ईश्वर बोले- हे महासेन! कुश-ग्रन्थि, पुत्रजीव (जियापोती) आदिसे निर्मित तथा अन्य वस्तुसे बनी हुई मालाओंमेंसे कोई एक भी रुद्राक्ष मालाकी सोलहवीं कलाके बराबर भी नहीं हो सकती ॥ 1 ॥ जैसे पुरुषोंमें विष्णु, ग्रहोंमें सूर्य, नदियोंमें गंगा, मुनियोंमें कश्यप, घोड़ोंमें उच्चैःश्रवा, देवताओंमें महेश्वर, देवियोंमें गौरी श्रेष्ठ हैं; उसी प्रकार यह रुद्राक्ष श्रेष्ठ है । ll 2-3॥
रुद्राक्षसे बढ़कर न कोई स्तोत्र है और न कोई व्रत है। सभी प्रकारके अक्षय दानोंकी तुलनामें रुद्राक्ष-दान विशेष महिमावाला है ॥ 4 ॥
जो मनुष्य किसी शान्त स्वभाववाले शिवभक्तको उत्तम रुद्राक्षका दान करता है, उसके पुण्यफलकी सीमाका वर्णन करनेमें मैं समर्थ नहीं हूँ ॥ 5 ॥
जो मनुष्य कण्ठमें रुद्राक्ष धारण किये हुए किसी व्यक्तिको अन्न प्रदान करता है, वह अपने इक्कीस कुलोंका उद्धार करके रुद्रलोकको जाता है ॥ 6 ॥ जो ब्राह्मण अपने मस्तकपर भस्म नहीं लगाता, शरीरपर रुद्राक्ष नहीं धारण करता और शिवमन्दिरमें पूजा नहीं करता, वह चाण्डालोंमें भी अधम है ॥ 7 ॥ मांस खानेवाला, सुरापान करनेवाला तथा अन्त्यजोंके सान्निध्यमें रहनेवाला भी सिरपर रुद्राक्ष धारण करनेपर तज्जन्य पापोंसे मुक्त हो जाता है ॥ 8 ॥ सभी प्रकारके यज्ञ, तप, दान तथा वेदाध्ययन करनेसे जो फल प्राप्त होता है, वह फल मात्र रुद्राक्ष धारणसे शीघ्र ही प्राप्त हो जाता है ॥ 9 ॥
चारों वेदोंका स्वाध्याय करने, पुराणोंको पढ़ने, तीर्थों का सेवन करने तथा सभी विद्याओंका अध्ययन करनेके फलस्वरूप जो पुण्य होता है, वह पुण्य मनुष्य केवल रुद्राक्षधारणसे तत्काल प्राप्त कर लेता है ॥ 103 ॥
प्रयाणकालमें रुद्राक्ष धारण करके यदि कोई मृत्युको प्राप्त होता है, तो वह रुद्रत्वको प्राप्त हो जाता है और उसका पुनर्जन्म नहीं होता ॥ 113 ॥यदि मनुष्य कण्ठमें या दोनों भुजाओंपर रुद्राक्ष धारण किये हुए मर जाता है तो वह अपनी इक्कीस पीढ़ियोंको तारकर अन्तमें रुद्रलोकमें निवास करता है ॥ 123 ॥ जो भस्म तथा रुद्राक्ष धारण करता है; वह महादेव शिवके लोकमें पहुँच जाता है, चाहे वह ब्राह्मण हो या चाण्डाल और गुणवान् हो अथवा गुणसे रहित। पवित्र हो अथवा अपवित्र तथा चाहे वह अभक्ष्य पदार्थोंका भक्षण करनेवाला ही क्यों न हो। म्लेच्छ हो अथवा चाण्डाल हो या सभी पातकोंसे युक्त ही क्यों न हो, वह केवल रुद्राक्षधारणसे ही रुद्रस्वरूप हो जाता है, इसमें संशय नहीं है 13-15॥
सिरपर रुद्राक्ष धारण करनेसे करोड़ गुना, दोनों कानोंमें पहननेसे दस करोड़ गुना, गलेमें धारण करनेसे सौ करोड़ गुना, मस्तकपर धारण करनेसे हजार करोड़ गुना, यज्ञोपवीतमें धारण करनेसे इससे भी दस हजार गुना तथा दोनों भुजाओंपर धारण करनेसे लाख करोड़ गुना फल मिलता है और मणिबन्धमें धारण करनेपर यह रुद्राक्ष मोक्षका परम साधन बन जाता है ॥ 16-17 ॥
कोई ब्राह्मण रुद्राक्ष धारण करके भक्तिपूर्वक जो कुछ भी वैदिक कर्म करता है, उसे उसका महान् फल प्राप्त होता है ॥ 18 ॥
श्रद्धारहित होकर भी यदि कोई गलेमें रुद्राक्ष धारण कर ले तो नित्य पापकर्ममें रत रहनेपर भी वह सभी बन्धनोंसे छूट जाता है ॥ 19 ॥
जो अपने मनमें रुद्राक्ष धारण करनेकी भावना रखता है, किंतु उसे धारण नहीं कर पाता, तो भी वह महेश्वर- स्वरूप है और इस लोकमें शिवलिंगकी भाँति नमस्कारके योग्य है ॥ 20 ॥
कोई व्यक्ति चाहे विद्यासम्पन्न हो अथवा विद्यारहित, वह रुद्राक्ष धारण कर लेनेमात्रसे ही शिवलोकको प्राप्त हो जाता है, जैसे कीकट नामक स्थानविशेषमें एक गर्दभ शिवलोक चला गया था ॥ 21 ॥
स्कन्द बोले- हे देव। उस गर्दभने कीकटदेशमें किस कारणसे रुद्राक्षोंको धारण किया था और किसने उसे रुद्राक्ष दिया था ? हे परमेश्वर वह सारा वृत्तान्त आप मुझे बताइये ॥ 22 ॥श्रीभगवान् बोले- हे पुत्र अब तुम एक प्राचीन वृत्तान्त सुनो। एक गर्दभ विन्ध्यपर्वतपर रुद्राक्षका बोझा ढोया करता था। एक समय पथिक अधिक बोझा लादकर उसे हाँकने लगा, जिससे अत्यधिक थका हुआ वह गर्दभ उस बोझको ढोनेमें असमर्थ होकर भूमिपर गिर पड़ा और उसने प्राण त्याग दिये। हे महासेन! इसके बाद मेरे अनुग्रहसे वह हाथमें त्रिशूल धारण किये हुए तथा त्रिनेत्रधारी होकर महेश्वररूपमें मेरे पास आ गया । ll 23-246 ॥
रुद्राक्षके मुखोंकी जितनी दुर्लभ संख्या होती है, उतने हजार युगौतक द्राक्ष धारण करनेवाला शिवलोकमें प्रतिष्ठा प्राप्त करता है ॥ 253 ॥
अपने शिष्यको ही रुद्राक्ष माहात्म्य बताना चाहिये, जो शिष्य न हो उसे कभी नहीं बताना चाहिये, साथ ही अभक्तों तथा मूर्खोके समक्ष इसे प्रकट नहीं करना चाहिये 263 ॥ चाहे कोई भक्तिपरायण हो अथवा भक्तिरहित हो, नीच हो अथवा नीचसे भी बढ़कर हो, यदि वह रुद्राक्ष
धारण कर ले तो सभी पापोंसे मुक्त हो जाता है ॥ 273 ॥ रुद्राक्ष धारण करनेसे होनेवाले पुण्यकी तुलना भला किसके साथ की जा सकती है ? तत्वदर्शी मुनिगण इस रुद्राक्षधारणको महाव्रतकी संज्ञा देते हैं॥ 283 ॥
जिस व्यक्तिने एक हजार रुद्राक्षके धारण करनेका नियम बना रखा है, सभी देवता उसे नमस्कार करते हैं, जैसे रुद्र हैं वैसे ही यह भी है ॥ 29 ॥
जो मनुष्य एक हजार रुद्राक्षके अभावकी स्थितिमें दोनों भुजाओंपर सोलह-सोलह, शिखामें एक, दोनों हाथोंमें बारह-बारह, गलेमें बत्तीस, मस्तकपर चालीस, प्रत्येक कानमें छः-छः तथा वक्षःस्थलपर एक सौ आठ रुद्राक्ष धारण करता है; वह रुद्रके समान पूजित होता है ॥ 30-32 ॥
जो व्यक्ति मोती, मूंगा, स्फटिक, रौप्य, वैदूर्व तथा सुवर्ण आदिसे जटित रुद्राक्ष धारण करता है; वह | साक्षात् शिवस्वरूप हो जाता है ॥ 33 ॥
जो आलस्यवश केवल रुद्राक्षको ही धारण करता है, उस व्यक्तिको पाप उसी तरह स्पर्श नहीं कर सकते, जैसे अन्धकार सूर्यको स्पर्श नहीं कर पाता ॥ 34 ॥रुद्राक्षकी मालासे जपा गया मन्त्र अनन्त फल प्रदान करता है। जिसके शरीरपर अत्यन्त पुण्यदायक एक भी रुद्राक्ष नहीं रहता, उसका जन्म उसी भाँति निरर्थक है, जैसे त्रिपुण्ड्र धारण न करनेवालेका जीवन अर्थहीन होता है ॥ 353 ॥
जो अपने मस्तकपर रुद्राक्ष धारण करके शिरः स्नान करता है, उसे गंगास्नान करनेका फल प्राप्त होता है; इसमें संशय नहीं है ॥ 363 ॥
एकमुखी, पंचमुखी, ग्यारहमुखी, चौदहमुखी तथा और भी कुछ रुद्राक्षोंकी लोकमें पूजा की जाती है ॥ 373 ॥
साक्षात् शंकरके आत्मस्वरूप इस रुद्राक्षकी यदि
नित्य भक्तिपूर्वक पूजा की जाय तो यह दरिद्र
व्यक्तिको भी पृथ्वीपर राजा बना देता है ॥ 383 ॥
अब इस सम्बन्धमें मैं तुमसे एक प्राचीन उत्तम आख्यानका वर्णन करूँगा। ऐसा सुना जाता है कि कोसल- देशमें गिरिनाथ नामक एक ब्राह्मण रहता था। वह महाधनी, धर्मात्मा, वेद-वेदांगमें पारंगत, यज्ञपरायण तथा दीक्षायुक्त था । उसका गुणनिधि नामसे विख्यात एक पुत्र था, जो युवा, मनोहर आकृतिवाला तथा कामदेवके समान सुन्दर था ॥ 39-41 ॥
उसने अपने रूप तथा मदयुक्त यौवनसे सुधिषण नामक अपने गुरुकी मुक्तावली नामवाली भार्याको मोहित कर लिया ॥ 42 ॥
कुछ दिनोंतक मुक्तावलीके साथ उसका सम्पर्क रहा, किंतु बादमें गुरुसे भयके कारण उसने उन्हें विष दे दिया और वह निर्भय होकर सहवासपरायण हो गया ॥ 43 ॥
जब उसके माता-पिताको इस कर्मके विषयमें कुछ ज्ञात हुआ, तब उसने माता-पिताको भी उसी क्षण विष देकर मार डाला ॥ 44 ॥
तत्पश्चात् अनेक प्रकारके भोग-विलासोंमें सम्पूर्ण धनके व्यय हो जानेपर उस दुष्टने ब्राह्मणोंके घरमें चोरी करना आरम्भ कर दिया ।। 45 ।।
सुरापानसे निरन्तर मदोन्मत्त रहनेके कारण वह जातिसे बहिष्कृत कर दिया गया तथा सभी लोगोंने उसे गाँवसे बाहर निकाल दिया। तब वह वनमें विचरण करने लगा ॥ 46 ॥उस मुक्तावलीको साथमें लेकर वह घने जंगलमें चला गया। वहाँ मार्गमें स्थित होकर उसने [आने जानेवाले] अनेक ब्राह्मणोंको धनके लोभसे मार डाला ॥ 47 ॥
इस प्रकार बहुत समय बीत जानेके बाद वह नीच प्राणी मृत्युको प्राप्त हुआ और उसे लेनेके लिये हजारों यमदूत आये ॥ 48 ॥
उसी समय शिवके गण शिवलोकसे वहाँ आ पहुँचे और फिर हे गिरिजानन्दन ! उन दोनों (यमदूतों तथा शिवदूतों) में परस्पर विवाद होने लगा ॥ 49 ।। तब यमदूतोंने कहा- हे शम्भुके सेवको! आपलोग बतायें कि इसका कौन-सा पुण्य है, जो आपलोग इसे शिवलोक ले जाना चाहते हैं ? ॥ 50 ॥
इसपर शिवदूत कहने लगे कि यह जिस स्थानपर मृत्युको प्राप्त हुआ है, उस भूमिके दस हाथ नीचे रुद्राक्ष विद्यमान है। हे यमदूतो! उसी रुद्राक्षके प्रभावसे इसे हमलोग शिवके पास ले जायँगे ॥ 513॥
तत्पश्चात् वह गुणनिधि नामक ब्राह्मण दिव्य रूप धारण करके विमानपर आरूढ़ होकर शिवदूतोंके साथ शिवलोक चला गया। हे सुव्रत ! मैंने तुमसे रुद्राक्षका यह माहात्म्य कह दिया। इस प्रकार मेरे द्वारा संक्षेपमें वर्णित यह रुद्राक्षमाहात्म्य सभी पापोंका नाश करनेवाला तथा महान् पुण्यफल प्रदान करनेवाला है ॥ 52-54 ॥