अपने तन, मन, धनको भगवान्की पूजन-सामग्री समझना और परम श्रद्धापूर्वक यथाविधि तीनोंके द्वारा भगवान्की प्रतिमाकी अथवा विश्वरूप भगवान्की पूजा करनी चाहिये। भगवत्-पूजामें मन लगनेसे संसारके बन्धनकारक विषयोंसे मन अपने-आप ही हट जाता है। बाह्य और मानस दोनों ही प्रकारसे भगवान्की पूजा होनी चाहिये। भगवत्की पूजासे भगवान्का परमपद प्राप्त होता है
श्रीविष्णोरर्चनं ये तु प्रकुर्वन्ति नरा भुवि ।
ते यान्ति शाश्वतं विष्णोरानन्दं परमं पदम् ॥
अर्थात...
‘इस धरातलमें जो लोग भगवान्की पूजा करते हैं वे सनातन आनन्दमय परमपदको प्राप्त होते हैं।'