माहात्म्यज्ञान बिना स्त्रियोंके द्वारा किसी पुरुषके प्रति किया जानेवाला ऐसा प्रेम जारोंका-सा प्रेम होता है। जिस प्रेममें सर्वार्पण है, जिसमें लौकिक स्वार्थकी तनिक सी गन्ध भी नहीं है, ऐसा प्रेम केवल भगवान् के प्रति ही हो सकता है। यद्यपि जाने-अनजाने किसी प्रकार भी भगवान्के प्रति किया हुआ प्रेम निष्फल नहीं होता, परन्तु जानकर होनेवाले प्रेममें विशेषता होती है। भगवान् हमारे प्रियतम हैं, इस कल्पनामें ही कितना अपार आनन्द है। फिर जिनको वे भगवान् परम प्रियतमरूपमें प्राप्त हो जायँ, उनके सुखका तो कहना ही क्या है ? गोपियाँ इसी परम पवित्र दिव्य सुखकी भागिनी थीं। इसीसे जीवन्मुक्त महात्मा शुकदेव मुनिने मृत्युके लिये तैयार हुए राजा परीक्षितको यह पवित्र प्रेमलीला सुनायी थी। अतएव यह प्रेम भगवत्-माहात्म्यके ज्ञानसे युक्त परम पवित्र था।