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देवी भागवत महापुराण ( देवी भागवत)

Devi Bhagwat Purana (Devi Bhagwat Katha)

स्कन्ध 12, अध्याय 11 - Skand 12, Adhyay 11

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मणिद्वीपके रत्नमय नौ प्राकारोंका वर्णन

व्यासजी बोले- पुष्परागनिर्मित प्राकारके आगे कुमकुमके समान अरुण विग्रहवाला पद्मरागमणियुक्त प्राकार है, जिसके मध्यमें भूमि भी उसी प्रकारकी है। अनेक गोपुर और द्वारोंसे युक्त यह प्राकार लम्बाई में दस योजन परिमाणवाला है। हे राजन् ! वहाँ उसी मणिसे निर्मित खम्भोंसे युक्त सैकड़ों मण्डप विद्यमान हैं ॥ 1-2 ॥

उसके मध्यकी भूमिपर रत्नमय भूषणोंसे भूषित, अनेक आयुध धारण करनेवाली तथा पराक्रमसम्पन्न चौंसठ कलाएँ विराजमान रहती हैं। उन कलाओंका एक-एक पृथक् लोक है और अपने-अपने लोककी वे अधीश्वरी हैं। वहाँ चारों ओरकी सभी वस्तुएँ पद्म रागमणिसे निर्मित हैं। अपने-अपने लोकके वाहनों तथा आयुधसे युक्त वे कलाएँ अपने-अपने लोकके निवासियोंसे सदा घिरी रहती हैं। हे जनमेजय! अब मैं उन कलाओंके नाम बता रहा हूँ; आप सुनें ॥ 3- 5॥

पिंगलाक्षी, विशालाक्षी, समृद्धि, वृद्धि, श्रद्धा, स्वाहा, स्वधा, अभिख्या, माया, संज्ञा, वसुन्धरा, त्रिलोकधात्री, सावित्री, गायत्री, त्रिदशेश्वरी, सुरूपा, बहुरूपा, स्कन्दमाता, अच्युतप्रिया, विमला, अमला, अरुणी, आरुणी, प्रकृति, विकृति, सृष्टि, स्थिति, संहृति, सन्ध्यामाता, सती, हंसी, मर्दिका, परा वज्रिका, देवमाता, भगवती, देवकी, कमलासना, त्रिमुखी, सप्तमुखी, सुरासुरविमर्दिनी, लम्बोष्ठी, ऊर्ध्वकेशी, बहुशीर्षा, वृकोदरी, रथरेखा, शशिरेखा, गगनवेगा, पवनवेगा, भुवनपाला, मदनातुरा, अनंगा, अनंगमथना, अनंगमेखला, अनंगकुसुमा, विश्वरूपा, सुरादिका, क्षयंकरी, शक्ति, अक्षोभ्या सत्यवादिनी, बहुरूपा, शुचिव्रता, उदारा और वागीशी ये चौंसठ कलाएँ कही गयी हैं ॥ 6-14 ॥क्रोधके कारण अति रक्त नेत्रोंवाली तथा प्रज्वलित जिह्वासे युक्त मुखवाली वे सभी कलाएँ प्रचण्ड अग्नि उगलती हुई सदा इन शब्दोंका उच्चारण करती रहती हैं-'हम अभी सम्पूर्ण जल पी डालेंगी, हम अग्निको नष्ट कर देंगी, हम वायुको रोक देंगी और समस्त संसारका भक्षण कर डालेंगी ' ॥ 15-16 ॥

वे सभी कलाएँ धनुष-बाण धारण करके सदा युद्धके लिये तत्पर रहती हैं और दाँतोंके कटकटानेकी ध्वनिसे दिशाओंको बधिर -सी बना देती हैं ॥ 17 ॥ अपने हाथमें सदा धनुष और बाण धारण करनेवाली ये शक्तियाँ पिंगलवर्णके उठे हुए केशोंसे सम्पन्न कही गयी हैं। इनमेंसे एक-एक कलाके पास सौ-सौ अक्षौहिणी सेना बतायी गयी है। लाखों ब्रह्माण्डोंको नष्ट कर डालनेकी क्षमता एक-एक शक्तिमें विद्यमान है। हे नृपश्रेष्ठ ! तो फिर वैसी शक्तियोंसे सम्पन्न सौ अक्षौहिणी सेना इस संसार में क्या नहीं कर सकती-उसे बतानेमें मैं असमर्थ हूँ ॥ 18-193 ॥

हे मुने! युद्धकी समस्त सामग्री उस पद्मरागके प्राकारमें सदा विद्यमान रहती है। उसमें रथों, घोड़ों, हाथियों और शस्त्रोंकी गणना नहीं है। उसी प्रकार गणोंकी भी कोई गणना नहीं है ॥ 20-21 ॥

इस पद्मरागमय प्राकारके आगे गोमेदमणिसे निर्मित दस योजन लम्बा एक परकोटा है, जो प्रभायुक्त जपाकुसुमके समान कान्तिमान् है। इसके मध्यकी भूमि भी वैसी ही है। वहाँके निवासियोंके भवन, पक्षी, उत्तम खम्भे, वृक्ष, वापी तथा सरोवर ये सभी गोमेदमणिसे ही निर्मित हैं। गोमेदमणिसे बनी वहाँकी सभी वस्तुओंका विग्रह कुमकुमके समान अरुण वर्णका है ॥ 22-24 ॥

उस प्राकारके मध्यमें गोमेदमणिसे भूषित तथा अनेकविध शस्त्र धारण करनेवाली बत्तीस | महादेवियाँ निवास करती हैं, जो शक्तियाँ कही गयी हैं। हे राजन् ! गोमेदनिर्मित उस प्राकारमें | पिशाचोंके समान भयंकर मुखवाली प्रत्येक लोककी निवासिनी शक्तियाँ सावधान होकर चारों ओरसे उसे घेरकर स्थित रहती हैं ।। 25-26 ॥स्वर्गलोकके निवासियोंद्वारा नित्य पूजी जानेवाली वे शक्तियाँ हृदयमें युद्धकी लालसासे युक्त होकर हाथोंमें चक्र धारण किये हुए तथा क्रोधके कारण नेत्र लाल करके 'काटो, पकाओ, छेदो और भस्म कर डालो'- इन शब्दोंको निरन्तर बोलती रहती हैं। उनमें एक-एक महाशक्तिके पास दस-दस अक्षौहिणी सेना कही गयी है। उस सेनाकी एक ही शक्ति एक लाख ब्रह्माण्डों का संहार करनेमें समर्थ है तो हे राजन् ! उस | प्रकारकी शक्तियोंसे युक्त विशाल सेनाका वर्णन कैसे किया जा सकता है ! ॥ 27 - 29 ॥

उनके रथों तथा वाहनोंकी गणना नहीं की जा सकती। भगवतीकी युद्ध-सम्बन्धी समस्त सामग्री वहाँ विद्यमान रहती है। अब मैं भगवतीकी शक्तियोंके पापनाशक नामोंका वर्णन करूँगा-विद्या, ही, पुष्टि, प्रज्ञा, सिनीवाली, कुहू, रुद्रा, वीर्या, प्रभा, नन्दा, पोषिणी, ऋद्धिदा, शुभ्रा, कालरात्रि, महारात्रि, भद्रकाली, कपर्दिनी, विकृति, दण्डिनी, मुण्डिनी, सेन्दुखण्डा, शिखण्डिनी, निशुम्भशुम्भमथिनी, महिषासुरमर्दिनी, इन्द्राणी, रुद्राणी, शंकरार्धशरीरिणी, नारी, नारायणी, त्रिशूलिनी, पालिनी, अम्बिका और ह्लादिनी-ये शक्तियाँ कही गयी हैं। यदि ये देवियाँ कुपित हो जायँ, तो सम्पूर्ण ब्रह्माण्डका तत्क्षण नाश हो जायगा । कहीं किसी भी समय इन शक्तियोंकी पराजय सम्भव नहीं है ॥ 30 - 353 ॥

गोमेदनिर्मित प्राकारके आगे वज्रमणि (हीरे) से निर्मित दस योजन ऊँचाईवाला एक परकोटा है। उस परकोटेमें अनेक गोपुर तथा द्वार बने हुए हैं। वह परकोटा कपाट और सांकलसे बन्द रहता है तथा नये नये वृक्षोंसे सदा सुशोभित रहता है। उस प्राकारके मध्यभागकी समस्त भूमि हीरायुक्त कही गयी है। भवन, गलियाँ, चौराहे, महामार्ग, आँगन, वृक्षोंके थाले, वृक्ष, सारंग, अनेक बावलियाँ, वापी, तडाग तथा कुएँ- ये सब उसी प्रकार हीरकमय हैं ।। 36- 39 ॥

उस प्राकारमें भगवती भुवनेश्वरीकी परिचारिकाएँ रहती हैं। मदसे गर्वित रहनेवाली एक-एक परिचारिका लाखों दासियोंसे सेवित रहती हैं ॥ 40 ॥अत्यधिक गर्वित कई परिचारिकाएँ ताड़के पंखे, कई अपने करकमलोंमें मधुपात्र तथा कई अपने हाथमें ताम्बूलपात्र धारण किये रहती हैं। कई परिचारिकाएँ छत्र लिये रहती हैं, कई चामर धारण किये रहती हैं, कुछ अनेक प्रकारके वस्त्र धारण किये रहती हैं और कुछ अपने कमलसदृश हाथोंमें पुष्प लिये स्थित रहती हैं ॥ 41-42 ।।

कुछ परिचारिकाएँ अपने हाथोंमें दर्पण, कुछ कुमकुमका लेप, कुछ काजल और कुछ सिन्दूर पात्र धारण किये खड़ी रहती हैं। कुछ चित्रकारी बनाने, कुछ चरण दबाने, कुछ भूषण सजाने तथा कुछ भगवतीके भूषणसे पूरित रत्नमय पात्र धारण करनेमें तत्पर रहती हैं। कुछ पुष्पोंके आभूषण बनानेवाली, कुछ पुष्प- शृंगार में कुशल तथा अनेक प्रकारके विलासमें चतुर इसी तरहकी बहुत-सी युवतियाँ वहाँ विद्यमान रहती हैं ॥ 43 - 45 ll

सुन्दर-सुन्दर परिधान धारण की हुई वे सभी युवतियाँ भगवतीकी लेशमात्र कृपाके प्रभावसे तीनों लोकोंको तुच्छ समझती हैं। शृंगारके मदमें उन्मत्त ये सब देवीकी दूतिकाएँ कही गयी हैं। हे नृपश्रेष्ठ ! अब मैं उनके नाम बता रहा हूँ, सुनिये 46-47 पहली अनंगरूपा, दूसरी अनंगमदना और तीसरी सुन्दर रूपवाली मदनातुरा कही गयी है। तत्पश्चात् भुवनवेगा, भुवनपालिका, सर्वशिशिरा, अनंगवदना और अनंगमेखला हैं। इनके सभी अंग विद्युत्की कान्तिके समान प्रकाशमान रहते हैं, इनके कटिभाग कई लड़ियोंवाली ध्वनिमय किंकिणियोंसे सुशोभित हैं | और इनके चरण ध्वनि करते हुए नूपुरसे सुशोभित हैं। ये सभी दूतियाँ वेगपूर्वक बाहर तथा भीतर जाते समय | विद्युत्की लताके सदृश सुशोभित होती हैं। हाथमें बेंत लेकर सभी ओर भ्रमण करनेवाली ये दूतियाँ सभी | कार्योंमें दक्ष हैं। इस प्राकारसे बाहर आठों दिशाओंमें इन दूतियोंके निवासहेतु अनेकविध वाहनों तथा शस्त्रोंसे सम्पन्न भवन विद्यमान हैं । ll 48-52 ॥

वज्रमणि-निर्मित प्राकारसे आगे वैदूर्यमणिसे | बना हुआ एक प्राकार है। अनेक गोपुरों तथा द्वारोंसे | सुशोभित वह प्राकार दस योजन ऊँचाईवाला है ॥ 53 ॥वहाँकी सम्पूर्ण भूमि वैदूर्यमणियुक्त है। वहाँके अनेक प्रकारके भवन, गलियाँ, चौराहे तथा महामार्ग ये सब वैदूर्यमणिसे निर्मित हैं। इस परकोटेकी बावलियाँ, कुएँ, तडाग, नदियोंके तट और बालू-ये सब वैदूर्यमणिसे निर्मित हैं ।। 54-55 ।।

हे नृपश्रेष्ठ ! उस प्राकारकी आठों दिशाओंमें सब ओर अपने गणोंसे सदा घिरी रहनेवाली ब्राह्मी आदि देवियोंका मण्डल सुशोभित रहता है। वे प्रत्येक ब्रह्माण्डके मातृकाओंकी समष्टियाँ कही गयी हैं। ब्राह्मी, माहेश्वरी, कौमारी, वैष्णवी, वाराही, इन्द्राणी और चामुण्डा- ये सात मातृकाएँ और आठवीं महालक्ष्मी नामवाली - इस प्रकार ये आठ मातृकाएँ कही गयी हैं ।। 56-58 ॥ जगत्का कल्याण करनेवाली तथा अपनी अपनी सेनाओंसे घिरी हुई वे मातृकाएँ ब्रह्मा, रुद्र आदि देवताओंके समान आकारवाली कही गयी हैं ॥ 59 ॥

हे राजन् ! उस परकोटेके चारों द्वारोंपर महेश्वरी भगवतीके वाहन अलंकारोंसे सुसज्जित होकर सर्वदा विराजमान रहते हैं ॥ 60 ॥

उनके वाहनके रूपमें करोड़ों हाथी, करोड़ों घोड़े, पालकियाँ, हंस, सिंह, गरुड, मयूर और वृषभ हैं। हे नृपनन्दन ! उन वाहनोंसे युक्त करोड़ों रथ वहाँ विद्यमान रहते हैं, जिनपर सेनापति विराजमान रहते हैं और आकाशतक पहुँचनेवाली पताकाएँ सुशोभित रहती हैं ।। 61-62 ॥

अनेकविध वाद्य-यन्त्रोंसे युक्त, विशाल ध्वजाओंसे सुशोभित और अनेक प्रकारके चिह्नोंसे अंकित करोड़ों विमान उस प्राकारमें स्थित रहते हैं ॥ 63 ॥

वैदूर्यमणिमय प्राकारके भी आगे इन्द्रनीलमणि निर्मित दस योजन ऊँचा एक दूसरा प्राकार कहा गया है ।। 64 ।।

उस प्राकारके मध्यकी भूमि, गलियाँ, राजमार्ग, भवन, वापी, कुएँ और सरोवर-ये सब उसी मणिसे बने हुए हैं ॥ 65 ll

वहाँपर दूसरे सुदर्शन चक्रकी भाँति प्रतीत होनेवाला, अनेक योजन विस्तृत तथा सोलह दलोंवाला एक दीप्तिमान् कमल विद्यमान कहा गया है। उसपर सोलह शक्तियोंके लिये सभी सामग्रियों तथा समृद्धियोंसे सम्पन्न विविध स्थान बने हुए हैं ।। 66-67 ॥हे नृपश्रेष्ठ ! अब मैं उन शक्तियोंके नामोंका वर्णन करूँगा, सुनिये - कराली, विकराली, उमा, सरस्वती, श्री, दुर्गा, उषा, लक्ष्मी, श्रुति, स्मृति, धृति, श्रद्धा, मेधा, मति, कान्ति और आर्या-ये सोलह शक्तियाँ हैं ।। 68-69 ॥

अपने करकमलोंमें ढाल तथा तलवार धारण किये हुए, नीले मेघके समान वर्णवाली तथा अपने मनमें सदा युद्धकी लालसा रखनेवाली ये सभी शक्तियाँ जगदीश्वरी श्रीदेवीकी सेनानी हैं। ये प्रत्येक ब्रह्माण्डमें स्थित रहनेवाली शक्तियोंकी नायिकाएँ कही गयी हैं ।। 70-71 ।।

अनेक शक्तियोंको साथ लेकर भाँति-भाँतिके रथोंपर विराजमान ये शक्तियाँ भगवती जगदम्बाकी शक्तिसे सम्पन्न होनेके कारण सम्पूर्ण ब्रह्माण्डको क्षुब्ध करनेमें समर्थ हैं। हजार मुखवाले शेषनाग भी | इनके पराक्रमका वर्णन करनेमें समर्थ नहीं हैं ॥ 723 ॥

उस इन्द्रनीलमणिके विशाल प्राकारके आगे दस |योजनकी ऊँचाईतक उठा हुआ एक अतिविस्तीर्ण तथा प्रकाशमान मोतीका प्राकार है। इसके मध्यकी भूमि भी मोतीकी बनी हुई कही गयी है। उसके मध्यमें मुक्तामणियोंसे निर्मित तथा केसरयुक्त आठ दलोंवाला एक विशाल कमल विद्यमान है। उन आठों दलोंपर भगवती जगदम्बाके ही समान आकारवाली देवियाँ अपने हाथोंमें आयुध धारण किये सदा | विराजमान रहती हैं। जगत्का समाचार सूचित करनेवाली ये आठ देवियाँ भगवतीकी मन्त्रिणी कही गयी हैं ॥ 73–753 ॥

वे देवियाँ भगवतीके समान भोगवाली, उनके संकेतको समझनेवाली, बुद्धिसम्पन्न, सभी कार्यों में कुशल, अपनी स्वामिनीके कार्य सम्पादनमें तत्पर, भगवतीके अभिप्रायको जाननेवाली, चतुर तथा अत्यन्त सुन्दर हैं । 76-77 ॥

विविध शक्तियोंसे सम्पन्न वे देवियाँ अपनी ज्ञान-शक्तिके द्वारा प्रत्येक ब्रह्माण्डमें रहनेवाले | प्राणियोंका समाचार जान लेती हैं। हे नृपश्रेष्ठ! मैं उनके नाम बता रहा हूँ, आप सुनिये - अनंगकुसुमा, | अनंगकुसुमातुरा, अनंगमदना, अनंगमदनातुरा, भुवनपाला, गगनवेगा, शशिरेखा और गगनरेखा । अपने हाथोंमें पाश, अंकुश, वर तथा अभय मुद्राएँ धारण किये हुए लाल विग्रहवाली वे देवियाँ विश्वसे सम्बन्धित सभी बातोंसे भगवतीको प्रतिक्षण अवगत कराती रहती हैं ॥ 78- 813 ॥

इस मुक्ता-प्राकारके आगे महामरकतमणिसे निर्मित एक दूसरा श्रेष्ठ प्राकार कहा गया है। वह दस योजन लम्बा और अनेकविध सौभाग्य तथा भोगवाली सामग्रियोंसे परिपूर्ण है ॥ 82-83 ll

इसके मध्यकी भूमि भी वैसी ही कही गयी है अर्थात् मरकतमणिके सदृश है और वहाँके भवन भी उसी मणिसे निर्मित हैं। उस प्राकारमें भगवतीका एक विशाल तथा छः कोणोंवाला यन्त्र है। अब आप उन कोणोंपर विराजमान रहनेवाले देवताओंके विषयमें सुनिये ॥ 84 ॥

इसके पूर्वकोणमें कमण्डलु, अक्षसूत्र, अभयमुद्रा, दण्ड तथा आयुध धारण करनेवाले चतुर्मुख श्रेष्ठ ब्रह्माजी भगवती गायत्रीके साथ विराजमान रहते हैं। परादेवता भगवती गायत्री भी उन्हीं आयुधोंको धारण किये रहती हैं। समस्त वेद, विविध शास्त्र, स्मृतियाँ तथा पुराण मूर्तिमान् होकर वहाँ निवास करते हैं। ब्रह्माके जो विग्रह हैं, गायत्रीके जो विग्रह हैं और व्याहृतियोंके जो विग्रह हैं-वे सभी वहाँ नित्य निवास करते हैं ।। 85-87 3 ॥

नैर्ऋत्यकोणमें भगवती सावित्री अपने करकमलमें शंख, चक्र, गदा और कमल धारण किये विराजमान हैं। महाविष्णु भी वहाँपर उसी रूपमें विराजमान रहते हैं। मत्स्य तथा कूर्म आदि जो महाविष्णुके विग्रह हैं और जो भगवती सावित्रीके विग्रह हैं- वे सब वहाँ निवास करते हैं । 88-893 ॥

वायुकोणमें परशु, अक्षमाला, अभय और वरमुद्रा धारण करनेवाले महारुद्र विराजमान हैं और सरस्वती भी उसी रूपमें वहाँ रहती हैं। हे राजन्! भगवान् रुद्रके दक्षिणास्य आदि जो-जो रूप हैं और इसी प्रकार भगवती गौरीके जो-जो रूप हैं - वे सभी वहाँ निवास करते हैं। चौंसठ प्रकारके जो आगम तथा इसके अतिरिक्त भी जो अन्य आगमशास्त्र कहे गये हैं-वे सभी मूर्तिमान् होकर वहाँ विराजमान रहते हैं । ll90 - 923 ॥अग्निकोणमें धन प्रदान करनेवाले कुबेर अपने दोनों हाथोंमें रत्नयुक्त कुम्भ तथा मणिमय करण्डक (पात्र) धारण किये हुए विराजमान हैं। अनेक प्रकारकी वीथियोंसे युक्त और अपने सद्गुणोंसे सम्पन्न देवीकी निधिके स्वामी कुबेर महालक्ष्मीके साथ वहाँ विराजमान रहते हैं ॥ 93-946 ॥

पश्चिमके महान् वरुणकोणमें अपनी भुजाओं में पाश, अंकुश, धनुष और बाण धारण करनेवाले कामदेव रतिके साथ निवास करते हैं। सभी प्रकारके श्रृंगार मूर्तिमान् होकर वहाँ सदा विराजमान रहते हैं ।। 95-96 ॥

ईशानकोणमें विघ्नको दूर करनेवाले तथा पराक्रमी विघ्नेश्वर गणेशजी अपने हाथोंमें पाश तथा अंकुश धारण किये हुए देवी पुष्टिके साथ सदा विराजमान रहते हैं। हे नृपश्रेष्ठ! गणेशजीकी जो-जो विभूतियाँ हैं, वे सभी महान् ऐश्वर्योंसे सम्पन्न होकर वहाँ निवास करती हैं ।। 97-98 ।।

प्रत्येक ब्रह्माण्डमें रहनेवाले ब्रह्मा आदिकी समष्टियाँ ब्रह्मा आदि नामसे कही गयी हैं- ये सभी भगवती जगदीश्वरीकी सेवामें संलग्न रहती हैं ॥ 99 ॥

इस महामरकतमणि-निर्मित प्राकारके आगे कुमकुमके समान अरुण विग्रहवाला तथा सौ योजन लम्बाईवाला एक दूसरा प्रवालमणिका प्राकार है। उसके मध्यकी भूमि तथा भवन भी उसी प्रकारके कहे गये हैं। उसके मध्यभागमें पंचभूतोंकी पाँच स्वामिनियाँ निवास करती हैं। हल्लेखा, गगना, रक्ता, चौथी करालिका और पाँचवीं महोच्छुष्मा नामक ये शक्तियाँ पंचभूतोंके समान ही प्रभावाली हैं। पाश, अंकुश, वर तथा अभय मुद्रा धारण करनेवाली ये शक्तियाँ अनेक प्रकारके भूषणोंसे अलंकृत, नूतन यौवनसे गर्वित और भगवती जगदम्बाके सदृश वेषभूषासे मण्डित हैं । 100 - 103 ॥

हे राजन्! इस प्रवालमय प्राकारके आगे नौ रत्नोंसे बना हुआ अनेक योजन विस्तृत एक विशाल प्राकार है। आम्नायमें वर्णित देवियोंके बहुतसे भवन, तडाग तथा सरोवर- वे सभी उन्हीं नौ रत्नोंसे निर्मित हैं। हे भूपाल ! श्रीदेवीके जो-जो अवतार हैं, वे सबवहाँ निवास करते हैं और महाविद्याके सभी रूप वहाँ विद्यमान हैं। करोड़ों सूर्योंके समान प्रभासे युक्त सभी देवियाँ अपनी-अपनी आवरणशक्तियों, अपने भूषणों तथा वाहनोंके साथ वहाँ विराजमान रहती हैं। सात करोड़ महामन्त्रोंके देवता भी वहाँ रहते हैं ॥ 104 - 1073॥

इस नौ रत्नमय प्राकारके आगे चिन्तामणिसे बना हुआ एक विशाल भवन है। वहाँकी प्रत्येक वस्तु चिन्तामणिसे निर्मित है। उसमें सूर्य, चन्द्रमा और विद्युत् के समान दीप्तिवाले पत्थरोंसे निर्मित हजारों स्तम्भ हैं, जिनकी तीव्र प्रभाके कारण उस भवनके अन्दर स्थित कोई भी वस्तु दृष्टिगोचर नहीं हो पाती है ॥ 108 - 110॥

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देवी भागवत महापुराण
Index


  1. [अध्याय 1] गायत्रीजपका माहात्म्य तथा गायत्रीके चौबीस वर्णोंके ऋषि, छन्द आदिका वर्णन
  2. [अध्याय 2] गायत्रीके चौबीस वर्णोंकी शक्तियों, रंगों एवं मुद्राओंका वर्णन
  3. [अध्याय 3] श्रीगायत्रीका ध्यान और गायत्रीकवचका वर्णन
  4. [अध्याय 4] गायत्रीहृदय तथा उसका अंगन्यास
  5. [अध्याय 5] गायत्रीस्तोत्र तथा उसके पाठका फल
  6. [अध्याय 6] गायत्रीसहस्त्रनामस्तोत्र तथा उसके पाठका फल
  7. [अध्याय 7] दीक्षाविधि
  8. [अध्याय 8] देवताओंका विजयगर्व तथा भगवती उमाद्वारा उसका भंजन, भगवती उमाका इन्द्रको दर्शन देकर ज्ञानोपदेश देना
  9. [अध्याय 9] भगवती गायत्रीकी कृपासे गौतमके द्वारा अनेक ब्राह्मणपरिवारोंकी रक्षा, ब्राह्मणोंकी कृतघ्नता और गौतमके द्वारा ब्राह्मणोंको घोर शाप प्रदान
  10. [अध्याय 10] मणिद्वीपका वर्णन
  11. [अध्याय 11] मणिद्वीपके रत्नमय नौ प्राकारोंका वर्णन
  12. [अध्याय 12] भगवती जगदम्बाके मण्डपका वर्णन तथा मणिद्वीपकी महिमा
  13. [अध्याय 13] राजाजनमेजयद्वाराअम्बायज्ञऔरश्रीमद्देवीभागवतमहापुराणका माहात्म्य
  14. [अध्याय 14] श्रीमद्देवीभागवतमहापुराणकी महिमा
  15. [अध्याय 15] सप्तश्लोकी दुर्गा
  16. [अध्याय 16] देव्यपराधक्षमापनस्तोत्रम्
  17. [अध्याय 17] श्रीदुर्गाजीकी आरती