यद्यपि भक्तिमें इस ज्ञानकी तो परम आवश्यकता है कि मैं जिसकी भक्ति करता हूँ वे ही सबके स्वामी, सबके आधार, सबके महेश्वर, जगत्के उत्पन्न, पालन और संहार करनेवाले, मायाके पति, अज, अविनाशी, सर्वशक्तिमान्, सर्वज्ञ, सर्वात्मा, निर्गुण, निर्विकार, निराकार, सगुण साकार भगवान् हैं, उनसे श्रेष्ठ और कुछ भी नहीं। क्योंकि इतना ज्ञान भी यदि न होगा तो श्रद्धा नहीं होगी; श्रद्धा बिना प्रीति नहीं होगी और प्रीति बिना भक्ति दृढ़ नहीं होगी।
जानें बिनु न होइ परतीती। बिनु परतीति होइ नहिं प्रीती ॥
प्रीति बिना नहिं भगति दिढ़ाई। जिमि खगपति जल कै चिकनाई ॥
परन्तु इसमें अद्वैतज्ञानके साधनकी आवश्यकता नहीं होती। केवल श्रद्धा और भावसे ही परमात्माकी भक्ति प्राप्त हो जाती है ।
गृध्रराज, गजेन्द्र, ध्रुव, शबरी आदिने केवल भगवान्की ऐसी ही भक्तिसे भगवान्को प्राप्त किया था।