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देवी भागवत महापुराण ( देवी भागवत)

Devi Bhagwat Purana (Devi Bhagwat Katha)

स्कन्ध 1, अध्याय 1 - Skand 1, Adhyay 1

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महर्षि शौनकका सूतजीसे श्रीमद्देवीभागवतपुराण सुनानेकी प्रार्थना करना

जो सर्वचेतनास्वरूपा, आदिशक्ति तथा ब्रह्मविद्या स्वरूपिणी भगवती जगदम्बा हैं, उनका हम ध्यान करते हैं। वे हमारी बुद्धिको प्रेरणा प्रदान करें ॥ 1 ॥

शौनक बोले- हे पुरुषोंमें श्रेष्ठ तथा भाग्यवान् सूतजी! आप धन्य हैं; क्योंकि संसारमें अत्यन्त दुर्लभ पुराण-संहिताओं का आपने भलीभाँति अध्ययन किया है। हे पुण्यात्मन्! हे मानद ! आपने कृष्णद्वैपायन व्यासरचित अठारह महापुराणोंका सम्यक् अध्ययन किया है, जो पंच लक्षणोंसे युक्त तथा गूढ रहस्योंसे समन्वित हैं और जिनका आपने सत्यवतीपुत्र व्यासजीसे ज्ञान प्राप्त किया है ll 2-4 ll

हमारे पुण्यसे ही आप इस उत्तम, मुनियोंके निवास योग्य, दिव्य, पुण्यप्रद तथा कलिके दोषोंसे रहित क्षेत्रमें पधारे हुए हैं। हे सूतजी! मुनियोंका यह समुदाय परम पुण्यदायिनी पुराण-संहिताका श्रवण करना चाहता है। अतः आप समाहितचित्त होकर हमलोगोंसे उसका वर्णन कीजिये ।। 5-6 ॥

हे सर्वज्ञ! आप तीनों तापों (दैहिक, दैविक, भौतिक) से रहित होकर दीर्घजीवी हों। हे महाभाग ! ब्रह्मप्रतिपादक देवीभागवतमहापुराणका वर्णन करें ll 7 ॥

हे सूतजी! जो मनुष्य श्रवणेन्द्रिययुक्त होते हुए भी केवल जिह्नाके स्वादमें ही लगे रहते हैं और पुराणोंकी कथाएँ नहीं सुनते, वे निश्चित ही अभागे हैं। जैसे पइसके स्वादसे जिह्वाको आह्लाद होता है, वैसे विद्वज्जनोंके वचनोंसे कर्णेन्द्रियको आनन्द प्राप्त होता है ।। 8-9 ॥जब कर्णहीन सर्प भी मधुर ध्वनि सुनकर मोहित हो जाते हैं, तब भला कर्णयुक्त मानव यदि कथा नहीं सुनते तो उन्हें बधिर क्यों न कहा जाय? ॥ 10 ॥ अतः हे सौम्य ! समाहितचित्त होकर कथा | सुननेकी इच्छासे सभी द्विजगण कलिकालके भयसे पीड़ित हो इस नैमिषारण्यमें उपस्थित हैं ॥ 11 ॥

जिस किसी प्रकारसे समय तो बीतता ही रहता है, किंतु मूर्खोका समय व्यर्थ दुर्व्यसनोंमें बीतता है | और विद्वानोंका समय शास्त्र-चिन्तनमें जाता है ॥ 12 ॥ शास्त्र भी विचित्र प्रकारके तर्क-वितर्कसे युक्तbहैं। (पुराण तीन प्रकारके तथा शास्त्र विविध प्रकारके हैं, जो नानाविध वाद-विवाद तथा छल-प्रपंचसे युक्त हैं और अहंकार तथा अमर्ष उत्पन्न करनेवाले हैं) वे अनेक अर्थवाद तथा हेतुवादसे युक्त और बहुत विस्तारवाले हैं ॥ 13 ॥

उन शास्त्रोंमें वेदान्तशास्त्र सात्त्विक, मीमांसा राजस तथा न्यायशास्त्र तामस कहा गया है; क्योंकि वह हेतुवादसे परिपूर्ण है ॥ 14 ॥

इसी प्रकार हे सौम्य ! आपके द्वारा कहे गये पुराण कथा-भेदसे तीन गुणोंवाले तथा पाँच लक्षणोंसे समन्वित हैं ।। 15 ।।

आपने यह भी बताया है कि उन पुराणोंमें यह श्रीमद्देवीभागवत पाँचवाँ पुराण है, पवित्र है, वेदके समान है और सभी लक्षणोंसे युक्त है ॥ 16 ॥

उस समय आपने प्रसंगवश अत्यन्त अद्भुत, मुमुक्षुजनोंके लिये मुक्तिप्रद, मनोरथ पूर्ण करनेवाले, धर्ममें रुचि उत्पन्न करनेवाले जिस पुराणको संक्षेपमें कहा था, उस उत्तम पुराणको विस्तारपूर्वक कहिये । उस दिव्य तथा कल्याणमय श्रीमद्देवीभागवतपुराणको हम सभी द्विजगण आदरपूर्वक सुननेकी इच्छा रखते हैं ।। 17-18 ।।

हे धर्मज्ञ ! गुरुभक्त एवं सत्त्वगुणसे सम्पन्न होनेके कारण आप कृष्णद्वैपायनके द्वारा कही गयी इस प्राचीन संहिताका ज्ञान प्राप्त कर चुके हैं ॥ 19 ॥

जिस प्रकार देवतालोग अमृतपान करते हुए तृप्त नहीं होते, उसी प्रकार हमलोगोंने भी यहाँ आपके मुखारविन्दसे निकली अन्यान्य कथाएँ सुनीं, किंतु अभी भी हम तृप्त नहीं हुए हैं ॥ 20 ॥हे सूतजी ! उस अमृतको धिक्कार है, जिसके पीनेसे कभी मुक्ति नहीं होती, परंतु इस भागवतरूपी कथा-सुधाके पानसे तो मनुष्य शीघ्र ही भवसंकटसे मुक्त हो जाता है ॥ 21 ॥

हे सूतजी ! अमृतपानके लिये जो हजारों प्रकारके यज्ञ किये गये हैं, उनसे भी सर्वदाके लिये हमें शान्ति नहीं मिली। यज्ञोंका फल तो केवल स्वर्ग है, [पुण्य क्षीण होनेपर ] पुनः स्वर्गसे मृत्युलोकमें लौटना ही पड़ता है। इस प्रकार निरन्तर आवागमनके चक्रमें आना-जाना लगा रहता है ।। 22-23 ॥

हे सर्वज्ञ ! त्रिगुणात्मक कालचक्रमें भ्रमण करते हुए मनुष्योंकी ज्ञानके बिना मुक्ति कदापि सम्भव नहीं है। इसलिये सब प्रकारके रसोंसे परिपूर्ण तथा पुण्यप्रद श्रीमद्देवीभागवतपुराण कहिये; जो पवित्र, मुक्तिदायक, गोपनीय तथा मुमुक्षुजनोंको सर्वदा प्रिय है ॥ 24-25 ॥

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देवी भागवत महापुराण
Index


  1. [अध्याय 1] महर्षि शौनकका सूतजीसे श्रीमद्देवीभागवतपुराण सुनानेकी प्रार्थना करना
  2. [अध्याय 2] सूतजीद्वारा श्रीमद्देवीभागवतके स्कन्ध, अध्याय तथा श्लोकसंख्याका निरूपण और उसमें प्रतिपादित विषयोंका वर्णन
  3. [अध्याय 3] सूतजीद्वारा पुराणोंके नाम तथा उनकी श्लोकसंख्याका कथन, उपपुराणों तथा प्रत्येक द्वापरयुगके व्यासोंका नाम
  4. [अध्याय 4] नारदजीद्वारा व्यासजीको देवीकी महिमा बताना
  5. [अध्याय 5] भगवती लक्ष्मीके शापसे विष्णुका मस्तक कट जाना, वेदोंद्वारा स्तुति करनेपर देवीका प्रसन्न होना, भगवान् विष्णुके हयग्रीवावतारकी कथा
  6. [अध्याय 6] शेषशायी भगवान् विष्णुके कर्णमलसे मधु-कैटभकी उत्पत्ति तथा उन दोनोंका ब्रह्माजीसे युद्धके लिये तत्पर होना
  7. [अध्याय 7] ब्रह्माजीका भगवान् विष्णु तथा भगवती योगनिद्राकी स्तुति करना
  8. [अध्याय 8] भगवान् विष्णु योगमायाके अधीन क्यों हो गये -ऋषियोंके इस प्रश्नके उत्तरमें सूतजीद्वारा उन्हें आद्याशक्ति भगवतीकी महिमा सुनाना
  9. [अध्याय 9] भगवान् विष्णुका मधु-कैटभसे पाँच हजार वर्षोंतक युद्ध करना, विष्णुद्वारा देवीकी स्तुति तथा देवीद्वारा मोहित मधु-कैटभका विष्णुद्वारा वध
  10. [अध्याय 10] व्यासजीकी तपस्या और वर-प्राप्ति
  11. [अध्याय 11] बुधके जन्मकी कथा
  12. [अध्याय 12] राजा सुद्युम्नकी इला नामक स्त्रीके रूपमें परिणति, इलाका बुधसे विवाह और पुरूरवाकां उत्पत्ति, भगवतीकी स्तुति करनेसे इलारूपधारी राजा सुद्युम्नकी सायुज्यमुक्ति
  13. [अध्याय 13] राजा पुरूरवा और उर्वशीकी कथा
  14. [अध्याय 14] व्यासपुत्र शुकदेवके अरणिसे उत्पन्न होनेकी कथा तथा व्यासजीद्वारा उनसे गृहस्थधर्मका वर्णन
  15. [अध्याय 15] शुकदेवजीका विवाहके लिये अस्वीकार करना तथा व्यासजीका उनसे श्रीमद्देवीभागवत पढ़नेके लिये कहना
  16. [अध्याय 16] बालरूपधारी भगवान् विष्णुसे महालक्ष्मीका संवाद, व्यासजीका शुकदेवजीसे देवीभागवतप्राप्तिकी परम्परा बताना तथा शुकदेवजीका
  17. [अध्याय 17] शुकदेवजीका राजा जनकसे मिलनेके लिये मिथिलापुरीको प्रस्थान तथा राजभवनमें प्रवेश
  18. [अध्याय 18] शुकदेवजीके प्रति राजा जनकका उपदेश
  19. [अध्याय 19] शुकदेवजीका व्यासजीके आश्रममें वापस आना, विवाह करके सन्तानोत्पत्ति करना तथा परम सिद्धिकी प्राप्ति करना
  20. [अध्याय 20] सत्यवतीका राजा शन्तनुसे विवाह तथा दो पुत्रोंका जन्म, राजा शन्तनुकी मृत्यु, चित्रांगदका राजा बनना तथा उसकी मृत्यु, विचित्रवीर्यका काशिराजकी कन्याओंसे विवाह और क्षयरोगसे मृत्यु, व्यासजीद्वारा धृतराष्ट्र, पाण्डु और विदुरकी उत्पत्ति