श्रीनारायण बोले- हे नारद! इस प्रकार पृथ्वीको यथास्थान प्रतिष्ठित करके भगवान् जब वैकुण्ठ चले गये तब ब्रह्माजीने अपने पुत्रसे कहा- ॥ 1 ॥
तेजस्वियोंमें श्रेष्ठ तथा विशाल भुजाओंवाले हे पुत्र स्वायम्भुव! अब तुम उस स्थलमय स्थानपर रहकर समुचित रूपसे प्रजाओंकी सृष्टि करो। हे विभो ! देश एवं कालके विभागके अनुसार यज्ञके साधनस्वरूप उत्तम तथा मध्यम सामग्रियोंसे यज्ञके स्वामी परम पुरुषका यजन करो; शास्त्रोंमें वर्णित धर्मका आचरण करो और वर्णाश्रम व्यवस्थाका पालन करो। इस क्रमसे प्रवृत्त रहनेपर प्रजा-वृद्धि होती रहेगी। विद्या विनयसे सम्पन्न, सदाचारियोंमें श्रेष्ठ और अपने गुण, कीर्ति तथा कान्तिके अनुरूप पुत्र उत्पन्न करके कन्याओंको गुणी तथा यशस्वी पुरुषोंको अर्पण करके और एकाग्रचित्त होकर अपने मनको पूर्णरूपसे प्रधान पुरुष परमेश्वरमें स्थित करके भक्तिपूर्वक साधना तथा भगवान्की सेवाद्वारा आप योगियोंके लिये सदा वन्दनीय अभीष्ट गतिको प्राप्त कर लोगे ॥ 27 ॥
[हे नारद!] इस प्रकार अपने पुत्र स्वायम्भुव मनुको उपदेश देकर तथा उन्हें प्रजा सृष्टिके कार्यमें नियुक्त करके पद्मयोनि ब्रह्माजी अपने धामको चले गये ॥ 8 ॥'हे पुत्र प्रजाओंका सृजन करो' पिताकी इस आज्ञाको पृथ्वीपति स्वायम्भुव मनुने हृदयमें धारण कर लिया और वे प्रजा सृष्टि करने लगे ॥ 9 ॥ मनुसे प्रियव्रत तथा उत्तानपाद नामक दो महान् ओजस्वी पुत्र और तीन कन्याएँ उत्पन्न हुई, उनके नाम मुझसे सुनिये; पहली कन्या आकूति, दूसरी | देवहूति तथा लोकपावनी तीसरी कन्या प्रसूति नामसे विख्यात हुई ।। 10-11 ॥
उन्होंने आकृतिका रुचिके साथ, मध्यम कन्या देवहूतिका कर्दमके साथ और प्रसूतिका विवाह दक्षप्रजापतिके साथ कर दिया, जिनकी ये प्रजाएँ लोकमें फैली हुई हैं॥ 12
रुचिके द्वारा आकृतिसे यज्ञरूप भगवान् आदिपुरुष प्रकट हुए। कर्दमॠषिके द्वारा देवहूतिसे कपिल उत्पन्न हुए। परम ऐश्वर्यशाली उन कपिलमुनिने सभी लोकोंमें सांख्यशास्त्रके आचार्यके रूपमें प्रसिद्धि प्राप्त की। इसी प्रकार दक्षके द्वारा प्रसूतिसे सन्तानके रूपमें बहुत-सी कन्याएँ उत्पन्न हुई; जिनकी सन्तानोंके रूपमें देवता, पशु और मानव आदि उत्पन्न होकर लोकमें प्रसिद्ध हुए; वे सभी इस सृष्टिके प्रवर्तक हैं ।। 13-15॥
सर्वसमर्थ भगवान् यज्ञपुरुषने याम नामक देवताओंके | साथ मिलकर स्वायम्भुव मन्वन्तरमें राक्षसोंसे मनुकी रक्षा की थी 16 ॥
महान् योगी भगवान् कपिलने अपने आश्रम में रहकर माता देवहूतिको सभी अविद्याओंका नाश करनेवाले परमज्ञानका उपदेश किया था ॥ 17 ॥
उन्होंने ध्यानयोग तथा अध्यात्मज्ञानके सिद्धान्तका विशेषरूपसे प्रतिपादन किया। समस्त अज्ञानको नष्ट करनेवाला उनका शास्त्र कापिल शास्त्रके रूपमें प्रसिद्ध हुआ ॥ 18 ॥
वे महायोगी कपिल अपनी माताको उपदेश देकर ऋषि पुलहके आश्रमपर चले गये। सांख्यशास्त्रके आचार्य महान् यशस्वी भगवान् कपिल आज भी विद्यमान हैं ॥ 19 ॥
मैं सभी प्रकारके वर प्रदान करनेवाले उन योगाचार्य कपिलको प्रणाम करता है, जिनके नामके स्मरणमात्रसे सांख्ययोग सिद्ध हो जाता है ॥ 20 ॥हे नारद! इस प्रकार मैंने स्वायम्भुव मनुकी कन्याओंके वंशका उत्तम वर्णन कर दिया, जिसके पढ़ने तथा सुननेवालोंके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं ॥ 21 ॥ इसके बाद मैं मनु-पुत्रोंके पवित्र वंशका वर्णन करूँगा, जिसके श्रवणमात्रसे मनुष्य परम पद प्राप्त कर लेता है ॥22॥
उन मनुपुत्रोंने व्यवहारकी सिद्धिके लिये और सभी प्राणियोंकी सुख-प्राप्तिके लिये द्वीप, वर्ष और समुद्र आदिकी व्यवस्था की है ॥ 23 ॥