इस सूत्रके 'अथ' और 'अत:' शब्दसे यह प्रतीत होता है कि भक्तिमार्गके आचार्य परम भक्तशिरोमणि, सर्वभूतहितमें रत, दयानिधि देवर्षि नारदजी अन्यान्य सिद्धान्तोंकी व्याख्या तो कर चुके; अब जीवोंके कल्याणार्थ परम कल्याणमयी भक्तिके स्वरूप और साधनोंकी व्याख्या आरम्भ करते हैं।