शौनकजी बोले- [हे सूतजी!] यह तो आपने आदिमन्वन्तरका उत्तम उपाख्यान कहा, अब दिव्य तेजवाले अन्य मनुओंकी उत्पत्तिका वर्णन कीजिये ॥ 1 ॥
सूतजी बोले- इसी प्रकार भगवतीके तात्त्विक रहस्योंको पूर्णरूपेण जाननेवाले परम ज्ञानी देवर्षि नारदजीने भी आद्य स्वायम्भुव मनुकी उत्पत्तिका प्रसंग सुनकर क्रमशः अन्य मनुओंके प्रादुर्भावके विषयमें भगवान् नारायणसे पूछा था ॥ 23 ॥ नारदजी बोले – हे सनातन! मनुओंकी उत्तम उत्पत्तिके विषयमें मुझे भलीभाँति बताइये ॥ 3 ॥श्रीनारायण बोले- हे महामुने! मैंने इन आद्य स्वायम्भुव मनुका वर्णन कर दिया, जिन्होंने देवीकी उपासनासे निष्कण्टक राज्य प्राप्त किया। उन मनुके प्रियव्रत तथा उत्तानपाद नामक महान् तेजस्वी दो पुत्र हुए। राज्यका भलीभाँति पालन करनेवाले वे दोनों भूलोकमें अति प्रसिद्ध हुए ।। 4-5 ।।
विद्वानोंने स्वारोचिष मनुको द्वितीय मनु कहा है। अमित पराक्रमवाले वे श्रीमान् स्वारोचिष मनु राजा प्रियव्रतके पुत्र थे ॥ 6 ॥
सभी प्राणियोंका हित करनेवाले वे स्वारोचिष | नामक मनु यमुनाके तटपर निवास करने लगे। वे सूखे पत्तोंके आहारपर रहकर एक महान् व्रतीके रूपमें तपस्या करनेमें संलग्न हो गये और भगवतीकी मृण्मयी मूर्ति बनाकर भक्तिपूर्वक उनकी पूजा करने लगे ।। 7-8 ॥
हे तात! इस प्रकार वनमें रहकर बारह वर्षोंतक तपस्या करनेवाले उन मनुके समक्ष हजारों सूर्योंके समान तेजवाली देवी प्रकट हो गयीं ॥ 9 ॥
तत्पश्चात् उत्तम व्रतका पालन करनेवाली उन देवेश्वरीने उस स्तवराजसे प्रसन्न होकर स्वारोचिष मनुको सम्पूर्ण मन्वन्तरका आधिपत्य प्रदान कर दिया। उसी समयसे भगवती जगद्धात्रीको तारिणी मानकर उनकी उपासना करनेकी प्रथा चल पड़ी ॥ 103 ॥
इस प्रकार स्वारोचिष मनुने उन तारिणीदेवीकी उपासनासे समस्त शत्रुओंसे रहित राज्य प्राप्त कर लिया। इसके अनन्तर वे ऐश्वर्यसम्पन्न मनु विधिपूर्वक धर्मकी स्थापना करके पुत्रोंके साथ अपना राज्य भोगकर अन्तमें अपने मन्वन्तरका अधिकार त्यागकर स्वर्गलोक चले गये ॥ 11-123 ॥
इसके बाद प्रियव्रतके उत्तम नामक पुत्र तृतीय मनु हुए। उन्होंने गंगाके तटपर रहकर एकान्तमें निरन्तर भगवतीके वाग्भव मन्त्रका जप करते हुए तीन वर्षोंतक तप करके देवीका अनुग्रह प्राप्त किया ।। 13-14 ॥
भक्तिपूर्ण मनसे उत्तम स्तोत्रोंके द्वारा भगवतीकी स्तुति करके उन्होंने निष्कंटक राज्य तथा दीर्घजीवी सन्तान प्राप्त की ॥ 15 ॥राज्यसे प्राप्त होनेवाले सुखोंका भोग करके तथा युग-धर्मोका पालन करके वे अन्य श्रेष्ठ राजर्षियोंद्वारा प्राप्त पदपर पहुँच गये ॥ 16 ॥
तामस नामवाले चौथे मनु प्रियव्रतके पुत्र थे । नर्मदा नदीके दक्षिणी तटपर गुह्य कामबीज मन्त्रका सतत जप करते हुए उन्होंने जगद्व्यापिनी महेश्वरीकी आराधना की। चैत्र तथा आश्विनमासके नवरात्रमें उपासनाके द्वारा उन्होंने कमलके समान नेत्रोंवाली अनुपमेय देवेश्वरीको सन्तुष्ट किया ॥ 17-183 ॥
अति श्रेष्ठ स्तोत्रोंसे देवीका स्तवन करके उनकी कृपा प्राप्तकर तामस मनुने निःशंक होकर निष्कण्टक विशाल राज्यका भोग किया ॥ 193 ॥
अपनी भार्यासे दस ओजस्वी, शक्तिशाली तथा पराक्रमी पुत्र उत्पन्न करके वे उत्तम लोकको प्राप्त हुए ॥ 203॥
तामस मनुके अनुज रैवतको पाँचवाँ मनु कहा गया है। यमुनाके तटपर रहकर उन्होंने परम वाक् शक्ति तथा प्रतिष्ठा प्रदान करनेवाले एवं साधकोंके लिये आश्रयस्वरूप कामबीजसंज्ञक मन्त्रका जप किया ।। 21-22 ॥
भगवतीकी इस आराधनासे उन्होंने उत्तम समृद्धिसे सम्पन्न अपना राज्य तथा जगत्में सभी सिद्धियाँ प्रदान करनेवाला अप्रतिहत बल प्राप्त कर लिया। उन्होंने शुभ तथा पुत्र-पौत्रसे सम्पन्न सन्तति प्राप्त की। पुनः लोकमें धर्मकी स्थापना करके, राज्यकी व्यवस्था करके तथा राज्य-सुख भोगकर अप्रतिम शूर उन रैवत मनुने उत्तम इन्द्रपुरीके लिये | प्रस्थान किया ।। 23-24॥