View All Puran & Books

देवी भागवत महापुराण ( देवी भागवत)

Devi Bhagwat Purana (Devi Bhagwat Katha)

स्कन्ध 9, अध्याय 5 - Skand 9, Adhyay 5

Previous Page 227 of 326 Next

याज्ञवल्क्यद्वारा भगवती सरस्वतीकी स्तुति

श्रीनारायण बोले- हे मुने! अब आप वाग्देवी सरस्वतीका वह स्तोत्र सुनिये, जो सभी मनोरथोंको पूर्ण करनेवाला है और जिसके द्वारा महामुनि याज्ञवल्क्यने प्राचीन कालमें उन सरस्वती देवीकी स्तुति की थी॥ 1 ॥

गुरुदेवके शापसे वे मुनि अपनी विद्यासे च्युत हो गये थे।" तब दुःखार्त होकर वे पुण्यप्रद सूर्यतीर्थ लोलार्क क्षेत्रमें चले गये। वहाँ पहुँचकर अपनी तपस्यासे भगवान् सूर्यके दर्शन प्राप्त करके उन्होंने सूर्यकी स्तुति की तथा शोक सन्तप्त होकर बार-बार रुदन किया॥ 2-3 ll

उस समय भगवान् सूर्यने उन याज्ञवल्क्यको वेद तथा वेदांग पढ़ाया और उनसे कहा कि आप स्मरणशक्ति प्राप्त करनेके लिये भक्तिपूर्वक सरस्वतीदेवीकी स्तुति कीजिये ॥ 4 ॥

उनसे ऐसा कहकर दीनोंके नाथ भगवान् सूर्य अन्तर्धान हो गये और याज्ञवल्क्यमुनि स्नान करके सिर झुकाकर भक्तिपूर्वक देवी सरस्वतीकी स्तुति करने लगे ॥ 5 ॥

याज्ञवल्क्य बोले- हे जगज्जननि गुरुके शापसे इस प्रकार मुझ विनष्ट स्मृतिवाले, निस्तेज, विद्याविहीन तथा दुःखितपर कृपा कीजिये ॥ 6 ॥

आप मुझे ज्ञान, स्मरणशक्ति, विद्या, शिष्योंको प्रबोध करानेवाली शक्ति, ग्रन्थनिर्माणका सामर्थ्य, सुप्रतिष्ठित शिष्य तथा सज्जनोंकी सभामें अभिव्यक्तिहेतु प्रतिभा एवं उत्तम विचारक्षमता प्रदान कीजिये। दैवयोगसे मेरी लुप्त हुई इन समस्त शक्तियोंको आप पुनः उसी प्रकार नवीनरूपमें कर दीजिये, जैसे देवता भस्ममें छिपे बीजको पुनः अंकुरित कर देते हैं ।॥ 7-83 ॥

जो ब्रह्मस्वरूपिणी, परमा, ज्योतिरूपा, शाश्वत तथा सभी विद्याओंकी अधिष्ठात्री देवी हैं; उन सरस्वतीको बार-बार नमस्कार है ॥ 93 ॥विसर्ग, बिन्दु तथा मात्रा इन तीनोंमें जो अधिष्ठानरूपसे विद्यमान है तथा जो उनकी अधिष्ठात्री देवी हैं उन नित्या देवीको बार-बार नमस्कार है। वे भगवती सरस्वती व्याख्यास्वरूपिणी तथा व्याख्याकी | अधिष्ठातृ भी हैं। 10-11 ॥ जिनके बिना सुप्रसिद्ध गणक भी गणनाकार्य नहीं कर सकते तथा जो साक्षात् कालसंख्यास्वरूपिणी हैं; उन देवीको बार-बार नमस्कार है ॥ 12 ॥ जो भ्रमसिद्धान्तस्वरूपा हैं, उन देवीको बार-बार नमस्कार है। जो स्मरणशक्ति, ज्ञानशक्ति, बुद्धिशक्ति, प्रतिभाशक्ति तथा कल्पनाशक्तिस्वरूपिणी हैं; उन देवीको बार-बार नमस्कार है ॥ 133 ॥

एक बार जब सनत्कुमारने ब्रह्माजीसे ब्रह्मज्ञानके विषयमें पूछा था, उस समय ब्रह्मसिद्धान्तकी व्याख्या करनेमें वे ब्रह्मा मूककी भाँति अक्षम हो गये थे। उसी समय स्वयं परमात्मा श्रीकृष्ण वहाँ आ गये और उन्होंने कहा- हे प्रजापते! आप भगवती सरस्वतीको अपनी इष्ट देवी बनाकर उनकी स्तुति कीजिये ।। 14-15 ॥

परमात्मा श्रीकृष्णकी आज्ञा पाकर ब्रह्माजीने उन सरस्वतीकी स्तुति की। उसके बाद वे सरस्वतीकी कृपासे उत्तम सिद्धान्तका विवेचन करनेमें सफल हो गये ll 163ll

इसी तरह जब पृथ्वीने शेषनागसे ज्ञानका एक रहस्य पूछा था, तब वे शेष भी मूक-जैसे बन गये और सिद्धान्तका विवेचन करनेमें असमर्थ रहे तब अत्यन्त व्यथितहृदय शेषने कश्यपकी आज्ञाके अनुसार उन सरस्वतीकी स्तुति की। तदनन्तर वे भ्रमका नाश करनेवाले उस पवित्र सिद्धान्तका विवेचन कर सके ॥ 17-183 ॥

ऐसे ही जब व्यासने वाल्मीकिसे पुराणसूत्र पूछा, तब वे मौन हो गये और तब उन्होंने उन्हीं जगदम्बा सरस्वतीका स्मरण किया। तत्पश्चात् उनके वरसे भ्रमरूपी अन्धकारको मिटानेवाला ज्योतिसदृश निर्मल ज्ञान प्राप्त करके मुनीश्वर वाल्मीकि पुराण- सिद्धान्तका प्रतिपादन करनेमें समर्थ हो सके । ll 19-20 3 ॥भगवान् कृष्णके अंशसे उत्पन्न व्यासजीने उस पुराणसूत्रको सुनकर उन कल्याणमयी सरस्वतीको जाना और पुष्करक्षेत्रमें सौ वर्षोंतक उनकी उपासना की। [हे माता!] तत्पश्चात् आपसे वर प्राप्त करके वे श्रेष्ठ कवीन्द्र हुए और उसके बाद उन्होंने वेदोंका विभाजन तथा पुराणोंकी रचना की ।। 21-223 ।।

जब इन्द्रने भगवान् शंकरसे तत्त्वज्ञानके सम्बन्धमें पूछा, तब क्षणभर उन सरस्वतीका ध्यान करके ही शिवजीने उन इन्द्रको ज्ञानोपदेश दिया ll 233 ॥ [हे माता!] जब इन्द्रने शब्दशास्त्रके विषयमें बृहस्पतिसे पूछा था, तब उन्होंने पुष्करक्षेत्रमें दिव्य | एक हजार वर्षोंतक आपकी आराधना की। तदुपरान्त आपसे वर प्राप्त करके वे एक हजार दिव्य वर्षोंतक देवपति इन्द्रको शब्दशास्त्रका उपदेश करते रहे। इसी तरह बृहस्पतिने जिन शिष्योंको पढ़ाया तथा अन्य जिन मुनीश्वरोंने उनसे अध्ययन किया, वे सब-के सब उन भगवती सुरेश्वरीकी सम्यक् आराधना करके ही सफल हुए हैं ॥ 24 - 263 ॥

मुनीश्वरों, मनुगणों, मनुष्यों, दैत्येश्वरों तथा ब्रह्मा, विष्णु, शिव आदि देवताओंके द्वारा भी सम्यक् रूपसे आपकी स्तुति तथा पूजा की गयी है। हजार मुखवाले शेषनाग, पाँच मुखवाले शिव तथा चार मुखवाले ब्रह्मा भी जिनकी स्तुति करनेमें जड़वत् हो जाते हैं, तब मैं साधारण-सा मनुष्य एक मुखसे उन आपकी स्तुति कैसे कर सकता हैं ? ।। 27-283 ।।

[ हे नारद!] इस प्रकार स्तुति करके याज्ञवल्क्यमुनि भगवती सरस्वतीको प्रणाम करने लगे। उस समय भक्तिभावसे उनका कन्धा झुक गया था, वे आहाररहित थे तथा बार-बार रो रहे थे ॥ 293 ॥

इसी बीच ज्योतिस्वरूपिणी महामाया सरस्वतीने उन्हें दर्शन दिया और वे मुनिसे बोलीं- 'तुम महान् कवीन्द्र हो जाओ' – ऐसा कहकर वे वैकुण्ठ चली गयीं ॥ 30 ll[हे नारद!] जो मनुष्य याज्ञवल्क्यके द्वारा रचित इस सरस्वतीस्तोत्रका पाठ करता है, वह कवीन्द्र तथा बृहस्पतिके समान महान् वक्ता हो जाता है। यदि कोई महान् मूर्ख तथा दुर्बुद्धि भी इस स्तोत्रका एक वर्षतक नियमपूर्वक पाठ करे, तो वह निश्चय ही पण्डित, मेधावी तथा श्रेष्ठ कवि हो जाता है ॥ 31-33॥

Previous Page 227 of 326 Next

देवी भागवत महापुराण
Index


  1. [अध्याय 1] प्रकृतितत्त्वविमर्श प्रकृतिके अंश, कला एवं कलांशसे उत्पन्न देवियोंका वर्णन
  2. [अध्याय 2] परब्रह्म श्रीकृष्ण और श्रीराधासे प्रकट चिन्मय देवताओं एवं देवियोंका वर्णन
  3. [अध्याय 3] परिपूर्णतम श्रीकृष्ण और चिन्मयी राधासे प्रकट विराट्रूप बालकका वर्णन
  4. [अध्याय 4] सरस्वतीकी पूजाका विधान तथा कवच
  5. [अध्याय 5] याज्ञवल्क्यद्वारा भगवती सरस्वतीकी स्तुति
  6. [अध्याय 6] लक्ष्मी, सरस्वती तथा गंगाका परस्पर शापवश भारतवर्षमें पधारना
  7. [अध्याय 7] भगवान् नारायणका गंगा, लक्ष्मी और सरस्वतीसे उनके शापकी अवधि बताना तथा अपने भक्तोंके महत्त्वका वर्णन करना
  8. [अध्याय 8] कलियुगका वर्णन, परब्रह्म परमात्मा एवं शक्तिस्वरूपा मूलप्रकृतिकी कृपासे त्रिदेवों तथा देवियोंके प्रभावका वर्णन और गोलोकमें राधा-कृष्णका दर्शन
  9. [अध्याय 9] पृथ्वीकी उत्पत्तिका प्रसंग, ध्यान और पूजनका प्रकार तथा उनकी स्तुति
  10. [अध्याय 10] पृथ्वीके प्रति शास्त्र - विपरीत व्यवहार करनेपर नरकोंकी प्राप्तिका वर्णन
  11. [अध्याय 11] गंगाकी उत्पत्ति एवं उनका माहात्म्य
  12. [अध्याय 12] गंगाके ध्यान एवं स्तवनका वर्णन, गोलोकमें श्रीराधा-कृष्णके अंशसे गंगाके प्रादुर्भावकी कथा
  13. [अध्याय 13] श्रीराधाजीके रोषसे भयभीत गंगाका श्रीकृष्णके चरणकमलोंकी शरण लेना, श्रीकृष्णके प्रति राधाका उपालम्भ, ब्रह्माजीकी स्तुतिसे राधाका प्रसन्न होना तथा गंगाका प्रकट होना
  14. [अध्याय 14] गंगाके विष्णुपत्नी होनेका प्रसंग
  15. [अध्याय 15] तुलसीके कथा-प्रसंगमें राजा वृषध्वजका चरित्र- वर्णन
  16. [अध्याय 16] वेदवतीकी कथा, इसी प्रसंगमें भगवान् श्रीरामके चरित्रके एक अंशका कथन, भगवती सीता तथा द्रौपदी के पूर्वजन्मका वृत्तान्त
  17. [अध्याय 17] भगवती तुलसीके प्रादुर्भावका प्रसंग
  18. [अध्याय 18] तुलसीको स्वप्न में शंखचूड़का दर्शन, ब्रह्माजीका शंखचूड़ तथा तुलसीको विवाहके लिये आदेश देना
  19. [अध्याय 19] तुलसीके साथ शंखचूड़का गान्धर्वविवाह, शंखचूड़से पराजित और निर्वासित देवताओंका ब्रह्मा तथा शंकरजीके साथ वैकुण्ठधाम जाना, श्रीहरिका शंखचूड़के पूर्वजन्मका वृत्तान्त बताना
  20. [अध्याय 20] पुष्पदन्तका शंखचूड़के पास जाकर भगवान् शंकरका सन्देश सुनाना, युद्धकी बात सुनकर तुलसीका सन्तप्त होना और शंखचूड़का उसे ज्ञानोपदेश देना
  21. [अध्याय 21] शंखचूड़ और भगवान् शंकरका विशद वार्तालाप
  22. [अध्याय 22] कुमार कार्तिकेय और भगवती भद्रकालीसे शंखचूड़का भयंकर बुद्ध और आकाशवाणीका पाशुपतास्त्रसे शंखचूड़की अवध्यताका कारण बताना
  23. [अध्याय 23] भगवान् शंकर और शंखचूड़का युद्ध, भगवान् श्रीहरिका वृद्ध ब्राह्मणके वेशमें शंखचूड़से कवच माँग लेना तथा शंखचूड़का रूप धारणकर तुलसीसे हास-विलास करना, शंखचूड़का भस्म होना और सुदामागोपके रूपमें गोलोक पहुँचना
  24. [अध्याय 24] शंखचूड़रूपधारी श्रीहरिका तुलसीके भवनमें जाना, तुलसीका श्रीहरिको पाषाण होनेका शाप देना, तुलसी-महिमा, शालग्रामके विभिन्न लक्षण एवं माहात्म्यका वर्णन
  25. [अध्याय 25] तुलसी पूजन, ध्यान, नामाष्टक तथा तुलसीस्तवनका वर्णन
  26. [अध्याय 26] सावित्रीदेवीकी पूजा-स्तुतिका विधान
  27. [अध्याय 27] भगवती सावित्रीकी उपासनासे राजा अश्वपतिको सावित्री नामक कन्याकी प्राप्ति, सत्यवान् के साथ सावित्रीका विवाह, सत्यवान्की मृत्यु, सावित्री और यमराजका संवाद
  28. [अध्याय 28] सावित्री यमराज-संवाद
  29. [अध्याय 29] सावित्री धर्मराजके प्रश्नोत्तर और धर्मराजद्वारा सावित्रीको वरदान
  30. [अध्याय 30] दिव्य लोकोंकी प्राप्ति करानेवाले पुण्यकर्मोंका वर्णन
  31. [अध्याय 31] सावित्रीका यमाष्टकद्वारा धर्मराजका स्तवन
  32. [अध्याय 32] धर्मराजका सावित्रीको अशुभ कर्मोंके फल बताना
  33. [अध्याय 33] विभिन्न नरककुण्डों में जानेवाले पापियों तथा उनके पापोंका वर्णन
  34. [अध्याय 34] विभिन्न पापकर्म तथा उनके कारण प्राप्त होनेवाले नरकका वर्णन
  35. [अध्याय 35] विभिन्न पापकर्मोंसे प्राप्त होनेवाली विभिन्न योनियोंका वर्णन
  36. [अध्याय 36] धर्मराजद्वारा सावित्रीसे देवोपासनासे प्राप्त होनेवाले पुण्यफलोंको कहना
  37. [अध्याय 37] विभिन्न नरककुण्ड तथा वहाँ दी जानेवाली यातनाका वर्णन
  38. [अध्याय 38] धर्मराजका सावित्री से भगवतीकी महिमाका वर्णन करना और उसके पतिको जीवनदान देना
  39. [अध्याय 39] भगवती लक्ष्मीका प्राकट्य, समस्त देवताओंद्वारा उनका पूजन
  40. [अध्याय 40] दुर्वासाके शापसे इन्द्रका श्रीहीन हो जाना
  41. [अध्याय 41] ब्रह्माजीका इन्द्र तथा देवताओंको साथ लेकर श्रीहरिके पास जाना, श्रीहरिका उनसे लक्ष्मीके रुष्ट होनेके कारणोंको बताना, समुद्रमन्थन तथा उससे लक्ष्मीजीका प्रादुर्भाव
  42. [अध्याय 42] इन्द्रद्वारा भगवती लक्ष्मीका षोडशोपचार पूजन एवं स्तवन
  43. [अध्याय 43] भगवती स्वाहाका उपाख्यान
  44. [अध्याय 44] भगवती स्वधाका उपाख्यान
  45. [अध्याय 45] भगवती दक्षिणाका उपाख्यान
  46. [अध्याय 46] भगवती षष्ठीकी महिमाके प्रसंगमें राजा प्रियव्रतकी कथा
  47. [अध्याय 47] भगवती मंगलचण्डी तथा भगवती मनसाका आख्यान
  48. [अध्याय 48] भगवती मनसाका पूजन- विधान, मनसा-पुत्र आस्तीकका जनमेजयके सर्पसत्रमें नागोंकी रक्षा करना, इन्द्रद्वारा मनसादेवीका स्तवन करना
  49. [अध्याय 49] आदि गौ सुरभिदेवीका आख्यान
  50. [अध्याय 50] भगवती श्रीराधा तथा श्रीदुर्गाके मन्त्र, ध्यान, पूजा-विधान तथा स्तवनका वर्णन