नारदजी बोले – हे नारायण! हे धराके आधार ! हे सर्वपालनकारण! आपने पापोंका नाश करनेवाले देवीचरित्रका वर्णन कर दिया ॥ 1 ॥
सभी मन्वन्तरोंमें वे देवी जो-जो स्वरूप धारण करती हैं तथा जिस-जिस स्वरूपसे उन माहेश्वरीका प्रादुर्भाव हुआ है- भगवतीकी महिमासे युक्त उन समस्त प्रसंगोंका अब आप हमसे सम्यक् वर्णन करें ॥ 2-3 ॥
जिस प्रकारसे तथा जिस-जिस मन्त्र अथवा स्तोत्रसे भगवतीका पूजन तथा स्तवन किया गया है और वे भक्तवत्सला देवी भक्तोंका जिस प्रकार मनोरथ पूर्ण करती हैं, सुननेकी अभिलाषावाले हमलोगोंसे आप देवीके उस उत्तम चरित्रका वर्णन कीजिये, जिससे महान् सुख प्राप्त होता है ।। 3-43 ॥
श्रीनारायण बोले- हे महर्षे! भक्तोंके हृदयमें भक्ति उत्पन्न करनेवाले, महान् सम्पदा प्रदान करनेवाले तथा पापोंका शमन करनेवाले देवी चरित्रका अब आप श्रवण कीजिये ॥ 53 ॥
सर्वप्रथम जगत्के मूल कारण महानू तेजस्वी | लोकपितामह ब्रह्मा चक्रधारी देवदेव भगवान् विष्णुके नाभिकमलसे प्रादुर्भूत हुए ॥ 6-3 ॥
हे महामते ! विष्णुके नाभिकमलसे प्रकट होकर उन चतुर्मुख ब्रह्माने स्वायम्भुव नामक मनुको अपने मनसे उत्पन्न किया। इस प्रकार वे मनु परमेष्ठी ब्रह्माके मानस पुत्र कहलाये। पुनः ब्रह्माजीने धर्मस्वरूपिणी शतरूपाको उत्पन्न किया और उन्हें मनुकी पत्नीकेरूपमें प्रतिष्ठित किया। तत्पश्चात् वे मनु क्षीरसागरके | परम पवित्र तटपर महान् सौभाग्य प्रदान करनेवाली | जगदम्बाकी आराधना करने लगे ॥ 7–93 ॥
वहाँपर देवीकी मृण्मयी मूर्ति बनाकर पृथ्वीपति मनु एकान्तमें उन भगवतीके वाग्भव-मन्त्रका जप | करते हुए उनकी उपासनामें तत्पर हो गये ॥ 103 ॥
नियमों तथा व्रतोंका पालन करते हुए निराहार रहकर श्वासको नियन्त्रित करके वे सौ वर्षोंतक निरन्तर पृथ्वीपर एक पैरसे खड़े रहे। महात्मा मनुने काम तथा क्रोधपर विजय प्राप्त कर ली। अपने हृदयमें भगवतीके चरणोंका चिन्तन करते हुए वे किसी स्थावरकी भाँति हो गये ।। 11-123 ॥
उनकी उस तपस्यासे जगन्मयी भगवती प्रकट हो गयीं और उन्होंने यह दिव्य वचन कहा - 'हे भूपाल! तुम वर माँगो' ॥ 133 ॥
तब देवीका आनन्ददायक वचन सुनकर महाराज मनुने देवताओंके लिये भी परम दुर्लभ अपने मनोभिलषित उन श्रेष्ठ वरोंकी याचना की ॥ 143 ॥
मनु बोले - हे देवि ! हे विशालनयने ! हे समस्त प्राणियोंके भीतर निवास करनेवाली! आपकी जय हो । हे मान्ये! हे पूज्ये ! हे जगद्धात्रि! हे सर्वमंगलमंगले! आपके कटाक्षपातमात्रसे पद्मयोनि ब्रह्मा जगत्की सृष्टि करते हैं, भगवान् विष्णु पालन करते हैं तथा रुद्र क्षणभरमें संहार करते हैं, शचीपति इन्द्र आपकी ही आज्ञासे तीनों लोकोंपर शासन करते हैं । ll 15- 17 ॥
आपके ही आदेशपर यमराज दण्डके द्वारा प्राणियोंको नियन्त्रित करते हैं तथा जलचर जीवोंके स्वामी वरुणदेव हम जैसे प्राणियोंका पालन करते हैं। आपकी ही कृपासे कुबेर निधियोंके अविनाशी अधिपतिके रूपमें प्रतिष्ठित हैं। अग्नि, नैर्ऋत, वायु, ईशान और आपके ही अंशसे उत्पन्न हुए हैं और आपकी ही शक्तिसे परिवर्धित हैं ।। 18-193 ॥
फिर भी हे देवि! यदि इस समय आप मुझे वर देना चाहती हैं तो हे शिवे ! सृष्टिकार्यमें आनेवाले | मेरे सभी विघ्न क्षीण होकर नष्ट हो जायँ। जो भीलोग वाग्भव बीजमन्त्रके उपासक हों, उनके कार्योंकी सिद्धि शीघ्र ही हो जाय। हे देवि ! जो लोग इस संवादको पढ़ें और दूसरोंको सुनायें, उनके लिये इस लोकमें भोग तथा मोक्ष सुलभ हो जायँ । हे शिवे ! उन्हें पूर्वजन्मोंकी स्मृति बनी रहे और वे वक्तृता तथा वाणी-सौष्ठवसे सम्पन्न रहें। उन्हें ज्ञानकी सिद्धि हो तथा कर्मयोगकी भी सिद्धि प्राप्त हो, साथ ही उनके यहाँ पुत्र-पौत्रकी समृद्धि निरन्तर होती रहे-यही मेरा आपसे निवेदन है ॥ 20–24॥