ऐसा भी होता है। गौणी भक्तिसे भगवान्के तत्त्वका ज्ञान होता है और तत्त्वके जाननेसे भगवान्में अत्यन्त प्रेम उत्पन्न होता है। परन्तु केवल भक्तिके प्रेमीजन इस मतकी परवा नहीं करते। क्योंकि वे इस बातको जानते हैं कि जब निर्मल प्रेमस्वरूपा भक्तिका पूर्ण उदय होता है तब किसीका ज्ञान अलग रह ही नहीं जाता। प्रेमी और प्रेमास्पद दोनों एक हो जाते हैं। फिर किसका ज्ञान किसको होगा ?