श्रीनारायण बोले- [ हे नारद!] यमके मुखसे भगवतीके नामकीर्तनकी महिमा सुनकर सावित्रीके नेत्रोंमें अश्रु भर आये और उसका शरीर पुलकित हो गया। वह यमसे पुनः कहने लगी ॥ 1 ॥
सावित्री बोली- हे धर्म ! शक्तिस्वरूपा भगवती जगदम्बाका नामकीर्तन सबका उद्धार करनेवाला और | श्रोता तथा वक्ता - दोनोंके जन्म, मृत्यु तथा बुढ़ापेका नाश करनेवाला है॥ 2 ॥हे विभो ! भगवतीका यह कीर्तन दानवों, सिद्धों तथा तपस्वियोंका परम पद है और समस्त योगों तथा वेदोंका सेवनरूप ही है ॥ 3 ॥
मोक्षपद, अमरता और सभी प्रकारकी सिद्धियाँ श्रीशकिके उपासककी सोलहवीं कलाके भी बराबा नहीं हैं ॥ 4 ॥
हे वेदवेत्ताओंमें श्रेष्ठ मैं किस विधिसे उन भगवतीकी उपासना करूँ, मुझे यह बताइये। मैंने आपसे मनुष्योंके शुभ कर्मका मनोहर फल सुन लिया, | अब आप मुझे उनके अशुभ कर्मोंका फल बतानेकी कृपा कीजिये ॥ 53 ॥
हे ब्रह्मन्! ऐसा कहकर वह सावित्री भक्तिभावसे अपना कन्धा झुकाकर वेदोक्त स्तोत्रके द्वारा उन धर्मराजकी स्तुति करने लगी ॥ 66 ॥
सावित्री बोली- प्राचीन कालमें सूर्यने पुष्करक्षेत्रमें तपस्याके द्वारा धर्मकी उपासना की थी। उस समय जिन धर्मको सूर्यने पुत्ररूपमें प्राप्त किया, उन धर्मराजको मैं प्रणाम करती हूँ॥ 73 ॥ जो सभी प्राणियोंमें समभाव रखते हैं और जो सबके साक्षी है, अतः जिनका नाम शमन है—उन धर्मराजको मैं प्रणाम करती हूँ ॥ 83 ॥ जो कालके अनुसार इच्छापूर्वक विश्वके सम्पूर्ण प्राणियोंका अन्त करते हैं, उन भगवान् कृतान्तको मैं प्रणाम करती हूँ ॥ 93 ॥ जो सभी प्राणियोंको नियन्त्रणमें रखते हैं तथा पापियोंकी शुद्धिहेतु उन्हें दण्डित करनेके लिये हाथमें दण्ड धारण करते हैं, उन भगवान् दण्डधरको मैं प्रणाम करती हूँ ॥ 103 ॥ जो विश्वके सम्पूर्ण प्राणियोंके समयका निरन्तर परिगणन करते हैं तथा जो परम दुर्धर्ष हैं, उन भगवान् कालको मैं प्रणाम करती हूँ ॥ 113 ॥ जो तपस्वी, ब्रह्मनिष्ठ, संयमी, जितेन्द्रिय तथा जीवोंको उनके कर्मोंका फल देनेवाले हैं, उन भगवान् यमको मैं प्रणाम करती हूँ ॥ 123 जो | अपनी आत्मामें रमण करनेवाले, सर्वज्ञ, पुण्यात्माओंके मित्र तथा पापियोंके लिये क्लेशप्रद है; उन भगवान् पुण्यमित्रको मैं प्रणाम करती हूँ ॥ 133 ॥ ब्रह्माके | अंशसे जिनका जन्म हुआ है तथा जो सदा परब्रह्मका ध्यान करते रहते हैं ब्रह्मतेजसे दीप्तिमान् उन भगवान् | इसको मैं प्रणाम करती हूँ ॥ 143 ॥हे मुने! इस प्रकार प्रार्थना करके उस सावित्रीने यमराजको प्रणाम किया। तदनन्तर धर्मराजने उस सावित्रीको भगवतीके मन्त्र तथा प्राणियोंके कर्मफलके विषयमें बतलाया ॥ 153 ॥
जो मनुष्य प्रातःकाल उठकर इस यमाष्टकका नित्य पाठ करता है, उसे यमराजसे भय नहीं होता और वह समस्त पापोंसे मुक्त हो जाता है। यदि महान् पापी मनुष्य भी भक्तिपूर्वक नित्य इसका पाठ करे, तो यमराज अपने कायव्यूहसे निश्चितरूपसे उसे शुद्ध कर देते हैं ॥ 16-17॥