सूतजी बोले- पराम्बा देवीके मुखकमलसे वेद सिद्धान्तका बोधक जो आधा श्लोक* निकला था और जिसका उपदेश स्वयं देवीने वट-पटपर शयन करनेवाले विष्णुको किया था, उसीको पूर्वकालमें ब्रह्माजीने सौ करोड़ श्लोकोंके रूपमें विस्तृत कर दिया ॥ 1-2 ॥
तत्पश्चात् व्यासजीने शुकदेवजीको पढ़ानेके लिये इसके सारभागको एकत्र करके अठारह हजार श्लोकों तथा बारह स्कन्धोंसे युक्त श्रीमद्देवीभागवत नामक पुराणकी रचना की। वह पुराण अब भी | देवलोकमे वैसे ही विस्तृतरूपसे विद्यमान है । ll 3-4 ॥
इस पुराणके समान पुण्यदायक, पवित्र तथा पापनाशक दूसरा कोई पुराण नहीं है। इसके एक | एक पदका पाठ करनेसे मनुष्य अश्वमेधयज्ञका फल प्राप्त करता है ॥ 5 ॥
हे मुने! स्वयं अपने हाथसे देवीभागवतपुराण लिखकर या किसी लेखकसे लिखवाकर पुराणका वाचन करनेवाले विद्वानको इसे देकर वस्त्र तथा आभूषण आदिसे उनकी पूजा करके उनके प्रति व्यासबुद्धि रखकर नियमपूर्वक उनके मुखसे इस पुराणका श्रवण | करना चाहिये। कथाकी समाप्तिके दिन भाद्रपदपूर्णिमा तिथिको स्वर्णसिंहासनपर स्थापित करके इस पुराणका दान उस पौराणिक विद्वान्को करना चाहिये। पुनः दक्षिणाके रूपमें उन्हें विविध अलंकारों तथा सोनेके हारसे विभूषित और बछडेसे युक्त दूध देनेवाली कपिला गौ प्रदान करनी चाहिये ॥ 6-8 ॥
कथाके अन्तमें पुराणमें जितने अध्याय हैं; उतने ही ब्राह्मणों तथा उतनी ही सुवासिनियोंको, उतनी ही कुमारियों और बालकोंके साथ भोजन कराना चाहिये। उन सबमें देवीकी भावना करके वस्त्र, आभूषण, चन्दन, माला, पुष्प आदिसे उनकी पूजा करे एवं उत्तम पायसान्न (खीर) का भोजन कराये ॥ 9-10 ॥
मनुष्य इस पुराण के दानसे पृथ्वीके दानका फल प्राप्त करता है और इस लोकमें सुख भोगकर अन्तमें | देवीलोकको प्राप्त होता है ॥ 11 ॥जो इस श्रेष्ठ श्रीमद्देवीभागवतका नित्य भक्तिपूर्वक श्रवण करता है, उसके लिये कुछ भी कहीं और कभी दुर्लभ नहीं है। इसके श्रवणसे पुत्रहीन व्यक्तिको पुत्र, धन चाहनेवालेको धन और विद्याके अभिलाषीको विद्याकी प्राप्ति हो जाती है, साथ ही सम्पूर्ण पृथ्वीलोकमें वह कीर्तिमान् हो जाता है ॥ 12-13 ॥
जो स्त्री वन्ध्या, काकवन्ध्या अथवा मृतवन्ध्या हो; वह इस पुराणके श्रवणसे उस दोषसे मुक्त हो जाती है; इसमें सन्देह नहीं है ॥ 14 ॥
यह पुराण जिस घरमें विधिपूर्वक पूजित होकर स्थित रहता है, उस घरको लक्ष्मी तथा सरस्वती कभी नहीं छोड़तीं और वेताल, डाकिनी तथा राक्षस आदि वहाँ झाँकतेतक नहीं। यदि ज्वरग्रस्त मनुष्यको स्पर्श करके एकाग्रचित्त होकर इस पुराणका पाठ किया जाय तो दाहक ज्वर उसके मण्डलको छोड़कर भाग जाता है। इसकी एक सौ आवृत्तिके पाठसे क्षयरोग समाप्त हो जाता है ॥ 15-17 ॥
जो मनुष्य प्रत्येक सन्ध्याके अवसरपर दत्तचित्त होकर सन्ध्या-विधि सम्पन्न करके इस पुराणके एक-एक अध्यायका पाठ करता है, वह ज्ञानवान् हो जाता है ॥ 18 ॥
कार्य-अकार्यके अवसरोंपर इस पुराणके द्वारा शकुनका भी विचार करना चाहिये। हे मुने! उसकी विधिका वर्णन मेरे द्वारा पहले किया जा चुका है ॥ 19 ॥ शारदीय नवरात्रमें परम भक्तिसे इस पुराणका नित्य पाठ करना चाहिये। इससे जगदम्बा उस व्यक्तिपर प्रसन्न होकर उसकी अभिलाषासे भी अधिक फल प्रदान करती हैं ॥ 20 ॥
वैष्णव, शैव, सौर तथा गाणपत्यजनोंको अपने अपने इष्टदेवकी शक्तिकी सन्तुष्टिके लिये चैत्र, आषाढ़, आश्विन और माघ-इन मासोंके चारों नवरात्रों में इस पुराणका प्रयत्नपूर्वक पाठ करना चाहिये; इससे रमा, उमा आदि शक्तियाँ उसपर सदा प्रसन्न रहती हैं। हे मुने। इसी प्रकार वैदिकोंको भी अपनी गायत्रीकी प्रसन्नताके लिये इसका नित्य पाठ करना चाहिये। इस पुराणमें कहीं किसीका विरोधवचन नहीं है। [वैष्णव, सौर आदि] सभी जनोंकी उपासनासदा शक्तियुक्त ही होती है, इसलिये शक्तिको सन्तुष्ट करनेके लिये द्विजोंको इस पुराणका सदा पाठ करना चाहिये। स्त्रियों तथा शूद्रोंको चाहिये कि वे अज्ञानवश इसका कभी पाठ न करें, अपितु वे ब्राह्मणके मुखसे ही इसका नित्य श्रवण करें, यही मर्यादा है। अधिक कहनेसे क्या लाभ, मैं आपको इसका वास्तविक सार बताऊँगा । ll21 - 25 ॥
हे श्रेष्ठ मुनियो ! यह पुराण परम पवित्र तथा वेदोंका सारस्वरूप है। इसके पढ़ने तथा सुननेसे वेदपाठके समान फल प्राप्त होता है ॥ 26 ॥
गायत्री नामसे प्रतिपादित उन सच्चिदानन्द स्वरूपिणी ह्रींमयी भगवतीको मैं प्रणाम करता हूँ, वे हमारी बुद्धिको प्रेरणा प्रदानकरेंसच्चिदानन्दरूपां तां गायत्रीप्रतिपादिताम् ।
नमामि ह्रींमयीं देवीं धियो यो नः प्रचोदयात् ॥ 27 ॥ पौराणिकोंमें श्रेष्ठ सूतजीका यह वचन सुनकर नैमिषारण्यवासी तपोधन मुनियोंने बड़े समारोहके साथ उनका सम्मान किया ॥ 28 ॥
भगवतीके चरणकमलोंके उपासक वे सभी मुनि प्रसन्न हृदयवाले हो गये। इस पुराणके प्रभावसे वे परम शान्तिको प्राप्त हुए ॥ 29 ॥
मुनियोंने सूतजीको नमस्कार किया और बार बार क्षमा-प्रार्थना करके कहा- हे तात! इस संसार सागरसे पार करनेके लिये आप ही निश्चितरूपसे हमारे लिये नौकास्वरूप हैं ॥ 30 ॥
• इस प्रकार सभी श्रेष्ठ मुनियोंके समक्ष सभी वेदोंके गुह्य विषयरूप इस दुर्गाचरित्रप्रतिपादक श्रीमद्देवीभागवत पुराणको विनयसम्पन्न मुनिजनोंको सुनाकर तथा उनके आशीर्वादसे वृद्धिको प्राप्त होकर भगवतीके चरणकमलोंके भृंगस्वरूप सूतजी वहाँसे चले गये ॥ 31 ॥