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देवी भागवत महापुराण ( देवी भागवत)

Devi Bhagwat Purana (Devi Bhagwat Katha)

स्कन्ध 9, अध्याय 31 - Skand 9, Adhyay 31

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सावित्रीका यमाष्टकद्वारा धर्मराजका स्तवन

श्रीनारायण बोले- [ हे नारद!] यमके मुखसे भगवतीके नामकीर्तनकी महिमा सुनकर सावित्रीके नेत्रोंमें अश्रु भर आये और उसका शरीर पुलकित हो गया। वह यमसे पुनः कहने लगी ॥ 1 ॥

सावित्री बोली- हे धर्म ! शक्तिस्वरूपा भगवती जगदम्बाका नामकीर्तन सबका उद्धार करनेवाला और | श्रोता तथा वक्ता - दोनोंके जन्म, मृत्यु तथा बुढ़ापेका नाश करनेवाला है॥ 2 ॥हे विभो ! भगवतीका यह कीर्तन दानवों, सिद्धों तथा तपस्वियोंका परम पद है और समस्त योगों तथा वेदोंका सेवनरूप ही है ॥ 3 ॥

मोक्षपद, अमरता और सभी प्रकारकी सिद्धियाँ श्रीशकिके उपासककी सोलहवीं कलाके भी बराबा नहीं हैं ॥ 4 ॥

हे वेदवेत्ताओंमें श्रेष्ठ मैं किस विधिसे उन भगवतीकी उपासना करूँ, मुझे यह बताइये। मैंने आपसे मनुष्योंके शुभ कर्मका मनोहर फल सुन लिया, | अब आप मुझे उनके अशुभ कर्मोंका फल बतानेकी कृपा कीजिये ॥ 53 ॥

हे ब्रह्मन्! ऐसा कहकर वह सावित्री भक्तिभावसे अपना कन्धा झुकाकर वेदोक्त स्तोत्रके द्वारा उन धर्मराजकी स्तुति करने लगी ॥ 66 ॥

सावित्री बोली- प्राचीन कालमें सूर्यने पुष्करक्षेत्रमें तपस्याके द्वारा धर्मकी उपासना की थी। उस समय जिन धर्मको सूर्यने पुत्ररूपमें प्राप्त किया, उन धर्मराजको मैं प्रणाम करती हूँ॥ 73 ॥ जो सभी प्राणियोंमें समभाव रखते हैं और जो सबके साक्षी है, अतः जिनका नाम शमन है—उन धर्मराजको मैं प्रणाम करती हूँ ॥ 83 ॥ जो कालके अनुसार इच्छापूर्वक विश्वके सम्पूर्ण प्राणियोंका अन्त करते हैं, उन भगवान् कृतान्तको मैं प्रणाम करती हूँ ॥ 93 ॥ जो सभी प्राणियोंको नियन्त्रणमें रखते हैं तथा पापियोंकी शुद्धिहेतु उन्हें दण्डित करनेके लिये हाथमें दण्ड धारण करते हैं, उन भगवान् दण्डधरको मैं प्रणाम करती हूँ ॥ 103 ॥ जो विश्वके सम्पूर्ण प्राणियोंके समयका निरन्तर परिगणन करते हैं तथा जो परम दुर्धर्ष हैं, उन भगवान् कालको मैं प्रणाम करती हूँ ॥ 113 ॥ जो तपस्वी, ब्रह्मनिष्ठ, संयमी, जितेन्द्रिय तथा जीवोंको उनके कर्मोंका फल देनेवाले हैं, उन भगवान् यमको मैं प्रणाम करती हूँ ॥ 123 जो | अपनी आत्मामें रमण करनेवाले, सर्वज्ञ, पुण्यात्माओंके मित्र तथा पापियोंके लिये क्लेशप्रद है; उन भगवान् पुण्यमित्रको मैं प्रणाम करती हूँ ॥ 133 ॥ ब्रह्माके | अंशसे जिनका जन्म हुआ है तथा जो सदा परब्रह्मका ध्यान करते रहते हैं ब्रह्मतेजसे दीप्तिमान् उन भगवान् | इसको मैं प्रणाम करती हूँ ॥ 143 ॥हे मुने! इस प्रकार प्रार्थना करके उस सावित्रीने यमराजको प्रणाम किया। तदनन्तर धर्मराजने उस सावित्रीको भगवतीके मन्त्र तथा प्राणियोंके कर्मफलके विषयमें बतलाया ॥ 153 ॥

जो मनुष्य प्रातःकाल उठकर इस यमाष्टकका नित्य पाठ करता है, उसे यमराजसे भय नहीं होता और वह समस्त पापोंसे मुक्त हो जाता है। यदि महान् पापी मनुष्य भी भक्तिपूर्वक नित्य इसका पाठ करे, तो यमराज अपने कायव्यूहसे निश्चितरूपसे उसे शुद्ध कर देते हैं ॥ 16-17॥

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देवी भागवत महापुराण
Index


  1. [अध्याय 1] प्रकृतितत्त्वविमर्श प्रकृतिके अंश, कला एवं कलांशसे उत्पन्न देवियोंका वर्णन
  2. [अध्याय 2] परब्रह्म श्रीकृष्ण और श्रीराधासे प्रकट चिन्मय देवताओं एवं देवियोंका वर्णन
  3. [अध्याय 3] परिपूर्णतम श्रीकृष्ण और चिन्मयी राधासे प्रकट विराट्रूप बालकका वर्णन
  4. [अध्याय 4] सरस्वतीकी पूजाका विधान तथा कवच
  5. [अध्याय 5] याज्ञवल्क्यद्वारा भगवती सरस्वतीकी स्तुति
  6. [अध्याय 6] लक्ष्मी, सरस्वती तथा गंगाका परस्पर शापवश भारतवर्षमें पधारना
  7. [अध्याय 7] भगवान् नारायणका गंगा, लक्ष्मी और सरस्वतीसे उनके शापकी अवधि बताना तथा अपने भक्तोंके महत्त्वका वर्णन करना
  8. [अध्याय 8] कलियुगका वर्णन, परब्रह्म परमात्मा एवं शक्तिस्वरूपा मूलप्रकृतिकी कृपासे त्रिदेवों तथा देवियोंके प्रभावका वर्णन और गोलोकमें राधा-कृष्णका दर्शन
  9. [अध्याय 9] पृथ्वीकी उत्पत्तिका प्रसंग, ध्यान और पूजनका प्रकार तथा उनकी स्तुति
  10. [अध्याय 10] पृथ्वीके प्रति शास्त्र - विपरीत व्यवहार करनेपर नरकोंकी प्राप्तिका वर्णन
  11. [अध्याय 11] गंगाकी उत्पत्ति एवं उनका माहात्म्य
  12. [अध्याय 12] गंगाके ध्यान एवं स्तवनका वर्णन, गोलोकमें श्रीराधा-कृष्णके अंशसे गंगाके प्रादुर्भावकी कथा
  13. [अध्याय 13] श्रीराधाजीके रोषसे भयभीत गंगाका श्रीकृष्णके चरणकमलोंकी शरण लेना, श्रीकृष्णके प्रति राधाका उपालम्भ, ब्रह्माजीकी स्तुतिसे राधाका प्रसन्न होना तथा गंगाका प्रकट होना
  14. [अध्याय 14] गंगाके विष्णुपत्नी होनेका प्रसंग
  15. [अध्याय 15] तुलसीके कथा-प्रसंगमें राजा वृषध्वजका चरित्र- वर्णन
  16. [अध्याय 16] वेदवतीकी कथा, इसी प्रसंगमें भगवान् श्रीरामके चरित्रके एक अंशका कथन, भगवती सीता तथा द्रौपदी के पूर्वजन्मका वृत्तान्त
  17. [अध्याय 17] भगवती तुलसीके प्रादुर्भावका प्रसंग
  18. [अध्याय 18] तुलसीको स्वप्न में शंखचूड़का दर्शन, ब्रह्माजीका शंखचूड़ तथा तुलसीको विवाहके लिये आदेश देना
  19. [अध्याय 19] तुलसीके साथ शंखचूड़का गान्धर्वविवाह, शंखचूड़से पराजित और निर्वासित देवताओंका ब्रह्मा तथा शंकरजीके साथ वैकुण्ठधाम जाना, श्रीहरिका शंखचूड़के पूर्वजन्मका वृत्तान्त बताना
  20. [अध्याय 20] पुष्पदन्तका शंखचूड़के पास जाकर भगवान् शंकरका सन्देश सुनाना, युद्धकी बात सुनकर तुलसीका सन्तप्त होना और शंखचूड़का उसे ज्ञानोपदेश देना
  21. [अध्याय 21] शंखचूड़ और भगवान् शंकरका विशद वार्तालाप
  22. [अध्याय 22] कुमार कार्तिकेय और भगवती भद्रकालीसे शंखचूड़का भयंकर बुद्ध और आकाशवाणीका पाशुपतास्त्रसे शंखचूड़की अवध्यताका कारण बताना
  23. [अध्याय 23] भगवान् शंकर और शंखचूड़का युद्ध, भगवान् श्रीहरिका वृद्ध ब्राह्मणके वेशमें शंखचूड़से कवच माँग लेना तथा शंखचूड़का रूप धारणकर तुलसीसे हास-विलास करना, शंखचूड़का भस्म होना और सुदामागोपके रूपमें गोलोक पहुँचना
  24. [अध्याय 24] शंखचूड़रूपधारी श्रीहरिका तुलसीके भवनमें जाना, तुलसीका श्रीहरिको पाषाण होनेका शाप देना, तुलसी-महिमा, शालग्रामके विभिन्न लक्षण एवं माहात्म्यका वर्णन
  25. [अध्याय 25] तुलसी पूजन, ध्यान, नामाष्टक तथा तुलसीस्तवनका वर्णन
  26. [अध्याय 26] सावित्रीदेवीकी पूजा-स्तुतिका विधान
  27. [अध्याय 27] भगवती सावित्रीकी उपासनासे राजा अश्वपतिको सावित्री नामक कन्याकी प्राप्ति, सत्यवान् के साथ सावित्रीका विवाह, सत्यवान्की मृत्यु, सावित्री और यमराजका संवाद
  28. [अध्याय 28] सावित्री यमराज-संवाद
  29. [अध्याय 29] सावित्री धर्मराजके प्रश्नोत्तर और धर्मराजद्वारा सावित्रीको वरदान
  30. [अध्याय 30] दिव्य लोकोंकी प्राप्ति करानेवाले पुण्यकर्मोंका वर्णन
  31. [अध्याय 31] सावित्रीका यमाष्टकद्वारा धर्मराजका स्तवन
  32. [अध्याय 32] धर्मराजका सावित्रीको अशुभ कर्मोंके फल बताना
  33. [अध्याय 33] विभिन्न नरककुण्डों में जानेवाले पापियों तथा उनके पापोंका वर्णन
  34. [अध्याय 34] विभिन्न पापकर्म तथा उनके कारण प्राप्त होनेवाले नरकका वर्णन
  35. [अध्याय 35] विभिन्न पापकर्मोंसे प्राप्त होनेवाली विभिन्न योनियोंका वर्णन
  36. [अध्याय 36] धर्मराजद्वारा सावित्रीसे देवोपासनासे प्राप्त होनेवाले पुण्यफलोंको कहना
  37. [अध्याय 37] विभिन्न नरककुण्ड तथा वहाँ दी जानेवाली यातनाका वर्णन
  38. [अध्याय 38] धर्मराजका सावित्री से भगवतीकी महिमाका वर्णन करना और उसके पतिको जीवनदान देना
  39. [अध्याय 39] भगवती लक्ष्मीका प्राकट्य, समस्त देवताओंद्वारा उनका पूजन
  40. [अध्याय 40] दुर्वासाके शापसे इन्द्रका श्रीहीन हो जाना
  41. [अध्याय 41] ब्रह्माजीका इन्द्र तथा देवताओंको साथ लेकर श्रीहरिके पास जाना, श्रीहरिका उनसे लक्ष्मीके रुष्ट होनेके कारणोंको बताना, समुद्रमन्थन तथा उससे लक्ष्मीजीका प्रादुर्भाव
  42. [अध्याय 42] इन्द्रद्वारा भगवती लक्ष्मीका षोडशोपचार पूजन एवं स्तवन
  43. [अध्याय 43] भगवती स्वाहाका उपाख्यान
  44. [अध्याय 44] भगवती स्वधाका उपाख्यान
  45. [अध्याय 45] भगवती दक्षिणाका उपाख्यान
  46. [अध्याय 46] भगवती षष्ठीकी महिमाके प्रसंगमें राजा प्रियव्रतकी कथा
  47. [अध्याय 47] भगवती मंगलचण्डी तथा भगवती मनसाका आख्यान
  48. [अध्याय 48] भगवती मनसाका पूजन- विधान, मनसा-पुत्र आस्तीकका जनमेजयके सर्पसत्रमें नागोंकी रक्षा करना, इन्द्रद्वारा मनसादेवीका स्तवन करना
  49. [अध्याय 49] आदि गौ सुरभिदेवीका आख्यान
  50. [अध्याय 50] भगवती श्रीराधा तथा श्रीदुर्गाके मन्त्र, ध्यान, पूजा-विधान तथा स्तवनका वर्णन