श्रीनारायण बोले- [हे नारद!] स्वायम्भुव मनुके ज्येष्ठ पुत्र प्रियव्रत थे, वे नित्य पिताकी सेवामें संलग्न रहते थे तथा सत्य धर्मका पालन करते थे ॥ 1 ॥
विश्वकर्मा नामक प्रजापतिकी सुन्दर रूपवाली | कन्या बर्हिष्मतीके साथ प्रियव्रतने विवाह किया था, जो स्वभाव तथा कर्ममें उन्होंके सदृश थी 2 ॥
प्रियव्रतने उस बर्हिष्मतीसे पवित्र आत्मावाले दस गुणी पुत्रों और ऊर्जस्वती नामक एक कन्याको उत्पन्न किया, जो सबसे छोटी थी ॥ 3 ॥
आग्नीध्र, इध्मजिह्न, यज्ञबाहु, महावीर, रुक्मशुक्र, घृतपृष्ठ, सवन, मेधातिथि, वीतिहोत्र और कवि-इन नामोंसे ये दसों पुत्र अग्निसंज्ञक कहे गये हैं । 4-5 ॥ इन दस पुत्रोंमें कवि, सवन और महावीर ये तीन पुत्र विरागी हो गये। आत्मविद्यामें निष्णात तथा ब्रह्मचर्यव्रतके पालक वे सभी पुत्र परमहंस नामक आश्रममें आनन्दपूर्वक स्पृहारहित भावसे रहने लगे ॥ 6-7 ॥
प्रियव्रतकी दूसरी पत्नीसे तीन पुत्र उत्पन्न हुए; जो उत्तम, तामस और रैवत- इन नामोंसे विख्यात हुए। ये महान् प्रतापी पुत्र एक-एक मन्वन्तरके अधिपति बने ॥ 83 ॥अपराजेय बल तथा इन्द्रियोंवाले महाराज प्रियव्रत इस पृथ्वीपर ग्यारह अर्बुद वर्षोंतक राज्य किया ॥ 93 ॥
एक बारकी बात है— जब सूर्य पृथ्वीके प्रथम भागमें प्रकाशित हो रहे थे, तब दूसरे भागमें अन्धकार हो गया। इस प्रकारका संकट देखकर राजाके मनमें तत्काल यह विचार उत्पन्न हुआ कि मेरे शासन करते हुए पृथ्वीपर अन्धकार कैसे उत्पन्न हुआ? मैं अपने योगबलसे पृथ्वीपरसे इसका निवारण कर दूँगा ।। 10-12 ॥
ऐसा निश्चय करके स्वायम्भुव मनुके पुत्र उन प्रियव्रतने सूर्य सदृश तेजवाले रथपर आसीन होकर जगत्को प्रकाशित करते हुए पृथ्वीकी सात प्रदक्षिणाएँ कीं ॥ 13 ॥
उन राजा प्रियव्रतके परिक्रमण करते समय पृथ्वीपर जहाँ-जहाँ रथके पहिये पड़े थे, वे स्थान लोक-हितके लिये सात समुद्र बन गये ॥ 14 ॥
पृथ्वी की परिक्रमाकेबीचके स्थल विभागानुसार सात द्वीपके रूपमें हो गये और रथके पहियोंके | धँसनेसे बने हुए सात समुद्र उनकी परिखा (खाई) के रूपमें हो गये ॥ 15 ॥
तभीसे पृथ्वीपर सात द्वीप हो गये; जो जम्बूद्वीप, प्लक्षद्वीप, शाल्मलिद्वीप, कुशद्वीप, क्रौंचद्वीप, शाकद्वीप | और पुष्करद्वीपके नामसे प्रसिद्ध हुए। उत्तरोत्तर क्रमसे उनका परिमाण दुगुना है ॥ 16-17 ॥
उन द्वीपोंके बाहर चारों ओर विभाग-क्रमसे समुद्र आप्लावित हैं। वे क्षारोद, इक्षुरसोद, सुरोद, घृतोद, क्षीरोद, दधिमण्डोद और शुद्धोद नामसे जाने गये। तभीसे भूमण्डलपर ये सातों समुद्र विख्यात हो गये ।। 18-19 ।। क्षारोद समुद्रसे घिरा हुआ जो पहला द्वीप है,
वह जम्बूद्वीप नामसे विख्यात है। राजा प्रियव्रतने अपने आग्नीध्र नामक पुत्रको उस द्वीपका स्वामी बनाया था ॥ 20 ॥ प्रियव्रत- पुत्र इध्मजिह्व इक्षुरससे आप्लावित इस दूसरे प्लक्षद्वीपके शासक हुए ॥ 21 ॥
महाराज प्रियव्रतने सुरोदधिसे आप्लावित शाल्मली द्वीपका राजा अपने पुत्र यज्ञबाहुको बनाया ॥ 22 ॥प्रियव्रतके पुत्र हिरण्यरेता घृतोद नामक समुद्रसे घिरे हुए अति रमणीक कुशद्वीपके राजा हुए ॥ 23 ॥ महान् बलशाली प्रियव्रतपुत्र घृतपृष्ठ क्षीरसागरके द्वारा चारों ओरसे घिरे क्रौंचद्वीप नामक पाँचवें द्वीपके स्वामी हुए ॥ 24 ॥
प्रियव्रतके उत्तम पुत्र मेधातिथि दधिमण्डोद नामक समुद्रसे आवृत तथा अन्य द्वीपोंसे अपेक्षाकृत सुन्दर शाकद्वीपके राजा बने ॥ 25 ॥
अपने पिता प्रियव्रतकी अनुमति पाकर पुत्र वीतिहोत्र शुद्धोद नामक समुद्रसे घिरे पुष्करद्वीपके राजा हुए ॥ 26 ॥
महाराज प्रियव्रतने अपनी ऊर्जस्वती नामक | कन्या शुक्राचार्यको अर्पित कर दी थी। शुक्राचार्यकी सर्वविश्रुत कन्या देवयानी उन्हीं ऊर्जस्वतीके गर्भसे उत्पन्न हुई थी ॥ 27 ॥
इस प्रकार अपने पुत्रोंमें सातों द्वीपोंका विभाजन करके महाराज प्रियव्रतने विवेकसम्पन्न होकर योगमार्गका आश्रय ग्रहण किया ॥ 28 ॥