जगत्के सृष्टिकार्यमें जो उत्पत्तिरूपा, रक्षाकार्यमें पालनशक्तिरूपा, संहारकार्यमें रौद्ररूपा हैं, सम्पूर्ण विश्व-प्रपंच जिनके लिये क्रीडास्वरूप है, जो परा पश्यन्ती- मध्यमा तथा वैखरी वाणीमें अभिव्यक्त होती हैं और जो ब्रह्मा-विष्णु-महेशद्वारा निरन्तर आराधित हैं, वे प्रसन्न चित्तवाली देवी भगवती मेरी वाणीको अलंकृत (परिशुद्ध) करें ॥ 1 ॥
[बदरिकाश्रमनिवासी प्रसिद्ध ऋषि] श्रीनारायण तथा नरोंमें श्रेष्ठ श्रीनर, भगवती सरस्वती और महर्षि वेदव्यासको प्रणाम करनेके पश्चात् ही जय (इतिहासपुराणादि सद्ग्रन्थों) का पाठ-प्रवचन करना चाहिये ॥ 2 ॥
ऋषिगण बोले- हे सूतजी ! हे महामते ! हे व्यासशिष्य ! आप दीर्घजीवी हों; आप हमलोगोंको नानाविध पुण्यप्रदायिनी एवं मनोहारिणी कथाएँ सुनाते रहते हैं ॥ 3 ॥
भगवान् विष्णुके सर्वपापविनाशक, परम पवित्र एवं उन अवतार-कथाओंसे सम्बन्धित अद्भुत चरित्रोंको हमने भक्तिपूर्वक सुना और इसी प्रकार हमने भगवान् शिवके अलौकिक चरित्र तथा भस्म और रुद्राक्षके ऐतिहासिक माहात्म्यका श्रवण आपके मुखारविन्दसे किया ।। 4-5 ॥
हमलोग अब ऐसी परम पावन कथा सुनना चाहते हैं, जो बिना प्रयासके ही मनुष्योंको भोग एवं मोक्ष प्रदान करनेमें पूर्णरूपसे सहायक हो ॥ 6 ॥
हे महाभाग ! अतः आप उस कथाका वर्णन करें, जिसके द्वारा मानव कलियुगमें भी सिद्धियाँ प्राप्त कर लें; क्योंकि हम आपसे बढ़कर किसी अन्यको नहीं जानते हैं, जो हमारी शंकाओंका निवारण कर सके ॥ 7 ॥सूतजी बोले- हे महाभाग ऋषियो! आपलोगोंने लोककल्याणकी भावनासे अत्यन्त उत्तम प्रश्न किया है, अतः मैं आप सभीके लिये समस्त शास्त्रोंका जो सार है, उसे पूर्णरूपसे बताऊँगा ॥ 8 ॥
समस्त तीर्थ, पुराण और व्रत [ अपनी श्रेष्ठताका वर्णन करते हुए] तभीतक गर्जना करते हैं, जबतक मनुष्य श्रीमद्देवीभागवतका सम्यक्रूपसे श्रवण नहीं कर लेते ॥ 9 ॥ मनुष्योंके लिये पापरूपी अरण्य तभीतक दुःखप्रद
एवं कंटकमय रहता है, जबतक श्रीमद्देवीभागवतरूपी परशु (कुठार) उपलब्ध नहीं हो जाता ॥ 10 ॥
मनुष्योंको उपसर्ग (ग्रहण) - रूपी घोर अन्धकार तभीतक कष्ट पहुँचाता है, जबतक श्रीमद्देवीभागवतरूपी सूर्य उनके सम्मुख उदित नहीं हो जाते ॥ 11 ॥
ऋषिगण बोले- हे वक्ताओंमें श्रेष्ठ महाभाग सूतजी ! आप हमें बतायें कि वह श्रीमद्देवीभागवतपुराण कैसा है और उसके श्रवणकी विधि क्या है ? उस पुराणको कितने दिनोंमें सुनना चाहिये, [उसके श्रवणकी अवधि में] पूजन-विधान क्या है, प्राचीन कालमें किन-किन मनुष्योंने इसे सुना और उनकी कौन-कौनसी कामनाएँ पूर्ण हुईं ? ॥ 12-13 ॥
सूतजी बोले- प्राचीन कालमें पराशरऋषिद्वारा सत्यवतीके गर्भ से विष्णुके अंशस्वरूप मुनि व्यास उत्पन्न हुए, जिन्होंने वेदोंका चार विभाग करके उन्हें अपने शिष्योंको पढ़ाया ॥ 14 ॥
पतितों, ब्राह्मणाधमों, वेदाध्ययनके अनधिकारियों, स्त्रियों एवं दूषित बुद्धिवाले मनुष्योंको धर्मका ज्ञान कैसे हो-मनमें ऐसा विचार करके भगवान् बादरायण व्यासजीने उनके धर्मज्ञानार्थ पुराण-संहिताका प्रणयन किया ।। 15-16 ॥
उन भगवान् व्यासमुनिने अठारह पुराणों एवं महाभारतका प्रणयन करके सर्वप्रथम मुझे ही पढ़ाया ॥ 17 ॥
उन पुराणोंमें श्रीमद्देवीभागवतपुराण भोग एवं मोक्षको देनेवाला है। व्यासजीने राजा जनमेजयको यह पुराण स्वयं सुनाया था ॥ 18 ॥पूर्वकालमें इन जनमेजयके पिता राजा परीक्षित् तक्षक नागद्वारा काट लिये गये। अतः पिताकी संशुद्धि (शुभगति) के लिये राजाने तीनों लोकोंकी जननी देवी भगवतीका विधिवत् पूजन-अर्चन करके नौ | दिनोंतक व्यासजीके मुखारविन्दसे इस श्रीमद्देवीभागवत पुराणका श्रवण किया । 19-20 ॥
इस नवाहयज्ञके सम्पूर्ण हो जानेपर राजा परीक्षित्ने उसी समय दिव्यरूप धारण करके देवीका सालोक्य प्राप्त किया ।। 21 । l
राजा जनमेजय अपने पिताकी दिव्य गति देखकर और महर्षि वेदव्यासकी विधिवत् पूजा करके परम प्रसन्न हुए ॥ 22 ॥
सभी अठारह पुराणोंमें यह श्रीमद्देवीभागवतपुराण
सर्वश्रेष्ठ है और धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्षको प्रदान
करनेवाला है ॥ 23 ॥ जो लोग सदा भक्ति - श्रद्धापूर्वक श्रीमद्देवीभागवतकी कथा सुनते हैं, उन्हें सिद्धि प्राप्त होनेमें रंचमात्र भी विलम्ब नहीं होता। इसलिये मनुष्योंको इस पुराणका सदा पठन- श्रवण करना चाहिये ॥ 24 ॥
पूरे दिन, दिनके आधे समयतक, चौथाई समयतक,
मुहूर्तभर अथवा एक क्षण भी जो लोग भक्तिपूर्वक
इसका श्रवण करते हैं, उनकी कभी भी दुर्गति नहीं होती ॥ 25 ॥ मनुष्य सभी यज्ञों, तीर्थों तथा दान आदि शुभ कर्मोंका जो फल प्राप्त करता है, वही फल उसे केवल एक बार श्रीमद्देवीभागवतपुराणके श्रवणसे प्राप्त हो जाता है॥ 26 ॥ सत्ययुग आदि युगों में तो अनेक प्रकारके धर्मोका विधान था, किंतु कलियुगमें पुराण-श्रवणके अतिरिक्त मनुष्योंकि लिये अन्य कोई सरल धर्म विहित नहीं है॥ 27 ॥ कलियुगमें धर्म एवं सदाचारसे रहित तथा अल्प आयुवाले मनुष्योंके कल्याणार्थ महर्षि वेदव्यासने अमृतरसमय श्रीमद्देवीभागवतनामक पुराणकी रचना की ।। 28 ।।
अमृतके पानसे तो केवल एक ही मनुष्य अजर अमर होता है, किंतु भगवतीका कथारूप अमृत सम्पूर्ण कुलको ही अजर-अमर बना देता है ॥ 29 ॥श्रीमद्देवीभागवतके कथा-श्रवणम महाना तथा दिनोंका कोई भी नियम नहीं है। अतएव मानवोंद्वारा इसका सदा ही सेवन (पठन-श्रवण) किया जाना चाहिये ॥ 30 ॥
आश्विन, चैत्र, माघ तथा आषाढ़-इन महीनोंक चारों नवरात्रोंमें इस पुराणका श्रवण विशेष फल प्रदान करता है ॥ 31 ॥
अतएव श्रीमद्देवीभागवत का यह नवाहयज्ञ समस्त पुण्यकर्मोंसे अधिक फलदायक होनेके कारण मनुष्योंके लिये विशेष पुण्यप्रद कहा गया है ॥ 32 ॥ जो कलुषित हृदयवाले, पापी, मूर्ख, मित्रद्रोही, वेदोंकी निन्दा करनेवाले, हिंसामें रत और नास्तिक मार्गका अनुसरण करनेवाले मनुष्य हैं, वे भी कलियुगमें इस नवाहयज्ञके अनुष्ठानसे पवित्र हो जाते हैं ॥ 33 ॥
जो मनुष्य दूसरोंके धन तथा परायी स्त्रियोंके लिये लालायित रहते हैं, पापके बोझसे दबे हुए हैं और गो-ब्राह्मण-देवताओंकी भक्तिसे रहित हैं, वे भी इस नवाहयज्ञसे शुद्ध हो जाते हैं ॥ 34 ॥
जो फल कठिन तपस्याओं, व्रतों, तीर्थसेवन, अनेकविध दान, नियमों, यज्ञों, हवन एवं जप आदिके करनेसे प्राप्त नहीं होता है, वह फल मनुष्योंको श्रीमद्देवी भागवतके नवाहयज्ञसे प्राप्त हो जाता है ॥ 35 ॥
हे विप्रो ! गंगा, गया, काशी, नैमिषारण्य, मथुरा, पुष्कर तथा बदरिकारण्य भी मनुष्योंको उतना शीघ्र पवित्र नहीं कर पाते हैं, जितना कि श्रीमद्देवीभागवतका यह नवाहयज्ञ लोगोंको पवित्र कर देता है ॥ 36 ॥ अतएव श्रीमद्देवीभागवतपुराण सभी पुराणोंमें श्रेष्ठतम है। इसे धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्षकी प्राप्तिका उत्तम साधन माना गया है ॥ 37 ॥
जो आश्विन महीनेके शुक्लपक्षमें सूर्यके कन्या राशिमें पहुँचनेपर महाष्टमी तिथिको स्वर्ण-सिंहासनपर स्थित देवीके प्रीतिप्रद श्रीमद्देवीभागवत-ग्रन्थका पूजन करके उसे किसी योग्य ब्राह्मणको श्रद्धापूर्वक देता है, वह देवीके परमपदको प्राप्त करता है ॥ 38-39 ।। जो मनुष्य प्रतिदिन श्रीमद्देवीभागवतपुराणके एक अथवा आधे श्लोकका भी भक्तिपूर्वक पाठ करता है, वह जगदम्बाका कृपापात्र हो जाता है ॥ 40 ॥महामारीसे उत्पन्न उपद्रवोंके भीषण भय तथा समस्त प्रकारके उत्पात (उल्कापात, भूकम्प, अतिवृष्टि, अनावृष्टि आदि) इस श्रीमद्देवीभागवतपुराणके श्रवण मात्रसे विनष्ट हो जाते हैं 41 ॥
बालग्रहों * (स्कन्दग्रह, स्कन्दापस्मार, शकुनी, रेवती, पूतना, अन्धपूतना, शीतपूतना, मुखमण्डिका और नैगमेष) तथा भूत-प्रेत आदिसे उत्पन्न भय इस श्रीमद्देवीभागवत पुराणके श्रवणसे बहुत दूरसे ही भाग जाते हैं ॥ 42 ॥
जो व्यक्ति भक्ति-भावसे देवीके इस भागवत पुराणका पाठ अथवा श्रवण करता है; वह धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्राप्त कर लेता है ॥ 43 ॥
इस श्रीमद्देवीभागवतपुराणके श्रवणसे वसुदेवजी प्रसेनको खोजने के लिये गये हुए और बहुत समयतक
न लौटे हुए अपने प्रिय पुत्र श्रीकृष्णको प्राप्त करके
प्रसन्न हुए ॥ 44 ॥
जो मनुष्य भक्तिपूर्वक इस श्रीमद्देवीभागवतपुराणकी कथाको पढ़ता है तथा इसका श्रवण करता है, वह भोग तथा मोक्ष दोनों प्राप्त कर लेता है ॥ 45 अमृतस्वरूप इस श्रीमद्देवीभागवतके श्रवणसे पुत्रहीन मनुष्य पुत्रवान् हो जाता है, दरिद्र व्यक्ति धनसे सम्पन्न हो जाता है तथा रोगग्रस्त मनुष्य रोगसे मुक्त हो जाता है ॥ 46 वन्ध्या स्त्री, एक सन्तानवाली स्त्री अथवा वह स्त्री जिसकी सन्तान पैदा होकर मर जाती हो-वे भी श्रीमद्देवीभागवतपुराण सुनकर दीर्घ आयुवाला पुत्र प्राप्त करती हैं ॥ 47 जिस घरमें नित्य श्रीमद्देवीभागवतपुराणका पूजन किया जाता है, वह घर तीर्थस्वरूप हो जाता है तथा उसमें निवास करनेवाले लोगोंके पापोंका नाश हो जाता है ll 48 ll
जो मनुष्य अष्टमी, नवमी अथवा चतुर्दशी तिथियोंको श्रद्धापूर्वक इसे पढ़ता या सुनता है, वह परम सिद्धिको प्राप्त करता है ।। 49 ।।इस श्रीमद्देवीभागवतपुराणका पाठ करनेवाला ब्राह्मण वेदवेत्ताओंमें अग्रगण्य हो जाता है, क्षत्रिय राजा हो जाता है, वैश्य धन-सम्पदासे सम्पन्न हो जाता है और शूद्र भी इसके श्रवणमात्रसे अपने कुल (बन्धु बान्धवों) के बीच श्रेष्ठता प्राप्त कर लेता है ॥ 50 ॥