यमराज बोले- [ है सावित्रि!] भारतवर्षमें जो कोई निर्दयी तथा क्रूर व्यक्ति खड्गसे किसी जीवको काटता है या कोई नरवाती धनके लोभसे किसी मनुष्यकी हत्या करता है, वह चौदहों इन्द्रोंकी स्थितिपर्यन्त असिपत्रवन नामक नरक में वास करता है। उनमें भी जो ब्राह्मणोंकी हत्या करता है, वह सौ मन्वन्तरतक वहाँ रहता है। तलवारकी धारसे उसके शरीर के अंग निरन्तर करते रहते हैं। आहार न मिलने और यमदूतोंसे पीटे जानेके कारण वह जोर-जोर से चिल्लाता रहता है। तत्पश्चात् वह सौ जन्मोंतक मन्थान नामक कीड़ा, सौ जन्मोंतक सूअर, सात जन्मोंतक मुर्गा, सात जन्मोंतक सियार, सात जन्मोंतक बाघ, तीन जन्मोंतक भेड़िया और सात जन्मोंतक मेंढक होता है, साथ ही वह यमदूतसे निरन्तर पीटा भी जाता है। इसके बाद वह भारतवर्षमें महिष होता है, फिर उसकी शुद्धि हो जाती है॥ 953 ॥
हे सति जो मनुष्य गाँवों और नगरोंको जलाता है, वह क्षुरधार नामक नरकमें क्षत-विक्षत अंगोंवाला होकर तीन युगोंतक रहता है। तत्पश्चात् वह शीघ्र| ही प्रेत होता है और मुँहसे आग उगलते हुए पृथ्वीपर घूमता रहता है। फिर वह सात जन्मोंतक अपवित्र मल-मूत्र आदि पदार्थोंको खाता रहता है और सात जन्मोंतक कपोत होता है। तदनन्तर सात जन्मोंतक मानवयोनिमें उत्पन्न होता है और महान् शूलरोगये पीड़ित रहता है। पुनः वह सात जन्मोंतक गलित कुष्ठरोगसे ग्रस्त रहता है और तत्पश्चात् वह मनुष्य शुद्ध हो जाता है । ll 6-86 ।।
जो मनुष्य दूसरेके कानमें अपना मुख लगाकर परायी निन्दा करता है, परदोष निकालकर बड़ी बड़ी डॉग हाँकता है और देवता तथा ब्राह्मणकी निन्दा करता है, वह सूचीमुख नामक नरकमे तीन युगोंतक वास करता है। वहाँ उसके शरीरमें निरन्तर सूई चुभायी जाती है। तत्पश्चात् वह सात जन्मोंतक बिच्छू, सात जन्मोंतक सर्प, सात जन्मोंतक वज्रकीट और सात जन्मोंतक भस्मकीटकी योनिमें रहता है। तदनन्तर मानवयोनिमें जन्म लेकर वह महाव्याधिसे ग्रस्त रहता है, पुनः शुद्ध हो जाता है ।। 9-113 ॥
जो व्यक्ति गृहस्थोंके घरमें सेंध लगाकर वस्तुओंकी चोरी करता है और गौओं, बकरों तथा भेड़ोंको चुरा | लेता है; वह गोकामुख नामक नरकमें जाता है। वहाँपर यमदूतके द्वारा पीटा जाता हुआ वह तीन युगोंतक वास करता है। तत्पश्चात् वह सात जन्मोंतक रोगग्रस्त गौकी योनिमें तीन जन्मोंतक भेड़की योनिमें और तीन जन्मोंतक बकरेकी योनिमें जन्म पाता है। तत्पश्चात् वह मानवयोनिमें उत्पन्न होता है, उस समय वह नित्य रोगी, दरिद्र, भार्याहीन, बन्धु बान्धवरहित और दुःखी रहता है, उसके बाद वह शुद्ध हो जाता है ॥ 12-15 ॥
सामान्य द्रव्योंकी चोरी करनेवाला नक्रमुख नामक नरकमें जाता है। वहाँपर वह यमदूतके द्वारा पीटा जाता हुआ तीन वर्षोंतक निवास करता है, | तदनन्तर वह सात जन्मोंतक रोगसे पीड़ित रहनेवाला बैल होता है। उसके बाद वह मानवयोनिमें जन्म लेकर महान् रोगोंसे ग्रस्त रहता है और फिर शुद्ध जाता है ।। 16-17॥जो मनुष्य गायों, हाथियों, घोड़ों और सपका वध करता है; वह महापापी गजदंश नामक नरकमें जाता है और तीन युगौतक वहाँ वास करता है। यमदूत उसे हाथीदाँतसे निरन्तर पीटते रहते हैं। "तत्पश्चात् वह तीन जन्मोंतक हाथी, तीन जन्मोंतक -घोड़े, तीन जन्मोंतक गाय और तीन जन्मोंतक म्लेच्छकी योनिमें पैदा होता है, तदनन्तर वह मनुष्य शुद्ध हो जाता है ॥ 18-196 ।।
जो मनुष्य पानी पीती हुई प्यासी गायको - वहाँसे हटा देता है, वह कीड़ोंसे भरे तथा तप्त जलसे युक्त गोमुख नामक नरकमें जाता है। वहाँपर वह एक मन्वन्तरकी अवधितक सन्तप्त रहता है। तदनन्तर वह सात जन्मोंतक अन्त्य जातिमें उत्पन्न होकर गोहीन, महान् रोगी तथा दरिद्र मनुष्यके रूपमें रहता है। उसके बाद वह व्यक्ति शुद्ध हो जाता है । ll 20-22 ॥
जो भारतवर्षमें शास्त्र- वचनकी आड़ लेकर गोहत्या, ब्रह्महत्या, स्त्रीहत्या, भिक्षुहत्या तथा भ्रूणहत्या करता है और जो अगम्या स्त्रीके साथ समागम करता है, वह महापापी व्यक्ति चौदह इन्द्रोंके स्थितिपर्यन्त कुम्भीपाक नरकमें वास करता है। यमदूतके द्वारा वह निरन्तर पीटा जाता है, जिससे उसके शरीरके अंग चूर-चूर हो जाते हैं उसे कभी आगमें गिराया जाता है और कभी काँटोंपर लिटाया जाता है। उसे कभी तप्त तेलमें, कभी प्रतप्त लोहे में और ताँबेमें डाला जाता है, जिससे वह प्रत्येक क्षण तपता रहता है। उसके बाद वह हजार जन्मोंतक गीध सौ जन्मोंतक सूअर, सात जन्मोंतक कौवा और सात जन्मोंतक सर्प होता है। उसके बाद वह साठ हजार वर्षोंतक विष्ठाका कीड़ा और अनेक जन्मोंतक बैल होता है। तत्पश्चात् मानवयोनिमें जन्म लेकर कोढ़ी तथा दरिद्र होता है ।। 23-28 ॥
सावित्री बोली- आतिदेशिकी ब्रह्महत्या तथा गोहत्या कितने प्रकारकी होती है? मनुष्योंके लिये कौन स्त्री अगम्य होती है और कौन मनुष्य सन्ध्यासे विहीन है, कौन अदीक्षित है, तीर्थ प्रतिग्रही कौन है? कौन ग्रामयाजी द्विज है तथा कौन देवल ब्राह्मण है?हे वेदवेत्ताओंमें श्रेष्ठ। जो ब्राह्मण शूद्रोंके यहाँ रसोइयाका काम करता है, प्रमत्त है और शूद्रापति है-इन सभीके समस्त लक्षणोंको आप मुझे बतलाइये ॥ 29-31 ॥
धर्मराज बोले- हे साध्वि हे सुन्दरि श्रीकृष्णमें तथा उनकी मूर्ति, अन्य देवताओंमें तथा उनकी प्रतिमामें शिवमें तथा शिवलिंगमें, सूर्यमें तथा सूर्यकान्तमणिमें, गणेशमें तथा उनकी मूर्तिमें और दुर्गा तथा उनकी प्रतिमामें जो भेदबुद्धि रखता है, [उसे [आतिदेशिकी] ब्रह्महत्या लगती है ।। 32-33॥
जो व्यक्ति अपने गुरु अपने इष्टदेव तथा जन्म देनेवाली मातायें भेद मानता है; वह ब्रह्महत्या के पापका भागी होता है ॥ 34 ॥
जो भगवान् विष्णुके भक्तों तथा दूसरे देवताओंकी पूजा करनेवाले ब्राह्मणोंमें भेदबुद्धि करता है, उसे ब्रह्महत्याका पाप लगता है ॥ 35 ॥
जो मनुष्य ब्राह्मणके चरणोदक तथा शालग्रामके जलमें भेदबुद्धि करता है, वह ब्रह्महत्याके पापका भागी होता है ॥ 36 ॥
जो मनुष्य शिवके नैवेद्य तथा भगवान् विष्णुके नैवेद्यमें भेदबुद्धि रखता है, वह ब्रह्महत्याके पापका भागी होता है ॥ 37 ॥
जो व्यक्ति सर्वेश्वरोंके भी ईश्वर, सभी कारणोंके कारण, सबके आदिस्वरूप, सभी देवताओंके आराध्य, सबकी अन्तरात्मा, एक होते हुए भी अपनी योगमायाके प्रभावसे अनेक रूप धारण करनेमें सक्षम तथा निर्गुण श्रीकृष्णमें और ईशान शिवजीमें भेद करता है उसे ब्रह्महत्याका पाप लगता है ॥ 38-39 ॥
जो मनुष्य भगवती शक्तिकी उपासना करनेवालेके प्रति द्वेषभाव रखता है तथा शक्ति-शास्त्रोंकी निन्दा करता है, उसे ब्रह्महत्याका पाप लगता है ॥ 40 ॥
जो मनुष्य वेदोंमें प्रतिपादित रीतिसे पितृपूजन तथा देवार्चनका त्याग कर देता है और निषिद्ध विधिसे कर्म सम्पन्न करता है, वह ब्रह्महत्याके पापका भागी होता है ॥ 41 ॥
जो भगवान् हृषीकेश और उनके मन्त्रोंकी उपासना करनेवालोंकी निन्दा करता है और जो पवित्रोंके भी पवित्र, ज्ञानानन्द, सनातन, वैष्णवोंकेपरम आराध्य तथा देवताओंके सेव्य परमेश्वरकी पूजा नहीं करते; अपितु निन्दा करते हैं, वे ब्रह्महत्याके पापके भागी होते हैं ।। 42-43 ।।
जो कारणब्रह्मरूपिणी, सर्वशक्तिस्वरूपा, सर्वजननी, सर्वदेवस्वरूपिणी, सबके द्वारा वन्दित तथा सर्वकारण रूपिणी मूलप्रकृति महादेवीकी सदा निन्दा करते हैं; उन्हें ब्रह्महत्याका पाप लगता है ।। 44-45 ।।
जो मनुष्य पुण्यदायिनी कृष्णजन्माष्टमी, रामनवमी, शिवरात्रि, एकादशी और रविवार- इन पाँच पुण्य पर्वोक अवसरपर व्रत नहीं करते, वे चाण्डालसे भी बढ़कर पापी हैं और उन्हें ब्रह्महत्याका पाप लगता है ॥ 46-47 ॥
जो इस भारतवर्षमें अम्बुवाचीयोग (आर्द्रा नक्षत्रके प्रथम चरण) में पृथ्वी खोदते हैं या जलमें शौच आदि करते हैं, उन्हें ब्रह्महत्याका पाप लगता है ।। 48 ।।
जो मनुष्य अपने गुरु माता, पिता, साध्वी भार्या, गुरु, पुत्र तथा अनिन्दनीय आचरण करनेवाली पुत्रीका भरण-पोषण नहीं करता; उसे ब्रह्महत्याका पाप लगता है ॥ 49 ॥
जिसका विवाह न हुआ हो, जिसने पुत्र न देखा हो, अर्थात् पुत्रवान् न हो तथा जो भगवान् श्रीहरिकी भक्तिसे विमुख हो, वह ब्रह्महत्याके पापका भागी होता है ॥ 50 ॥
जो मनुष्य भगवान् श्रीहरिको नैवेद्य अर्पण किये बिना भोजन करता है, विष्णुका नित्य पूजन नहीं करता और पवित्र पार्थिव लिंगका पूजन नहीं करता; उसे ब्रह्महत्यारा कहा गया है ॥ 51 ॥
जो किसी मनुष्यको गायपर प्रहार करते हुए देखकर उसे नहीं रोकता और जो गाय तथा ब्राह्मणके बीचसे निकलता है, वह गोहत्याके पापका भागी होता है ॥ 52 ॥
जो मूर्ख ब्राह्मण गायोंको डंडोंसे पीटता है और बैलपर सवारी करता है, उसे प्रतिदिन गोहत्याका पाप लगता है ॥ 53 ॥
जो व्यक्ति गायोंको जूठा अन्न खिलाता है, बैलकी सवारी करनेवालेको भोजन कराता है और बैलकी सवारी करनेवालेका अन्न खाता है; उसे निश्चितरूपसे गोहत्याका पाप लगता है ॥ 54 ॥जो ब्राह्मण शूद्रापतिके यहाँ यज्ञ कराता है और उसका अन्न ग्रहण करता है, वह एक सौ गोहत्याक पापका भागी होता है; इसमें सन्देह नहीं है ॥ 55 ॥ जो मनुष्य पैरसे अग्निका स्पर्श करता है, गायोंको पैरसे मारता है और स्नान करके बिना पैर धोये देवालय में प्रवेश करता है; उसे गोहत्याका पाप लगता है ॥ 56 ॥
जो व्यक्ति गीले पैर भोजन करता है, गीले पैर सोता है और सूर्योदयके समय भोजन करता है; उसे अवश्य ही गोहत्याका पाप लगता है ॥ 57 ॥
जो द्विज पति पुत्रहीन स्त्रीका तथा योनिजीवी व्यक्तिका अन्न खाता है और जो त्रिकाल सन्ध्यासे विहीन है, उसे भी गोहत्याका पाप लगता है ॥ 58 ॥
जो स्त्री अपने पति तथा देवतामें भेदबुद्धि रखती है तथा कटु वचनोंसे अपने पतिको पीड़ित करती है. | उसे निश्चितरूपसे गोहत्याका पाप लगता है ॥ 59 ॥
जो मनुष्य गोचरभूमिको जोतकर उसमें अनाज बोता है या तालाब अथवा दुर्गमें फसल उगाता है, उसे निश्चय ही गोहत्याका पाप लगता है ॥ 60 ll
जो व्यक्ति पुत्रके मोहसे अथवा अज्ञानके कारण गोवधके प्रायश्चित्तमें व्यतिक्रम करता है, उसे निश्चित रूपसे गोहत्याका पाप लगता है ॥ 61 ॥
जो गायका स्वामी अराजकता तथा दैवोपद्रवके अवसरपर गायकी रक्षा नहीं करता तथा जो गायको पीड़ा पहुँचाता है, उस मूर्खको निश्चय ही गोहत्याका पाप लगता है 62 ॥
जो मनुष्य प्राणियों, देवमूर्ति, अग्नि, जल, नैवेद्य, पुष्प तथा अन्नको लाँघता है; वह निश्चितरूपसे गोहत्या के पापका भागी होता है ॥ 63 ॥
मेरे पास कुछ नहीं है-ऐसा जो सदा कहता है, झूठ बोलता है, दूसरोंको ठगता है और देवता तथा गुरुसे द्वेष करता है, उसे गोहत्याका पाप अवश्य लगता है ॥ 64 ॥ हे साध्वि! जो मनुष्य देवप्रतिमा, गुरु तथा ब्राह्मणको देखकर आदरपूर्वक प्रणाम नहीं करता उसे निश्चित रूपसे गोहत्याका पाप लगता है ॥ 65 ॥जो ब्राह्मण प्रणाम करनेवालेको क्रोधवश आशीर्वाद नहीं देता और विद्यार्थीको विद्या प्रदान नहीं करता, उसे अवश्य ही गोहत्याका पाप लगता है ।। 66 ॥
[ हे साध्वि!] यह मैंने आतिदेशिकी ब्रह्महत्या और गोहत्याका वर्णन कर दिया, अब मैं मनुष्योंके लिये गम्य स्त्रीके विषयमें तुमसे कह रहा हूँ, ध्यानपूर्वक सुनो ॥ 67 ॥
सभी मनुष्योंको केवल अपनी भावकि साथ गमन करना चाहिये - यह वेदोंका आदेश है। उसके अतिरिक्त अन्य स्त्री अगम्य है—ऐसा वेदवेत्ताओंने कहा है ॥ 68 ॥
हे सुन्दरि ! यह सब सामान्य नियम कहा गया, अब कुछ विशेष नियमोंको सुनो जो स्त्रियों विशेषरूपसे गमन करनेयोग्य नहीं हैं, उनके विषयमें बता रहा हूँ; ध्यानपूर्वक सुनो ।। 69 ।।
हे पतिव्रते । शूद्रोंके लिये ब्राह्मणकी पत्नी और ब्राह्मणोंके लिये शूद्रकी पत्नी अति अगम्य तथा निन्द्य है ऐसा लोक और वेदमें प्रसिद्ध है॥ 70 ॥
ब्राह्मणीके साथ समागम करनेसे शूद्र एक सौ गोहत्याके पापका भागी होता है और वह निश्चितरूपसे कुम्भीपाक नरक प्राप्त करता है तथा उस शुद्रके साथ ब्राह्मणी भी कुम्भीपाक नरकमें जाती है। अतः शूद्रोंके लिये ब्राह्मणकी स्त्री तथा ब्राह्मणोंके लिये शूद्रकी स्त्री सर्वथा अगम्य है । 713 ॥
यदि कोई विप्र शूद्रा नारीका सेवन करता है तो वह वृषलीपति कहा जाता है। वह विप्रजातिसे च्युत हो जाता है और वह चाण्डालसे भी बढ़कर अधम कहा गया है। उसके द्वारा दिया गया पिण्ड विष्ठातुल्य तथा तर्पण मूत्रके समान हो जाता है। उसके द्वारा प्रदत्त पिण्ड आदि पितरों तथा देवताओंको प्राप्त नहीं होता। करोड़ों जन्मोंमें पूजन तथा तप करके उस ब्राह्मणके द्वारा अर्जित किया गया पुण्य शूद्रा नारीके साथ गमन करनेसे नष्ट हो जाता है, इसमें सन्देह नहीं है। सुरापान करनेवाला, वेश्याओंका अन्न खानेवाला, शूद्रा नारीका सेवन करनेवाला, तप्त मुद्रा तथा तप्त त्रिशूल आदिसे दागे गये शरीरवाला तथा एकादशीको अन्न ग्रहण करनेवाला ब्राह्मण कुम्भीपाक नरकमें जाता है। ll72-76 ॥ब्रह्माजीने गुरुकी पत्नी, राजाकी पत्नी सौतेली माँ, पुत्री, पुत्रवधू, सार, गर्भवती स्त्री, बहन, पतिव्रता स्त्री, सहोदर भाईकी पत्नी, मामी, दादी, नानी, मौसी, भतीजी, शिष्या, शिष्यकी पत्नी, भाँजेकी स्त्री और भाईके पुत्रकी पत्नीको अति अगम्या कहा है। जो नराधम काममोहित होकर इनके साथ गमन करता है, उसे वेदों मातृगामी कहा गया है और उसे सौ ब्रह्महत्याका पाप लगता है। वह कोई भी कर्म करनेका पात्र नहीं रह जाता, वह अस्पृश्य है और लोकमें तथा वेदमें सब जगह उसकी निन्दा होती है। वह महापापी अत्यन्त क्लेशदायक कुम्भीपाक नरकमें जाता है ।। 77-81 ।।
जो शास्त्रोक्त विधानसे सन्ध्या नहीं करता अथवा सन्ध्या करता ही नहीं और जो तीनों कालोंकी सन्ध्यासे रहित है, वह द्विज सन्ध्याहीन द्विज कहा गया है ।। 82 ।।
जो अहंकारके कारण विष्णु, शिव, शक्ति, सूर्य तथा गणेश- इन देवोंके मन्त्रकी दीक्षा ग्रहण नहीं करता, उसे 'अदीक्षित' कहा गया है ।। 83 ।
गंगाके प्रवाहके दोनों ओरकी चार हाथकी चौड़ी भूमिको गंगागर्भ कहते हैं; वहींपर भगवान् नारायण निवास करते हैं। उस नारायणक्षेत्रमें मृत्युको प्राप्त होनेवाला व्यक्ति भगवान् श्रीहरिके धाममें पहुँच जाता है ॥ 84 ॥
वाराणसी, बदरिकाश्रम, गंगासागरसंगम, पुष्करक्षेत्र, हरिहरक्षेत्र, प्रभासक्षेत्र, कामाख्यापीठ हरिद्वार, केदारक्षेत्र, मातृपुर, सरस्वती नदी के तट पवित्र वृन्दावन, गोदावरीनदी, कौशिकीनदी, त्रिवेणी संगम और हिमालय- इन तीर्थो में जो मनुष्य कामनापूर्वक दान लेता है; वह तीर्थप्रतिग्राही है और इस दानग्रहणके कारण वह कुम्भीपाक नरकमें जाता है । ll85-88 ॥
जो ब्राह्मण शूद्रोंकी सेवा करता है तथा उनके यहाँ यज्ञ आदि कराता है, उसे ग्रामयाजी कहा गया है। देवताकी पूजा करके अपनी आजीविका चलानेवाला ब्राह्मण देवल कहा गया है। शुद्रके यहाँ रसोई बनाकर आजीविका चलानेवाले विप्रको सूपकार कहा गया है। सन्ध्या तथा पूजनकर्मसे विमुख विप्रको प्रमत्त तथा पतित कहा गया है। ll89-903 llहे कल्याणि । वृषलीपतिके समस्त लक्षणोंका वर्णन मैंने कर दिया है। ये सब महापापी हैं और वे कुम्भीपाक नामक नरकमें जाते हैं। [ हे साध्वि ।] जो पापी दूसरे कुण्डोंमें जाते हैं, उनके विषयमें अब मैं तुम्हें बता रहा हूँ; ध्यानपूर्वक सुनो ॥ 91 ॥