वैदिक कर्मके साथ ही लौकिक जीविका, गृहस्थ- पालन आदिके कार्य भी सावधानीके साथ भगवदनुकूल विधिके अनुसार करने चाहिये।
अवश्य ही एक ऐसी स्थिति होती है जिसमें वैदिक, लौकिक कार्य अनायास ही छूट जाते हैं; परंतु उस स्थितिके प्राप्त होनेतक दोनों प्रकारके कर्म विधिवत् अवश्य करने चाहिये। फिर तो आप ही छूट जायँगे।
परन्तु आहारादि कर्म उस अवस्थामें भी रहेंगे। कारण, वे शरीरके लिये आवश्यक हैं। यद्यपि प्रेमके नशेमें चूर भक्त आहारादिके लिये न तो कोई इच्छा करता है और न चेष्टा ही करता है, परन्तु आहारादि प्राप्त होनेपर अभ्यासवश अनायास ही उसके द्वारा आहार कर लिया जाता है। अवश्य ही वह भी भगवत्प्रसाद ही होता है।