पहले आप भगवती जगदम्बाके सिद्धिप्रदायक मन्त्रको ग्रहण कीजिये। तत्पश्चात् मैं आपको अनेक राक्षसोंद्वारा रक्षित उस कालकेतुका नगर आज ही दिखाऊँगी। हे महाभाग एक विशाल सेनासे युक्त होकर आप मेरे साथ वहाँ चलनेके लिये तैयार हो जाइये। वहाँ युद्ध होगा। कालकेतु स्वयं महापराक्रमी है तथा बलवान् राक्षसोंसे युक्त रहता है। अतएव भगवतीका मन्त्र ग्रहण करके ही आप मेरे साथ वहाँ चलिये। मैं उस दुष्टात्मा नगरका मार्ग आपको दिखाऊँगी। अब आप उस पापकर्मपरायण दानवको मारकर मेरी सखीको शीघ्र मुक्त कीजिये ॥ 15 - 193 ॥उसका यह वचन सुनकर एकवीरने वहाँपर दैवयोगसे पधारे हुए पुण्यात्मा तथा ज्ञानियोंमें श्रेष्ठ दत्तात्रेयजीसे त्रिलोकीका तिलक कहे जानेवाले योगेश्वरीके महामन्त्रको उसी क्षण ग्रहण कर लिया ।। 20-21 ॥
उस मन्त्रके प्रभावसे एकवीरको सब कुछ जानने तथा सर्वत्र गमनकी क्षमता प्राप्त हो गयी। इसके बाद वे यशोवतीके साथ कालकेतुके दुर्गम | नगरके लिये शीघ्र प्रस्थित हुए ।। 22 ।।
वह नगर राक्षसोंद्वारा इस प्रकार सुरक्षित था, जैसे सर्पोद्वारा पातालकी निरन्तर सुरक्षा होती रहती है। कालकेतुके ऐसे नगरमें अब यशोवती तथा विशाल सेनाके साथ राजा एकवीर आ गये॥ 23 ॥ एकवीरको आते देखकर कालकेतुके दूत भयसे व्यग्र हो गये और चीखते-चिल्लाते हुए बड़ी तेजीसे भागकर उसके पास पहुँचे ॥ 24 ॥
उस समय एकावलीके पास बैठकर अनेकविध विनती कर रहे कालकेतुको अत्यन्त काममोहित समझकर दूत एकाएक उससे कहने लगे ॥ 25 ॥ दूतोंने कहा- हे राजन् ! इस कामिनीकी सहचारिणी जो यशोवती नामकी स्त्री है, वह एक राजकुमारके साथ विशाल सेना लेकर आ रही है ॥ 26 ॥
हे महाराज! पता नहीं, वह जयन्त है अथवा कार्तिकेय बलके अभिमानसे मत वह राजकुमार सेनाके साथ चला आ रहा है ॥। 27 ॥
हे राजेन्द्र ! अब आप सावधान हो जाइये; क्योंकि युद्धकी स्थिति सामने आ गयी है अब आप या तो इस देवपुत्रके साथ युद्ध कीजिये अथवा इस कमलनयनीको मुक्त कर दीजिये 28 ॥ उसकी सेना यहाँसे मात्र तीन योजनकी दूरीपर है। अतएव हे राजन्! अब आप तैयार हो जाइये और रणदुंदुभी बजानेकी तुरंत आज्ञा दीजिये ll 29 ll
व्यासजी बोले- दूतोंके मुखसे वैसी बात सुनकर कालकेतु क्रोधसे मूच्छित हो गया। उसने अपने सभी बलवान् तथा शस्त्रधारी राक्षसोंको उत्साहित करते हुए कहा- हे राक्षसो तुम सब हाथोंमें शस्त्र लेकर शत्रुके सामने जाओ ॥ 306 ॥उन्हें आज्ञा देकर कालकेतुने अपने निकट बैठी हुई अत्यन्त विवश तथा दुःखित एकावलीसे विनम्रता पूर्वक पूछा - ' हे तन्वंगि! तुम्हें लेनेके लिये सेनासहित यह कौन आ रहा है? ये तुम्हारे पिता हैं अथवा कोई अन्य पुरुष ? हे कृशोदरि ! सच-सच बताओ। यदि विरहसे व्यथित होकर तुम्हारे पिता तुम्हें लेनेके लिये आ रहे हों, तो यह जानकर कि ये तुम्हारे पिता हैं, मैं इनके साथ युद्ध नहीं करूँगा, अपितु उन्हें घर लाकर उनकी पूजा करूँगा तथा बहुमूल्य रत्न, वस्त्र तथा अश्व भेंट करके घरमें आये हुए उनका विधिवत् आतिथ्य करूँगा। यदि कोई अन्य व्यक्ति आया होगा तो मैं अपने तीक्ष्ण बाणोंसे उसे मार डालूँगा। निश्चित ही महान् कालने उसे मरनेके लिये यहाँ ला दिया है। अतएव हे विशाल नयनोंवाली ! मुझ अपराजेय, कालरूप तथा अपार बलसम्पन्नके विषयमें न जानकर यह कौन मन्दमति चला आ रहा है? यह तुम मुझे बताओ' ॥ 31-363 ॥
एकावली बोली- हे महाभाग ! मैं यह नहीं जानती कि इतनी तेजीसे यह कौन आ रहा है ? आपके बन्धनमें पड़ी हुई मैं नहीं जानती कि यह कौन है ? ये न तो मेरे पिता हैं और न मेरे भाई ही । यह दूसरा ही कोई महान पराक्रमी पुरुष है, यह किसलिये यहाँ आ रहा है, यह भी मैं निश्चितरूपसे नहीं जानती ll 37-383 ॥
दैत्य बोला- ये दूत तो कह रहे हैं कि तुम्हारी सखी यशोवती ही प्रयत्नपूर्वक उस वीरको साथमें लेकर आयी है। हे कान्ते! कार्य सिद्ध करनेमें अत्यन्त चतुर तुम्हारी वह सखी कहाँ गयी ? कोई अन्य मेरा शत्रु भी नहीं है, जो मेरा विरोधी हो । ll 39-40 ॥
व्यासजी बोले- इसी बीच दूसरे दूत वहाँ आ गये। भयभीत उन दूतोंने महलमें बैठे कालकेतुसे तुरंत कहा- हे महाराज! आप निश्चिन्त क्यों हैं ? शत्रुसेना समीप आ पहुँची है। आप एक विशाल सेनाके साथ शीघ्र ही नगरसे बाहर निकलिये। उनकी यह बात सुनकर महान् बलशाली कालकेतु शीघ्र ही रथपर चढ़कर अपने नगरसे बाहर निकल गया । ll 41 - 433 ॥कामिनी एकावलीके विरहसे व्याकुल प्रतापी एकवीर भी घोड़े पर आरूढ़ होकर अचानक वहींपर आ गया। उन दोनोंका वृत्रासुर तथा इन्द्रकी भाँति युद्ध होने लगा। उस युद्धमें छोड़े गये विविध अस्त्र शस्त्रोंसे दिशाएँ प्रकाशित हो उठीं 44-453 ॥
भीरुजनोंको भयभीत कर देनेवाले उस युद्धमें लक्ष्मीपुत्र एकवीरने दानव कालकेतुपर अपनी गदासे प्रहार किया। गदाप्रहारसे वह कालकेतु वज्रसे आहत पर्वतकी भाँति प्राणहीन होकर पृथ्वीपर गिर पड़ा। तब भयभीत होकर अन्य सभी राक्षस भाग गये ।। 46-473 ।।
तत्पश्चात् यशोवतीने विस्मयमें पड़ी एकावलीके पास जाकर प्रसन्नतापूर्वक मधुर वाणीमें उससे कहा हे सखि इधर आओ। कालकेतुके साथ भीषण युद्ध करके धीरतासम्पन्न राजकुमार एकवीरने उस राक्षसको मार गिराया है। इस समय वे राजकुमार एकवीर थक जानेके कारण अपने शिविरमें विद्यमान हैं। तुम्हारे रूप तथा गुणोंके विषयमें सुनकर वे तुम्हारा दर्शन करना चाहते हैं। हे कुटिलापांगि! कामदेवसदृश उन राजकुमारको तुम देखो मैं उनसे तुम्हारे विषयमें गंगातटपर पहले ही बता चुकी हूँ। इससे तुम्हारे प्रति उनका पूर्ण अनुराग हो जानेके कारण वे विरहातुर राजकुमार अब तुझ सुन्दर रूपवालीका दर्शन करना चाहते हैं ll 48-523 ॥
यशोवतीकी बात सुनकर उसने वहाँ जानेका मन बना लिया। कुमारी अवस्थामें होनेके कारण वह भयवश लज्जित हो रही थी। [ वह सोचने लगी] मैं एक अत्यन्त विवश कुमारी कन्या उनका मुख कैसे | देखेंगी ? वह साध्वी एकावली इस बातसे चिन्तित हो उठी कि वे कामासक्त राजकुमार मुझे ग्रहण कर लेंगे। तब वह एकावली मलिन वस्त्र धारण करके अत्यन्त उदास होकर पालकीमें बैठकर यशोवती के साथ उनके शिविरमें पहुँच गयी ॥53 - 553 ॥
उस विशाल नयनोंवाली एकावलीको वहाँ आयी हुई देखकर राजकुमारने उससे कहा- हे तन्वंगि! मुझे दर्शन दो मेरे नेत्र तुम्हारे दर्शनके लिये तृष्णाकुल हैं ॥ 56 ॥एकवीरको कामातुर तथा एकावलीको लज्जासे युक्त देखकर नीतिका ज्ञान रखनेवाली तथा श्रेष्ठजनोंके | मार्गका अनुसरण करनेवाली यशोवतीने उस एकवीरसे कहा- हे राजकुमार ! इसके पिता भी इसे आपको ही देना चाहते हैं। यह एकावली भी आपके वशीभूत है; इसलिये इसके साथ आपका मिलन अवश्य होगा, किंतु हे राजेन्द्र ! कुछ समय प्रतीक्षा करके पहले इसे इसके पिताके पास पहुँचा दीजिये। वे विधिपूर्वक विवाह करके इसे आपको निश्चितरूपसे साँप देंगे ॥ 57–593 ॥
यशोवतीकी बातको उचित मानकर उन दोनों कन्याओं - एकावली तथा यशोवतीको साथमें लेकर सेनासहित वे राजकुमार एकवीर उसके पिताके स्थानपर पहुँचे ॥ 60 ॥
राजपुत्रीको आयी हुई सुनकर राजा रैभ्य प्रेमपूर्वक मन्त्रियोंके साथ उसके सम्मुख शीघ्रतासे पहुँच गये। मलिन वस्त्र धारण की हुई उस पुत्रीको राजाने बहुत दिनोंके बाद देखा, पुनः यशोवतीने रैभ्यको सारा वृत्तान्त विस्तारके साथ बताया। तत्पश्चात् एकवीरसे मिलकर राजा रैभ्य उन्हें आदरपूर्वक घर | ले आये । पुनः उन्होंने शुभ दिनमें विधिविधानसे दोनोंका विवाह सम्पन्न कराया। तदुपरान्त राजाने पर्याप्त वैवाहिक उपहार देकर एकवीरको भलीभाँति सम्मानित करके पुत्रीको यशोवतीसहित विदा कर दिया ॥ 61-643 ॥
इस प्रकार विवाह हो जानेपर लक्ष्मीपुत्र एकवीर हर्षित हो गये और घर पहुँचकर अपनी भार्या एकावलीके साथ नानाविध सुखोपभोग करने लगे । यथासमय उस एकावलीसे कृतवीर्य नामक एक पुत्र उत्पन्न हुआ। उस कृतवीर्यके पुत्र कार्तवीर्य हुए। इस प्रकार मैंने आपसे इस हैहयवंशका वर्णन कर दिया ।। 65-66 ॥