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देवी भागवत महापुराण ( देवी भागवत)

Devi Bhagwat Purana (Devi Bhagwat Katha)

स्कन्ध 12, अध्याय 15 - Skand 12, Adhyay 15

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सप्तश्लोकी दुर्गा

शिवजी बोले- हे देवि! तुम भक्तोंके लिये सुलभ हो और समस्त कमका विधान करनेवाली हो। कलियुगमें कामनाओंकी सिद्धि हेतु यदि कोई उपाय हो तो उसे अपनी वाणीद्वारा सम्यक् रूपसे व्यक्त करो।

देवीने कहा- हे देव ! आपका मेरे ऊपर बहुत स्नेह है। कलियुगमें समस्त कामनाओंको सिद्ध करनेवाला जो साधन है वह बतलाऊँगी, सुनिये ! उसका नाम है 'अम्बास्तुति' ।

विनियोग — ॐ इस दुर्गासप्तश्लोकी स्तोत्रमन्त्र के - नारायण ऋषि हैं, अनुष्टुप् छन्द है, श्रीमहाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती देवता हैं, श्रीदुर्गाकी प्रसन्नता के लिये सप्तश्लोकी दुर्गापाठमें इसका विनियोग किया जाता है।

वे भगवती महामाया देवी ज्ञानियोंके भी चित्तको बलपूर्वक खींचकर मोहमें डाल देती हैं ॥ 1 ॥

माँ दुर्गे ! आप स्मरण करनेपर सब प्राणियोंका भय हर लेती हैं और स्वस्थ पुरुषोंद्वारा चिन्तन करनेपर उन्हें परम कल्याणमयी बुद्धि प्रदान करती हैं। दुःख, दरिद्रता और भय हरनेवाली देवि! आपके सिवा दूसरी कौन है, जिसका चित्त सबका उपकार करनेके लिये सदा ही दयाई रहता हो ॥ 2 ॥

नारायणि! आप सब प्रकारका मंगल प्रदान करनेवाली मंगलमयी हैं, आप ही कल्याणदायिनी शिवा है, आप सब पुरुषार्थीको सिद्ध करनेवाली, शरणागत वत्सला, तीन नेत्रोंवाली गौरी हैं; आपको नमस्कार है ॥ 3 ॥

शरणागतों, दीनों एवं पीड़ितोंकी रक्षामें संलग्न रहनेवाली तथा सबकी पीड़ा दूर करनेवाली नारायणी देवि! आपको नमस्कार है ॥ 4 ॥

सर्वस्वरूपा, सर्वेश्वरी तथा सब प्रकारकी शक्तियोंसे सम्पन्न दिव्यरूपा दुर्गे देवि! सब भयोंसे हमारी रक्षा | कीजिये आपको नमस्कार है ॥ 5 ॥देवि! आप प्रसन्न होनेपर सब रोगोंको नष्ट कर देती हैं और कुपित होनेपर मनोवांछित सभी कामनाओंका नाश कर देती हैं। जो लोग आपकी शरणमें हैं, उनपर विपत्ति तो आती ही नहीं; आपकी शरणमें गये हुए मनुष्य दूसरोंको शरण देनेवाले हो जाते हैं॥ 6 ॥

सर्वेश्वरि ! आप इसी प्रकार तीनों लोकोंकी समस्त बाधाओंको शान्त करें और हमारे शत्रुओंका नाश करती रहें ॥ 7 ॥

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देवी भागवत महापुराण
Index


  1. [अध्याय 1] गायत्रीजपका माहात्म्य तथा गायत्रीके चौबीस वर्णोंके ऋषि, छन्द आदिका वर्णन
  2. [अध्याय 2] गायत्रीके चौबीस वर्णोंकी शक्तियों, रंगों एवं मुद्राओंका वर्णन
  3. [अध्याय 3] श्रीगायत्रीका ध्यान और गायत्रीकवचका वर्णन
  4. [अध्याय 4] गायत्रीहृदय तथा उसका अंगन्यास
  5. [अध्याय 5] गायत्रीस्तोत्र तथा उसके पाठका फल
  6. [अध्याय 6] गायत्रीसहस्त्रनामस्तोत्र तथा उसके पाठका फल
  7. [अध्याय 7] दीक्षाविधि
  8. [अध्याय 8] देवताओंका विजयगर्व तथा भगवती उमाद्वारा उसका भंजन, भगवती उमाका इन्द्रको दर्शन देकर ज्ञानोपदेश देना
  9. [अध्याय 9] भगवती गायत्रीकी कृपासे गौतमके द्वारा अनेक ब्राह्मणपरिवारोंकी रक्षा, ब्राह्मणोंकी कृतघ्नता और गौतमके द्वारा ब्राह्मणोंको घोर शाप प्रदान
  10. [अध्याय 10] मणिद्वीपका वर्णन
  11. [अध्याय 11] मणिद्वीपके रत्नमय नौ प्राकारोंका वर्णन
  12. [अध्याय 12] भगवती जगदम्बाके मण्डपका वर्णन तथा मणिद्वीपकी महिमा
  13. [अध्याय 13] राजाजनमेजयद्वाराअम्बायज्ञऔरश्रीमद्देवीभागवतमहापुराणका माहात्म्य
  14. [अध्याय 14] श्रीमद्देवीभागवतमहापुराणकी महिमा
  15. [अध्याय 15] सप्तश्लोकी दुर्गा
  16. [अध्याय 16] देव्यपराधक्षमापनस्तोत्रम्
  17. [अध्याय 17] श्रीदुर्गाजीकी आरती